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जीवन ऊट पटाँगा - 1 - डाकुओं के चंगुल से

एपिसोड -1

डाकुओं के चंगुल से

नीलम कुलश्रेष्ठ

ज़िंदगी होती है बेतरतीब, बड़ी ऊट पटाँग, थोड़ी सी बेढब, थोड़ी सी खट्टी मीठी, हंसी और आँसुओं की पोटली, अकल्पनीय बातें आपके रास्ते में फेंकती आपको बौखलाती हुई, ठगती हुई --अपनी तरह से भूल भुलैया सी दौड़ती हुई. आप कितना भी ऐंठे कि हम अपने जीवन के मालिक हैं। ये बात सही है, आप मेहनत से, अच्छे कर्मों से अपनी ज़िंदगी संवार सकते हैं लेकिन प्रेम, शादी व साम्प्रदायकिता, शिक्षा से हटकर बहुत सी ऊट पटाँग घटनाएं ज़िंदगी को बौखलाए रहतीं हैं। आप चैन से जी नहीं सकते जब तक अचानक सामने आई समस्या को हल न कर लें।

तो प्रिय पाठकों !जीवन के इसी ऊट पटाँग रूप, इसी उठा पटक के बीच फँसी, जकड़ी ज़िंदगी की कहानियों की ये सीरीज़ है। आरम्भ में मैं अपनी मौसी स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ज्ञान कुलश्रेष्ठ के जीवन की सत्य घटना से कर रहीं हूँ, जो उस ज़माने की डॉक्टर थीं जब एस. एन. मेडीकल कॉलेज, आगरा में पहली बार पांच लड़कियों के लिए सीट आरक्षित की गईं और एडमिशन लेने पहुँची सिर्फ़ तीन लड़कियां। अब आप पूछेंगे एक स्त्री रोग विशेषज्ञ को डाकुओं से क्या काम ? तो पढ़िये ये कहानी ----नीलम कुलश्रेष्ठ ]

"डाग्धर साब !सुनना। "वह भयभीत हिरणी सी उनके पास आकर फुसफुसाई।

डॉ.ज्ञान कुलश्रेष्ठ अभी अभी ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकलीं थीं। मुंह पर लगा मास्क हटाकर झंझला पडीं, "क्या ---है ?"

" जी --हम --."वह सच ही बहुत घबरा रही थी। पसीने की बूँदें उसके माथे पर टँक गई थी।वह कुछ बोलती उससे पहले बरामदे में सामने से दो मोटी औरतें चटकीले रंग साड़ी पहने, माथे पर बड़ी बिंदी लगाये आतीं दिखाई दीं। उन्हें देखकर इस औरत के होंठ काँप गये वह जल्दी से बोली, "मेरी कमर में बहुत दर्द हो रहा है, नर्स से गोली भिजवा दीजिये। "कहते हुये वे तेज़ी से वापिस अपने वॉर्ड में चली गई।

उन्हें कुछ अटपटा लगा कि इतनी छोटी सी बात वह उनसे क्यों कह रही थी ? वे दोनों थुल थुल औरतें उन्हें अपनी आँखों से बेधती अपने होंठों पर कटु मुस्कान लिये उसी वॉर्ड लौट गईं।

उन्होंने अपने दिमाग़ पर ज़ोर डाला, उन्हें याद आया कि तीनों जगनपुरा गाँव की हैं. तीनों ने एक साथ ही अस्पातल में दाखिला लिया था। इस छोटे शहर के अस्पताल में कम संयोग होता है कि एक ही गांव से तीन मरीज़ आ जायें. पहली वाली मरीज़ का नाम चम्पा है। वह सात महीने की बिगड़ी प्रेगनेंसी का केस है। उन्होंने नोट किया है कि दो दिन से चम्पा जैसे ही उनसे बात करने की कोशिश करती है, उतने में ही ये औरतें जाने कैसे प्रगट हो जातीं हैं। चम्पा बात बदलकर हट जाती है। उँह ---कुछ होगा। वह सिर झटककर आगे बढ़ गई।

