जीवन ऊट पटाँगा

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ज़िंदगी होती है बेतरतीब, बड़ी ऊट पटाँग, थोड़ी सी बेढब, थोड़ी सी खट्टी मीठी, हंसी और आँसुओं की पोटली, अकल्पनीय बातें आपके रास्ते में फेंकती आपको बौखलाती हुई, ठगती हुई --अपनी तरह से भूल भुलैया सी दौड़ती हुई. आप कितना भी ऐंठे कि हम अपने जीवन के मालिक हैं। ये बात सही है, आप मेहनत से, अच्छे कर्मों से अपनी ज़िंदगी संवार सकते हैं लेकिन प्रेम, शादी व साम्प्रदायकिता, शिक्षा से हटकर बहुत सी ऊट पटाँग घटनाएं ज़िंदगी को बौखलाए रहतीं हैं। आप चैन से जी नहीं सकते जब तक अचानक सामने आई समस्या को हल न कर लें।

Full Novel

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जीवन ऊट पटाँगा - 1 - डाकुओं के चंगुल से

एपिसोड -1 डाकुओं के चंगुल से नीलम कुलश्रेष्ठ ज़िंदगी होती है बेतरतीब, बड़ी ऊट पटाँग, थोड़ी सी बेढब, थोड़ी खट्टी मीठी, हंसी और आँसुओं की पोटली, अकल्पनीय बातें आपके रास्ते में फेंकती आपको बौखलाती हुई, ठगती हुई --अपनी तरह से भूल भुलैया सी दौड़ती हुई. आप कितना भी ऐंठे कि हम अपने जीवन के मालिक हैं। ये बात सही है, आप मेहनत से, अच्छे कर्मों से अपनी ज़िंदगी संवार सकते हैं लेकिन प्रेम, शादी व साम्प्रदायकिता, शिक्षा से हटकर बहुत सी ऊट पटाँग घटनाएं ज़िंदगी को बौखलाए रहतीं हैं। आप चैन से जी नहीं सकते जब तक अचानक सामने ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 2 - ऐसे भी

एपीसोड -२ ऐसे भी [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] “उठ कम्मो उठ ।” कम्मो ने अपना हाथ छुड़ाते हुए दूसरी करवट ले ली, बिछौने से कच्ची ज़मीन पर उतर आई थी । “उठती है साली की नहीं ।” अब की बार रग्घू को गुस्सा आ गया । उसने उसकी दोनों बांहे पकड़कर उसे उठा दिया । “उठ तो रही हूँ, काहे को गला फाड़ रिया है ?” उसने अपने को छुड़ाकर एक भरपूर अंगड़ाई ली, “क्या टैम हो रहा है?” “आठ बज रहे होंगे और मेम साब अभी खर्राटे ही ले रही हैं । ले चाय पी ले ।” उसने ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 3 - तुम चोर पकड़ने क्यों गये ?

तुम चोर पकड़ने क्यों गये ? नीलम कुलश्रेष्ठ “आ...आ..- आ.” तुम बिलकुल गलत समझे...यह कोई शास्त्रीय राग का आलाप है, न कोई गाना गाने से पहले अपना सुर साध रहा है, यह तो मेरी कराह है । मेरा सूजा हुआ बायाँ हाथ करवट लेने से दब गया है, इसीलिए मेरे मुँह से कराह निकल गई । तुम तो मुझे पहचानते नहीं हो....अब पूछोगे कि मैं कौन हूँ..मैं हूँ सिद्धार्थ....प्यार से लोग मुझे सिद्धू कहते हैं, तुम ने मुझे अपनी कॉलोनी में पहले नहीं देखा न ? देखते भी कैसे, मैं यहाँ गरमी की छुट्टियों में आया हूँ। किस के ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 4 - मार्गरेट आने वाली हैं

नीलम कुलश्रेष्ठ उस दिन को कितने वर्ष हो गए होंगे ---चालीस के लगभग ? एक दो साल इधर या --तब उसे विवाह के बाद यू पी से आये कुछ वर्ष ही हुए थे, पश्चिमी भारत, बम्बई या गोआ का रौब उस पर कम नहीं हुआ था। तब कहाँ थी ये ग्लोबलाइज़्ड दुनियाँ ? आज बच्चे विश्व की जानकारी का दम्भ भरते हैं, तब प्रदेशों के विषय में बहुत कम जानकारी होती थी। जब तेतीस साल बाद वड़ोदरा छोड़ने से पहले ख़बर मिल गई थी कि अनिल के कलीग मिस्टर शाबास, रिटायरमेंट के बाद गोआ लौट जाने वाले, वे नहीं ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 5 - सांप...सांप..

