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रेडियो पत्रकारिता

रेडियो पत्रकारिता

विशाल पब्लिकेशन

पटना,दिल्ली

ISBN : 978-81-89327-88-7

मूल्यः 75 रूपये

कॉपी राइट : संजय कुमार

प्रथम संस्करण : 2011

प्रकाशक : विशाल पब्लिकेशन , कैलाश मार्केट, दरियापुर पटना—4

शाखा : 88/14ए,गली न.ं—1, शकरपुर खास, दिल्ली—92

मुद्रक :बी.के.ऑफसेट, दिल्ली—32

Radio ptrakarita written by Sanjay Kumar Price: 75.00

अनुक्रम पृष्ठ संख्या

1. रेडियो पत्रकारिता

2. समाचार लेखन

3. समाचार की भाषा

4. वॉईस कास्ट

5. समाचार वाचन

6. साक्षात्कार

7. विभिन्न कार्यक्रम

8. भारत में प्रसारण का इतिहास

अपनी बात

रेडियो पत्रकारिता की जड़े बरगद की तरह आज फैल चुकी है। मीडिया का यह सबसे सषक्त और मजबूत माध्यम है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह माध्यम जनहित का माध्यम है। इसके लिए किसी भी तरह का शुल्क श्रोताओं को अदा नहीं करनी पड़ती। दस रुपये के रेडियो सेट से रेडियो के कार्यक्रम का आंनद लिया जा सकता है। रेडियो की पहुंच वहां तक है जहां कोई प्रिंट या टीवी चैनल नहीं पहुंच पाता है। आकाषवाणी हो या बीबीसी इसकी पहचान में समाचार की दुनिया महत्वपूर्ण है। समाचार को लेकर रेडियो की अपनी पहचान है। समाचार के मद्‌देनजर ही इसका जन्म हुआ यानी सूचना को तुरंत लोगों तक पहुंचाने को लेकर। आज इसकी जड़ बहुत मजबूत हो चुकी है। श्रोताओं तक समाचार को पहुंचाने के पहले, इससे कई प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसका सबसे अहम पक्ष है रेडियो के लिए समाचार का लेखन। नागालैंड और पटना के आकाषवाणी केन्द्र में समाचार विभाग से जुड़ कर कार्य करने का जो मेरा अनुभव रहा है वह काफी रोमांचित करता है। समाचार कक्ष में रोजाना समाचारों से जूझना और उसमें जनहित के समाचारों को रेडियो के मापदण्ड के तहत तैयार करना कोई आसान काम नहीं है। समाचार निर्माण कार्य में हर दिन कुछ न कुछ सीखने का अवसर मिलता गया। जो देखा व सीखा उसे इस पुस्तक में समेटने का प्रयास किया है। खासकर पत्रकारिता के छात्रों के लिए। क्योंकि रेडियो ही एक मात्र ऐसा माध्यम है जिसका वजूद कभी खत्म नहीं हो सकता। बल्कि, दिनों—दिन यह संचार क्रांति के साथ कदम से कदम मिला कर प्रगति कर रहा है। पुस्तक में समाचार लेखन के तमाम पहलुओं को बारीकी से समेटने का प्रयास किया है।

संजय कुमार

भूमिका

एक जरूरी पुस्तक

आपको मालूम है कि दुनिया का पहला रेडियो प्रसारण 1916 में अमेरिका हुआ था और उसके जरिये राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित समाचार अखबार के छपने के घंटों पहले ही लोगों को मिल गए थे ? कि भारत में पहला रेडियो प्रसारण इसके पांच साल बाद एक समाचार पत्र की ओर से आयोजित कार्यक्रम के प्रसारण तौर पर हुआ और इसकी व्यवस्था डाक—तार विभाग ने की थी ? कि भारत में नियमित रेडियो प्रसारण 1927 से आरंभ हुआ और सरकारी प्रसारण सेवा की शुरुआत 1930 में हुई ? कि ‘आकाशवाणी' नाम की संस्था का पहला रेडियो प्रसारण 1935 में मैसूर से हुआ था ? कि प्रथम समाचार बुलेटिन सरकारी रेडियो से 1936 में आरंभ किया गया ?... ऐसे अनेक तथ्य हैं जिनकी जानकारी बिहार के युवा पत्रकार संजय कुमार की नई पुस्तक ‘रेडियो पत्रकारिता' में मिलती है। श्री कुमार की यह पुस्तक इन्हीं या ऐसी ही जानकारी के लिए उपयोगी नहीं है, बल्कि यह रेडियो समाचार पत्रकारिता की विविधता से भरी दुनिया से हमें सैर कराती है और इसके तकनीकी पक्षों की जानकारी देती है।

बहुत दिन नहीं हुए हैं जब रेडियो (भारत में आकाशवाणी या अॉल इंडिया रेडियो) मनोरंजन का, सूचना का, समाचार का एकमात्र और जीवन्त जन माध्यम था। यह जन माध्यम देश की उस करोड़ों आबादी के लिए और भी अनिवार्य जरूरत थी, कान ही जिसकी आँख रहे और खुद का नीर—क्षीर विवेक विश्वास का एकमात्र संबल। कुछ वर्ष पहले तक रेडियो उस अति सम्पन्न, सम्पन्न, संभ्रान्त, भद्र उच्च वर्गीय—मध्य वर्गीय समाज के लिए भी अनिवार्य जरूरत जैसा ही रहा जो सूचना में, समाचार में विश्वसनीयता की चाह रखते हैं, जो सब कुछ ठीक—ठीक और सटीक चाहते रहे हैं। हालाँकि हाल के इतिहास में कुछ ऐसे दुःखद उदाहरण भी हैं जब रेडियो को ‘हकला' बनाने की परोक्ष—प्रत्यक्ष कोशिश की गई। पर, सुखद पक्ष यह कि ऐसी कोशिश सफल नहीं हुई, इतिहास ने ऐसी पहल को स्वीकार नहीं किया। और इसीलिए, अभी हाल तक—कुछ दशक पहले तक—हम बड़े—बुजुगोर्ं के मुँह से बहुधा एक जुमला सुनते रहे थे—रेडियो ने ऐसा कहा है। अर्थात्‌ रेडियो का कहा वेद—वाक्य तो नहीं होता, पर उसकी कही किसी भी बात की विश्वसनीयता अन्य किसी भी माध्यम से बड़ी होती है। ऐसा कैसे हुआ ? वस्तुतः यह बड़ा ही दुष्कर, श्रम साध्य, समय साध्य कार्य है जिसके लिए अतुलनीय संयम और धैर्य की जरूरत होती है। रेडियो (आकाशवाणी) ने यह हासिल किया तो मात्र श्री संजय कुमार के संस्थान के पुरखों की कड़ी मेहनत और लगन के कारण। संजय अपनी इस पुस्तक में यह बताने में सफल रहे हैं कि समाचार प्रसारित करने के पूर्व आकाशवाणी का संवाद तंत्र किन—किन पैमानों पर इसे कसता है, किस हद तक खरे उतरने के बाद उसे प्रसारित किया जाता है।

इक्कीसवीं शताब्दी में पत्रकारिता का ताना—बाना पूरी तरह बदल गया है। बहिरंग तो तिल—तिल नूतन होय का शक्ल अख्तियार कर चुका है, अंतरंग भी वह नहीं रहा जैसा गत शताब्दी के तीसरे चतुतार्ंश तक था। सूचना तकनीक के विकास और विस्तार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को— दृश्य मीडिया को—दिन दूनी रात चौगुनी की तर्ज पर विस्तार दिया। इसने पारंपरिक संवाद माध्यम को अपना बाना बदलने को विवश कर दिया। इसके साथ ही, इंटरनेट, एफएम रेडियो, मोबाइल मीडिया जैसे वैकल्पिक माध्यम तेजी से हमारे जीवन के अंग बन रहे हैं। ऐसे में प्रिंट मीडिया के साथ—साथ रेडियो पत्रकारिता का शिक्षण—प्रशिक्षण भी ज्ञान के एक अनुशासन के तौर पर विकसित होना स्वाभाविक है। रेडियो पत्रकारिता आज स्वतंत्र पाठ्यक्रम के तौर पर विकसित हो रही है। रेडियो पत्रकारिता समय की जरूरतों को पूरा करने और अपने श्रोेता समाज को सम्बोधित करने के लिए, उन्हें बाँधे रखने के लिए नव—नव प्रयोग कर रहे हैं। समाचार लेखन, उनकी प्रस्तुति, भाषा में सुधार के साथ—साथ वॉयसकास्ट जैसे नए तरीके इजाद कर रहे हैं। श्री संजय कुमार की यह पुस्तक रेडियो पत्रकारिता में हो रहे इन्हीं बदलावों को रोचक ढंग से पेश कर रही है। यह पुस्तक पत्रकारिता, और खासतौर पर रेडियो पत्रकारिता के हर तरह के छात्रों के लिए तो महत्वपूर्ण है ही, पत्रकारिता में रुचि रखने वालों के लिए भी जरूरी है। संजय की मेहनत को सलाम।

सुकान्त

पूर्व स्थानीय संपादक

दैनिक हिन्दुस्तान, मुजफ्फरपुर

पटना

रेडियो पत्रकारिता

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रेडियो के बाद टेलीविजन की दुनिया और उसके बाद खबरिया चैनलों (सेटेलाइट टी.वी.) के जन्म, फिर संचार क्रांति ने इंटरनेट की दुनिया स्थापित कर मीडिया को व्यापक बनाते हुए उसे सहज और आम कर दिया है। तो वहीं मीडिया के नये आयामों के आने से दूसरे के दबे जाने की बात भी उठी। कहा जाने लगा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के तेवर के सामने पिं्रट मीडिया का प्रभाव कम हो जायेगा। रेडियो के भविष्य को लेकर सवाल उठे। बल्कि लोगों ने मान भी लिया कि रेडियो की मौत हो गई। लेकिन सच्चाई यह है कि रेडियो कल भी था और आज भी है। हां, थोडे़ देर के लिए यह स्वीकार किया जा सकता है कि जिस तरह नयी खोज या चीजें जब सामने आती हैं तो पुरानी चीजों पर से लोगों की नजरें कुछ समय के लिए हट जाती है और यही रेडियो के साथ भी हुआ। मीडिया के विभिन्न दृष्य आयामों ने कुछ हद तक रेडियो को भी प्रभावित किया। रेडियो में ठहराव की बात उठी, लेकिन इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं किया गया, क्योंकि इसका अपना खास वर्ग शुरू से ही इसके साथ रहा है।

अब कहा जा रहा है कि रेडियो की वापसी हो गई। रेडियो क्रांति का दौर जोराें पर है। दरअसल मीडियम और शार्टवेव के इस मनोरंजक दुनिया में अब एफएम रेडियो, मेट्रो शहरों मे परचम लहराते हुए जहां आम व खास सभी को रेडियो के करीब ले आया है, वहीं छोटे शहरों और गांवों को भी गिरफ्‌त में लेने की कवायद शुरू की। एफएम रेडियो का दायरा शहर व गांवों में फैला। दूसरी ओर सरकार की अनुमति के बाद सामुदायिक रेडियो भी पैर पसारने की जुगत में लग गये। बिहार सरकार खुद हर प्रखंड स्तर पर एफएम और सामुदायिक रेडियो स्थापित करने की दिषा में सक्रिय हुई। संचार क्रांति ने रेडियों को सेटेलाइट टी.वी. की तरह डी.टी.एच. पर भी ला दिया है। इससे टी.वी. सेट पर रेडियो का आंनद लिया जा रहा है।

एफ.एम. के धमाकेदार आगाज और सामुदायिक रेडियो के बढ़ते कदम से कहा जाने लगा है कि टेलीविजन के प्रभाव से दबे रेडियो की एक बार फिर से वापसी हो रही है। सच है कि टेलीविजन और सेटेलाइट चैनलों ने कुछ हद तक रेडियो को अपनी गिरफ्‌त में लिया, लेकिन पूरी तरह से नहीं। इसका प्रभाव केवल शहरी क्षेत्रों में ही देखा गया, जहां रेडियो सेट डब्बे में बंद हो गये थे और टी.वी.सेट एवं इंटरनेट ने कब्जा जमा लिया। वहीं ग्रामीण व कस्बाई क्षेत्रों में रेडियो अपने तेवर के साथ जमा रहा और आज भी जमा है। हां यह अलग बात है कि इन क्षेत्रोंं में एफ.एम. को अगर पूरी तरह से पहुंचा दिया जाए, तो इसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। इसकी वजह यह है कि आज दस से बीस रुपये में भी एफ.एम. रेडियो मिल रहा है। खासतौर से युवा वर्ग इसे खरीद रहे हैं और रेडियो का रसास्वादन कर रहे हैं। तो वहीं मोबाइल फोन सेटों पर भी एफ.एम. रेडियो को बडे़ पैमाने पर सुना जा रहा है।

सवाल यह भी उठ सकता है कि आखिर रेडियो ही क्यों ? रेडियो पत्रकारिता अन्य माध्यमों से चर्चित क्यों ? दरअसल में यह इतना सुगम व सहज है कि इसके लिए किसी तरह का दबाव या फिर अलग से समय की जरूरत नहीं पड़ती। खेत—खलिहान, कल—कारखाना, ऑफिस, या हर वह जगह जहां काम करते हुए बड़े आसानी से रेडियो सुना जा सकता है। कहने का मतलब है कि रेडिया सुनने के साथ—साथ कोई दूसरा काम किया जा सकता है लेकिन यह बात टी.वी. और अखबार के साथ लागू नहीं होती है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि रेडियो पत्रकारिता को जीवंत रखने में देष के गांवों की भूमिका अहम है। जिस तरह से अखबारों के पाठकों तथा खबरिया चैनलों के दर्षकों की संख्या शहरी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा है उसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में रेडियो के श्रोताओं की संख्या को कोर्ई दूसरा मीडिया छू नहीं सकता है। रेडियो भी गांवों का ख्याल रखता है और ग्रामीण मुद्दों को तरजीह देता है। अखबारों के राष्ट्रीय से राजकीय और जिला स्तर पर प्रकाषन से जहां पाठकों को देष व राज्य की खबरों से वंचित रहना पड़ता है वहीं रेडियो देष—विदेष और प्रादेषिक खबरों को प्राथमिकता के साथ श्रोताओं के समक्ष पूरी ईमानदारी से सामने आता है। जिले—जिले में तैनात आकाषवाणी के संवाददाता गांव, पंचायत व प्रखंड की खबरें देते है जिसे प्रसारित किया जाता है।