शाम को अस्पातल में राऊंड लेते समय भी उन्होंने महसूस किया कि वतावरण कुछ सहमा हुआ सा है। पहले पहले जब वे आतीं थीं आयायें, वॉर्ड ब्वॉय आपस में गप्पें मारते, हँसते दिखाई देते थे लेकिन जैसे ही उनकी सेंडिल की हील 'खट', 'खट' करती वॉर्ड में पहुंचतीं, सब चुप होकर काम में लग जाते. आजकल कोई इस कोने में है, कोई उस कोने में चुपचाप सब अपने काम में व्यस्त दिखाई देते हैं।

ऐसा लगता है कि सब सहमे से एक दूसरे से नज़रें चुराते रहतें हैं। उन्हें साफ़ नज़र आता है कि वे अपने को कोई भी बेकार के काम में उलझा लेते हैं। उन्होंने पूछने की कोशिश भी की लेकिन कोई मुँह नहीं खोलता। अभी वे चम्पा के वॉर्ड का राऊंड लेकर आईं थीं एक नर्स उन के पीछे दौड़ती सी आई, "डॉक्टर !एक बात सुनिये। "

उन्होंने प्रश्नसूचक निगाह से उन्हें देखा। वह उनके साथ चलती हुई बोली, "बैड नंबर ग्यारह की मरीज़ चम्पा आपसे अकेले में बात करना चाह रही है। "

"मुझे भी दो दिन से ऐसा लग रहा है लेकिन उसके पीछे वो दो मोटी औरतें आ जातीं हैं और वह सहम जाती है। ऐसा करना तुम मेरी आऊट डोर ड्यूटी के बाद उसे थिएटर में लेकर आ जाना। उसके एग्ज़ामिनेशन के बहाने मैं उस से बात कर लूँगी। "

वह दूसरे दिन आऊटडोर से निकलने वालीं थीं कि पोस्टमैन आ गया। उन्होंने हस्ताक्षर करके विदेशी टिकिट लगा लिफ़ाफ़ा हाथ में लेकर उसे खोला और और ख़ुशी से उनकी चीख निकल गई, "ग्रेट। "

उनकी सहायक डॉक्टर बोल पड़ी, "क्या हुआ डॉक्टर?"

"मेरा नाम दुनियाँ के' हू इज़ हू 'की लिस्ट में आ गया है। "

" बधाई हो, अब तो पार्टी का इंतज़ार रहेगा। "

"ओ --श्योर। "

"आप कितनी लकी थीं डॉक्टर। आगरा के एस एन मेडीकल कॉलेज की पहले उस बैच की लड़की जिसमें लड़कियों को एडमिशन देना आरम्भ किया था। "

वे हंस पड़ीं, "और लड़कियों के लिए आरक्षित पांच सीट में सिर्फ़ तीन लड़कियां एडमिशन लेने आईं थीं --- आगे तुम यही बोलने वालीं थीं ?तुम इस बात से बहुत रश्क करती हो?"

"करूँगी नहीं ?अब तो हम सारी गर्मी की छूट्टियाँ डॉक्टर बनने के लिये पी एम टी [प्री मेडीकल टेस्ट ] की तैयारी करते करते बितातें हैं।तीन बार की कोशिश के बाद मैं सिलेक्ट हो पाईं हूँ। "

"छोड़ो भी, हर पीढ़ी के अपने सुख दुःख होते हैं। "उन्होंने अपना कुर्सी पर टँगा सफ़ेद एप्रिन उठाया और ऑपरेशन थिएटर में चलीं आईं। वह नर्स चम्पा को पहले ही वहां ले आई थी। उन्हें देखकर चम्पा उनके पास आकर गिड़गिड़ाने लगी, " आप ही मेरी माई बाप हो, आप ही मुझे बचा सकती हो। "

"आराम से कुर्सी पर बैठो और अपनी परेशानी बताओ। " उन्होंने दरवाज़ा बंद करने का किया इशारा किया व कहा, "ऑपरेशन थिऐटर की बाहर की रैड लाइट का स्विच ऑन कर दो। "

चम्पा सुबुक पड़ी, "डॉक्टर साब !मैं एक डाकू के पास फंसी हुई हूँ। मैं अपने आदमी के पास जाना चाहतीं हूँ। "

"क्या ? डाकू के पास फंस कैसे गईं ?"