नीलम कुलश्रेष्ठ “सांप...सांप..” मलय चिल्लाता हुआ उठ कर बैठ गया और कांपने लगा । “कहाँ है?” प्रीति घबरा कर बैठी । बिजली चली गई थी । छोटी बत्ती नहीं जल रही थी । “म...म...मेरे गले पर लिपटा है ।” मलय भयभीत स्वर में बोला । “क्या ?” घबराहट में सिरहाने के नीचे रखी टार्च नहीं मिल रही थी । बड़ी मुश्किल से उस ने टार्च जलाई । देखा, मलय अपनी गरदन पर हाथ फेर रहा था । “क्या हुआ?” शैलेश ने उनींदे स्वर में करवट बदले हुए पूछा । उस की हथेली अनजाने ही प्रीति की खुली पीठ पर ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 6 - दो पाटों के बीच बतर्ज़ सैंडविच

बीच वाले [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] बुआ ने अब की बार बोरिया बिस्तर हमारे यहाँ पटककर झंडा गाढ़ दिया उर्मि की शादी किये बिना यहां से नहीं टलेंगी। हमारे घर में आते ही उर्मि माँ से शादी की बात सुनकर आँखें झुकाये शर्मायी सी उँगली में चुन्नी लपेटने लगी थी। मैंने ध्यान से देखा चेहरे की कस्बाई किसकिसाहट से पूर्ण रूप से उसके व्यक्तित्व को अपनी चपेट में ले रक्खा था। वैसे भी उसके नाक नक्श सुंदर कहलाने लायक नहीं थे। मुंहासों के नोचने से बने निशानों के कारण बीच बीच में उखड़े सीमेंट सा चेहरा हो गया था। ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 7 - आप ही का साला

नीलम कुलश्रेष्ठ आदमी जिस जगह की मिट्टी से बना होता है वहीं के रिश्तेनाते उस में कहीं गहरे रचबस हैं । न वह उसका पीछा छोड़ते हैं न उन की यादें पीछा छोड़ती हैं । जब मयंक ने दरवाजा खोला तो आने वाले का प्रश्न था, “होलीपुरा के मयंक चतुर्वेदी का मकान यही है ?” आने वाले व्यक्ति गंदे कपड़ों, बिखरे बालों व उदास चेहरे से यह साफ जाहिर हो रहा था कि वह बड़ा परेशान है तथा किसी बड़ी विपत्ति का मारा है । बड़ी हताश मुखमुद्रा में झिझक व संकोच सहित वह दरवाजे पर खड़ा था । ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 8 - सोने का हार

सोने का हार नवीन व सोना ने नया नया घर बसाया था। दोनों के चेहरे पर युवा उम्र की ,नये रिश्ते के प्यार की चमक झिलमिलाती रहती थी। दो परिवारों ने ये रिश्ता तय किया था इसलिए अभी एक दूसरे को अच्छी तरह जाना नहीं था। एक दूसरे के लिए हम बने हैं---ये रिश्ता सात जन्मों का है---हम एक जान दो शरीर हैं ---जैसे लुभावने भ्रम में जी रहे थे। उन दोनों के चेहरे पर सहज मासूमियत व दुनियाँ जीत लेने ,प्यार पाने की खुशी रहती थी वर्ना हर सुख दुख की स्पष्ट छाप बनती जाती है । ‘दुनिया ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 9 - चिक्की की फ़्रॉक

नीलम कुलश्रेष्ठ थाली में जमी बर्फ़ी पर जैसे ही उस ने चाकू चलाया, सारे घर में इलायची, भुने हुए व पिसे हुए काजू की सुगंध ऐसे फैल गई जैसे उद्घोष कर रही हो कि दीवाली आ गई है । कितना ढेर सारा काम हो जाता है दीवाली से पहले, सारे घर के लिये रंगो का चुनाव करो। यदि किसी कमरे का रंग बदलवाना है तो मजदूरों के सिर पर खड़े रहो, पुराने रंग को खुरचवाने के लिये । यदि किसी कमरे का रंग बदलवा दिया तो उस के नये रंग के परदे तो खरीदे जायेंगे ही, साथ ही साथ ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 10 - दीव के तट पर

