एक भोर होते ही चिड़ियों ने चहकना शुरू कर दिया। उनमें एक संवाद छिड़ गया था। कुछों का कहना था-‘इस गाँव का किसान बड़ा खराब है, हमारे पहुँच ने से पहले खेतों पर पहुँच जायेगा। जब हम चुनने लगेंगे तो हाय-हाय करेगा। भला ऐसा अन्न क्या अंग लगेगा!’ कुछों का कहना था-‘ यहाँ का आदमी यह नहीं सोचता कि हमारे क्या खेती होती है? हम अपना पेट भरने कहाँ जायें? क्या करें? गोदामों में पहुँचने के बाद तो हमें अनाज की सुगन्ध भी नहीं मिलने की । इस तरह का खाना किसी को भी अच्छा

Full Novel

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गूंगा गाँव - 1

एक भोर होते ही चिड़ियों ने शुरू कर दिया। उनमें एक संवाद छिड़ गया था। कुछों का कहना था-‘इस गाँव का किसान बड़ा खराब है, हमारे पहुँच ने से पहले खेतों पर पहुँच जायेगा। जब हम चुनने लगेंगे तो हाय-हाय करेगा। भला ऐसा अन्न क्या अंग लगेगा!’ कुछों का कहना था-‘ यहाँ का आदमी यह नहीं सोचता कि हमारे क्या खेती होती है? हम अपना पेट भरने कहाँ जायें? क्या करें? गोदामों में पहुँचने के बाद तो हमें अनाज की सुगन्ध भी नहीं मिलने की । इस तरह का खाना किसी को भी अच्छा ...Read More

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गूंगा गाँव - 2

दो सूर्य को हो रहा था। चरवाहे अपने पशु लेकर लौट पड़े थे। गाँव के लोग अपने पशुओं को लेने, गाँव के बाहर हनुमान जी के मन्दिर पर प्रतिदिन की तरह इकठ्ठे हो गये। मन्दिर के चबूतरे से, जो जमीन की सतह से छह-सात फीट ही ऊँचा होगा, उस पर खड़े होकर पशुओं के आने की दिशा का अनुमान लगाने लगे। मौजी ऐसे वक्त पर जब-जब यहाँ से निकलता है,उसे वर्षें पुरानी घटना याद हो आती है। जब वह पहली-पहली बार इस गाँव में आया थ। पत्नी सम्पतिया उसके साथ थी। भाई रन्धीरा तथा दो ...Read More

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गूंगा गाँव - 3

तीन आम चुनाव में मौजी को खूब मजा आया। दिन भर घूम-घूम कर नारे रहो। रात को भरपेट भोजन करो,ऊपर से पचास रुपइया अलग मिलते। दिनभर के थके होते, थकान मिटाने रात पउआ पीने को मिल जाता। महीने भर में वह खा-खा कर सन्ट पड़ गया था। उसने तो जी तोड़ नारे लगाये किन्तु बेचारे पण्डित द्वारिकाधीश जीत न पाये। जीत जाते तो मौजी की पहुँच भोपाल तक हो जाती। मौजी ने भोपाल घूमने के कितने सपने देखे थे। भेापाल देखने की बात मौजी के मन की मन में रह गई। बढ़िया सुन्दर दुकाने होंगी। सब ...Read More

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गूंगा गाँव - 4

चार मध्य प्रदेश के उत्तर में स्थित, शिक्षा और संस्कृति का केन्द्र ग्वालियर जिला जिले की संस्कृत साहित्य के गौरव महाकवि भवभूति की कर्म स्थली डबरा,भितरवार तहसीलें। यह भाग पंचमहल के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ एक कहावत प्रसिद्ध है- आठ वई नौ दा। पंचमहल कौ हो तो बता।। इसका अर्थ यह है कि पंचमहल क्षेत्र के ऐसे आठ गाँव के नाम बतायें जिनके नाम के अन्त में वई आता हो तथा नौ गाँवों के नाम का अन्त दा शब्द पर हो। इस क्षेत्र में ही नहीं दूर-दूर तक यह कहावत प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र ...Read More