"क्या बताऊँ आपको, मैं छोटी थी तो सौतेली माँ के अत्याचार सहती रहती। घर में सारा दिन काम करती और उसके लात घूंसे खाती। बापू से कुछ कह नहीं पाती. बापू बूढ़ी उम्र में दूसरी शादी करके बैठे थे इसलिये दुखी रहते थे। वो भी मर गये, मेरी उम्र सत्रह बरस की थी। माँ मुझे बूढ़े मुखिया को पाँच हज़ार में बेचना चाहती थी। "

"क्या ?"

"तभी गाँव की एक शादी में दूसरे गाँव का एक लड़का आया। मेरी पहचान हुई, सच कहूँ तो उससे प्रेम हो गया था। जब वह दोबारा गाँव में मुझसे मिलने आया। मेरी बात सुनकर वह तुरंत अपने गाँव भगाकर ले गया। मुझसे शादी कर ली। सौतेली माँ को जब पता लगा कि मेरी रईस घराने में शादी हो गई है तो जल गई । उसने मेरा किशना डाकू से पांच हज़ार में सौदा कर दिया। जब मेरा घरवाला खलियान में सो रहा था तो वो मुझे घर से उठाकर ले गए। तबसे मैं जंगल जंगल उस के गिरोह के साथ भटक रहीं हूँ। दिन में उन सबका खाना बनातीं हूँ। जब वह शराब होता है तो मार मार बुरा हाल कर देता है."कहते हुये चम्पा ने घूमकर अपना ब्लाउज़ उठा दिया। उसकी पीठ पर लाल काले देखकर डॉक्टर के मुंह से 'उफ़ 'निकल गई। नर्स ने रुमाल से मुंह ढककर अपनी सिसकी दबाई।

"यह बच्चा ---."

"उसी हरमजादे किशना का है। "वह पेट पर मुक्का मारते हुए बोली, "लगता है ये बच्चा हमारा ख़ून पी जाएगा। सातवें महीने में किशना की मार हमारी जान पर बन आई तो गाँव से बुलवाई दाई के कहने पर उसने मुझे अस्पताल पहुंचाया। उसके मन में अपने बच्चे का मोह जाग पड़ा था। "

"और वो दो मोटी औरतें ---.?"

"वो उसी के गांव कीं हैं, मेरी चौकीदारी करती रहतीं हैं। "

" तुम इतने दिनों से यहाँ हो। तुमने अभी तक किसी को ये बात नहीं बताई ?"

" दबे छिपे एक नर्स को ये बात बताई थी लेकिन किशना की दो औरतों के डर मारे कोई ये बात आपसे कहने की हिम्मत नहीं कर रहा था। वो दो मोटी औरतें मुझ पर नज़र रक्खे हैं। "

डॉक्टर अपनी कुर्सी से उठीं और उसके पीठ पर सांत्वना का हाथ फेरते हुए कहने लगीं, "मेरा तुमसे वायदा है कि तुम्हें सुरक्षित तुम्हारे घर पहुँचा दिया जाएगा। "

नर्स हड़बड़ा उठी, "आप क्या कह रहीं हैं ?आप डाकू किशना दुश्मनी लेंगी ?आपके सारे घरवाओं को ख़त्म कर देगा। "

"वो डाकू है भगवान नहीं है। "

वे जैसे ही थिएटर से बाहर निकलीं उन्हें लगा कोई मोर चम्पा के वॉर्ड से बोला लेकिन मोर और इस समय वॉर्ड में ?वे तेज़ी से वॉर्ड की तरफ़ बढ़ीं।उन्होंने उन्होंने दरवाज़े से देखा कि उन मोटी औरतों में एक खिड़की पर खड़ी मोर की आवाज़ निकाल रही है. तभी कोई पुरुष स्वर भी अस्पताल के अहाते में से एक बार मोर की बोली बोलकर चुप हो गया।

डॉक्टर चिल्लाई, "ये क्या हो रहा है ?"