हालांकि, बाजारवाद के चकाचौंध में कहा जाता है कि लोग रेडियो नहीं सुनते हैं और सुनते भी हैं तो केवल गाने। इस पूर्वाग्रह को रेडियो ने तोड़ा है। पूर्वोत्तर के सबसे संवेदनषील राज्य नागालैंड के दुर्गम पहाड़ी व सुदूर गांव में जहां मनोरंजन व सूचना पाने का कोई जरिया नहीं हैं, वहां के लोग रेडियो ही सुनते हैं और वह भी अपनी बोलियों में। नागालैंड में 16 से ज्यादा जनजातियां है और वे एक दूसरे की बोलियां अक्सर नहीं समझते हैं। ऐसे में रेडियो ही उनका एक मात्र सहारा है। आकाशवाणी कोहिमा 16 बोलियों में कार्यक्रम और प्रादेषिक समाचार का प्रसारण रोजाना करता है। जनसाधारण और अंतिम कतार में खड़े व्यक्ति का मनोरंजन व सूचना पाने का एक मात्र माध्यम रेडियो की पहुंच केवल नागालैंड के लोगों तक ही सीमित नहीं है। बल्कि देष के वे समी ग्रामीण क्षेत्र शामिल हैं जहां टेलीविजन और सेटेलाइट चैनलों की पहुंच नहीं है। अगर है भी तो गांवों में बिजली और गरीबी की समस्या की वजह से वे जुड़ नहीं पाते। ऐसे में उनके लिए रेडियो ही एक मात्र जरिया बनता है। हालांकि देष के कई ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीविजन और सेटेलाइट चैनलें पहुंची है लेकिन अभी भी रेडियो सुनने वालों की संख्या ज्यादा है। भारत में उपलब्ध जनसंचार के माध्यमों में रेडियो प्रसारण सबसे सषक्त माध्यम है। जहां कई प्रकार की विभिन्नताएं विद्यमान है और अभी भी अखबारों या टी.वी. चैनलों की पहुंच बहुत कम है। ऐसे में रेडियो ही लोगों को सूचना देने के साथ—साथ षिक्षित करने में अहम्‌ भूमिका निभा रहा है। कई बोलियों/भाषा में यह लोगों से जुड़ा है।

गांवों में कल भी रेडियो की धूम थी और आज भी है। बिहार में खासकर ‘चौपाल' और प्रादेषिक समाचार सुनने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। शाम 7.30 बजते ही गांव घर के चौपाल व दलानों पर रेडियो से प्रादेषिक समाचार बुलेटिन की गुंज सुनाई पडने लगती है। यही हाल देष के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों का है। गांव घर के लिए आज भी रेडियो ही एक मात्र समाचार, मनोरंजन एवं सूचना पाने का सरल और सहज माध्यम बना हुआ है।

मीडिया के षहरी चकाचौंध ने हकीकत को दरकिनार कर दिया है। जहां ग्रामीण क्षेत्रों में रेडियो की पकड़ कायम रही, वहीं एफ.एम क्रांति ने मेट्रो के श्रोताओं को अपनी ओर खींचने में जबरदस्त कामयाबी पाई। आंकडे़ बताते हैं कि आधुनिक होते मीडिया के बीच रेडियो का जलवा बरकरार है। देष भर में अकेले आकाषवाणी 91.42 प्रतिषत क्षेत्र और 99.13 प्रतिषत जनसंख्या को कवर करता है। इससे बड़ा जनसंचार का माध्यम शायद ही कोई दूसरा है ! वहीं सरकारी आकड़ों के अनुसार देष में रेनबो और गोल्ड एफ.एम की पहुंच 14 करोड़ लोगों से भी ज्यादा हैं। और एक दिन में श्रोताओं की संख्या 4 करोड़ से ज्यादा है। देष भर में आकाषवाणी के प्राइमरी चैनल शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 56 प्रतिषत लोगोें को कवर करता है। रेडियो सुनने वालों की संख्या कम नहीं हो रही है बल्कि दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। अकेले दिल्ली में 47.7 प्रतिषत लोग रेनबो, 52.5 प्रतिषत गोल्ड, 48.8 प्रतिषत मिरची, रेड एफ.एम 26 और रेडियो सिटी को 42 प्रतिषत लोग सुनते हैं। उसी तरह मुंबई में रेनबो—51.2, गोल्ड—44.2, मिरची—45.8, रेड एफ.एम.—22.6 , रेडियो सिटी—27.4, प्रतिषत लोग सुनते हैं। देष भर में एफ.एम. रेनबो सुनने वालों का प्रतिषत अकेले 42 है जबकि दिल्ली, कोलकता, मुंबई एवं चेन्नई में 27.9 प्रतिषत लोग गोल्ड सुनते हैं।

आधुनिक संचार माध्यमों की जब—जब चर्चा होती है तब—तब रेडियो का जिक्र सबसे पहले आता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया मेें इस जन माध्यम का सबसे पहले उदय हुआ। आम खास का सषक्त माध्यम रेडियो का पहला विष्व प्रसारण 1916 में हुआ था। उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव के बारे में खबर समाचार पत्रों में छपने से कई घंटे पहले ही ध्वनि तरंगों में बदलकर लोगों तक पहुंचायी गयी। इस प्रयोग ने हर ओर तहलका मचा दिया। पहली बार ऐसा हुआ कि छपने से पहले खबर लोगों तक पहुंची। देखते ही देखते प्रोपेगेंडा खबरों में तबदील हो गयी और रेडियो तरंगों का इस्तेमाल खबरों के प्रसारण के लिए किया जाने लगा।

1919 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में एक निगम ‘रेडियो कारपोरेशन ऑफ अमेरिका' बना। बाद में पिट्‌सवर्ग में ब्रॉडकाशटिंग सेंटर की स्थापना हुई और इस तरह से 21 दिसम्बर 1922 को विश्व के प्रथम रेडियो प्रसारण का जन्म हुआ। हालांकि विष्व का पहला व्यावसायिक प्रसारण केंद्र 2 नवम्बर 1920 को पीट्‌सबर्ग में आरंभ हुआ। इंग्लैंड में पहला रेडियो प्रसारण 1920 में मारकोनी कंपनी द्वारा चेम्सफोर्ड से किया गया। 1922 में ब्रिटिष ब्रॉडकास्िंटग कॉरपोरेषन की स्थापना हुई।

भारत में रेडियो

भारत में रेडियो का नियमित प्रसारण 23 जुलाई 1927 से शुरू हुआ। गैर सरकारी कंपनी इंडिया ब्रॉडकाषटिंग कंपनी ने मुंबई में रेडियो स्टेशन खोला। हालांकि 31 जुलाई, 1924 से मद्रास प्रेसिडेंसी रेडियो क्लब में प्रसारण शुरू कर दिया था। वहीं माना जाता है कि भारत में पहला रेडियो प्रसारण 1921 में उस समय हुआ जब बंबई में टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा संगीत का एक विषेष कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसे गवर्नर जॉर्ज लायड के अनुरोध पर पोस्ट एंड टेलीग्राफ विभाग के सहयोग से प्रसारित किया गया था। यह कार्यक्रम बंबई से 175 किलोमीटर दूर पूणे में भी सुना गया था।

जहां तक सरकारी प्रसारण का सवाल है तो 1936 में वर्ष के पहले दिन आकाशवाणी के दिल्ली केन्द्र से प्रसारण शुरू हुआ। और 19 जनवरी 1936 को आकाशवाणी से पहला समाचार बुलेटिन प्रसारित हुआ। इंडिया स्टेट ब्रॉडकाशटिंग सर्विस का नाम बदलकर ‘ऑल इंडिया रेडियो ' रखा गया। जून महीने में दिल्ली केन्द्र से ग्रामीणों के लिए कार्यक्रम प्रसारित हुआ। 2 अपै्रल 1938 को लखनऊ और 16 जून 1938 को मद्रास रेडियो स्टेशन का उद्‌घाटन किया गया। अक्टूबर 1938 तक ऑल इंडिया रेडियो के विभिन्न केन्द्रों से करीब 17 घंटे तक का प्रसारण होने लगा था। हिन्दी के अलावा हिन्दुस्तानी, बंगला, तमिल, तेलगू, गुजराती, मराठी और पस्तो भाषाओं के समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू हो गया था। 1939 में जब द्वितीय विश्व युद्व शुरू हुआ तो सरकार ने रेडियो का इस्तेमाल काफी बढ़ा दिया। दिन प्रतिदिन की खबरें, कई विषयों पर सरकारी दृष्टिकोण प्रसारित किये जाने लगे। 24 अक्टूबर 1941 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय की स्थापना की गयी। 1942 तक देश में 14 रेडियो स्टेशन थे। इनमें नौ पर ऑल इंडिया रेडियो और पांच पर राजाओं के शासन का अधिकार था। देश विभाजन के बाद तीन रेडियो स्टेशन पाकिस्तान चले गये। आजादी के बाद सरकार ने रेडियो स्टेशनों को खोलने का सिलसिला शुरू किया और आज हकीकत यह है कि जितना बड़ा नेटवर्क आकाशवाणी का है उतना बड़ा शायद ही किसी मीडिया का।

आकाषवाणी का समाचार सेवा प्रभाग प्रतिदिन 82 भारतीय भाषाएं /बोलियों में 510 से भी अधिक समाचार बुलेटिन, जो करीब 52 घंटे का होता है, प्रसारित करता है। दिल्ली, क्षेत्रीय समाचार इकाइयों और विदेश प्रसारण प्रभाग से करीब 44 घंटे समाचार बुलेटिन प्रसारित किये जाते हैंं। भारतीय भाषाओं में बुलेटिनों की संख्या 84 है। दिल्ली से घरेलू सेवा के तहत हिन्दी, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषा में रोजाना 89 बुलेटिन प्रसारित होते हैं। 44 प्रादेषिक समाचार एकांष रोजाना 355 समाचार बुलेटिन, 67 भाषाओं—बोलियों में प्रसारित करता हैं। इसमें 22 आकाषवाणी केन्द्रों से एफ. एम., रेनबो और एफ. एम. गोल्ड पर प्रसारित समाचार हेडलाइन भी शामिल हैं। आकाषवाणी के क्षेत्रीय केंद्रो से क्षेत्रीय भाषा/बोलियों में समाचारों का प्रसारण होता है। भारत में केवल आकाषवाणी तक ही श्रोता बंधे नहीं है। बडे़ पैमाने पर बी.बी.सी., वॉयास ऑफ अमेरिका, रेडियो जर्मन, जापान सहित कई विदेषी रेडियो प्रसारण से भारतीय श्रोता जुड़े हैं।

आज समाचार मोबाइल फोन और इंटरनेट पर सुना जाता है। समाचार सेवा प्रभाग नई दिल्ली और देष भर के प्रादेषिक समाचार एकांष द्वारा ‘दूरभाष पर समाचार सेवा' चलाया जा रहा है। दुनिया के किसी भी कोने में बैठा व्यक्ति एक नम्बर डायल कर दूरभाष पर हिन्दी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं में समाचारों की सुर्खियां सुन सकता है। राष्ट्रीय समाचारों की सुर्खियों के लिए समााचार सेवा प्रभाग के दूरभाष सेवा के नम्बर 011—23324242 (अंग्रेजी में) और 011—23324343 (हिन्दी में)। दिल्ली के श्रोताओं के लिए यह सुविधा निःषुल्क उपल्बध है जिसके लिए 1258 (हिन्दी) व 1259 (अंग्रेजी) डायल कर समाचार सुन सकते है। दूरभाष पर समाचार प्रादेषिक समाचार एकांषों में भी उपलब्ध है। चेन्नई में तमिल, हैदराबाद में तेलगू, मुंबई में मराठी, अहमदाबाद में गुजराती, बैंगलोर में कन्नड़, तिरूवनंतपुरम में मलयालम में और पटना से हिन्दी में दूरभाष पर समाचार उपलब्ध है।

आकाशवाणी समाचारों का प्रसारण अब इंटरनेट के जरिए भी होने लगा है। इसके लिए समाचार सेवा प्रभाग के वेब साइट डब्लू डब्लूडब्लूडॉंटन्यूजऑनएआईआरडॉंटएनआईसीडॉंटइन को लाग इन करना पड़ता है। समाचार सेवा प्रभाग के वेवसाइट पर आकाषवाणी नई दिल्ली यानी मुख्यालय, समाचार सेवा प्रभाग द्वारा प्रसारित सभी महत्वपूर्ण बुलेटिनों को डाला जाता है। इसमें हिन्दी के समाचार प्रभात, दोपहर समाचार, समाचार संध्या के अलावा अंगे्र्रजी के प्रमुख बुुलेटिनों को पढ़ा व सुना जा सकता है। साथ ही देष भर के प्रादेषिक समाचार एकांषों के समाचार बुलेटिन और भाषाबार प्रसारित सभी प्रमुख समाचार बुलेटिनों को सुना जा सकता है।

पहले पंचवर्षीय योजना तक देश के लगभग एक तिहाई क्षेत्र तक आकाशवाणी की पहुंच थी। रेडियो स्वदेशी सेवा के तहत 46 और विदेशी सेवा के तहत 16 भाषाओं में 72 समाचार बुलेटिनों का प्रसारण करने लगा था, और रेडियो सेटों की संख्या 10,29,816 हो गयी थी। 03 अक्टूबर, 1957 को ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदलकर ‘आकाशवाणी' कर दिया गया। दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान ‘आकाशवाणी' का प्रसारण देश के हर भाग तक पहुंचने लगा था।

वर्ष 1989 में संसद में प्रसार भारती बिल लाया गया। यह बिल 1990 में पारित किया गया लेकिन इसके लागू करने से पहले ही सरकार गिर गयी। इसके बाद लंबे अंतराल पर 1997 में प्रसार भारती कानून लागू हो सका। इसके साथ ही आकाषवाणी और दूरदर्षन प्रसार भारती निगम के तहत आ गए। अब यह प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण निगम) के नाम से जाना जाता है।