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गूंगा गाँव - 5

दुनियाँ में कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता और न किसी काम के करने से आदमी का मूल्य ही कम है। सफाई करने का जो काम, लोग अपनाये हुए हैं, वे उसे तब तक करते रहेंगे जब तक उन्हें अपने काम से हीनता की भावना नहीं आती। जब-जब जिसे अपना काम छोटा लगने लगा, उसी दिन वे उस काम को तिलांज्जलि दे देंगे। बैसे काम तो काम है। हमारे जिस काम को लोग घृणा की दृष्टि से देखने लगें, उस काम को हमें स्वयं ...Read More

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गूंगा गाँव - 6

गूंगा गाँव लोकतंत्र का पौधा जब प्रस्फुटित होकर, सत्ता के केन्द्र बिन्दु ब्राजमान होता तब वही जन- जन की इच्छायें पूरी करने में समर्थ होता है। इसमें अधिकांश के विकास को समग्र का विकास मान लिया जाता है। विश्व में प्रजातंत्र से सफल कोई शासन की श्रेष्ठ प्रणाली नहीं हो सकती। मानव के विकास में यह बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय की उत्तम परम्परा विकसित हुई है। जब यह प्रणाली संसद से जनपदों तक पहुँचती है तभी इसे पंचायती राज कहना उचित लगता है। इन दिनों कुन्दन यही सब सोचने में लगा है। वार्ड क्रमांक सात ...Read More

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गूंगा गाँव - 7

गूंगा गाँव गाँव की धरा का अपना परिवेश होता है और अपनी गाँव, गाँव होता हैं़, उसकी अपनी परम्परायें होतीं हैं, उसके अपने कानून होते हैं। संसद में बने कानून का इसके परिवेश और परिधि पर जितना असर होना चाहिये उतना नहीं हो पाता। गाँव में वर्षों से मजदूरी की दरें सरपंच अथवा मुखिया के घर से तय की जाती हैं। गाँव में सभी उसी रेट पर अमल करते हैं। इस बात में गाँव के बड़े-बड़ों का हित निहित होता है। सरकारी रेट हर वर्ष अखबारों में छपती है, किन्तु गाँव के मजदूरों को कभी नहीं लगता ...Read More

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गूंगा गाँव - 8

गूंगा गाँव 8 गंगा दशहरे का अवसर आ गया। घर-घर सतुआ की बहार आ गई। आकाश में बादल लगे। जिन बड़े किसानों के यहाँ कुओं की खेती थी,उन्होंने कुछ फसल कर ली थी।उनके खलियानों में गठुआ की दाँय चल रही थी। हरसी के बाँध में पानी समाप्त हो गया था। गन्ने की फसल सूख रही थी। किसान आकाश की ओर ताकने लगे थे। सुबह का बक्त था। गर्म लू अपना असर दिखा रही थी। डाकिये ने कुन्दन के घर में पत्र डाला। जयनारायण की पत्नी लता के लड़का हुआ है। पत्र पढ़कर कुन्दन का मन नाचने लगा। अपने ...Read More

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गूंगा गाँव - 9

गूंगा गाँव 9 पूँजीवादी व्यवस्थाके नये-नये आयाम सामने आते जा रहे हैं। रुपये का गिरता जा रहा है। डालर की कीमत बढ़ती जा रही है। महगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इधर सभी धर्म वाले अपने-अपने धर्म में चारित्रिक गिरावट महसूस कर रहे हैं। इसी कारण कुछ लोग संस्कृति की रक्षा की आवश्यकता अनुभव करने लगे हैं। इससे निजात पाने राष्ट्रबाद की आवश्यकता महसूस की जा रही है। कुछ धर्म को महत्व देकर देश को बचाने की बात कह रहे हैं। इसके बावजूद शोषण के खून के धब्बे ऊपर झाँकने लगे हैं। रहीम कवि ने सच ही कहा ...Read More

