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किरदार - 8

बिंदिया दरवाज़ा खड़काती है।

बिंदिया: भाभी, भाभी….

समीर: अरे आ जा अंदर बिंदिया की बच्ची। (समीर,बिंदिया की खिंचाई करते हुए कहता है।)

बिंदिया: भाई मैं खुद बिंदिया हूँ, बिंदिया की बच्ची नहीं। (अपने हाथों को कमर पर रख कर बिंदिया कहती है।) और मैं आपके पास नहीं भाभी के पास आई हूँ। अब मुझे बातों में मत लगाओ नहीं तो मैं भूल जाऊंगी।

बिंदिया, अंजुम से: भाभी आपको देखने मौहल्ले की कुछ औरतें आई हैं। माँ ने कहा है, आप जल्दी से तैयार होकर आ जाओ।


अंजुम: ठीक है मैं आती हूँ।

बिंदिया: अरे नहीं आप अकेले मत आना, मैं आ जाऊंगी मेरे साथ चलना। आप बस जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं वापस आती हूँ 5 मिनट में।

इतना कहकर बिंदिया वहाँ से चली जाती है।

अंजुम अपनी साड़ी सवारती है, थोड़ा बालों को बनाती है, बिंदी ठीक लग रही है या नहीं, आईने में देखती है।
यह सब समीर देख रहा होता है।

समीर: अंजुम तुम कुछ न भी करो तब भी बहुत सुंदर लगती हो। बस अपनी साड़ी ठीक कर लेना। खूबसूरत तो तुम हो ही।

(इतने में बिंदिया आ जाती है।)

बिंदिया: चलें भाभी।

अंजुम: हाँ चलो।

समीर: अंजुम एक मिनिट रुको।

(बिंदिया और अंजुम दोनों ही चौक जाते हैं। समीर आइने के पास से काजल लेता है और अंजुम के लगाता है।)

समीर: ये लगा कर जाओ, नहीं तो नजर लग जायेगी।

बिंदिया: अहम, अहम वाह भैया। वैसे ये आपने अच्छा किया।

(बिंदिया, अंजुम को लेकर चली जाती है।
मौहल्ले की औरतें अंजुम को निहारती हैं और कहती हैं, "वाह! समीर की माँ, बहु तो चाँद जैसी लाई है।)

समीर की माँ: हाँ अंजुम तो है ही चाँद का टुकड़ा पर नजर न लगाओ मेरी बहु को।

बिंदिया: अरे माँ! आप चिंता मत करो, भैया ने लगा दिया है भाभी को काला टीका।

ये सुनकर सभी हँसी के ठहाके लगाते हैं फिर उनमें से एक औरत कहती है, "देख ले समीर की माँ, बेटा तो बहुत समझदार हो गया है तेरा। ध्यान रखियो कहीं जोरू का गुलाम ही न बन जाए।"

समीर की माँ: बनता है तो बन जाने दो, बहु आई भी तो उसी के लिए है।

बिंदिया जाकर रसोई में देख सबके नाश्ते का बंदोबस्त हुआ की नहीं।

बिंदिया देख कर आती है और कहती है, "हाँ माँ, सब हो गया है। सब मेज पर रखवा भी दिया है।"

समीर की माँ: चलो सब लोग, बातें बहुत हो गई अब नाश्ता कर लो।

सब नाश्ता करके थोड़ी थोड़ी देर में अपने घर चले जाते हैं। अंजुम भी कमरे में वापस आ जाती है।

समीर: क्या हुआ? कैसा रहा सब? किसी ने कुछ कहा तो नहीं??

अंजुम: नहीं सब बहुत अच्छे हैं।

तभी बिंदिया आती है और कहती है, "नहीं भैया, आपने काजल लगाया था तो सब कह रहे थे आप जोरू के गुलाम बन जाओगे। वो तो माँ ने सबको चुप करा दिया।"

समीर: उनको किसने बताया कि मैनें काजल लगाया है?

बिंदिया: मैंनें।

समीर: रुक तू बिंदिया की बच्ची।

बिंदिया आवाज लगाती भागती है, "माँ, मुझे बचाओ। भैया मार रहे हैं।"
समीर, बिंदिया के पीछे जाता है।