छलिया

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विवेक कातर नज़रों से देख रहा था और कह रहा था , सुरभि मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता और मेरा लक्ष्य जो कि मेरा जुनून बन चुका है उसे भी नहीं खोना चाहता हूँ । मुझे सिर्फ दो साल का समय दो। दो साल बाद मैं तुमसे यहीं मिलूंगा। चाहे मैं कामयाब होता हूँ या नहीं। मेरी बात का विश्वास करो। सुरभि के पास बहुत सारे शब्द थे लेकिन वह अवाक् थी। बस हाँ में गर्दन ही हिला पाई। विवेक तो चला गया लेकिन सुरभि को लगा कि उसकी देह से किसी ने प्राण ही खींच लिए हो। कुछ दिन तक निष्प्राण सी रही , फिर खुद ही अपने आप को समझाया कि दो साल तो यूँ ही निकल जायेंगे। वह इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है। विवेक की राह में अड़चन कैसे बन सकती थी वह। अब वह भी कॉलेज में पढने लगी थी।शादी की बात पर टाल मटोल करती सुरभि ने एक दिन घर पर सभी को सच बता ही दिया कि वह दो साल से पहले और विवेक के अलावा किसी और से शादी नहीं कर सकती। और अब !! अब जबकि विवेक ने ही विवाह कर लिया है तो वह घर वालों को क्या जवाब देगी।भरे मन और आँखों से वह बैठी सोच रही थी। कबूतरों का नृत्य अब भी जारी था। सुरभि को अब ये नृत्य नहीं भा रहा था। उसने अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमा ली। सामने से उसे विवेक और उसके साथ एक युवती आते दिखाई दिए।