छूटी गलियाँ

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शाम होते ही मुझे घर में अकेलापन खाने को दौड़ता है इसलिए कॉलोनी के पार्क की ओर चल देता हूँ। आज भी शाम से ही पार्क में आ गया दो तीन चक्कर लगाये थक गया तो एक बेंच पर बैठ गया। काफी देर चहलकदमी करते युवा जोड़ों, महिलाओं और बुजुर्गों को देखता रहा। झूला झूलते और अपनी बारी आने का इंतज़ार करते बच्चों की उद्विग्नता और धैर्य को तौलता रहा। आसपास कुछ छोटे बच्चे फिसल पट्टी पर खेल रहे थे, उन की मम्मियाँ घास पर बैठी गपशप कर रही थीं और बीच बीच में अपने बच्चों को आवाज़ लगा कर आगाह भी करते जा रही थीं।

Full Novel

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छूटी गलियाँ - 1

शाम होते ही मुझे घर में अकेलापन खाने को दौड़ता है इसलिए कॉलोनी के पार्क की ओर चल देता आज भी शाम से ही पार्क में आ गया दो तीन चक्कर लगाये थक गया तो एक बेंच पर बैठ गया। काफी देर चहलकदमी करते युवा जोड़ों, महिलाओं और बुजुर्गों को देखता रहा। झूला झूलते और अपनी बारी आने का इंतज़ार करते बच्चों की उद्विग्नता और धैर्य को तौलता रहा। आसपास कुछ छोटे बच्चे फिसल पट्टी पर खेल रहे थे, उन की मम्मियाँ घास पर बैठी गपशप कर रही थीं और बीच बीच में अपने बच्चों को आवाज़ लगा कर आगाह भी करते जा रही थीं। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 2

अरे कितना अँधेरा हो गया है बातों में कुछ पता ही नहीं चला, राहुल अकेला होगा ट्यूशन से आ होगा। तू कैसे जायेगी? नेहा ने अपनी सहेली से पूछा। . मैं ऑटो ले लूँगी। तभी दोनों का ध्यान मेरी ओर गया। मुझे अपनी ओर देखता पाकर वे दोनों घबरा गयीं। बगीचे का सन्नाटा और अँधेरे में उनकी ओर घूरते हुए पकड़ा जाने पर मैं भी सकपका गया। अपनी जगह से उठा और तेज़ी से बाहर की ओर चलने लगा। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 3

शॉपिंग घूमना फिरना मिलना जुलना सब से फुर्सत होकर सनी और सोना की पढ़ाई लिखाई के बारे में बात तो दोनों के मुँह ऐसे बने मानों कुनेन की गोली दे दी हो। पता चला अर्ध वार्षिक परीक्षा में दोनों के रिजल्ट ठीक नहीं आये। उन्हें ठीक से पढ़ाई करने की और उनके पिछले परफोर्मेंस की बात करनी चाही तो सनी ने बड़ी चालाकी से बात मोड़ दी। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 4

साब बंद करने का टाइम हो गया है पार्क के चौकीदार की आवाज़ ने तन्द्रा भंग की। रात सन्नाटे में खुद को पार्क में अकेला पाकर अकेलेपन और रिक्तता का एहसास और गहरा गया थके कदमों से पार्क के बाहर आया एक सिगरेट ली और धीरे धीरे घर की और चल पड़ा। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 5

मेरी वापसी का दिन आ गया, मैं सनी को खींच कर अपने सीने से लगाना चाहता था पर हमारे की दूरी ने मेरे हाथ उसके कंधे तक पहुँचने ही नहीं दिए। वापस आकर मैं रोज़ गीता से बात करता रहा। सनी पर केस दर्ज़ हो गया था, लेकिन उसकी जमानत हो गयी थी। उसकी शराब पीने की आदत लत बन चुकी थी कम उम्र में हुए इस आघात, दोस्तों की बेरुखी और मेरे और उसके बीच की दूरी ने उसे बहुत अकेला कर दिया था और उसने शराब को अपना साथी बना लिया। अब तो वह अपने कमरे में अकेले बैठा शराब पीता रहता। गीता के मना करने या समझाने पर चिल्लाने लगता, तो और क्या करूँ? मेरी जिंदगी में अब रखा ही क्या है? कोई मुझे नहीं चाहता मैं कहीं चला जाऊँगा या कहो तो जहर खा लूँ। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 6

