एक अनोखा डर

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एक अनोखा डर लेखक: विजय शर्मा एरीशब्द संख्या: लगभग १५००रात के दो बज रहे थे। दिल्ली की उस ऊँची इमारत की २७वीं मंज़िल पर विजय शर्मा अपनी कुर्सी पर पीछे झुका हुआ था। सामने लैपटॉप की स्क्रीन पर चौंतीस मेल अनरीड दिख रहे थे, दायीं तरफ़ रखा फ़ोन हर दस सेकंड में वाइब्रेट कर रहा था। उसने आँखें बंद कीं।“मैं कौन हूँ?” अचानक यह सवाल उसके दिमाग़ में कौंधा।तीस साल की उम्र में वह ‘विजय शर्मा’ नहीं, ‘विजय शर्मा, सीईओ, थंडरबर्ड टेक्नोलॉजीज़’ था। नाम के साथ पद चिपक गया था जैसे कोई टैटू जो मिटाया नहीं जा सकता।बचपन में वह इलाहाबाद