शपथपत्र

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सेवानिवृत्त होने से पहले क्या क्या रंगीन सपने थे सिन्हा साहेब की आँखों में. सोचते थे जीवन भर जिन जिन शौकों के लिए समय निकालने के लिए तरसते रह गये उन्हें पूरा करने का अवसर अंत में आ ही गया .अब वे किताबे जिनके जैकेट पढ़कर लोलुप होने के बाद भी जिनपर केवल सरसरी दृष्टि डालकर आलमारी में सहेजकर रख देने के सिवा कोई चारा न था ,प्यार से बाहर निकाली जायेंगी ,पढी जायेंगी. सर्दियों की गुनगुनी धूप को बालकनी में बैठकर चुमकारने ,गले से लगाने के अवसर जो कभी कभार रविवार या छुट्टी के दिन आते थे अब .नियमित रूप से हर दिन आयेंगे.