दूसरी मोटी औरत बेहयाई से तेज़ दौड़ती उनके पास आ गई, "ये अपने पति को मोर की बोली में बता रही है मैं ठीक हूँ।"

"या फिर ये बता रही है कि -----. "वे जानबूझकर चुप हो गईं।

वे तेज़ी से चलती हुई अपने कमरे में आ गईं और तुरंत पुलिस स्टेशन नंबर डायल करने लगीं। उधर से आवाज़ आई "हैलो !इंस्पेक्टर सहगल स्पीकिंग। "

"जी, मैं सिविल हॉस्पिटल से डॉ. ज्ञान कुलश्रेष्ठ बोल रहीं हूँ। "उन्होंने अपनी फूलती हुई साँस पर काबू पाते हुए संक्षेप में सारी बात बता दी, फिर बोलीं, "आप चम्पा को अपने सिक्योरटी में रख लीजिये. "

"मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ ?"

" आपको क्या प्रॉब्लम है ?"

"आप समझ नहीं रहीं डाकू किशना इस इलाके का कितना भयानक डाकू है ?जब तक उसका पति कोई रिपोर्ट नहीं करता तब तक मैं कैसे इस मामले में हाथ डाल सकता हूँ ?"

" यहाँ एक प्रेग्नेंट औरत परेशान है और आप फ़िज़ूल के बहाने बना रहे हैं ?"उन्हें गुस्सा तो इतना आ रहा था कि रिसीवर उसके सिर पर दे मारें।

"मैं मजबूर हूँ डॉक्टर। "

वे तमतमाई फ़ोन को पकड़े खड़ी रह गईं। उन्होंने फिर एस. पी. ऑफ़िस फ़ोन किया, वहां पता लगा कि वे टूर पर हैं। क्या करें ?यदि कोई कदम नहीं उठाया तो हो सकता है किशना चम्पा को किसी दूसरे हॉस्पिटल ले जाये। कुछ सोचते हुये उन दो औरतों की नज़र बचाते हुये उन्होंने उसे एक स्टोर रूम में बंद करवा दिया। आया उस पर ताला लगाते हुए पूछने लगी यदि यदि किशना या उसका आदमी आ जाये पूछे कि चाबी किसके पास है तो मैं क्या कहूँ ?"

"कह देना कुलश्रेष्ठ डॉक्टर के पास। " कहते हुये उन्होंने उसके हाथ से चाबी खुद ही ले ली। पता नहीं ऐसे मौकों पर उनमें कहाँ से साहस का संचार हो जाता है। अपने बंगले पर आकर उन्होंने तीन चार बार इंस्पेक्टर से बात करने की कोशिश की।हर बार यही उत्तर मिला कि वे चौक किसी काम से गये हैं।

खाना खाकर उन्होंने पलंग पर लेटते हुये बदन को ढीला छोड़कर सोचा वह इंस्पेक्टर सच में डाकुओं से डर रहा है या उनसे रूपये खाकर बैठ गया है ? क्या पता? वे सिर्फ़ डॉक्टर ही नहीं हैं, वे भरसक मुसीबतज़दा लोगों की मनोवैज्ञानिक या आर्थिक रूप से दूसरों की मदद करती रहतीं हैं।

शाहजहांपुर में उनकी पोस्टिंग हुई थी। वे उस दिन ऑउटडोर देख रहीं थीं। अचानक कमरे में दो लड़कियां बुर्के में अंदर घुसती चली आईं। उन्होंने उनके सामने अपना बुर्क़ा उलट दिया। उनके सुंदर मासूम चेहरे को देखकर उनसे उन्हें डाँटते नहीं बना कि बिना नम्बर के अंदर कैसे आ गईं ?उम्र भी उनकी तेरह और चौदह बरस रही होगी।

"बैठ जाओ ?ऐसी क्या जल्दी थी जो जबरन अंदर घुस आईं ?"