बदलते दौर में रेडियो पत्रकारिता बदली है और कार्यक्रम भी। ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' के तहत कार्यक्रमों में व्यापक बदलाव किया गया है। हर वर्ग को ध्यान में रख कर कार्यक्रमों का निर्माण किया जाता है। सूचना के तौर पर समाचार परख कार्यक्रम में समाचार, न्यूजरील व रेडियो रिपोर्ट आदि को शामिल किया गया। जबकि वार्ता परख कार्यक्रमों में साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, खेल और अन्य समसामयिक विषय को तरजीह दी जाने लगी है। वार्तालाप कार्यक्रम रेडियो के लिए अहम्‌ पहलू है। साक्षात्कार, बातचीत, परिचर्चा और संगोष्ठी के तहत समाज के लोगों को जोड़ने का काम किया जाता है। जबकि मनोरंजनपरक कार्यक्रमों में शास्त्रीय गीत—संगीत, फिल्मी गीत—संगीत व लोकगीत—संगीत आज भी इसके मजबूत स्तंभ के तौर पर है। इसके अलावे कहानी—कविता, कवि सम्मेलन, प्रहसन, नाटक, रूपक, साहित्य, विज्ञान, खेल, महिला, युवा, समसामयिक, समाज, देश—विदेश और सरकार के सामाजिक आर्थिक कार्यक्रमों को जनता के सामने सहज ढंग से पेष किया जाता है।

देखा जाये तो रेडियो पत्रकारिता, प्रिंट और टीवी से बिल्कुल ही अलग है। इसकी अपनी भाषा है जो जनता की भाषा बोलता है। भिन्नता का मूल आधार है भाषा का श्रव्य होना। क्योंकि रेडियो ध्वनियों के प्रसारण तक सीमित है। इसके मद्‌देनजर कार्यक्रम में भाषा के ध्वनि—गुणों को ही प्रमुखता से उभारने का काम किया जाता है। नाटक/समाचार/वार्ता/अन्य कार्यक्रमों का लेखन करते हुए रेडियो की भाषा की प्रकृति को ध्यान में रख कर उसे ध्वनिमय बनाया जाता हैै। सरलता, इसकी जान है। वाक्य की सरलता एवं षुद्धता के साथ रोचकता पैदा करना, इससे जुड़े निर्माताओं की जवाबदेही रहती है। विषय के अनुरूप शब्दों को सहजता के साथ वाक्यों में डालना रेडियो पत्रकारिता का अहम्‌ हिस्सा है। स्पष्टता के साथ जटिलता से बचना इसकी लेखन कला की पहली शर्त है। सबसे बड़ी बात है ध्वनि पर पकड को बनाये रखना, षब्द पर जोर देना, उतार—चढ़ाव देखना, आदि रेडियो पत्रकारिता के मापदण्डों में शामिल है।

जहां तक समाचार लेखन या फिर रेडियो कार्यक्रम का सवाल है तो इसकी सफलता के लिए भाषा की ध्वनिगत विशेषताओं का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाना जरूरी होता है। रेडियो समाचार के लिए शब्द ही ध्वनि हैं और दृश्य भी। इसलिए ध्वनि पर विशेष ध्यान संपादन करते हुए दिया जाता है। यही बात अन्य रेडियो कार्यक्रमों के साथ भी लागू होती है।

रेडियो पत्रकारिता मुद्रण से कई मामलों में अलग है। इसमें समय सीमा महत्वपूर्ण पहलू है। जबकि प्रिंट मीडिया में समय सीमा महत्वपूर्ण नहीं होती है। समाचार बुलेटिन का प्रसारण निर्धारित समय पर ही होता है। अखबारों की तरह जब मन में आये पेज बढ़ाने की परिपाटी यहां नहीं होती। दस या पांच मिनट का समाचार बुलेटिन है तो उस अवधि में ही उसे खत्म करना होता है। समय सीमा के भीतर समाचार बुलेटिन समाप्त हो, इसके लिए एक—एक शब्द महत्व रखते हैं।

रेडियो समाचार अमूमन पांच चरणों से गुजरता है, समाचार संकलन, समाचार चयन, समाचार लेखन, प्रसारण के लिए चयन और समाचार बुलेटिन की तैयारी व प्रसारण। सबसे पहले बुलेटिन तैयार करने के लिए समाचारों का संकलन किया जाता है। विभिन्न समाचार स्रोतों से समाचार एकत्र किए जाते हैं। समाचार एकत्र करते समय स्रोत की विश्वासनीयता और समाचार की उपयोगिता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। समाचार एजेंसियां, निजी संवाददाता, सरकारी एजेंसियां, गैर सरकारी संस्था, राजनीतिक दल, पार्टी प्रवक्ता और संस्थाओं द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति आदि समाचार के प्रमुख स्रोत होते हैं।

समाचारों का चयन जनहित और राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। समाचारों के चयन में विशेष ध्यान दिया जाता है। जिस समाचार का चयन किया जाता है उसकी विश्वसनीयता परखी जाती है। क्योंकि एक बार समाचार का प्रसारण हो गया तो वह वापस नहीं होता। ऐसे में गलत समाचार की भरपाई, अखबारों की तरह दूसरे दिन खण्डन छाप कर नहीं किया जा सकता। समाचार संपादक अपनी विवेक और पत्रकारिता के दृष्टिकोण से खबरों का चयन करता है। हर समाचार में समाचार मूल्य को अहमियत दी जाती है।

समाचार सुनने के लिए जरूरी है कि सीधी व सरल भाषा में बात हो, कम से कम शब्द, वाक्य सरल और छोटे—छोटे हो। अनपढ़ श्रोता को देखते हुए रेडियो समाचार में सार पहले और विस्तार आगे दिया जाता है। यह इसकी लेखन कला है। बेहतर और अच्छा समाचार वही है जिसमें समाचार संपादक अधिक से अधिक सूचनाओं का समावेष करता है। क्या हुआ, क्यों हुआ, कब हुआ, कहां हुआ, किसने किया और कैसे किया..... एक श्रोता को इन सवालों के जवाब को समाचार में संपादक देने की कोषिष करता है।

समाचार में मूल आत्मा को सुरक्षित रखने की जिम्मेवारी संपादक की ही होती है। आंकड़ों को लेकर रेडियो काफी सचेत रहता है। अखबारों की तरह रेडियो समाचार में अपुष्ट अांकडे नहीं दिये जाते। जहां आंकड़े दिए जाने आवश्यक होते हैं वहां सही—सही और उन आंकड़ों के स्रोत का उल्लेख करते हुए दिया जाता है। इससे समाचार की निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता काफी बढ़ जाती है।

रेडियो समाचार में निहित तथ्यों से छेड़छाड़ करने की मनाही रहती है। साथ ही उन पर अपने विचारों का रंग नहीं चढ़ाना होता है। जिस भाषा में समाचार बुलेटिन तैयार किया जाता है, संपादकीय विभाग को उस बुलेटिन के लिए प्रयुक्त भाषा की प्रकृति का अच्छा ज्ञान आवष्यक है। जिस भाषा में बुलेटिन प्रसारित होती है। अन्य भाषा—भाषियों की सुविधा के लिए बुलेटिन की भाषा के साथ कतई खिलवाड़ नहीं किया जाता है। अन्य भाषा—भाषियों के लिए उनकी भाषा में समाचार बुलेटिन प्रसारित करने की व्यवस्था अलग से की जाती है।

रेडियो पत्रकारिता में अनुवाद का काफी महत्व होता है। ऐसे में अनुवादक को दोनों भाषाओं का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। दोनों भाषाओं की प्रकृति, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, उनके व्याकरण, वाक्य—रचना और मुहावरों आदि का ज्ञान संपादकीय विभाग से जुड़ने वालों के लिए आवश्यक है।

रेडियो पत्रकारिता मार्ग—निर्देशन व सिद्धान्तों का पालन सख्ती से करता है। मार्ग—निर्देशन व सिद्धान्तों को संपादक को पहले से ही उपलब्ध करा दिया जाता हैं। किसी प्रकार का सन्देह होने पर सम्बद्ध अधिकारी से विचार—विमर्श करना पड़ता है। विशेष तौर पर नीतिगत फैसले तथा आचार—संहिता के मामले में सावधानी आवष्यक है। सरकारी व जनहित का मीडिया होने के कारण इसे खास ध्यान रखना पड़ता है। समाचार—चयन/लेखन के दौरान ध्यान रखना पड़ता है कि तथ्य अपरिवर्तनीय हो। खबरें घटना—प्रधान ही देनी चाहिये। समाचारों को संतुलित रूप में ही देने का प्रयास किया जाता है। समाचार विशाल श्रोता वर्ग को ही ध्यान में रख कर तैयार करना चाहिये किसी व्यक्ति विषेष को ध्यान मेंं रख कर नहीं। श्रोता वर्ग को यह अधिकार है कि वह सभी प्रकार के समाचार सुने। श्रोताओं के इस अधिकार का सम्मान करते हुए सभी तरह व विधा के समाचार देने की कोषिष संपादक को करनी चाहिये।

समाचारों का चयन मान्यता प्राप्त समाचार एजेंसियों से ही की जाती है। यदि किसी अन्य स्रोत से समाचार लेना भी होता है तो उसकी सत्यता, प्रामाणिकता और विश्वसनीयता को पूरी तरह परख लिया जाता है। रेडियो समाचार में इस बात का ध्यान दिया जाता है कि ऐसा कोई समाचार प्रसारित न हो जिससे किसी व्यक्ति विशेष का हित सधता हो या उससे कोई व्यक्तिगत लाभ मिलता हो। यही बात किसी प्रतिष्ठान या उत्पादन पर लागू होती है। कहने का अर्थ यह है कि रेडियो जनसाधारण का माध्यम है, इसका उपयोग व्यक्तिगत हित साधन के लिए नहीं होना चाहिए। मुख्य आशय यह है कि समाचार के छद्‌म वेश में विज्ञापन कतई नहीं होना चाहिये और न ही कोई व्यक्ति समाचार की आड़ में अपनी व्यक्तिगत छवि बनाने के लिए इस माध्यम का उपयोग करे। समाचार में प्रचारात्मक तत्व का प्रवेश न होने पाए और न ही परनिन्दा हो। विवादास्पद समाचार में संतुलन होना चाहिए। सभी पक्षों को तटस्थ हो कर अपनाना चाहिए। इससे समाचार में निष्पक्षता का समावेश होता है।

रेडियो समाचार के तहत किसी सार्वजनिक सभा में उपस्थित लोगों की संख्या के बारे में अनुमान नहीं लगाया जाता। लेकिन आवश्यक हो तो उसे विशाल सभा लिखा जाता है। रेडियो समाचार विशेषज्ञ राधानाथ चतुर्वेदी ने अपनी पुस्तक ‘प्रसारण के लिए समाचार—लेखन' 1992 में राजनीतिक प्रसारणों के बारे में छह मार्ग निर्देशक सिद्धान्त दिए है। उनके अनुसार, राजनीतिक गतिविधियों सम्बंधी समाचारों को कठोरता के साथ उनके महत्व के अनुसार ही प्रसारण के लिए चुनना चाहिये, किसी दल के साथ पक्षपात या भेदभाव नहीं होने देना चाहिये। विवादास्पद राजनीतिक मसलों पर सभी दृष्टिकोणों को देने का प्रयास करना चाहिये। समाचार बुलेटिन ऐसा होना चाहिए, जिसे सभी वर्गों और हितों वाले लोग सुन सकें। सरकारी विज्ञप्तियों पर आवश्यकता से अधिक निर्भर नहीं करना चाहिये। सरकारी सूचनाओं को माध्यम और समाचार की आवश्यकता के अनुकूल लिखना चाहियेे। किसी भी पार्टी को साम्प्रदायिक, प्रगतिशील जैसे विशेषणों से विभूषित नहीं करना चाहिये। बुलेटिन में समाचारों को सन्तुलित करने का प्रयास होना जरूरी है। विपक्ष की प्रतिक्रिया तत्काल उपलब्ध नहीं होने पर, बाद के बुलेटिनों में उसे देने के लिए अपने आंख—कान खुले रखने चाहिये। अगर किसी पार्टी के नाम के बारे में विवाद है, तो या तो निर्वाचन आयोग द्वारा स्वीकृत अथवा मान्य नाम का उपयोग करना चाहिये अथवा किसी अदालत ने जो नाम पार्टी को दिया हो, उसका उपयोग करना चाहिये। इसी तरह राष्ट्रपति और उनके पद के सम्बंध में या प्रधानमंत्री संबंधित समाचार देते समय ध्यान देना चाहिए कि —राष्ट्रपति का पद अत्यन्त महिमामय है। इसलिए उनके सम्बंध में समाचार देते समय राष्ट्रपति—पद की गरिमा का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। यही बात संसद, राज्य विधान मंडलों, न्यायालयों और राज्यपालों से संबंधित समाचारों पर भी लागू होती है। प्रधानमंत्री की गतिविधियों को समुचित महत्व दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री के संवाददाता सम्मेलन, भाषण आदि समाचारों की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे सरकार की नीति सम्बंधी बयान होते हैं या उनसे यह पता चलता है कि राष्ट्रीय समस्याओं पर क्या नई दृष्टि अपनाई जा रही है। समाचार के महत्व के अनुसार केन्द्रीय और राज्यों के मंत्रियों के सरकारी नीति सम्बंधी वक्तव्य प्रसारित किए जाने चाहिए।

