लौटते हुए

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लौटते हुए ‘बंगला' खचाखच भरा हुआ था । सभी लोग आ—आकर बैठते जा रहे थे । कहते हैं, बहुत पहले यहाँ दूसरा बंगला बना हुआ था । तब विदेशी हुकूमत थी । गाँव के मुखिया थे राम टहल बाबा । उन्हीं की देखरेख में बंगले की सारी कार्यवाही हुआ करती थी । कलक्टर, दरोगा, सिपाही—जो भी गाँव में आता, सबसे पहले उसी बंगले में बैठाया जाता था । जमकर आव—भगत होती । राम टहल बाबा उनसे घुल—मिलकर बातें करते और पिफर गाँव के जिस किसी से उन्हें मिलना रहता, तत्काल वहीं बुलवाया जाता । गाँव के अनगिनत लठैत भी बाबा की