मुझे न्याय चाहिए - भाग 10

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भाग-10   छी ....! नरेश मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि तुम अपने ही भाई के विषय में ऐसी गंदी सोच रखते हो. आज मुझे तुम्हें अपना बेटा कहते हुए भी शर्म आरही है, चले जाओ यहाँ से....! अभी इसी वक्त कहीं ऐसा न हो कि मैं तुम्हें तुम्हारी इन्हीं हरकतों की वजह से घर के बाहर निकल दूँ. गुस्से में भुनभुनाता हुआ नरेश कमरे से बाहर निकल गया. इतने में बाहर से आती हुई लक्ष्मी ने उनकी सारी बातें सुनली. वह अंदर पहुँचकर अपने रोज के काम में लग गयी. अभी इस समय उसने रुक्मणी जी से