विभिन्न वक्तव्यों, उनके खण्डन या उत्तरों के बारे में सम्पादकों को हमेषा चौकन्ना रहने की जरूरत है। अगर किसी राजनीतिक वक्तव्य का समाचारों की दृष्टि से महत्व है तो वह प्रसारित होना चाहिए। लेकिन आकाशवाणी को मात्र दलगत विचारों का प्रचार नहीं करना चाहिए। साम्प्रदायिकता भड़काने वाली बातें और विधि तथा संविधान—सम्मत सिद्धान्तों पर स्थापित सरकार को हिंसा द्वारा उखाड़ फेंकने के लिए भड़काने वाले बयान और ऐसी सूचनाएं या राय जिससे किसी व्यक्ति के प्रति नफरत पैदा होती हो उससे परहेज करना चाहिये। अगर किसी नेता के वक्तव्य में कोई आपत्तिजनक बात न हो तो उसका प्रसारण नहीं रोका जाना चाहिए। बशर्ते वह समाचार की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो। अगर आकाशवाणी ने कोई वक्तव्य प्रसारित किया है और उसका कोई जवाब आता है तो उसे प्रसारित किया जाना चाहिए। हालांकि उत्तर तभी दिया जाना चाहिए जब वह किसी समसामयिक सार्वजनिक समस्या पर दिए जाने वाले समाचारों को सन्तुलित करने वाला हो। दूसरे शब्दों में, उत्तर वाले वक्तव्य पर पत्रकारिता की दृष्टि से विचार किया जाना जरूरी है।

अक्सर कठिनाई उस समय सामने आती है, जब बुलेटिन के लिए हड़ताल और बन्द के समाचार लिखने पड़ते हैं। ऐसे मेंं जब कोई हड़ताल हो तो समाचार के महत्व के आधार पर वस्तुपरक ढंग से खबर दी जानी चाहिए। अगर रेल परिवहन से सम्बंधित अधिकारी जनता के हित के लिए कोई उपाय करते हैं, तो उन्हें प्रसारित किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर आकाशवाणी का समाचार प्रसारण जनहित में ही होना चाहिए और घटनाओं को बहुत उछालना नहीं चाहिए।

दंगे तथा उपद्रवों के मामले में भी इसी तरह की सावधानी अपनानी चाहिए। जब देश के किसी हिस्से में दंगे हों तो आकाशवाणी का समाचार प्रसारण इस तरह का होना चाहिए जिससे तनाव घटे और लोगों में सौहार्द, आपसी विश्वास बढ़े तथा शान्ति व्यवस्था कायम हो। तथ्य समाज तथा देश के लिए अहितकर न हो।

रेडियो पत्रकारिता के लिए देशहित और समाजहित सर्वोपरि है। इसलिए राष्ट्रीय विपत्तियों, प्राकृतिक आपदाओं जैसे व्यापक तथा मानवीय विषयों के समाचारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। भूकम्प, बाढ़, अकाल, अग्निकाण्ड, तूफान, रेल दुर्घटना, हवाई दुर्घटना इत्यादि की खबर का तरजीह देनी चाहिये। आकाशवाणी सिर्फ सरकारी माध्यम नहीं है और न ही वह किसी एक पार्टी विशेष का अथवा सत्तारूढ़ दल या सरकार का अंध प्रचारक है। रेडियो पत्रकारिता को सरकारी नजरिये से देखा जाता है। हालांकि इस क्षेत्र में अब निजी रेडियो भी आ चुके हैं। यह अलग बात है कि देष में केवल समाचार आकाषवाणी से ही प्रसारित किये जाते हैं। सरकार ने अभी इसकी अनुमति निजी ऑपरेटरों को नहीं दी है। संचार क्रांति के दौर में रेडियो पत्रकारिता ने भी कदम से कदम मिलाया हैै। आवाज की दुनिया रेडियो सेटों से होता हुआ मोबाइल फोन, डीटीएच और फिर इंटरनेट पर आ चुका है।

रेडियो के बढ़ते जलवे से यह साफ हो चुका है कि आने वाले दिनों में रेडियो पत्रकारिता का परचम और मजबूती से लहरायेगा। रेडियो की लोकप्रियता इस बात से लगाई जा सकती है कि गांव घर के लिए आज भी रेडियो ही एक मात्र समाचार, मनोरंजन एवं सूचना पाने का सरल और सहज माध्यम बना हुआ है। इसके मद्‌देनजर पिछले दिनों बिहार के वैषाली जिले में एक युवक ने खुद का रेडियो स्टेषन ही खोल डाला और गांव वालों को उनकी पसंद के गाने सुनाने लगा। देखते ही देखते उसकी लोकप्रियता बढ़ गई। हालांकि बिना सरकारी अनुमति के इस प्रसारण को रोक दिया गया। कहने का तात्पर्य यह है कि रेडियो की मांग बरकरार है। ऐसे में एफ.एम. एवं सामुदायिक रेडियो मैदान में आते है तो ये यकीनन अन्य माध्यमों पर भारी पड़ेगें।

भारतीय प्रसारण की धरती पर बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की भावना को लेकर रेडियो जो कंसेप्ट लेकर आया था, वह आज भी कायम है। जहां सरकारी प्रसारण अंतिम कतार में खड़े लोगों तक सूचना एवं मनोरंजन पहुंचा रहा है वहीं संचार क्रांति से जुड़ कर गैर सरकारी संगठन व संस्थाएं एफ.एम. और सामुदायिक रेडियो स्थापित कर रेडियो पत्रकारिता के खूृंटे का मजबूत करते हुए एक नयी दुनिया बनाने की दिषा में सक्रिय हैं।

समाचार लेखन

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आवाज की दुनिया ‘‘रेडियो'' को कौन नहीं जानता, बच्चा—बच्चा इससे परिचित है। रेडियो के माध्यम से लोगों तक गीत—संगीत, संदेश—सूचना और देश—दुनिया की खबरों को पहुंचाया जाता है। रेडियो के लिए जरूरी है ‘आवाज' और आवाज को शब्दों में पिरो कर श्रोताओं तक पहुंचाने का काम रेडियो कार्यक्रमों का है। रेडियो के कार्यक्रमों को जनपयोगी एवं सुनने के लायक बनाने के लिए लेखन का योगदान महत्वपूर्ण है।

रेडियो लेखन अन्य लेखन से बिल्कुल ही अलग है। इसकी अपनी थोड़ी अलग भाषा होती है, जो पिं्रट और टेलीविजन से भिन्न होती है। भिन्नता का मूल आधार है भाषा का श्रव्य होना। रेडियो ध्वनियों के प्रसारण तक सीमित है, इसलिए इसके कार्यक्रम में भाषा के ध्वनि—गुणों को उभारा जाता है। यह रेडियो की हर विधा के साथ लागू है। चाहे वह समाचार हो या फिर नाटक, वार्ता या अन्य कार्यक्रम। इन सबके लिए लिखते हुए रेडियो की भाषा की प्रकृति को ध्यान में रखा जाता है। वाक्य सरल, छोटे—छोटे और शुद्धता के साथ रोचक बनाये जाते हैं। विषय के अनुरूप शब्दों को वाक्यों में डाला जाता है। जटिलता से बचते हुए स्पष्टता पर ध्यान दिया जाता है। रेडियो और प्रिंट में मूल अंतर लेखन को ही लेकर है। रेडियो में जो कुछ बोला जाता है उसे ही लिखा जाता है और वह श्रोताओं को सुनने के लायक बोलचाल की भाषा में होता है। जबकि प्रिंट में पढ़ने के लिए लिखा जाता है। ऐसे में सुनने और पढ़ने के अंतर की वजह से रेडियो और प्रिंट मीडिया की भाषा के साथ—साथ शैली भी बदल जाती है। इसलिए अन्य मीडिया के लिए समाचार तैयार करना और रेडियो के लिए समाचार लिखना अलग होता है।

रेडियो प्रसारण के लिए समाचार लेखन

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रेडियो समाचार प्रसारण के लिए प्राप्त खबरों का स्रोत कुछ भी हो सकता है। अखबारों के लिए मुहैया कराये जाने वाला समाचार रेडियो को भी एजेंसी से प्राप्त होता है। ऐसे में रेडियो के समाचार कक्ष में प्राप्त खबरों को रेडियो के हिसाब से दोबारा लिखा जाता है। रेडियो समाचार के लिए भाषा सरल, शब्द सीधे और आमलोगों की समझ के दायरे में आने वाले हों, तो रेडियो समाचार प्रसारण का उद्देश्य पूरा हो जाता है। अगर ऐसा न हुआ तो समाचार का उद्देश्य ही चौपट हो जाएगा। रेडियो समाचार प्रसारण की भाषा ही उसकी जान है। ऐसे में उसे नजरअंदाज करना बहुत बड़ी भूल होगी।

समाचार कक्ष में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त समाचारों का ढेर लगा रहता है। संपादकीय विभाग पहले महत्वपूर्ण खबरों का चयन करता है। उनमें से प्रसारित होने वाली खबरों का चयन कर उसे पुनः रेडियो के मापदण्डों के तहत लिखा जाता है। सबसे पहले खबर की लीड/इन्ट्रो का चयन होता है। लीड/इन्ट्रो में सबसे पहले महत्वपूर्ण खबर को रखा जाता है जो प्रायः छोटे वाक्य या पदबंध में होते हैं। इन्हें इस तरह तैयार किया जाता है कि श्रोता खिंचे चले आए। लीड/इन्ट्रो के बाद विस्तृत रूप से खबर दी जाती है। लीड/इन्ट्रो को क्रमवार इस तरह रखा जाता है कि समाचार का महत्व यानी कौन सा समाचार पहले आना चाहिए और कौन सा बाद में, का भी पता चल जाए।

लीड/इन्ट्रो को हमेशा रोचक बनाना चाहिए ताकि श्रोता प्रभावित हाें। पत्रकारिता की भाषा में किसी भी खबर की शुरुआत करते हैं तो शुरू के पहले पाराग्राफ को लीड/इन्ट्रो कहा जाता है जिसमें महत्वपूर्ण बातों का समायोजन होता है। अमेरिकन पद्धति में खबर में लिए गये महत्वपूर्ण हिस्से को ‘लीड' कहते हैं और अंग्रेजी पद्धति में इसे ‘इन्ट्रो' कहा जाता है। मकसद एक ही है। खबर को चुस्त ढंग से विषय केन्द्रित करना। लीड/इन्ट्रो कोई नाटकीय वाक्य हो सकता है। लेकिन ध्यान रखना चाहिये कि इसमेंं एक साथ कई—कई बातें या प्रसंग ठुंसी हुई नहीं होनी चाहिये।

मुख्य समाचार प्रस्तुत करने के कई तरीके हैं। यह समाचार के विषय और उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है। वास्तव में किसी समाचार या उसका शीर्ष वाक्य एक मकान की आधारशिला की तरह ही महत्वपूर्ण होता है। संवाददाताओं को समाचार लिखने के पूर्व यह तय करना चाहिए कि समाचार का लीड/इन्ट्रो हार्ड न्यूज की तरह होगा या सॉफ्‌ट। इसके पीछे महत्वपूर्ण बात यह है कि लीड/इन्ट्रो के वाक्य श्रोताओं में समाचार के प्रति जिज्ञासा पैदा करते है। ऐसे लीड/इन्ट्रो आज की पत्रकारिता के बेहद चलने वाला शब्द ‘‘ब्रेकिंग न्यूज'' की तरह होते हैं। लीड/इन्ट्रो हार्ड लिखा जाये तो कम से कम एक ही वाक्य में समेटना चाहिये। वहीं सॉफ्‌ट लीड/इन्ट्रो का वाक्य थोड़ा फैला हुआ होता है। इसमें एक की जगह दो—तीन वाक्य हो सकते हैं।

रहस्यमयी लीड/इन्ट्रो को लिखने में सचेत रहना चाहिये। हालांकि रहस्यमयी वाक्य को लिखने में संवाददाताओं को काफी मेहनत करनी पड़ती है। रहस्यमयी लीड/इन्ट्रो लिखना घुमा—फिरा कर लिखने वाला तरीका माना जाता है। खबर को घुमा—फिरा कर लिखना आसान नहीं है। इसमें चालाकी से संवाददाता खबर को धीरे— धीरे पिरोता है। मुख्य बात यानी खबर को तुरंत सामने नहीं लाकर धीरे धीरे लाता है। पूरा काम चुस्ती और चालाकी भरा होता है, क्योंकि इसमें श्रोताओं की रूचि और जिज्ञासा को कुछ देर तक बनाये रखना होता है।

समाचार का लीड/इन्ट्रो बासी नहीं होना चाहिए। वह जब लिखा जाये तब ऐसा लगना चाहिए जैसे अभी—अभी का है। ताजा होना चाहिए। अगर देर रात या कल रात लीड/इन्ट्रो वाक्य जैसे— ट्रेन दुर्घटना पर आधारित हो तो सुबह के समाचार का लीड/इन्ट्रो को बदल देना चाहिये। वाक्य दुर्घटना केन्द्रित नहीं होकर राहत और बचाव कार्य पर केन्द्रित होना चाहिए। ताकि खबर अपडेट और ताजा लगे।

रेडियो समाचार के लिए लीड/इन्ट्रो लिखते समय नकारात्मकता से साफ साफ बचना चाहिये। अमूमन लीड/इन्ट्रो के वाक्य में संख्या को जगह नहीं देनी चाहिए। क्योंकि श्रोता यदि इस छोटे से शब्द को नहीं सुन सका तो लीड/इन्ट्रो के वाक्य में अर्थ से अनर्थ पैदा होने की पूरी संभावना बनती है। लीड/इन्ट्रो के वाक्य की अद्यतनता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके लिए खबर की अद्यतनता पर नजर बनी रहनी चाहिए। समाचार वाचन में जो कुछ समाचार है उसे अद्यतन होना चाहिए यानी जो कुछ श्रोताओं को अब तक नहीं कहा गया है या जो कुछ लोगों के लिए बिलकुल नया है। जहां हर घंटे समाचार प्रस्तुत किये जाते हैं, वहां इन बातों पर विशेष चौकसी बरतनी पड़ती है। हर नये आने वाले समाचार बुलेटिनों में पहले केे प्रसारित समाचार को दोहराने सेे श्रोता समाचार को बासी मानकर ऊब जायेंगे। ऐसे हालात में हमेशा समाचार को अद्यतन बनाने पर ध्यान देना चाहिये। कभी कभी घटना प्रधान खबर में अद्यतन जानकारी नहीं मिल पाती है। ताजा समाचार, अगले समाचार बुलेटिन में उपलब्ध नहीं हो पाता है तो ऐसे में समाचार के प्रस्तुतिकरण को नया बनाने का प्रयास होना चाहिए।

