दंश

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पिताजी सदा ही एक तानाशाह रहे। उस समय वातावरण ही कुछ ऐसा था। विश्व में हिटलर और मुसोलिनी का जोर था तो भारत के हर घर में एक हिटलर अपनी कमजोर पत्नी व बच्चों पर अपने जुल्म तोड़ता था। खाना कभी ठंडा रह गया था, उसमें मिर्च तेज हो गयी तो तश्तरियाँ उड़न-तश्तरियों की तरह घर में नाचने लगतीं। माँ का सहमा हुआ चेहरा, मार से सूजा हूआ बदन हमारे मस्तिष्क में छप-सा गया है। पिताजी का शांत स्वर तो हमने कभी सुना ही नहीं था-झल्लाहट के बिना वह बात नहीं कर पाते थे। मैंने अक्सर यह अनुभव किया था कि पिताजी का व्यवहार मेरे साथ कुछ विशेष ही कड़वा रहता था। कारण-मेरी ऑंखों में भरा विद्रोह था अथवा उनके मन का अपना अपराध-बोध-कह नहीं सकता। और यह दूरी दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी। किंतु मुझे कुछ न कर पाने की अपनी असमर्थता बहुत कचोटती थी।