साँझ में उगा सूरज

  • 6.1k
  • 1.9k

मुझे हमेशा से ही हैरानी होती रही है , क्या इंसानियत इतनी भी गिर सकती है...! तीन-तीन बेटे थे उनके किसी को भी दया नहीं आयी अपनी माँ पर , उनकी अपनी माँ जो घर का मुख्य स्तम्भ थी उसकी दुर्गति होती रही और वो देखते रहे ,जो सुनता वही उन पर लानत देता , माना बहुएं तो पराई थी पर बेटे तो उनके ही थे ...छि लानत है ऐसे बेटों पर। मुझे बहुत ही हिकारत सी होती उन तीनो पर। माँ आटा घोल कर पीती रही ,बेटे माल उड़ाते रहे। दिन-दिन उनकी हालत और भी खराब होती गयी। अब तो वो भैया को भी कमरे में आने नहीं देती थी तो भैया को तो पहले ही उनसे लगाव नहीं था, दूसरे कमरे में सोने लगे वो। एक दिन खबर मिली की भाभी लगभग मरणासन्न पड़ी थी अपने बिस्तर पर मल -मूत्र से भरी। फिर तो डॉक्टर के पास ले जाया गया ,इलाज़ भी हुआ। पर उनके मन की कोई भी सुनने वाला नहीं था।