नमस्ते, देर तो नहीं हुई मुझे? नहीं नहीं बैठिये, मैंने बेंच पर एक ओर खिसकते हुए कहा। हम देर तक एक दूसरे को योजना की रूपरेखा बताते समझाते रहे। करीब एक घंटे तक हर पहलू पर विचार करने के बाद उसने मुझसे विदा ली। उसके जाने के बाद भी बहुत देर तक मैं अपनी योजना पर विचार करता रहा। उसे सही गलत के तराजू पर परखता रहा। योजना को अमल में लाने में सिर्फ दो दिन शेष थे। मुझे अभी काफी तैयारी करनी थी। फोन पर मेरी आवाज़ शांत होनी चाहिये संयत, आज़ जैसी अधीरता नहीं हो। बात करते हुए मुझे इतना सामान्य होना होगा जैसे मैं हमेशा से राहुल से बात करते रहा होऊँ। और इसके लिए मुझे अभ्यास कर लेना चाहिये। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 7

दूसरे दिन शाम को घूमने गया तो नेहा को बेंच पर बैठे पाया। अरे आप नमस्ते, कैसी हैं? रही बर्थ डे पार्टी? नमस्ते जी ठीक हूँ, पार्टी बहुत अच्छी रही, बहुत सालों बाद मैंने राहुल को उसके बर्थ डे पर इतना खुश देखा। आपका ये एहसान …। अरे कैसी बातें करती हैं आप। एक बच्चे को खुश करना भगवान की सच्ची प्रार्थना है। लेकिन कहते हुए वह अटकी। जी कहिये ना संकोच मत करिये। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 8

उस दिन सुबह आठ बजे नेहा का फोन आया वह बड़ी घबराई हुई थी। राहुल को बहुत तेज़ है वह अधबेहोशी की हालत में बार बार पापा पापा कह रहा है, मैं उसे हॉस्पिटल ले कर आई हूँ क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आप चिंता मत करिये कौन से हॉस्पिटल में है मैं अभी आता हूँ। मैंने फ़ौरन गाड़ी निकाली और हॉस्पिटल पहुँचा, नेहा बदहवास सी खड़ी थी। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 9

राहुल को एक और दिन हॉस्पिटल में रहना था। नेहा ने फोन पर बताया वह लगातार पापा को याद रहा है, बार बार पूछ रहा है पापा का फोन क्यों नहीं आ रहा, बड़ी मुश्किल से उसे बहला रही हूँ। हम लोग कल सुबह दस बजे घर जायेंगे। जाओगे कैसे? वह मेरे किरायेदार गाड़ी ले कर आ जाएंगे। तब ठीक है जैसे ही पहुँचो मुझे मिस कॉल देना मैं फोन करुँगा, राहुल से बात किये बिना मुझसे भी रहते नहीं बन रहा। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 10

मैंने नेहा से पूछा आपने कभी विजय से बात नहीं की? राहुल के बीमार होने के बाद दो तीन बार फोन लगाने की कोशिश की थी, रिंग गयी लेकिन फोन काट दिया गया कहते हुए नेहा का गला रुंध गया। एक बेबसी जो बेटे के प्यार से उपजी और ठुकराये जाने की पीड़ा उनकी आँखों में तिर आई। जिस प्रेम और विश्वास से नेहा ने अपने कर्तव्य पूरे किये उसके बदले मिला विश्वासघात का दंश आखिर को निकलता कैसे? ...Read More

