देवों की घाटी - 17

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जो व्यक्ति जितना ज्यादा घूमता है, वह उतना ही ज्यादा अनुभवी भी होता है। इसलिए बालकों में बचपन से ही यात्राओं में रुचि लेने की आदत डालनी चाहिए। यात्राएँ उनको अनुभवी और जिज्ञासु दोनों बनाती हैं। इस पुस्तक में निक्की और मणिका नाम के दो बच्चे अपने दादाजी जैसे अनुभवी व्यक्ति के साथ उत्तराखण्ड के जिला कोटद्वार के रास्ते भारत के आखिरी गाँव ‘माणा’ तक की यात्रा करते हैं। इस बीच अनेक रोचक घटनाएँ घटित होती हैं, जिनसे बालक बहुत-कुछ सीखते और समझते हैं। तो आइए चलते हैं—नैसर्गिक सुन्दरता के धनी, देवों की घाटी कहे जाने वाले उत्तराखण्ड के सुदूर गढ़वाल क्षेत्र में यात्रा की कहानी यानी बाल उपन्यास देवों की घाटी का सत्रहवाँ यानी अन्तिम हिस्सा…