रेत के शिखर

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यह आर्ट और कला से अधिक बेकार की वस्तु तो कोई है ही नहीं। जब भूख लगती है तो प्रेमचंद के उपन्यास भूख नहीं मिटाते, महादेवी और पंत की कविताओं का बिस्तर बनाकर सो नहीं सकते। कोई बात है कि मैं यहाँ बिस्तर में अकेला पड़ा हूँ और तुम नोट्स बनाये जा रही हो मंजुला महेश का आशय समझ गयी थी। किताब बंद करके वह महेश के पौरुष को पूर्णता प्रदान करने के लिए आ गयी थी। अपने पति को वह यह नहीं समझा सकती थी कि पुरुष को पूर्णता प्रदान करने में स्वयं के अधूरे रह जाने का एहसास कितना पीड़ादायक है नारी के लिए। क्या उसे अपने व्यक्तित्व को पूर्ण बनाने का अधिकर नहीं