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छूटी गलियाँ - 11

अरे बहुत देर हो गयी मुझे चलना चाहिये नेहा ने बाहर देखते हुए कहा, लेकिन हमारी समस्या तो वहीँ वहीँ है क्या किया जाये? वह वाकई बहुत चिंतित थी। देखिये उसे बताना तो पड़ेगा ही। अब देखना ये है कि क्या, कितना और कैसे बताना है मैं इस बारे में सोचता हूँ, हो सके तो कल मिल कर सारी रूप रेखा बनाते हैं। ठीक है, कहते हुए नेहा खड़ी हो गयी। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 12

तीन दिन हो गये थे नेहा की कोई खबर नही थी ना ही कोई फोन। मैं जानना चाहता था हुआ? उसने राहुल को क्या और कैसे बताया? राहुल की क्या प्रतिक्रिया हुई? मैं खुद राहुल से बात करना चाहता था पर नेहा से उसकी मनस्थिति जाने बिना नहीं। आज शाम तक इंतज़ार करता हूँ नहीं तो मै ही उसे फोन लगाऊँगा उसके मोबाइल पर, मैंने सोचा। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 13

हैलो पापा कैसे हैं आप ? कितने दिनों बाद फोन किया आपने, आपको हमारी याद नहीं आती? ऐसा है बेटा बस समय नहीं मिल पाता। 'हमारी याद' अब मैं उसके एक एक शब्द पर ध्यान देने लगा था। मम्मी कैसी है? तुम कैसे हो? पढ़ाई कैसी चल रही है? ...Read More

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छूटी गलियाँ - 14

मैं राहुल को लेकर परेशान था, बाल मनोविज्ञान की कई साइट्स मैंने छान ली लेकिन कहीं से कोई दिशा मिल रही थी। अब खुद की समझ और विश्लेषण के आधार पर ही कुछ करना था। हाँ एक विचार आया था कि किसी मनोविशेषज्ञ से पूछूँ लेकिन खुद की झिझक थी और अब तो एक शर्मिंदगी का एहसास भी कि मैं एक तेरह साल के बच्चे को नहीं समझ पा रहा हूँ। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 15

नेहा जी मुझे पता नहीं है आपको क्या परेशानी है और पता नहीं मैं इसमें कोई मदद भी कर हूँ या नहीं लेकिन एक बार कह कर तो देखिये आपका मन कुछ हल्का हो जायेगा मैंने फिर कोशिश की। उसने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं लेकिन फिर बड़बड़ाने लगी, अब क्या ठीक होगा लगता है अब तो सब कुछ ही बिगड़ जायेगा, राहुल को सब पता चल जायेगा पता नहीं फिर वह कैसे रिएक्ट करेगा। कैसे उसे संभालूँगी, कैसे उसके सवालों के जवाब दूँगी। फिर उसने मेरी तरफ देखा सीधे मेरी आँखों में और घबराये से स्वर में बोली मैं क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 16

आज सनी का आखरी पेपर था मैं घर में अकेला था मैंने राहुल से बात की। उसके पेपर्स कैसे वह छुट्टियों में क्या करेगा ? वह क्या बनना चाहता है इसके अलावा भी फिल्म क्रिकेट वगैरह पर भी बातें हुईं। जब फोन बंद किया देखा सनी दरवाज़े पर खड़ा मुझे घूर रहा था। अरे सनी आ गया तू पेपर कैसा गया? मैं राहुल से बात करने की ख़ुशी में उत्साहित था। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 17

असफल होने का अवसाद मुझे डुबोने लगा मैंने अंतिम बार सतह पर आकर फिर कोशिश की। अपना हाथ राहुल ओर बढ़ाया उसका हाथ अपने हाथ में लेकर गर्मजोशी से हिलाया और कहा आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा बेटा आप बहुत अच्छे बच्चे हो कभी कभी पार्क में आया करो मुलाकात होती रहेगी। मैंने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा। गॉड ब्लेस यू बेटा। मैंने नेहा को नमस्ते किया बहुत प्यारा बेटा है आपका। आशा करते है फिर मुलाकात होगी। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 18