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गूंगा गाँव - 10

गूंगा गाँव 10 समाज में दो वर्ग स्पष्ट दिख रहे हैं। एक शोषक वर्ग दूसरा वर्ग। आज समाज में ऐसे जनों की आवश्यकता है जो पीड़ित जन-जीवन में जूझने के प्राण भर सकें। यह काम कर सकता है बुद्धिजीवी, किन्तु ये बुद्धिजीवी तो चन्द टुकड़ों की खातिर शाषकों के हाथों बिक गये हैं। इसी कारण मौजी को किसी सलाह पर विश्वास नहीं हो रहा है। वह अपने-पराये की ही पहचान नहीं कर पा रहा है। उसका इस धरती पर कौन है? जो उसके अपने बनते हैं उनमें उसके बनने के पीछे शोषण की भावना छिपी है। वह करै ...Read More

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गूंगा गाँव - 11

ग्यारहगूंगा गाँव 11 रात भर बादल छाये रहे। लोग पानी बरसने की आश लगाये रहे। पानी की एक भी न पड़ी। सुबह होते-होते आकाश पूरी तरह साफ हो गया। किसान निराश होकर आकाश की ओर ताकते रह गये। जिनके पास कुँए थे, वे मौसम के हालचाल देखकर बैंक से कर्ज लेने के लिये दौड़-घूप करने लगे। पहला कर्ज बकाया होने से निराशा ही हाथ लगी। जिले भर में बकाये की अधिक राशि निकल रही थी तो इसी सालवई गाँव पर। गत वर्ष भी फसल अच्छी न आई थी। इधर वर्षा लेट होती जा रही थी। उधर सरकार ने कर्ज ...Read More

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गूंगा गाँव - 12

बारह गूंगा गाँव 12 अकाल का स्थिति में जितनी चिन्ता गरीब आदमी को पेट पालने की रहती है उतनी ही तृष्णा घनपतियों को अपनी तिजोरी भरने की बढ़ जाती है। गाँव की स्थिति को देखकर ठाकुर लालसिंह रातों-रात अनाज की गाडियाँ भरवाकर बेचने के लिये शहर लिवा गये। सुबह होते ही यह खबर गाँव भर में फैल गई। इससे लोगों की भूख और तीव्र हो गई। उन्हें लगने लगा-यहाँ के सेठ-साहूकार हमें भूख से मारना चाहते हैं। सभी समस्या का निदान खोज लेना चाहते थे। मौजी ने भी यह बात सुन ली थी। उसे ठाकुर ...Read More

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गूंगा गाँव - 13

तेरह गूंगा गाँव 13 गाँव में चार लोग इकटठे हुये कि पहले वे दुखना रोयंगे।उसके बाद गाँव की समस्याओं पर बात करने लगेंगे। उस दिन भी दिन अस्त होने को था, गाँव के लोग हनुमान जी के मन्दिर पर हर रोज की तरह अपने पशुओं को लेने इकटठे होने लगे। लोगों में पशुओं के चारे की समस्या को लेकर बात चल पड़ी। मौजी भी वहाँ आ गया। उसने लोगों में चल रही चर्चा सुन ली थी। वह सोचते हुये बोला-‘भज्जा,मैं कुछ कहूँ तो लगेगा, मौजी अपनी होशियारी बताने लगा है। इसीलिये चुप रह जाता हूँ।’ रामदास ने ...Read More

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गूंगा गाँव - 14 समाप्त

चौदह गूंगा गाँव 14 जनजीवन से जुड़ी कथायें ही भारत की सच्ची तस्वीर है।’ बात हमारे मन-मस्तिष्क में उठती रही है। किन्तु इस प्रश्न को हल करने से पहले मैं अपने इस गाँव की गढ़ी के इतिहास की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ। यह किला जाट राजाओं की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध रहा है। यहाँ के राजा बदन सिंह की वीरता प्रसिद्ध रही है। इसकी हम चर्चा कर चुके हैं। राजा बदनसिंह के बाद इतिहास की एक प्रसिद्ध घटना यहाँ 17 मई 1782 ई0 में घटित हुई। अंग्रेज वायसराय वारन हेस्ंिटग्स और ग्वालियर के ...Read More