" बड़ी सी दिखाई देने वाली लड़की हाथ जोड़कर बोली, "हमें बचा लो ! हम लोग गांव से एक मेले में गए थे, बुर्क़े के कारण घरवालों से बिछुड़ गये। बाहर जो बुड्ढा बैठा है उसके हाथ लग गये। वो हमें कोठे की नचनियाँ बनाना चाह रहा है। "

" अरे ! तुममें से किसकी तबियत ख़राब है। "

"इस छुटकी की विस मेले में लू लग गई है। मार उल्टी, दस्त हो रहे हैं। इस मारे विसको बुड्ढा अस्पताल ले आया ।वह बाहर बैठा बीड़ी फूँकता चौकीदारी कर रहा है। डागधर साब हमें बचा लो। " वह हाथ जोड़कर रो पड़ी थी।

उन्होंने उस बच्ची की जीभ व आँखें देखीं. स्टेथस्कोप से पेट की जांच की और आया को काउंटर से दवा लेने भेज दिया। और वे तेज़ी से ज़िला कलेक्टर के नाम पत्र लिखने बैठ गईं।

जैसे ही आया बाहर निकली, वह बुड्ढा लपक लिया, "डागधर बच्ची को देख रहीं हैं या ऑपरेशन कर रहीं हैं? "

आया लगभग दौड़ते हुए बोली, "बच्ची बेहोश हो गई है। मैं दवा लेने जा रहीं हूँ। "

"हाय --हाय मेरी बच्ची को क्या हुआ ?"वह अंदर जाने के लिये उठा कि स्टूल पर बैठा वॉर्ड ब्वॉय ने घुड़क दिया, "बड़े मियाँ !यहाँ जनानियाँ देखी जातीं हैं, आप कहाँ अंदर जा रहे हो ?"

जैसे ही आया दवाई लेकर आई उन्होंने आया से कहा, "तुम ये पत्र व इन दोनों को लेकर इस कमरे के पीछे के दरवाज़े से निकल जाओ और मेरी कार से कलेक्टर ऑफ़िस चली जाओ। ड्राइवर कार में होगा या सामने चाय की दुकान पर बैठा होगा. "

आया बोली, "मैं समझ गई। "वह दोनों लड़कियों को लेकर बाहर निकल गई।

दस मिनट बाद वह बुड्ढा रोकने के बावजूद अंदर घुस आया, "मेरी दोनों बेटियाँ कहाँ हैं ?"

"कौन सी बेटियां ?"डॉक्टर पर्दा डाले एक गर्भवती महिला को देख रही थीं। वे वहीं से चिल्लाईं, "रामदीन ! इस सनकी बुड्ढे को बाहर निकालो। "

वह अड़ गया, "तुम्हारी आया कहकर गई थी कि एक लड़की बेहोश पड़ी है। "

"कौन सी आया ?और जब अंदर कोई लड़कियां नहीं आईं तो कोई बेहोश कैसे होगी ? यहाँ दवाई दी जाती है। लड़कियां नहीं रक्खी जातीं। "

वह बुड्ढा आगबबूला हो गया, "मैं तुम सबको देख लूँगा। पुलिस में ख़बर करूँगा। "

"अगर तुमने अस्पातल में शोर मचाया तो हम पुलिस को ख़बर करेंगे। "

वह बकता झकता वहाँ से चला गया।

पांच छ :दिन बाद ही उन लड़कियों का आभार भरा पत्र मिला कि कलेक्टर साहब ने उन्हें सकुशल घर पहुंचा दिया है।