लीड/इन्ट्रो में लिखे गये समाचार के बाद समाचार के विशेष अंश पर भी ध्यान देना चाहिए। लीड/इन्ट्रो लिखने के बाद खबर को सजाना चाहिए। रेडियो समाचार लेखन को एक साथ पिरोना एक स्वेटर बुनने जैसा है। जिस तरह से स्वेटर बुनने के दौरान एक घर भूल जाने से स्वेटर का स्वरूप ही बदल जाता है ठीक उसी तरह से रेडियो समाचार लिखते समय इन बातों का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए। एक बार लीड/इन्ट्रो लिख लेने के बाद विस्तारपूर्वक समाचारों को पढ़ लेना चाहिये। यह इसलिए जरूरी है कि समाचार पढ़ने में सुस्पष्ट और सहज होने चाहिये। वाक्य सरल हो यह महत्वपूर्ण है।

रेडियो के लिए समाचार लिखने के दौरान समय के महत्व को देखते हुए, खबर पर विशेष ध्यान देनी चाहिये। मसलन, खबर किस समय भूतकाल से या वर्तमान से संबंधित है। इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। रेडियो में अभी जो समाचार चल रहा है उसमें शामिल घटना/विषय का समय क्या है, इसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। क्योंकि इसमें अखबार की तरह लिखा नहीं होता। जो भी होता है वह श्रव्य माध्यम में होता है और एक बार प्रसारण हो गया तो लौट कर बातें वापस नहीं आती हैं।

रेडियो के लिए समाचार लिखते समय जिस समाचार में बयान/कथन को देना हो तो प्रयास होना चाहिये कि हू—ब—हू या जैसा है वैसा आधारित बयान/कथन को दे दिया जाये क्योंकि वाचन का एक अलग प्रभाव होता है। संवाददाता, संपादक और समाचार प्रसारित करने वाली संस्था की विश्वसनीयता और चौकसी इससे बढ़ती है। मान लिया जाये कि किसी हादसे में एक सौ लोग मारे गये। यह खबर मृतकों की संख्या और हिंसा के पहलुओं को सामने लाता हैं। इसमेें उस एजेंसी को जरूर जोड़ा जाना चाहिए जिसके माध्यम से समाचार आया है। कथन या बयान को हू—ब—हू श्रोताओं के समक्ष रखना चाहिये ताकि इस तरह की बड़ी खबर की सत्यता बने। समाचार लिखते समय अपने मकसद को साफ रखना महत्वपूर्ण है। संवाददाता या संपादक को समाचार में वही लिखना चाहिये जो पूरी तरह से पारदर्शी हो, घटना स्पष्ट हो। समाचार बोझिल न हो, सीधी और आसानी से समझ में आने वाली हो।

रेडियो समाचार में व्याकरण पर खास ध्यान देना पड़ता है। जैसे काल यानी घटना का समय—वर्णन। जबतक विराम जरूरी न हो कौमा का प्रयोग न करें। रेडियो समाचार में मुख्यतः वर्तमान काल का प्रयोग ही प्रभावी लगता है। इसे ही अपनाना चाहिये। इससे समाचार में तात्कालिकता का प्रभाव साफ झलकता है। उदाहरण के तौर पर—‘‘सरकार महंगाई के मुद्‌दे को लेकर विपक्षी दलों के साथ बैठक करेगी।'' इसे रेडियो समाचार में इस तरह से देना चाहिये—‘‘ सरकार महंगाई के मुद्‌दे को लेकर आज शाम विपक्षी दलों के साथ बैठक करेगी।'' यदि बैठक समाप्त हो गई है और उसके बाद समाचार का प्रसारण हो रहा है तो इसे बदल कर यों कर देना चाहिये— ‘‘सरकार ने महंगाई के मुद्‌दे को लेकर आज विपक्षी दलों के साथ बैठक की।'' पहले वाले में समय—काल का पता नहीं चलता है जो कि गलत है। दूसरे में समय—काल का पता चलता है जो सही है।

रेडियो समाचार में सूचनाओं की भरमार नहीं होनी चाहिये। प्रिंट मीडिया की खबरों में सूचनाओं की लंबी फेहरिस्त हो सकती है लेकिन ऐसा प्रसारित होने वाली खबरों में नहीं किया जा सकता। कहने का अर्थ यह कि खबरों में दी जाने वाली सूचनाएं उलझी हुई और ब्यौरों से भरी न हों, बल्कि तथ्य—केन्द्रित हों और संक्षेपण के तहत पूरी खबर की महत्वपूर्ण बातोें को उसमें समेटना चाहिये। समाचार पत्रों की तरह बार—बार खबर को खींचने की कोशिश नहीं होनी चाहिये। रेडियो समाचार लेखन के समय मिश्रित वाक्य और कठिन मुहावरों से बचना चाहिये। प्रसारित होने वाली खबरों की भाषा यदि सरल वाक्यों से हटकर मिश्रित वाक्यों , एक वाक्य के अंदर कई—कई उपवाक्य डालने से खबर का स्वाद ही खराब हो जायेगा। इसकी वजह है कि श्रोता समाचारं सुनते समय वर्णित किसी तथ्य को हू—ब—हू समझने में भटक सकता है। इसलिए जो, जिससे कि, जो भी, जहां भी, के प्रयोग से बचने का प्रयास किया जाना चाहिये। कठिन और लंबी प्रकृति वाले शब्द—मुहावरों के स्थान पर बोलचाल वाले शब्दों का प्रयोग किया जाए तो बेहतर होगा।

रेडियो समाचार में विशेषण के प्रयोग से शब्दों, खास कर संज्ञा की प्रकृति बदल जाती है। बिना पर्याप्त तथ्य दिये केवल विशेषण के जरिये समाचार पढ़ने पर समाचार एकतरफा या पक्षपातपूर्ण लग सकता है। कहीं कोई सभा होती है तो उसे ‘‘दस—बीस हजार लोगों की उपस्थिति‘‘ जैसे कथन से बतलाना पक्षपातपूर्ण लग सकता है। इसकी जगह ‘‘लोगों की अच्छी उपस्थिति‘‘ कहकर तथ्य आधारित समाचार प्रसारित किया जा सकता है। कहने का तात्पर्य है कि सभा/रैली आदि के आयोजन के समाचार में संख्या अंकों में न देेकर केवल लगभग/ अच्छी भीड़ आदि देना बेहतर होता है। वहीं, यदि किसी वैज्ञानिक ने कोई नई खोज की है तो वैज्ञानिक को विशेषणों से सजाने की बजाय उसके कार्य का उल्लेख ज्यादा होना चाहिये।

समाचार लिखते समय घिसे—पिटे, चालू शब्दों या कमजोर कथन से परहेज करना चाहिये। रेडियो समाचार में किसी घटना, व्यक्ति, अवसर के बारे में समाचार देते हुए सावधानी बरतनी चाहिए कि उसके बारे में पहले से चालू शब्द या बातें दुहरायी नहीं जाए। कहने का तात्पर्य है कि घिसी—पिटी शैली समाचार की रोचकता और उसके प्रभाव को खत्म करती है। प्रिंट मीडिया के समाचारों में घिसे—पिटे चालू शब्द या कमजोर कथन भरे होते हैं। रेडियो समाचार को इससे बचना चाहिए।

रेडियो समाचार में ध्यान रखने वाली बात यह है कि खबर में भारी भरकम संख्या को नजरअंदाज करना चाहिए। जैसे रुपये 857194200 को राउंड यानी सीधे लगभग 85 करोड़ रुपये लिखा जा सकता है। रेडियो समाचार में संख्या व अंकों को हू—ब—हू रखने का अलग तरीका है। जैसे रुपये 857194200 को बोलने में फंसने की संभावना तो बनी रहती ही है साथ ही श्रोता में आंशका बनी रहती है। इस लिए भारी भरकम संख्या व अंकों में राउंड फिगर देना चाहिये। लेकिन कुछ मामलों में संख्या व अंकों को ज्यों का त्यों रखना पड़ता है। जैसे भारतीय टीम ने पाकिस्तान के समक्ष जीत के लिये 405 रनों का लक्ष्य रखा या फिर महेन्द्र सिंह धोनी ने नाबाद रहते हुए 208 रन बनाये या फिर मुद्रास्फीति दर गिर कर 2.38 रही। ऐसी स्थिति में संख्या एवं अंकों को हू—ब—हू रखना चाहिये।

समाचार लिखते समय कई बार आदरसूचक शब्द श्री, श्रीमती, सुश्री, डा. आदि परेशानी खड़ी करते हैं। यह आदरसूचक या शिष्टाचार बोधक शब्द लेखन और बोलचाल में प्रचलित हैं। इसी तरह पदधारक शब्द भी सम्मानबोधक होते हैं। मसलन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, कहना बार—बार अच्छा नहीं लगता है। इसकी जगह राष्ट्रपति देवी सिंह पाटिल अच्छा लगता है। ध्यान रखना चाहिए कि एक से अधिक आदरसूचक शब्द भद्‌दापन लाता है, जैसे राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की जगह राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ठीक लगता है। पद्‌मभूषण, पद्‌म विभूषण, भारत रत्न आदि पुरस्कार/सम्मान हैं न कि सम्मानसूचक शब्द इसलिए किसी व्यक्ति के नाम के आगे सामान्यतः नहीं लगाये जाते हैं। इसी प्रकार मृत व्यक्ति के नाम के आगे श्री/श्रीमती जैसे आदरसूचक शब्द नहीं लगाये जाते हैं। राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री जैसे शब्द नाम के आगे पहले वाक्य में आने चाहिए। बाद में आने वाले वाक्य में केवल नाम आना चाहिए। प्रचलित ‘संक्षिप्त' नाम शब्द की तरह व्यवहार में लाये जाते हैं, जैसे नाटो, यूनिसेफ, सार्क, आदि। अप्रचलित संक्षिप्त शब्द के स्थान पर पूरा कथन आना चाहिए। ले. गवर्नर अखबार के लिए तो ठीक है किन्तु समाचार वाचन में यह लेफि्‌टनेंट गवर्नर ही कहा जायेगा।

रेडियो प्रसारण में अलग—अलग प्रसारक अलग—अलग मापदण्ड अपनाते हैं। खासकर शब्दों के चयन के मामले में। आकाशवाणी समाचार लेखन में ‘उपर्युक्त', निम्नलिखित, निम्नांकित, क्रमशः, अतः, एवं, तथा, आदि शब्दों के प्रयोग पर एक तरह की रोक है। इनके प्रयोग नहीं करने के पीछे तर्क यह है कि श्रोता समाचार सुनने के दौरान ‘उपर्युक्त', निम्नलिखित, निम्नांकित के लिए उपर या नीचे तो जा नहीं सकता है। इसलिये यह शब्द केवल प्रिंट में चलते हैं, रेडियो में नहीं। इसी तरह प्रिंट मीडिया में क्रमशः का प्रयोग होता है लेकिन रेडियो में नहीं। प्रिंट मीडिया में हम लिख सकते हैं कि बिहार, असम, नगालैंड और राजस्थान क्रमशः पटना, गुवहाटी, कोहिमा और जयपुर में पावर प्लांट लगेगा।'' लेकिन रेडियो समाचार में क्रमशः लगाकर इतना लम्बा नहीं किया जा सकता है। दूसरी ओर जिस तरह प्रिंट में ‘यह' और ‘वह' का प्रयोग किया जाता है वहीं रेडियो समाचार में ‘यह' की जगह ‘ये' और ‘वह' की जगह ‘वे' का प्रयोग किया जाता है।

रेडियो समाचार की तैयारी

रेडियो समाचार की तैयारी, समाचार संपादक के लिए एक चुनौती भरा काम है। कभी यह बोझिल और उबाऊ हुआ करता था। लेकिन अब प्रस्तुतीकरण में ताजगी को महत्व दिया जाने लगा है। ढेर सारे समाचारों में से प्रमुखता के आधार पर घटनाओं/परिघटनाओं/ विषयों का चुनाव किया जाना अब एक आम बात है। कोई ज्वलंत कार्यक्रम हो तो उसे सबसे उपर रखा जाता है। किसी समय विशेष पर, कौन सा समाचार किसके लिए महत्वपूर्ण होगा, इसका चुनाव कठिन है। स्थानीय, प्रान्तीय, राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय मामलों में पहले कौन—सा समाचार दिया जाना चाहिए— यह समाचार संपादक के लिए एक सोचनीय विषय है जिसे वह पत्रकारिता के अपने अनुभव व विवेक से तय करता है।

रेडियो के लिए समाचार तैयार करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि समाचार बुलेटिन किसके लिए प्रसारित हो रहा है। स्थानीय, राष्ट्रीय अथवा प्रान्तीय श्रोताओं को ध्यान में रख कर समाचार बुलेटिन तैयार किया जाता है और इसमें श्रोता का पूरा — पूरा ख्याल रखा जाता है। जाहिर सी बात है कि प्रान्त की खबरों को क्षेत्रीय स्टेशनों के द्वारा प्रादेशिक समाचार के तहत प्रसारित किया जाता है, जबकि राष्ट्रीय खबरें जिसका संबंध राष्ट्र के सभी भू—भाग के निवासियों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है, उपलब्ध सभी स्टेशनों के माध्यम से एक निश्चित समय पर प्रसारित किया जाता है। इस तरह स्थानीय अथवा राष्ट्रीय महत्व की खबरों को समाचार संपादक अलग—अलग कर लेते हैं। फिर यह सवाल उठता है कि कौन सी खबर पहले और कौन सी बाद में होनी चाहिए। यहां खबर अपना महत्व खुद भी बतलाती है, यानी बड़े सरोकार वाली खबर स्वतः पहली लीड—स्टोरी बनती है। अब दूसरी खबर की बारी है तो ऐसा देखने में आता है कि एक समान तरह की घटना देश के अनेक हिस्सों में घटी है तो उसे बारी—बारी से एक साथ प्रस्तुत किया जाता है। बाढ़, आतंकवाद, मौसम, खेल जैसी घटनाएं एक साथ विभिन्न हिस्सों में घटित हो सकती हैं, अतः इनका प्रसारण एक साथ होना चाहिए। रेडियो समाचार बुलेटिन का उद्देश्य समाज के अधिक से अधिक लोगों से सरोकार रखने वाला होता है, इसलिए विभिन्न तबकों/समूहों/क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, वित्तीय, साहित्यिक सहित जनहित के सभी विषयों को समाचार में स्थान दिया जाता है।

