अब कहीं और नहीं

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शर्मा जी फफक कर रो पड़े। जैसे सदियों से जबरन बांधकर रखी हुई नदी को अचानक बहने का रास्ता मिल गया हो। अपनी हथेली से आंसुओं को पोंछते हुए वे बोले, अब तुम्हें क्या बताता कि वे जाकर एक विधवा के साथ रहने लगे थे। —— इसी कहानी से। बुढ़ापे की त्रासदी व्यक्त करती रतन चंद रत्नेश की एक चर्चित कहानी।