नॉमिनी

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नॉमिनी मधु अरोड़ा (1) तुम्‍हारी हर बार की चुप्‍पी का क्‍या अर्थ समझूं? जब जब मैं तुमसे तुम्‍हारे परिवार के बारे में कोई सवाल करती हूं या जानना चाहती हूं तुम ख़ुद को ख़ोह में क्‍यों बंद कर लेते हो? कभी बता पाओगे? तुम्‍हारे पिताजी जो उल्‍टी-सीधी ख़तो-किताबत करते रहते हैं इसका क्‍या अर्थ लगाऊं? एक मुसीबत से उबरती हूं तो दूसरी खड़ी हो जाती है। इन मुसीबतों को भी क्‍या मैं ही मिलती हूं? देख लो रवि, सारी कारस्‍तानियां तुम्‍हारे परिवार से ही क्‍यों शुरू होती हैं? तुम्‍हारी पसन्‍द हूं न मैं? फिर अपना मुंह क्‍यों नहीं खोलते? तुम्‍हारी

Full Novel

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नॉमिनी - 1

नॉमिनी मधु अरोड़ा (1) तुम्‍हारी हर बार की चुप्‍पी का क्‍या अर्थ समझूं? जब जब मैं तुमसे तुम्‍हारे परिवार बारे में कोई सवाल करती हूं या जानना चाहती हूं तुम ख़ुद को ख़ोह में क्‍यों बंद कर लेते हो? कभी बता पाओगे? तुम्‍हारे पिताजी जो उल्‍टी-सीधी ख़तो-किताबत करते रहते हैं इसका क्‍या अर्थ लगाऊं? एक मुसीबत से उबरती हूं तो दूसरी खड़ी हो जाती है। इन मुसीबतों को भी क्‍या मैं ही मिलती हूं? देख लो रवि, सारी कारस्‍तानियां तुम्‍हारे परिवार से ही क्‍यों शुरू होती हैं? तुम्‍हारी पसन्‍द हूं न मैं? फिर अपना मुंह क्‍यों नहीं खोलते? तुम्‍हारी ...Read More

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नॉमिनी - 2

नॉमिनी मधु अरोड़ा (2) कुछ सोचकर उसने अपने ससुर को फोन लगाया। फोन पर ससुरजी की आवाज़ गूंजी, ‘बेटे लिफाफा मिल गया?’ सपना ने कहा, ‘मैं सपना बोल रही हूं। लिफाफा मिल गया है। आपने रूपये किस चीज़ के दिये हैं, यदि आपको ऐतराज़ न हो तो मुझे बतायेंगे?’ दूसरी ओर से आवाज़ आई, ‘मैंने अपना बंगला बेचा है, तो जो फायदा हुआ है, उसमें से अपने बेटों को एक-एक लाख दिया है, पर तुम क्‍यों पूछ रही हो? इसमें तुम्‍हारा कोई हिस्‍सा नहीं है।‘ पत्र तो रवि के नाम था। तुमने क्‍यों खोला?’ सपना गुस्‍से में तो थी ही। उसने आव देखा और न ...Read More

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नॉमिनी - 3 - अंतिम भाग

नॉमिनी मधु अरोड़ा (3) आखि़र रविवार भी आ ही गया और इसी दिन का इंतज़ार था सपना को। रवि कहा, ‘आज हम पिक्‍चर देखने जायेंगे। तुम्‍हें हॉल में पिक्‍चर देखना अच्‍छा लगता है न?’ सपना ने साफ मना कर दिया और कहा, ‘आज तो हम घर में लाइव फिल्‍म देखेंगे।‘ रवि ने अचकच ...Read More