महत्वपूर्ण बात

बहुत ही महत्वपूर्ण चरण है यह। इसका अपना सिद्धांत है— वह है बातचीत। समाचार लिखते समय यह ध्यान रखना चाहिए जैसे श्रोता रेडियो सुनते समय किसी व्यक्ति द्वारा कुछ बात सुन रहे हों।

समाचार सुनने के लिए जरूरी है—

1. सीधी व सरल भाषा में बात हो।

2. कम से कम शब्दों में

3. वाक्य सरल हों, छोटे—छोटे हों

अदृश्य, अनपढ़ श्रोता का ध्यान रखते हुए रेडियो समाचार में सार पहले और विस्तार आगे दिया जाता है।

समाचार रचना के लिए फाइव डब्ल्यू और एक एच को ध्यान में रखते हैं।

1.क्या

2.क्यों

3.कब

4.कहां

5.किसने

6.कैसे

ूींजए ूीलए ूीमदए ूीमतमए ूीवए ीवू

बेहतर और अच्छा समाचार वही है जिसमें समाचार संपादक अधिक से अधिक सूचनाओं का समावेश करता है। क्या हुआ, क्यों हुआ, कब हुआ, कहां हुआ, किसने किया और कैसे किया इन सभी का। कहा जा सकता है कि क्या हुआ, क्यों हुआ, कब हुआ, कहां हुआ, किसने किया और कैसे किया और कैसे कहा ?.....एक श्रोता इन सभी सवालों का जवाब चाहता है।

‘इन्ट्रो' या लीड

सबसे पहले ‘इन्ट्रो' या लीड तैयार किया जाता है। ‘इन्ट्रो' में समाचार का सार होता है। दूसरे पैरा में विस्तार से एक समाचार लगभग 20 से 30 शब्दों में लिखा जाता है। संक्षेप में पत्रकारिता के मानक फाइब डब्ल्यू और एक एच को डाल देते है। रेडियो के लिए समाचार का प्रारुप हीरे की आकृति जैसा होता है जबकि.......अखबार में समाचार विलोम स्तूपी आकृति का होता है :—

रेडियो में समाचार लेखन का स्वरूप

मुख्य विवरण

समाचार का विस्तार

समाचार के अन्य विवरण

समाचार पत्र में समाचार लेखन का स्वरूप

समाचार का विस्तार

समाचार के अन्य विवरण

बुलेटिन की निर्माण प्रक्रिया

समाचार बुलेटिन की निर्माण प्रक्रिया इन चरणों से होकर गुजरती हैः—

— मॉनिटरिंग—रेडियो समाचार के निर्माण में मॉनिटरिंग अहम है। संवाददाताओं/ क्षेत्रीय—राष्ट्रीय——एजेंसी/इंटरनेट/टी.वी. आदि की मॉनिटरिंग जरूरी है। हमेशा इन पर नजर रखने की जरूरत है। ताकि कोई खबर छूट न जाये।

— समाचार किसके लिए—रेडियो के लिए समाचार तैयार करते समय श्रोता वर्ग का ध्यान रखा जाता है कि समाचार बुलेटिन किसके लिए प्रसारित हो रहा है। अंतिम कतार में दूर—दराज ग्रामीण, पहाड़ी इलाकों में रहने वाले शिक्षित व अशिक्षित यानी हर वर्ग का ख्याल कर समाचार तैयार किया जाता है। साथ ही स्थानीय, राष्ट्रीय अथवा प्रान्तीय श्रोताओं के लिए खबरों का चयन किया जाता है।

— संपादकीय प्रभारी (ई—एन—सी एडिटिंग)—संपादकीय विभाग के प्रभारी की नजर सब पर रहती है। बुलेटिन में क्या जाना है क्या नहीं, सभी खबर पर गिद्ध नजर रखता है। इसकी देख—रेख में बुलेटिन तैयार होता है।

— पूल के लिए कॉपी( समाचार तैयार)

कंपाइलेशन एडिटर—(समायोजन संपादक)— विभिन्न स्रोतो से प्राप्त सभी समाचार को जमा कर एक जगह रखता है। कहने का मतलब है कि यह बिखरे हुए खबरों का समायोजन करता है।

कंपाइलेशन एडिटर—होम बुलेटिन (समायोजन संपादक)—यह गृह बुलेटिन के लिए समाचारों को समायोजित करता है।

कंपाइलेशन एडिटर—(समायोजन संपादक) अन्य बुलेटिन (एक्सटरनल—विदेशी खबरों) बाहरी बुलेटिन के लिए समाचारों को समायोजित करता है।

सुपरवाइजर— समाचार कक्ष पर नजर रखता है। बुलेटिन की समीक्षा करता है।

स्टोरी को फाइनल करना—संवाददाताओं/एजेंसी आदि स्रोतों से आये समाचारों को रीराइट कर उसे अंतिम रूप देना।

कंपाइलिंग एडिटर—विभिन्न समाचारों को एक जगह समायोजित करता है।

स्टूडियो—अतिआधुनिक यंत्रों से सुसज्जित कक्ष, जहां से समाचार का प्रसारण किया जाता है।

बाइट्‌स— समाचार के दौरान संवाददाताओं/वी.आई.पी. आदि की आवाज को डालना।

स्टोरीस—समाचार को कहा जाता है।

बाइटस व स्टोरी को मिलाना—समाचार के तैयार होने पर उसमें जाने वाले संवाददाताओं/वी.आई.पी. आदि की बाइट (आवाज) को मिलाया जाता है।

सुपरवाइजर द्वारा जांच—अंत में सुपरवाइजर सभी पहलुओं की जांच करता है।

फाइनल होने पर स्टूडियो भेज देना— बुलेटिन अंतिम रूप से तैयार होने के बाद स्टूडियो भेजा जाता है जहां समाचार वाचक उसे पढ़ता है।

प्रोडक्सन असिस्टेंट— इसके बाद स्टूडियो में प्रोडक्सन असिस्टेंट का काम आता है। वह बाइट को व्यवस्थित करता है। समाचार वाचक के साथ तालमेल रखता है। सहयोग के लिए कंपाइलिंग एडिटर भी मौजूद रहता है।

कंसोल— स्टूडियो की यांत्रिक व्यवस्था, जहां माइक, फीडर आदि लगे रहते हैं।

समाचार का प्रसारण — अंतिम चरण है। कंसोल के उपर लगे लाल बल्ब के जलते ही फीडर ऑन कर वाचक समाचार पढ़ने लगता है।

समाचार के लिए साउंडबाइट

समाचार को जीवंत बनाने के लिए समाचार बुुलेटिनों में समाचार के साथ साउंडबाइट का प्रयोग किया जाता है। यह किसी भी समाचार को जीवंत तो बनाता ही है साथ ही श्रोताओं के लिए रोचकता पैदा करता है। समाचार के बीच में संवाददाताओं की अपनी आवाज में बाइट देना, समाचार की विश्वसनीयता को बढ़ाता है। वहीं किसी वी.आई.पी. की बाइट भी समाचार की रोचकता में चार चांद लगा जाता है। जैसा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या कोई वी.आई.पी. किसी कार्यक्रम में बोलते हैं तो उसकी आवाज को समाचार के बीच में डाल दिया जाता है।

समाचार की संरचना

रेडियो समाचार की संरचना प्रिंट ही नहीं, टी.वी. पत्रकारिता से भी भिन्न है। यहां एक एक शब्द की गिनती होती है। इसकी वजह है प्रसारण समय सीमा का तय होना। निर्धारित समय सीमा के भीतर ही समाचार बुलेटिन को समाप्त किया जाता है। निम्न बातों को ध्यान से देखें—

रेडियो समाचार में समय सीमा का महत्व होता है जिसे कतई

नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

जबकि मुद्रण मीडिया में समय सीमा महत्वपूर्ण नहीं होती है।

रेडियो के 10 मिनट के समाचार बुलेटिन में अधिकतम 11 से 12

समाचार ही रख सकते हैं।

समाचार का प्रारंभ—10 सेकेण्ड यानी 10 से 15 शब्द होने

चाहिये।

समाचार का हेडलाइन 50 सेकेण्ड यानी 100 से 110 शब्द के

बीच देना अच्छा होता है।

पूरे समाचार बुलेटिन का मुख्य विवरण 08 मिनट यानी 1000 से

1100 शब्द के बीच होने चाहिये।

हेडलाइन की पुनरावृत्ति 30 सेकेण्ड यानी 80 से 90 शब्दों का

होना बेहतर होता है।

समाचार समापन की घोषणा 10 सेकेण्ड यानी 10 से 15 शब्दों

में कर देना अच्छा होता है।

10 मिनट के बुलेटिन में लगभग 1200 से 1300 शब्द प्रसारित किया जाता है। हालांकि यह मापदण्ड समाचार वाचक पर निर्भर करता है। कोई समाचार वाचक शब्दों को ज्यादा चबा चबा कर या पॉज लेकर पढ़ते हैं तो ऐसे में शब्द सीमा प्रभावित हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में समाचार संपादक समाचार वाचक को ध्यान में रख कर समाचार बुलेटिन की शब्द सीमा को अंतिम रूप देता है।

समाचार के चरण

— प्रथम चरण — समाचार संकलन

— दूसरा चरण — समाचार चयन

— तीसरा चरण —समाचार लेखन

— चौथा चरण — प्रसारण के लिए चयन

— पांचवां चरण —समाचार बुलेटिन की तैयारी और क्रम निर्धारण

— छठा (अंतिम) चरण— समाचार का वाचन और प्रसारण

समाचार संकलन

सबसे पहले बुलेटिन तैयार करने के लिए समाचारों का संकलन किया जाता है। विभिन्न समाचार स्रोतों से समाचार एकत्र किए जाते हैं। समाचार एकत्र करते समय स्रोत की विश्वसनीयता और समाचार की उपयोगिता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

समाचार प्राप्ति के प्रमुख स्रोत

समाचार एजेंसियां

े निजी संवाददाता

े सरकारी एजेंसियां

े गैर सरकारी संस्था

े राजनीतिक दल

े पार्टी प्रवक्ता

े संस्थाओं द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति आदि समाचार के प्रमुख स्रोत

हैं।

समाचार चयन

जनहित और राष्ट्र—हित को देखते हुए समाचारों का चयन किया जाता है। समाचारों के चयन में विशेष ध्यान दिया जाता है खासकर जनहित की खबरों को अहमियत दी जाती है। जिस समाचार का चयन किया जाता है उसकी विश्वसनीयता परखी जाती है। रेडियो समाचार के लिए विश्वसनीयता बहुत ही मायने रखती है। समाचार संपादक अपने विवेक और पत्रकारिता के दृष्टिकोण से खबरों का चयन करता है। हर समाचार में समाचार मूल्य को अहमियत दी जाती है।

आकाशवाणी द्वारा कई बुलेटिनों का अलग—अलग समय पर अलग—अलग निर्धारित मापदण्डों के तहत प्रसारण किया जाता है। राष्ट्रीय समाचार बुलेटिनों में दोपहर समाचार के लिए प्रसारण समय आधा घण्टा निर्धारित है जिसमें हेडलाइन, समाचारों का ब्यौरा विस्तार से, साक्षात्कार, किसी खास विषय पर चर्चा को समेटा जाता है। जबकि 15 मिनट के समाचार प्रभात और समाचार संध्या के बुलेटिन में हेडलाइन और समाचार का विस्तार होता है। 15 मिनट के समाचार प्रभात बुलेटिन में समाचार पत्रों में क्या—क्या छपा है उसकी भी चर्चा की जाती है ताकि समाचार नहीं पढ़ पाने वाले श्रोता रेडियो समाचार के जरिये जान जाए कि आज अखबारों ने किस खबर को प्रमुखता से छापा है।

दस मिनट के प्रादेशिक समाचार बुलेटिनों में चार हेडलाइन को पहले दिया जाता है। उसके बाद समाचारों को विस्तार। पांच मिनट और एफ.एम. बुलेटिनों को छोड़ कर अन्य दस मिनट से उपर के समाचार बुलेटिनों में समाचार वाचक द्वारा पूरा समाचार पढ़ लेने के बाद हेडलाइन खबर को पुनः अंत में दोहराया जाता है। पांच मिनट के समाचार बुलेटिनों में कोई हेडलाइन नहीं दिया जाता है। समाचार वाचक उद्‌घोषणा के बाद सीधे समाचार पढ़ने लगता है। एफ.एम. पर प्रसारित होने वाले दो मिनट के समाचार बुलेटिनों में 20 से 25 लाइन के अलग—अलग प्रमुख समाचाराें को दिया जाता है जो कम से कम एक से लेकर ज्यादा से ज्यादा तीन—चार लाइन की खबरें होती है। इसमें केवल प्रमुख समाचार ही होते है। इसमें अलग सें कोई हेडलाइन नहीं होता बल्कि सभी हेडलाइन ही होते हैं। आइये देखें कुछ समाचार बुलेटिन की बानगी।

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समाचार बुलेटिन( क्षेत्रीय समाचार बुलेटिन का एक नमूना)

अवधिः—10 मिनट

ये आकाशवाणी...........(केन्द्र का नाम जहां से समाचार प्रसारित होना है। जैसे— दिल्ली, पटना, मुंबई, आदि) है। अब आप ...(समाचार वाचक का नाम.).................से प्रादेशिक समाचार सुनिये।

(हेडलाइन)

—देश के तिरसठवें स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि

देश में उत्पन्न सूखे की स्थिति से निपटने में सरकार सक्षम।

—केन्द्र सरकार ने कृषि क्षेत्र के विकास के लिए चार प्रतिशत का

लक्ष्य रखा।

—मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार सूखे से निपटने के लिए उपाय

