किरदार

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माँ का सपना बस पूरा ही होने वाला था, दो दिन बाद अंजुम की शादी जो थी। माँ ने अंजुम की शादी के लिए न जाने कितने खुआब बुन रखे थे। सब शादी की तैयारियों में जुटे हुए थे। माँ सब कुछ अंजुम की पसन्द का ही करना चाहती थीं। उसकी पसन्द के गहने, उसकी पसन्द का लहंगा, शादी के बाद पहने जाने वाली साड़ियां सब कुछ अंजुम की पसन्द का था पर फिर भी अंजुम के मुख पर उदासी क्यों छाई थी? अंजुम के माता-पिता उससे बेहद प्रेम करते थे, उसकी शादी में कोई कमी नहीं रखना चाहते थे।

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किरदार

माँ का सपना बस पूरा ही होने वाला था, दो दिन बाद अंजुम की शादी जो थी। माँ ने की शादी के लिए न जाने कितने खुआब बुन रखे थे। सब शादी की तैयारियों में जुटे हुए थे। माँ सब कुछ अंजुम की पसन्द का ही करना चाहती थीं। उसकी पसन्द के गहने, उसकी पसन्द का लहंगा, शादी के बाद पहने जाने वाली साड़ियां सब कुछ अंजुम की पसन्द का था पर फिर भी अंजुम के मुख पर उदासी क्यों छाई थी? अंजुम के माता-पिता उससे बेहद प्रेम करते थे, उसकी शादी में कोई कमी नहीं रखना चाहते थे। ...Read More

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किरदार - 2

दूसरे दिन सब लोग सुबह से ही काम में जुट जाते हैं। घर को सजाना है, गाने बजाने का इंतजाम करना है। एक ही दिन शेष है शादी में।अंजुम के पिता: अरे सुनती हो! संगीत में बांटने के लिए मिठाई आ गई है। कहाँ रखवानी है, जरा बताओ तो, आओ जरा जल्दी। अंजुम की माँ: हाँ, आ रही हूँ। 2 मिनट का सब्र नहीं होता यहाँ किसी से भी। पिता: सब्र, तुम्हें पता है अभी कितना काम बाकी है। दिन निकलता जा रहा है और काम कुछ हुआ नहीं। शाम तक सारे रिश्तेदार आ जायंगे उनके रुकने, खाने-पीने की व्यवस्था देखनी ...Read More

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किरदार - 3

माँ खाने के थाली लगाकर अंजुम के पास आती है और कहती है, "खाना नहीं खायेगी तो ताकत कैसे चल थोड़ा सा खा ले फिर कर लियो गुस्सा"अंजुम रो पड़ती है और कहती हैअंजुम: माँ, अभी भी वक़्त है रोक दो ये शादी। तुम कोशिश करोगी तो पापा भी मान जाएंगे। माँ: नहीं ये नहीं हो सकता। आखिर कमी ही क्या है? एक से बढ़कर एक सामान लिया है तेरे लिए, गाड़ी है, इतना बड़ा घर है, इतना कीमती लहँगा दिलाया है….अंजुम: और जो सबसे जरूरी है वो? पति ही मेरी पसंद का नहीं है तो क्या करूँगी ये महँगे ...Read More

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किरदार- 4

माँ: अंजुम….अंजुम, उठ जा अब जल्दी। भोर हो गई।सारे रिश्तेदार आ चुके हैं। घर में बहुत चहल-पहल है, कोई कर रहा है तो कोई हँसी-ठिठोली कर रहा है तो कुछ लोग कामों में लगे हैं और बच्चे खेल रहे हैं। अंजुम अपने कमरे में अकेली बैठी हुई है। तभी उसकी फुफेरी बहन रेखा उसके पास आती है।रेखा: क्या हुआ जीजी? ऐसे तुम अकेले क्यों बैठी हो। कुछ खाने को लाऊँ तुम्हारे लिए?अंजुम: नहीं, रहने दे। भूख नहीं है। तू बता कैसी है? और पढ़ाई कैसी चल रही है तेरी?रेखा: जीजी पढ़ाई तो अच्छी चल रही है और तुम्हें पता है ...Read More

