तुम चले आओ....

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सोमेश.....सोमेश......,आवाज़ लगाती हुई कविता बाहर गार्डन में भाग कर आई। रोज़ की तरह आज भी सोमेश अपने खाने का डब्बा घर पर भूल कर जा रहे थे। कविता ऐसे ही पीछे भाग कर सोमेश भाई को ऑफिस जाते हुए सामान पकड़ाती थी।इसे सोमेश भाई की लापरवाही कहा जाए या कविता का प्यार ? चलो जो कुछ भी था मगर दोनों के जीवन की गाड़ी बड़े प्यार से आगे बढ़ रही थी।कविता मंत्रालय में पर्सनल असिस्टेंट के पद पर कार्यरत थी और सोमेश इंजीनियर था। उन दोनो को एक बड़ा ही प्यारा बेटा था वासु। दोनों जी भर कर प्यार लुटाते