टेंटुआ

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टेंटुआ रमनथवा हजाम का घिघियाना बाबू दीनानाथ सिंह ने हवा में उछालकर बैरंग लौटा दिया, ‘‘नहीं, तू अगर अपना कल्याण चाहता है तो भलेमानस जैसा वापस लौटकर चूल्हे भाड़ में जा । जब कटनी का मौका आया तो चला है हजामत बनाने ? तबे तो लोग—लुगाई कहते हैं— नाई—धेबी—दर्जी, तीन जाति अलगर्जी ।'' बाबू दीनानाथ सिंह के मुँह से एक भद्दी—सी गाली बरछी की नाई निकली और रमनथवा हजाम के कलेजे में चुभ गयी । मगर मरता क्या न करता । गिड़गिड़ाना रमनथवा नाई की नियति है और गरियाना बाबू साहब की बपौती । ‘‘काहे विरोध् करते हैं सिंह साहेब ?