जिन्दगी --- एक दिन

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ओह ! आज फिर ताले टूटे हैं ! ना जाने क्या मिलता है लोगों को, स्कूल बंद हो जाने के बाद यहाँ के शौचालय इस्तेमाल किस लिए करते हैं ! वह खुद से सवाल से कर रही थी। तेज़ गंध बदबू से मितली सी हो आई उसे। उफ्फ़ ! अरे भई , शौचलय इस्तेमाल तो किया तो किया, फ्लश भी तो चलाया जा सकता है ! सफाई कर्मचारी को आवाज़ देते हुए उसे साफ करने को कहा। परेशान हो गई थी वह। कभी गंदगी मिलती तो कभी शौचालय की दीवारों पर अश्लील नाम और चित्रकारी मिलती। वह कभी -कभी अपनी सहयोगी सुहासी से चुहल भी कर उठती कि अगर किसी को काम शास्त्र का ज्ञान नहीं है तो वह यहाँ से ले सकता है। लेकिन जो भी था वह गलत ही तो था। बच्चों पर क्या असर पड़ता। कितनी ही बार वह दीवारों को पुतवा चुकी थी और साफ तो रोज़ ही करवाना पड़ता।