================== स्नेहिल नमस्कार मित्रों कितनी गति से भाग रहा है जीवन ! हम मुँह ताकते रह जाते हैँ और वह हमारे सामने से गुज़र जाता है । बात यह नहीं है कि हम जीवन को पकड़ नहीं पा रहे हैं ,बात है कि जीवन की अठखेलियाँ हमें सरल,सहज जीकन नहीं जीने देतीं अथवा यह कह लें कि हम स्वयं ही अपने वायदों,अपने विश्वास ,अपने जुड़ाव पर स्थिर नहीं रह पाते । हम स्वयं में न देखकर सामने वाले की ओर मुख घुमाए रखते हैं और वहीं स्वयं से चूक जाते हैं । हमारा व्यक्तित्व