कर रही है।

— और, प्रदेश भर में हषोर्ंल्लास के साथ तिरसठवां स्वतंत्रता दिवस

मनाया गया।

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प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने आज कहा कि देश में कम वर्षा और सूखे का सामना कर रहे किसानों के लिए हर संभव उपाय किये जायेंगे। तिरसठवें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में ऐतिहासिक लाल किले के प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद देश के नाम अपने सम्बोधन में डा. सिंह ने कहा कि किसानों को ऋण संबंधी सुविधाएं प्रदान की जायेगी, ताकि वे स्थिति से निपट सके। प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि क्षेत्र का विकास दर चार प्रतिशत के स्तर पर पहुंचाने के लिए देश में एक और हरित क्रांति की आवश्यकता होगी। इसके जरिए अगले पांच वर्षों में यह लक्ष्य पूरा कर लिया जायेगा।

(साउण्ड बाईट—(प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह)16 सेकेण्ड)

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में कोई भूखे नहीं सोयेगा। उन्होंने जमाखोरों और कालाबाजारी करने वालों को चेतावनी दी कि आवश्यक वस्तुओं की कमी पैदा करने की कोशिश न करें। प्रधानमंत्री ने कहा कि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत प्रत्येक बीपीएल परिवार को हर महीने रियायती दर पर अनाज उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जायेगी। प्रधानमंत्री ने शिक्षा के अधिकार संबंधी कानून की चर्चा करते हुए कहा कि समाज के कमजोर वर्ग के छात्रों की सहायता के लिए एक नई योजना शुरू की जायेगी, जिसके तहत्‌ उनके शिक्षा ऋण पर ब्याज कम किया जायेगा।

(साउण्ड बाईट—(प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह)15सेकेंड)

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत निर्माण कार्यक्रम के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे में हम कुछ हद तक सुधार लाने में सफल रहे है।

(साउण्ड बाईट—(प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह)—21सेकेंड)

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश को स्लम मुक्त बनाने के लिए राजीव गांधी आवास योजना शुरू की जायेगी। उन्होंने कहा कि आतंकवाद एक बड़े खतरे के रूप में उभर कर आया है और सरकार ने इससे निपटने के लिए कई उपाय किये हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि केन्द्र नक्सल वादी गतिविधियों से निपटने में राज्य सरकारों को पूरी तरह से सहायता देगा। बढ़ते आतंकवाद पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आम लोगों के सहयोग से ही आतंकवाद पर काबू पाया जा सकता है।

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद जन समूह को संबोधित करते हुए कहा कि प्रदेश के कई भाग सूखे की चपेट में हैं। उन्होंने कहा कि सरकार सूखे से निपटने के उपाय कर रही है। सूखा प्रभावित इलाकों में किसानों को डीजल सब्सिडी दे रही है।

(साउण्ड बाईट (मुख्यमंत्री नीतीश कुमार)—34 सैकेण्ड)

मुख्यमंत्री ने कहा कि सूखे की वजह से उत्पादन प्रभावित हुआ है। ऐसी हालत में भी सरकार किसी भी व्यक्ति को भूखा नहीं रहने देगी।

(साउण्ड बाईट (मुख्यमंत्री नीतीश कुमार)—22—सैकेण्ड)

मुख्यमंत्री ने महादलित के लिए चलायी जा रही कल्याणकारी योजनाओं की चर्चा करते हुए कहा कि गर्भवती महादलित महिलाओं को बेहतर इलाज की सुविधा मुहैया करायी जायेगी।

(साउण्ड बाईट(मुख्यमंत्री नीतीश कुमार)—26 सैकेण्ड)

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नया बिहार बनाये जाने की चर्चा करते हुए लोगों से अपील की कि वे बिहार के विकास में सहयोग करें। उन्होनें कहा कि बिहार के विकास के लिए विभिन्न योजनायें चलायी जा रही है। बिहार विकास की राह पर है और अब बिहारी कहलाना गौरव की बात है। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर विभिन्न संस्थाओं और संगठनों द्वारा झांकियां निकाली गई। समारोह के दौरान प्रदेश के कई मंत्री, विधायक, और गणमान्य व्यक्ति सहित भारी संख्या में लोग उपस्थित थे।

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स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आज सभी जिलों में हर्षोल्लास के साथ झंडा फहराया गया। सीतामढ़ी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री शाहिद अली खां, छपरा में उद्योग राज्य मंत्री गौतम सिंह, गया में पथ निर्माण मंत्री प्रेम कुमार, भागलपुर में लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे, गोपालगंज में पर्यटन मंत्री रामप्रवेश राय ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और परेड की सलामी ली। अररिया, शिवहर, बेगुसराय, बक्सर, शेखपुरा, कटिहार, सहरसा, मुजफ्फरपुर, पूर्णियां, कैमूर, भोजपुर सहित अन्य जिलों से हमारे संवाददाताओं ने बताया कि जिलाधिकारियों और आयुक्तों ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और परेड की सलामी ली।

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स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राजधानी पटना सहित प्रदेश भर में विभिन्न राजनीतिक दलों, संगठनों और आम जनता ने अपने—अपने घरों पर तिरंगा फहराकर स्वतंत्रता दिवस समारोह उल्लासपूर्वक मनाया। विधान सभा परिसर में विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, प्रदेश कांग्रेस कमिटी के मुख्यालय सदाकत आश्रम में प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार शर्मा ने, बिहार प्रदेश जनता दल कार्यालय में पार्टी अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह जबकि राष्ट्रीय जनता दल पटना के कार्यालय में राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री लालू प्रसाद ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया। वहीं लोजपा कार्यालय में प्रदेश अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस, बिहार प्रदेश राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पटना कार्यालय में राष्ट्रीय सचिव अकील हैदर, बसपा, लोक दल सहित अन्य पार्टियों के कार्यालयों में झंडा फहराया गया। अन्य संस्थानों द्वारा भी स्वतंत्रता दिवस मनाये जाने की खबर है।

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प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने देश में स्वाइन फ्‌लू के प्रकोप पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इससे घबराने की जरूरत नहीं है और सरकार स्थिति से निपटने के लिए सभी तरह के प्रयास कर रही है। स्वाधीनता दिवस समारोह को सम्बोधित करते हुए डा0 सिंह ने एच वन एन वन वायरस से फैल रहे स्वाइन फ्‌लू की चर्चा करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर इस बीमारी पर काबू पाने की हर जरूरी कोशिश करती रहेगी।

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प्रख्यात माइक्रोसर्जन और जनता दल यूनाइटेड विधायक डा. आर. आर. कनौजिया ने नकली दवाओं के कारोबार की रोकथाम के लिए बनी माशेलकर समिति की रिपोर्ट के आधार पर व्यापक अधिकार सम्पन्न केन्द्रीय दवा प्राधिकरण का गठन किये जाने की मांग प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से की। डा. कनौजिया ने कहा कि इस समिति की रिपोर्ट तीन वर्ष पूर्व ही आ गयी थी, लेकिन अभी तक इन सिफारिशों को लागू करने की दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है। उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न भागों में नकली दवाओं का धड़ल्ले से कारोबार हो रहा है जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।

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केन्द्र प्रायोजित इंदिरा आवास योजना के तहत पटना जिले के नौबतपुर में एक विशेष वितरण शिविर आयोजित कर एक सौ इक्यावन लाभार्थियों के बीच छत्तीस लाख चौबीस हजार रुपये पासबुक के माध्यम से वितरित किये गये। साथ ही महादलित परिवार के छप्पन लाभार्थियों के बीच प्रति लाभार्थी चार डिसमिल जमीन का पर्चा, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के तहत पचपन लाभार्थियों के बीच प्रति लाभार्थी पांच हजार रूपये दी गयी।

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भोजपुरी भाषा और संस्कृति के संरक्षण तथा विकास के क्षेत्र में बेहतर काम करने को लेकर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश और जय प्रकाश आगामी उनतीस अगस्त को मॉरीशस में कर्मयोगी सम्मान से सम्मानित किये जायेंगे। मॉरीशस स्थित डेस्पोरा सेंटर ने छपरा निवासी और वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश तथा गोपालगंज निवासी और इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार जय प्रकाश को कर्मयोगी पुरस्कार के लिए चयनित किया है। मॉरीशस में दो दिवसीय भोजपुरी सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति अनिरूद्ध जगन्नाथ दोनों पत्रकारों को सम्मानित करेंगे। यह जानकारी आईडीसी के महासचिव डा. पी राम होता और अंतर्राष्ट्रीय समन्वयक जगदीश गोवर्धन ने दी।

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इसके साथ ही प्रादेशिक समाचार का ये बुलेटिन समाप्त हुआ।

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राष्ट्रीय समाचार बुलेटिन का एक नमूना

अवधिः 15 मिनट

मुख्य समाचार

— लालगढ़ मुक्त कराने के बाद अब सुरक्षाबलों की कार्रवाई

रामगढ़ और कांता पहाड़ी जैसे इलाकों में।

— चतरा जिले में नक्सली हमले में सीआरपीएफ के नौ

जवानों की मौत।

— केंद्र तमिलनाडु में समुद्रतट के निकट पवन चक्कियां लगाने

पर विचार करेगा।

— रैगिंग पर काबू पाने के लिए हेल्पलाइन शुरू।

— तेहरान में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच संघर्ष

जारी।

— बैडमिंटन में इंडोनेशियाई ओपन सुपर सीरिज के फाइनल में

आज सायना नेहवाल का चीन की लिन वान से मुकाबला।

— और आज ही ट्‌वेंटी—20 विश्वकप फाइनल में श्रीलंका का

सामना पाकिस्तान से। महिलाओं का ट्‌वेंटी—20 विश्वकप

फाइनल इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच।

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पश्चिम बंगाल के लालगढ़ थाने को आठ महीने बाद कल राज्य और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के कब्जे से छुड़ा लिया। आज सुरक्षाबल रामगढ़ और कांतापहाड़ी जैसे इलाकों को कब्जे में लेने की कार्रवाई करेंगे। ताज़ा समाचार मिलने तक पिंगबोनी वन में नक्सलियों और बीएसएफ कर्मियों में मुठभेड़ जारी थी। बीएसएफ की मदद के लिए गवालतोर में और सुरक्षा बल भेजे गए हैं।

इस बीच, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने नई दिल्ली में कहा कि वाम मोर्चा सरकार नक्सलियों पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी चिदम्बरम से मुलाकात के बाद श्री भट्टाचार्य नई दिल्ली में संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे।

(साउंड बाइट)

लालगढ़ में माओवादियों की हिंसक गतिविधियों के बारे में मैंने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और प्रणव बाबू को अवगत कराया है। माओवादी निर्दोष लोगों को मारने और अवैध वसूली जैसे कायोर्ं में लिप्त हैं। इससे स्थानीय लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। केन्द्रीय बल और राज्य पुलिस बल ने माओवादियों के खिलाफ जो अभियान चलाया है, उसे हम जारी रखेंगे।

इस बीच, कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने भी राज्य के नक्सली संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। लेकिन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस लालगढ़ में नक्सलियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मदद दे रही है।

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असम में कोकराझार और सोनितपुर जिले में कल प्रतिबंधित नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट अॉफ बोडोलैंड— एनडीएफबी के चार उग्रवादी सुरक्षाबलों के साथ अलग—अलग मुठभेड़ों में मारे गए। सेना और पुलिस के संयुक्त दल ने सुराग मिलने पर गांव को घेर लिया और उग्रवादियों के खिलाफ तलाशी अभियान शुरू किया तो झोपड़ी में छिपे उग्रवादियों ने सुरक्षाकर्मियों पर गोलीबारी करके वहां से भाग निकलने की कोशिश की। सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में तीन उग्रवादी मारे गए। सोनितपुर जिले में कल एक अन्य मुठभेड़ में एनडीएफबी का एक उग्रवादी मारा गया। इस बीच, राज्य के उपद्रवग्रस्त उत्तरी कछार जिले में माइबांग थाने के डिबाल वास्लिंग गांव में उपद्रवियों ने कम से कम 21 मकानों को आग लगा दी। उपद्रवियों की गोलीबारी में एक ग्रामीण के मारे जाने की खबर है।

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झारखंड के चतरा जिले में नक्सलियों द्वारा एक ट्रक को विस्फोट से उड़ाने से उसमें सवार केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल—सीआरपीएफ के नौ जवान शहीद हो गए। पुलिस महानिदेशक ने बताया कि कल देर शाम चतरा से करीब 75 किलोमीटर दूर सोनापुर गांव में नक्सलवादियों ने घात लगाकर हमला किया। हमारे संवाददाता के अनुसार ट्रक में सवार सीआरपीएफ कर्मी चतरा के जंगल से गश्त से लौट रहे थे।

(साउंड बाइट)

प्रदेश के चतरा जिले के सोनापुर सड़क निर्माण कार्य में लगे करीब चार वाहनों को नक्सलियों ने एक दिन पहले ही आग के हवाले कर दिया था। इसका जायजा लेने वहां पुलिस दल भेजा गया। कल शाम जब वे एक ट्रक से लौट रहे थे तभी उनका वाहन नक्सलियों द्वारा बिछाई गई एक शक्तिशाली बारूदी सुरंग की चपेट में आ गया। विस्फोट के बाद भी देर शाम तक पुलिस और नक्सलियों के बीच गोलीबारी होती रही।

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भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा है कि पड़ोसी देश के साथ शांति प्रक्रिया और आतंकवादी हमले साथ—साथ नहीं चल सकते। कल पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में उन्होंने कहा कि भारत को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि पाकिस्तान के साथ कोई भी औपचारिक बातचीत तब तक संभव नहीं है जब तक वह भारत विरोधी गतिविधियों के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं रोकता।

राजनाथ सिंह ने हाल के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार की। उन्होंने कहा कि पार्टी मतदाताओं के सामने असरदार तरीके से अपना पक्ष रख पाने में विफल रही।

बाद में पार्टी प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने बताया कि पार्टी की हार के कारणों का पता लगाने के लिए एक समिति बनाई गई है।

इस बीच पार्टी की वरिष्ठ नेता मेनका गांधी ने कहा है कि चुनाव में पार्टी की विफलता के लिए वरूण गांधी को बलि का बकरा नहीं बनाया जाना चाहिए। हमारे संवाददाता के अनुसार पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के विचारों में मतभेद को देखते हुए राष्ट्रीय कार्यकारिणी की यह बैठक काफी महत्वपूर्ण है।

