उसे बड़ी मुश्किल से यह काम मिला था। तीन महीने तक वह भटका था। क्या-क्या पापड़ नहीं बेले। न जाने कितने लोगों से मिला। न जाने कहां-कहां धक्के खाए। फुटपाथों पर सोना पड़ा, कभी कुछ खाया, कभी नहीं। फिर गुरुद्वारे में लंगर में खाने लगा। वहीं साफ-सफाई भी कर देता था। आशा-निराशा के बीच डूबता-उतराता रहा था वह। उसका काम बड़ा अजीब था। चेहरे पर रंग पोतकर कंपनी के किसी प्रॉडक्ट को लेकर खड़ा रहना था। उसे कंपनी वाले ने समझाया, ‘देखो यह प्रचार का एक अलग तरीका है।