खट ---खट --उनके बैडरूम के दरवाज़े पर कोई नॉक कर रहा था।

' 'कम इन। "उन्होंने बोझिल आँखें खोलते हुये कहा।

अस्पताल की एक आया अंदर आ गई थी, 'मैम साब ! अस्पताल के फाटक पर किशना डाकू खड़ा है, वह चम्पा से मिलना चाहता है। "

"क्या ?" वे झटके से उठकर बैठ गईं।

"वह कह रहा है कि मेरी एक बार चम्पा से बात करवा दो। "

वे एक मिनट असमंजस में पड़ गईं, फिर बोलीं, "चौकीदार उसकी अच्छी तरह तलाशी ले और उसे मेरे कमरे में लेकर आ जाये। मैं वहाँ पहुँचती हूँ."

आया उनके फ़ैसले को सुनकर पत्थर की तरह खड़ी रह गई।

" क्या सुना नहीं ?" उन्होंने डपटते हुये पूछा.

किशना उनके अस्पताल के कमरे में सामने खड़ा था। आम देहाती सा सफ़ेद धोती कुर्ता पहने बड़ी बड़ी मूँछों वाला।वह अकड़कर बोला, "हम चम्पा को वापिस ले जाने आये हैं। "

"ले जाओ, तुम्हारे साथ जाने को तैयार हो तो। "

"तैयार क्यों नहीं होएगी ? उसके पेट में हमारा बच्चा है। "

"अब तुम ये उससे पूछ लो। "कहते हुये वह कुर्सी से उठ, उसे लेकर स्टोर की तरफ़ चल दीं। किशना वहां पहुँचकर क्रोधित हो उठा, "हमारी चम्पा को ताले में बंद करके रक्खा है ?"

" जब उसे लात घूंसे से मारते थे तब कुछ ख़्याल नहीं आता था। "फिर उन्होंने आवाज़ लगाई, "चम्पा तुमसे किशना कुछ बात करना चाहता है।" चम्पा अंदर से चिल्लाई, "हमें उस राक्षस से नहीं मिलना, उससे कहो कि वह यहां से चला जाये । "

"चम्पा दो मिनट खिड़की पर आकर मुझसे बात कर लो। "

वह सच ही गिड़गिड़ा उठा। चम्पा अनुरोध टाल नहीं पाई और वह खिड़की पर आ गई।"चम्पा !मैं तुझे लेने आया हूँ। "

"लेकिन मुझे तेरे संग नहीं जाना."

वह फिर गिड़गिड़ाया, "क्यों नहीं मेरे संग आएगी ?तुझे सोने से लाद दिया है। अब मैं तुझे कभी नहीं मारूंगा, बहुत अच्छी तरह रक्खूँगा। मैं कसम खा रहा हूँ। "

डॉक्टर सोच नहीं पा रहीं थीं कि चम्पा ने कैसे इस डाकू को साथ महीने झेला होगा ?जब चम्पा काबू में में नहीं आई वह क्रोधित हो उठा, उसकी आँखें लाल हो उठीं, "डागधर ! मैं तुम्हें देख लूंगा। तुमने चम्पा को बरगला कर अच्छा नहीं किया। "वह उन्हें अँगारे बरसाती नज़रों से देखता मुड़कर चला गया।

धीरे धीरे अन्धकार बढ़ता जा रहा था, चम्पा सन्न स्टोर में बैठी थी। डॉक्टर अपने बैड रुम में बेचैन टहल रहीं थीं। न चाहते हुए उनकी नसों का तनाव बढ़ता जा रहा था इसलिए टॉर्च लेकर बाहर निकल आईं । मरीज़ों से, सारे स्टाफ़ से ये बात छिपी नहीं रही थी। एक ख़ौफ़नाक सन्नाटे ने अस्पातल को जकड़ रक्खा था। इसके बरामदों में फ़ैली पीली रोशनी और मरियल हो उठी थी। कुछ नर्स व आया अपनी रात की ड्यूटी को कोसकर आंसू बहा रहीं थीं । जब कुछ और नहीं बनता तो डॉक्टर को कोसने लगतीं कि बहुत तीस मार खां बनतीं हैं।दुनियां में किस किस को बचाती फिरेंगी ? चौकीदार ने अस्पताल के लकड़ी के दरवाज़े की झिरी से देखा सबको ख़बर कर दी थी। किसी की अस्पताल के अहाते से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि बाहर कुछ लोगों की सरगर्मियां बढ़ गईं थीं।