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किरदार - 5

माँ अंजुम को गले लगाकर रो रही है, अंजुम भी रो रही है पर अब उसने माँ से कुछ कहा। अंजुम के पिता की आँखें भी नम हैं। माँ: बेटी अपना ध्यान रखना। कुछ भी हो मुझे बताना। समय की फिक्र मत करना, तुम कभी भी फ़ोन कर लेना। अंजुम अब कुछ न बोली। माँ को अंजुम की ये चुप्पी डरा रही थी परन्तु माँ मजबूर थी।अंजुम विदा होकर चली जाती है।धीरे-धीरे सारे रिश्तदार भी जाने लगते हैं। शाम तक सभी चले गए। जिस घर में एक दिन पहले चहल-पहल थी, अब वहाँ शान्ति छा गई। माँ: अंजुम के बिना घर सूना लग ...Read More

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किरदार- 6

समीर उसकी झुल्फों को दूर से निहार रहा है। अंजुम का काजल लगाना, हाथों में लाल चूड़ा, लाल बिंदी लाल साड़ी तो अंजुम की खूबसूरती को चार चाँद लगा रही है।समीर: तुम बहुत खूबसूरत हो अंजुम। अंजुम: थैंक यू, मैं अब जा रही हूँ आप तैयार होकर जल्दी आ जाइएगा।अंजुम चली जाती है और समीर भी तैयार होकर रस्मों रिवाज के लिए आ जाता है।हाथ कँगन को खोलना, दूध के पानी में अँगूठी ढूंढना,सारी रस्में भली भांति पूरी होती हैं। सब नई बहू को देखकर खुश हैं। समीर की माँ: बेटा अंजुम कल तुम्हारी पहली रसोई है तो सवेरे जल्दी उठ ...Read More

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किरदार - 7

समीर: चलो अंजुम, नहीं तो फिर आ जाएगी वो परेशान करने।अंजुम: ठीक है पर वो परेशान नहीं कर रही बहुत प्यारी है।समीर: चलो शुक्र है उसने कुछ काम तो अच्छा किया। उसकी वजह से ही सही तुम इतना बोली तो।समीर: अंजुम, सुनो।अंजुम: हाँ।समीर: तुम हँसते हुए बहुत अच्छी लगती हो, हस्ती रहा करो।(अंजुम अपना सिर हिला कर छोटी सी हामी भर देती है फिर समीर और अंजुम अपने कमरे से खाने के लिए चले जाते हैं।)बिंदिया: आओ भाभी, आप मेरे साथ खाना खाओ।समीर की माँ: अरे तू पागल है क्या! अब तो अंजुम, समीर के साथ खायेगी। दोनों के ...Read More

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किरदार - 8

बिंदिया दरवाज़ा खड़काती है।बिंदिया: भाभी, भाभी….समीर: अरे आ जा अंदर बिंदिया की बच्ची। (समीर,बिंदिया की खिंचाई करते हुए कहता भाई मैं खुद बिंदिया हूँ, बिंदिया की बच्ची नहीं। (अपने हाथों को कमर पर रख कर बिंदिया कहती है।) और मैं आपके पास नहीं भाभी के पास आई हूँ। अब मुझे बातों में मत लगाओ नहीं तो मैं भूल जाऊंगी।बिंदिया, अंजुम से: भाभी आपको देखने मौहल्ले की कुछ औरतें आई हैं। माँ ने कहा है, आप जल्दी से तैयार होकर आ जाओ।अंजुम: ठीक है मैं आती हूँ।बिंदिया: अरे नहीं आप अकेले मत आना, मैं आ जाऊंगी मेरे साथ चलना। आप ...Read More

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किरदार - 9

अंजुम को माँ की याद आने लगती है। वह चुप चाप अपने बिस्तर पर बैठ जाती है।समीर कमरे में आता है।समीर: नादान है ना हमारी बिंदिया इसीलिए किसी के सामने कुछ भी बोल देती है। तुम गुस्सा न होना उससे, दिल की बहुत अच्छी है।अंजुम: हाँ, मैं जानती हूँ। मैं किसी से भी नाराज नहीं हूँ। आप फिक्र न करें।समीर: ठीक है, तुम अपने कपड़े बदल लो। सुबह से ये भारी-भारी कपड़े पहन कर घूम रही हो, परेशान हो गई होगी।अंजुम: ठीक है।अंजुम अपने सूटकेस में से एक सादा सा सूट निकलती है और समीर से पूछती है, "क्या ...Read More