चीते की सवारी

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1. रात माँ फिर दिखाई देती है...... लहू से लथपथ........लाल आग में जलती हुई..... ’’हम माँ को क्यों जला रहे हैं ?’’ मैं पापा से पूछता हूँ........ ’’यह लहू तभी टपकना बंद होगा जब इन्हें जला दिया जाएगा,’’ जलाऊ लकड़ियों के ढेर से पापा और लकड़ियाँ उठाते हैं और माँ को ढँकने लगते हैं....... लेकिन उन लकड़ियों से टकराते ही माँ की कलाई से ढीठ, सुर्ख लाल लहू फिर छपछपाने लगता है...... ’’माँ !’’ मैं चिल्लाता हूँ...... माँ गायब हो जाती है...... और उनकी चीख मेरे पास लौट आती है- ’मरती मर जाऊँगी लेकिन तुझे तेरे वहशी बाप का नाम