ढब्बू जी अब जल संरक्षण की ओर

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“ लो आ गए तुम्हारे ढब्बूजी ”कमली ने आँगन में सीन्कचों के झाड़ू लगाते हुए खुद को रोका । छपाक की आवाज़ के साथ दो भाग में तहाया हुआ धर्मयुग आँगन की दीवार को फान्दता हुआ गिरा था । कमली जब तक उसे उठा कर किनारे रखती रमेश ने लपक कर उठा लिया था धर्मयुग । “ क्या कहते हैं जी तुम्हारे ढब्बू जी ? ”कमली मे कुचुर कुचुर झाड़ू की सींकचे चलाते हुए पूछा था और फिक्क से हँस दी थी ।