डॉक्टर हाथ में टॉर्च लेकर रात में हरियाली की नमी के बीच के कच्चे रास्ते पर झींगुरों की आवाज़ के बीच राऊंड लेती घूम रहीं थीं कि लोगों को हिम्मत बंधी रहे लेकिन वे वही जानतीं थीं कि को टॉर्च पकड़ने वाला हाथ बार बार पसीने से पसीज रहा है। थोड़ी देर बाद मेन गेट पीटा जाने लगा, किशना डाकू की दहाड़ती आवाज़ थी, "दरवाज़ा खोलो, खोलते क्यों नहीं हो। "

चौकीदार तो डरकर वहां से भाग आया और बरामदे के बड़े गमले के पीछे छिपकर बैठ गया। एक नर्स बरामदे में आकर ज़ोर से बोली, 'डॉक्टर !आपका फ़ोन। "

वे तेज़ क़दमों से चलती ऑफ़िस की तरफ़ चल दीं। फ़ोन उठाकर उन्होंने कहा, "डॉ. ज्ञान स्पीकिंग। "

"क्या बात डॉक्टर आपकी आवाज़ क्यों काँप रही है। मैं अभी लखनऊ से लौटा हूँ तो वाइफ़ ने बताया कि आपका अर्जेन्ट कॉल आया था। "

एस पी की फ़ोन पर आवाज़ सुनकर उन्हें लगा कि उनकी तेज़ धड़कनों को कोई सहारा मिल गया है। उन्होंने संक्षेप सारी बात बताई और कहा, "हमारा हॉस्पिटल डाकुओं से घिरा हुआ है। वे किसी भी समय अंदर घुस सकते हैं। "

"मैं पुलिस फ़ोर्स लेकर पांच मिनट में पहुंच रहा हूँ। इंस्पेक्टर को तो बाद में देखूँगा। "

उन्होंने फ़ोन रक्खा ही था कि एक आया दौड़कर अंदर आई, "डाकू ज़ोर ज़ोर से गेट पीट रहे हैं। "

"मैं देखतीं हूँ। "वे तेज़ी से बरामदे की तरफ़ भागीं, दूर से देखा एक डाकू दीवार पर चढ़कर अंदर कूद आया था. चौकीदार डर के कारण गमले के पीछे से निकलकर आख़िरी वॉर्ड में जाकर छिप गया।.

वह डाकू अहाता पार करता बरामदे के सीढ़ियों के पास रुक गया, उन्होंने पहचाना ये किशना है। वह अपनी रायफल को ज़मीन पर टिकाते हुए बोला, "अब क्या इरादा है ?चम्पा को बाहर निकालिये। "

"मैंने कहा था न ! मेरे जीते जी चम्पा को हाथ भी नहीं लगा सकते। "

"चम्पा मेरी औरत है। उसके पेट में मेरा बच्चा पल रहा है फिर तुम कौन होती हो बीच में बोलने वाली ?"किशना उसी स्टोर की तरफ़ बढ़ रहा था जहाँ चम्पा को बंद रक्खा था। "

वे भी उसके साथ बढ़ती जा रहीं थीं और स्टोर के दरवाज़े के सामने खड़ी हो गईं हो गईं। किशना आग बबूला हो गया, "सामने से हट जाओ नहीं तो गोली मार दूँगा। यदि तुमने चम्पा का उसकी व मेरे बच्चे की जान नहीं बचाई होती तो तुम ज़मीन पर तड़प रही होती। चाहता तो मैं गेट खोलकर अपने साथियों को अस्पताल के अन्दर बुला लेता लेकिन मैं अस्पताल में खून खराबा नहीं करना चाहता. "

वे पशोपेश में थीं हाथ को पर्स में रक्खी चाबी तक पहुँचने दें या नहीं। किशना चिल्लाया, "और सोच लो तुम जहाँ इतने ख़ून किये हैं वहाँ एक और सही."

