दुरिया

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दूरियाँ उससे मिलने के लिए मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी । आज ज्यों ही उस पर नजर पड़ी थी, मेरा मन बेताब हो उठा था । आश्चर्य और उल्लास से भर उठा था । चाहता तो उसी वक्त मिल सकता था, पर वहाँ का वातावरण मुझे उपयुक्त न लगा था और मन—ही—मन मैंने दफ्रतर से छुट्‌टी पाने के बाद उससे मिलने की येाजना बना डाली थी । पिफर अपनी सीट पर वापस लौटकर मैंने पफाइलों में खोने की भरसक कोशिश की, पर न जाने क्यों, पफाइलों में मन रमा नहीं । सुबह दफ्रतर आते ही मैंने ढेर—सारी पफाइलें निकाल