नीलम कुलश्रेष्ठ सुना है गुजरात के पड़ौसी केंद्रीय शासित प्रदेश दीव को स्मार्ट सिटी बनाने का काम बहुत ज़ोर से चल रहा है वर्ना बस में भावनगर से आगे के रास्ते में सड़क की बदहाली के कारण शरीर के अंजर पंजर ढीले हो जाते हैं. ये रास्ता फ़ोर लेन रास्ते से जुड़ेगा और ये भव्य पर्यटन स्थल के रुप में जाना जायेगा वर्ना यहाँ दो तीन रिज़ॉर्ट बन गए हैं, उससे क्या ? इस बार हम दीव पहुँचकर फेरी में बैठकर समुद्र के रास्ते एक विवाह में शामिल होने जा रहे हैं. सुबह के दस बज़ रहे है इसलिए ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 11 - मातमपुर्सी

मातमपुर्सी “आप किन से बात करना चाहते हैं ?” फ़ोन उठाते ही विनोद बोला । “यार! मैं नवीन बोल हूँ । तू ने कुछ सुना ? सुरेन्द्र वापस आ गया है ।” “कब वापस आया ?” “कल ही आया है । हमारे ऑफ़िस में उस का जो पड़ौसी काम करता है न, वह बता रहा था ।” “हम लोगों को मातमपुर्सी के लिये जाना चाहिये,” विनोद एकदम व्यग्रता से बोला । “हूं, जाना तो चाहिये । लेकिन दस बारह किलोमीटर दूर जाना इन ऑफ़िस के दिनों में तो हो नहीं सकता। ” “एक दिन तकलीफ उठा लेंगे तो क्या ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 12 - नौसीखियों की डेटिंग्स

नौसीखियों की डेटिंग्स नीलम कुलश्रेष्ठ “मम्मी ! पापा से कहिये हमें बाइक दिलवा दें ।” “क्यों ऐसी क्या जल्दी रही है ? स्कूटर तो ठीक चल रहा है ?” बड़ा हाथ आगे करके बाइक पर बैठे होने का अभिनय करता है, “मम्मी ! आजकल लड़कियाँ बाइक पर घूमना पसंद करती हैं ।” “क्या कह रहा है?” न चाहते हुए भी मेरे चेहरे की भौहें आश्चर्य से फैल जाती हैं । “आप छोटे से पूछ लीजिये ।” “अभी बताती हूँ शैतान, ज़रा सी उम्र में लड़कियों को लेकर बाइक पर घुमायेगा ?” मैं उसकी पीठ पर लाड़ भरा घूंसा मारने ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 13 - गांधी जी की स्मृति में

"बस इतनी सी बात के लिए परेशान हो ? तुम उसे पकड़ लेना, वो मेरे पास गांधीवादी झोला लटकाये रहता है. तुमने मेरे ऑफ़िस में उसे देखा तो है। " "कौन सा आदमी ?" "वही मरियल सी शक्ल वाला, काली सफ़ेद दाढ़ी वाला। खादी के पायजामे कुर्ते पर खादी की जैकेट पहने रहता है। " "अरे---- वो नैनसुख भाई, वो क्या कर सकते हैं इस कॉन्ट्रेक्ट के लिये ?" "वही एक बन्दा है जो चमत्कार कर सकता है। " उन्हें उसकी नहीं अपनी अक्ल पर तरस आ रहा है ख़ामखाँ इस मेहता को होशियार समझते रहे, इसे मुंह लगाए ...Read More

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जीवन ऊट पटाँगा - 14 - जीवन की डेटा एन्ट्री - अंतिम भाग

अंतिम एपीसोड - 14 जीवन की डेटा एन्ट्री नीलम कुलश्रेष्ठ श्री देसाई ने अपनी नजरें इधर-उधर घुमाकर इस ऑफ़िस मुआयना किया । शहर के सबसे बड़े पॉश इलाके में ये स्थित था । इन्होंने आज ही अखबार में आधे पृष्ठ का रंगीन विज्ञापन देखा था । ऐसा विज्ञापन देना कोई रंगीन मज़ाक नहीं था । डेल्टा इंफोसिस प्रा.लि. का नाम इस विज्ञापन में देखकर बंगलौर की एक ही कंपनी याद आती थी । ‘इंफोसिस’ यानि सोफ़्टवेयर यानि करोड़ों रुपये । उसकी बारीकियाँ पढ़कर उन्होंने चैन की साँस ली चलो अश्विन का कहीं तो ठिकाना हो सकता है । नौकरियाँ ...Read More