अब उनकी हिम्मत जवाब देने लगी थी किसी के लिये जान पर खेलने का दावा करना और सच में जान देना दूसरी बात है। सहमे हुये मस्तिष्क में बार बार यही ख़्याल आ रहा था नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में पढ़ रहे उनके इकलौते बेटे का क्या होगा ? बस एक ही क्षण था उन्हें निर्णय लेने में। उन्होंने अपने पर्स को हाथ लगाया ही था कि अंदर से चम्पा खिड़की पर आ गई और चीख उठी, "किशना !तू हमें गोली मार दे लेकिन डागधर साब को कुछ नहीं कहना तुझे तेरे बच्चे की कसम."

अब उनमें हिम्मत आ चुकी थी.उन्होंने पर्स में चाबी ढूँढ़ने का बहाना किया , "किशना मैं अभी कमरा खोलतीं हूँ। "फिर हैरान हो बोलीं, "चाबी इसमें तो नहीं है, मेरे कमरे में होगी। "

"कमरे पर चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।क्या पता तुम पुलिस को फ़ोन करके बुला लो। "वे चतुराई से उसे कमरे में ले आईं और कभी मेज़ की ड्रौअर में, कभी आलमारी में चाबी खोजने लगीं। दो मिनट के बाद एस पी व सिपाही उनके साथ अंदर घुसे ।इससे पहले कि किशना सम्भले वह गिरफ़्तार कर लिया गया। उसके साथियों को अस्पताल के बाहर पहले ही गिरफ़्तार करके जीप में बिठा दिया गया था।

एक दिन बाद ही चम्पा का पति अख़बार पढ़कर दौड़ता चला आया था।

बाद में वे दोनों अपने बच्चे के साथ मिलने आते रहते थे। चम्पा का दूसरा बच्चा भी इसी अस्पताल में हुआ। उसके होने के कुछ कुछ वर्ष बाद वह आई और बताने लगी, "जेल से छूटते ही किशना बन्दूक के ज़ोर पर अपने बेटे को लेने आया था। मैं और मेरा पति उसे देखकर घबरा गये. मैंने उसे चाय बनाकर दी व कहा मेरे दोनों बेटे स्कूल गए हैं, आते ही होंगें। जब दोनों स्कूल से आये तो दोनों किशना को देखकर कुछ सहम गये. किशना अपने सजे संवरे बेटे को देखकर हैरान हो गया।वह भावुक होकर चारपाई से खड़ा हो गया। उसने मेरे पति के कंधे पर हाथ रक्खा और बोला कि तुम्हरा मेरे पर अहसान है कि तुमने मेरे बेटे को अपना लिया। तुम्हारे साथ रहकर पढ़कर अच्छा इंसान तो बन जायेगा। मैं इसे ले गया तो पता नहीं मेरे साथ जंगल जंगल कहाँ भटकना पड़े? उसने एक पोटली निकाली पति को देते हुये बोला की इस धन से इसकी पढ़ाई हो जाएगी। ये बड़ा आदमी बन जाएगा। मेरे पति ने वह पोटली वापिस कर दी की अब ये मेरा बच्चा है तो अपनी मेहनत की कमाई से इसे पालूंगा।

------और किशना भावुक हो रोता हुआ चम्पा के घर से निकल गया होगा, न जाने कहाँ भटकने के लिए -- डॉक्टर तो सिर्फ़ कल्पना ही कर सकतीं थीं।

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