त्रिया चरित्र

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एक रोज शाम के वक्त चम्पा किसी काम से बाजार गई हुई थी और मगनदास हमेशा की तरह चारपाई पर पड़ा सपने देख रहा था रम्भा अद्भूत कहता के साथ आ कर उसके सामने खड़ी हो गई उसका भोला चेहरा कमल की तरह खिला हुआ था और आँखों से सहानुभुति का भाव झलक रहा था मगनदास ने पहले तो उसकी और आश्चर्य और फिर प्रेम की निगाहों से देखा और दिल पर जोर डाल कर बोला, आओ रम्भा तुम्हें देखने को बहुत दिन से आंखे तरस रही थी रम्भा ने भोलेपन से कहा मैं यहां न आती तो तुम मुझसे कभी न बोलते मगनदास का हौंसला बढ़ा और वो बोला...