नेहा कितना मुश्किल भरा था आज का दिन। आज का दिन ही क्या पिछले कुछ दिन अजीब सी उहापोह में रहे हैं। हर दिन क्या करें, कैसे करें, क्या होगा की बैचेनी। परिस्थितियाँ तो अभी भी जस की तस हैं लेकिन फिर भी आज सुकून सा है मानों कुछ हासिल कर लिया हो मैंने। अब हासिल किया या गँवाया ये तो वक्त ही बताएगा। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 19

राहुल हतप्रभ था उसने खुद को मुझसे छुड़ाया, मुझे सोफे पर बैठाया और कुछ देर तक मेरे कंधे पर रखे बस खड़ा ही रह गया। ये संभवतः पहली बार था जब वह अपनी मम्मी को रोते हुए देख रहा था। हालांकि पिछले तीन सालों में मैं दबे छुपे कई बार आँसू बहा चुकी थी लेकिन शायद हर बार थोड़ा सा गुबार शेष रह जाता था जो आज सारे बाँध तोड़ कर बह निकला और इसी के साथ मेरी बेबसी राहुल के सामने सैलाब सी बह रही थी। जिसमे राहुल डूब उतरा कर कोई थाह पाने की कोशिश कर रहा था, जो उसे किचन में दिखी वह दौड़ कर पानी ले आया। आँसुओं का आवेग कम हो गया था लेकिन मेरी विवशता अब भी मेरे चेहरे पर चिपकी थी। मैंने धीरे से नज़रें उठा कर राहुल की ओर देखा, उसने मेरा सिर अपने सीने से लगा लिया, उसकी हथेलियों का स्नेहिल स्पर्श मुझे सांत्वना दे रहा था। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 20

क्या सही और क्या गलत फैसला आसान नहीं था। जिसे मैं सही कह रही थी शायद बिलकुल गलत था। हमें यूँ अकेले छोड़ कर अपनी अलग दुनिया बसा ले और मैं कुछ ना कहूँ शायद ये गलत था। लेकिन उन्हें प्यार किया था, उनके व्यवहार की कायल थी मैं। उन अंतरंग क्षणों में जब कुछ पल के लिये ही सही वो मेरे थे सिर्फ मेरे और उनके प्यार से सराबोर उनके अंश को धारण करने के बाद उनकी वो चिंता देखभाल राहुल को गोद में लेकर प्यार से दमकती उनकी आँखें मुझे विश्वास करने पर मजबूर कर देती हैं कि उन्होंने भी मुझे दिल से चाहा था बस उस चाहत की उम्र कम थी। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 21

सनी अभी भी रोये जा रहा था मैं उसे रोते हुए देखता रहा उसे इस दुःख में डूबते हुए रहा जो उसे मेरे कारण मिला था फिर किसी तरह खुद को खींच कर उसके करीब लाया और उसे गले लगा लिया। मैं उसे पकड़ कर सोफे तक लाया वह सोफे पर बैठ गया। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा वह सोफे पर दूर खिसक गया मेरा हाथ खुद ही उसके कंधे से फिसल गया। ...Read More

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छूटी गलियाँ - 22

इसी बीच एक अच्छी खबर आई सनी को बैंगलोर की एक प्रतिष्ठित कोचिंग में सी एस की तैयारी के एडमिशन मिल गया। पंद्रह दिनों बाद उसकी क्लासेज शुरू होने वाली थीं। बहुत दिनों पहले आया वह लिफाफा मैंने फिर खोल कर पढ़ा। बैंगलोर की उस कंपनी से मेरे लिये भी कई कॉल आ चुके थे। मैं सनी को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था इसलिए अब तक कोई जवाब नहीं दिया था अब तो सनी का भी बैंगलोर जाना तय है लेकिन अब नेहा और राहुल से एक बार बात किये बिना मैं कोई जवाब नहीं देना चाहता था एक बार फिर अपनी जिम्मेदारी छोड़ कर नहीं जाना चाहता था। हाँ अब राहुल मेरी जिम्मेदारी है। ...Read More