राष्ट्रीय कार्यकारणी की इस बैठक में विचारों का मतभेद देखने को मिला जब वरिष्ठ पार्टी नेता, जसवन्त सिंह और अरूण षौरी ने चुनाव में हार पर अपने विचार व्यक्त किए। दल में चल रहे संकट के दौर में उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में एक राजनीतिक प्रस्ताव पास किया जाएगा जिसमें हार की सामूहिक जिम्मेदारी के अतिरिक्त देश की आर्थिक स्थिति, पाकिस्तान के साथ विदेशी नीति और आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर नस्लीय हिंसा पर विचार शामिल होंगे।

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केंद्र सरकार तमिलनाडु में समुद्र तट के निकट पवन चक्कियां लगाने पर विचार कर रही है। केंद्रीय अक्षय ऊर्जा मंत्री डॉक्टर फारूख अब्दुल्ला ने कल चेन्नई में मुख्यमंत्री एम करूणानिधि से उनके आवास पर मुलाकात के बाद संवाददाताओं से कहा कि तमिलनाडु के पास सौर ऊर्जा पैदा करने की अपार क्षमताएं हैं। डॉक्टर अब्दुल्ला ने राज्य के बिजली मंत्री आर्कट वीरास्वामी और ऊर्जा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की।

बाद में श्री वीरास्वामी ने पत्रकारों को बताया कि नई पवन चक्कियां कन्याकुमारी, थेनी, तिरूनेलवेली और कोयम्बटूर जिलों में लगायी जाएंगी।

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केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने रैगिंग पर काबू पाने के लिए कल चौबीस घंटे की हेल्पलाइन शुरू की। इसका नम्बर है— 1800—180—5522। हेल्पलाइन का एक और नम्बर 15 52 22 जल्द काम करने लगेगा। कॉल सेंटर दिल्ली में है। इसमें कॉल को रिकॉर्ड करने की प्रणाली के साथ अंगे्रजी, हिन्दी और चुनिंदा क्षेत्रीय भाषाओं में जवाब देने की व्यवस्था की गई है। ीमसचसपदम ध् ंदजपतंहहपदहण्दमज पर भी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं। इस अवसर पर श्री सिब्बल ने कहा कि रैगिंग के खिलाफ यह एक ठोस कदम है।

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अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान में .विरोधियों के खिलाफ..सरकार की कार्रवाई को हिंसक और अन्यायपूर्ण करार देते हुए इसे रोकने को कहा है। एक लिखित बयान में उन्होंने कहा कि सभा करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक अधिकारों का सम्मान होना चाहिए। हमारे संवाददाता के अनुसार प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पिछले सप्ताह के चुनाव के बाद हजारों विपक्षी समर्थकों की एक और प्रदर्शन की कोशिश के बीच व्यापक हिंसा हुई।

ईरान में राष्ट्रपति चुनावों के विरोध में प्रदर्शन का सिलसिला गार्जियन कॉउंसल द्वारा 10 प्रतिशत वोटों की गिनती के प्रस्ताव और सुप्रीम लीडर की प्रदर्शन न करने की चेतावनी के बाद भी थमा नहीं है। इन प्रदर्शनों की जानकारी के लिए अंतर्राष्ट्रीय समाचार माध्यम ईरानी सरकारी मीडिया और कुछ हद तक सोसल नेटवकिर्ंग साइट पर निर्भर हैं। क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय समाचार माध्यमों पर ईरान में प्रतिबंध है विश्व के अन्य भागों में भी विपक्ष के समर्थन में ईरानियों ने प्रदर्शन किए हैं और अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने ईरान की सरकार से विरोधियों पर हिंसक कार्यवाही रोकने की अपील की है।

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भारत की सानिया नेहवाल चीन के सुपर सीरिज के फाइनल में पहुंच गई है। फाइनल में आज साइना का सामना चीन की लिन वांग से होगा।

क्रिकेट में आज इंग्लैंड के ऐतिहासिक लॉर्डस मैदान में ट्‌वेन्टी—20 विश्व क्रिकेट टूर्नामेंट के फाइनल में पाकिस्तान की टीम का सामना श्रीलंका से होगा। आज एक और दिलचस्प मुकाबला देखने को भी मिलेगा जब महिला ट्‌वेन्टी—20 विश्व कप के टूर्नामेंट के फाइनल में न्यूजीलैंड का सामना मेजबान इंगलैंड से होगा। टेनिस प्रेमियों के लिए भी एक अच्छी खबर है। साल का तीसरा ग्रेंड स्लैम टूर्नामेंट विंबलडन कल से शुरू हो रहा है लेकिन दुनिया के नम्बर एक टेनिस खिलाड़ी और मौजूदा चौम्पियन स्पेन के राफेल नडाल इस टूर्नामेंट में नहीं खेल सकेंगे। भारत के शीर्ष सिंगल्स टेनिस खिलाड़ी सोमदेव देववर्मन को ग्रैंडस्लैम के अपने पहले ही मैच में भारत के अनुभवी टेनिस खिलाड़ी महेश भूपति की चुनौती से पार पाना होगा। उधर, सिंगापुर में पुरुष जूनियर हॉकी विश्व कप में नौवें स्थान के प्ले अॉफ मैच में कल भारत ने पोलैंड को 4—0 से हराया। भारत के खिलाड़ियों ने दोनों हाफ में दो—दो गोल दागे और टीम ने टूर्नामेंट में अपना अभियान जीत के साथ समाप्त किया।

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देश में स्वाइन फ्‌लू से प्रभावित लोगों की संख्या बढ़कर 56 हो गई है। इनमें से 21 रोगियों को इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। बाकी रोगियों की हालत स्थिर है और उनका विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है। अब तक कुल 412 लोगों के नमूनों की जांच की गई हैं। इनमें से छह रोगी अन्य देशों से लौटे स्वाइन फ्‌लू के रोगियों के संपर्क में आने के बाद प्रभावित हुए।

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भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का आयोजन पुरी में 24 जून को होगा। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथ गुंडिचा मंदिर ले जाए जाते हैं। इस साल की रथयात्रा में देश—विदेश से लगभग दस से पन्द्रह लाख श्रद्धालुओं के भाग लेने की संभावना है। ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने हाल ही में रथयात्रा की तैयारियों का जायज़ा लिया और अधिकारियों को अपना काम निर्धारित समय में निपटाने तथा भगदड़ जैसी किसी अप्रिय घटना से निपटने के उपाय करने का निर्देश दिया।

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समाचार पत्रों से —

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक आज अलग—अलग तरह से अख़्ाबारों की सुर्खी बनी है। जहां दैनिक ट्रिब्यून ने भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की इस बात को अहमियत दी है कि जीत—हार की सामूहिक ज़िम्मेदारी होती है, वहीं देशबंधु की सुर्खी है—मैं लेता हूं हार की ज़िम्मेदारी। जनसत्ता कहता है—हार की ज़िम्मेदारी तो ली, पर इस्तीफे की पेशकश नहीं की। नवभारत टाइम्स ने लिखा है—बीजेपी में खुलकर चले तीर। राजस्थान पत्रिका के अनुसार जेटली बने निशाना। पंजाब केसरी कहता है—हिंदुत्व नहीं छोड़ेगी भाजपा। अमर उजाला की हैडलाइन है—हार पर मचा हाहाकार। राष्ट्रीय सहारा के शब्द हैं—हार पर भाजपा में जमकर रार। नई दुनिया लिखता है—कार्यकारिणी में भी खिंच गयीं तलवारें। दैनिक जागरण ने बॉक्स में बताया है—वरुण के हिंदुत्व से भाजपा ने की तौबा।

चतरा में सुरक्षा बल दाखिल, माओवादियों से थाना छुड़ाया—जनसत्ता की पहली ख़्ाबर है। नवभारत टाइम्स इसे लालगढ़ में थोड़ी कामयाबी लिखता है। पंजाब केसरी ने पृथम पृष्ठ पर लालगढ़ में लाल निशान के विशेष सम्पादकीय में लिखा है—गौर से देखा जाए, तो ये बंगाल में वामपंथियों की न केवल राजनीतिक पराजय है, बल्कि उनके गरीबों के राज के नारे और इस पर खड़ी इमारत के रेत होने का भी सबूत है। दैनिक जागरण बॉक्स में लिखता है—बुद्धदेव माओवादियों पर पाबंदी को तैयार।

दैनिक हिंदुस्तान की सुर्खी है—घेरे में चौटाला परिवार। पत्र ने बताया है कि सी.बी.आई. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला और उनके दोनों बेटों पर आय से अधिक सम्पत्ति जमा करने के लिये मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने जा रही है।

पूर्वी उत्तरप्रदेश के लगभग डेढ़ सौ गांवों में पानी में आर्सेनिक की समस्या की ख़्ाबर पहले पन्ने पर छापते हुए दैनिक जागरण ने उसे शीर्षक दिया है—यहां पानी पीकर मरते हैं लोग। गुजरात में जाम नगर में एक गर्भवती महिला को एच.आई.वी. पॉजिटिव पाए जाने पर उसके माथे पर एच.आई.वी. पॉजिटिव की पट्टी लगाकर सरकारी अस्पताल में घुमाये जाने की ख़्ाबर सभी अख़्ाबारों के पहले पन्ने पर है। नवजात बच्चे के इलाज के लिए दिल्ली में दर—दर भटके एक माता—पिता के समाचार को प्रमुखता से छापते हुए नवभारत टाइम्स ने इसे शीर्षक दिया है—चार अस्पतालों का इलाज से इनकार।

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पांच मिनट का समाचार बुलेटिन

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ये आकाशवाणी————(केन्द्र का नाम)———है। अब आप——— (समाचार वाचक अपना नाम पढ़ता है)———से प्रादेशिक समाचार सुनिये।

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फतुहा विधानसभा उपचुनाव पर जदयू ने कब्जा जमा लिया है। आज मतगणना समाप्ति के बाद एनडीए प्रत्याशी अरूण मांझी ने राजद और लोजपा गठबंधन के प्रत्याशी पुनीत राय को लगभग दस हजार मतों से पराजित कर दिया है। जदयू विधायक सरयुग पासवान के निधन के कारण इस क्षेत्र के लिए अट्‌ठाईस मई को उपचुनाव कराया गया था। चुनाव मैंदान में कुल छह प्रत्याशी थे।

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नवगठित पंद्रहवीं लोकसभा के नये सदस्यों के शपथ ग्रहण का सिलसिला आज सदन के नेता और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और विपक्ष के नेता लालकृष्ण आठवाणी के शपथ ग्रहण के साथ शुरू हो गया। सत्तारूढ़ यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी शपथ ली। सदस्यों को शपथ दिलाने का काम कल तक चलेगा। इसके पहले आज संसद परिसर में पहली बार आगमन पर हर्षोल्लास के साथ नये सदस्यों का स्वागत किया गया। नये सांसद अपने—अपने प्रदेशों की पारंपरिक वेशभूषा में आये थे।

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पूर्व मध्य रेलवे के दानापुर रेल मंडल के खुसरुपुर स्टेशन के पास आज प्रदर्शनकारियों ने ट्रेनों के ठहराव की मांग को लेकर प्रदर्शन करते हुए दरभंगा इंटरसिटी एक्सप्रेस ट्रेन के चार डिब्बों और राजगीर—दानापुर इंटरसिटी के जेनरेटर कार तथा गार्ड—ब्रेक—वॉन में आग लगा दी। इस दुर्घटना में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। रेलवे के जनसंपर्क पदाधिकारी ए.के. सिंह ने बताया कि ट्रेनों के ठहराव को लेकर आज सुबह से ही लोग प्रदर्शन कर रहे थे। इसी दौरान दरभंगा इंटरसिटी एक्सप्रेस ट्रेन के खुसरुपुर पहुंचने पर प्रदर्शनकारियों ने वातानुकूलित बोगी में पथराव किया। साथ ही चार डिब्बों में आग लगा दी। प्रदर्शनकारियों ने ए.सी. बोगी में भी आग लगाने का प्रयास किया। लेकिन बोगी के अटेन्डेंट के प्रयासों से आग बुझा दिया गया। वहीं अन्य चार डिब्बें बुरी तरह से जल गये है। दूसरी ओर राजगीर—दानापुर पैंसेंजर ट्रेन के जेरनरेटर कार और गार्ड ब्रेक वैन में भी प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दी। इस बीच रेल प्रशासन ने विभिन्न स्टेशनों से हटाये गये ठहराव को अगले आदेश तक के लिए रद्‌द कर दिया है। रेल प्रशासन ने कुछ स्टेशनों पर ट्रेनों के ठहराव को समाप्त कर दिया था। ठहराव समाप्त करने को लेकर विभिन्न स्टेशनों पर कल से प्रदर्शन किया जा रहा है।

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जल संसाधन मंत्री पद से मीरा कुमार ने इस्तीफा दे दिया है। अब उनका लोकसभा अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है। वे इस पद पर आसीन होने वाली पहली महिला होंगी। राष्ट्रपति भवन के प्रवक्ता के अनुसार राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने मीरा कुमार का इस्तीफा मंजूर कर लिया है। कांग्रेस की ओर से औपचारिक घोषणा बांकी है। प्रणव मुखर्जी ने भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी को फोन पर इस बारे में जानकारी देने, मीरा कुमार की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात और लोकसभा के महासचिव पी.डी.टी. आचारी की उनसे भेंट के बाद पहली बार किसी महिला के लोकसभा अध्यक्ष आसीन होना तय माना जा रहा है।

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औरंगाबाद जिले के बारून में स्थापित बिहार का एकमात्र वनस्पति कारखाना विगत कई वर्षों से बंद पड़ा है। परिणामस्वरूप इस कारखाना के सैकड़ों कामगार रोजी—रोटी के अभाव में दर—दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण (बाइफर) की तत्कालीन एक्ट उन्नीस सौ पचासी तथा बीआईएफआर रेग्यूलेशन उन्नीस सौ सत्तासी के बीस—एक के तहत सूचना जारी कर, वर्ष दो हजार पांच में कहा था कि बिहार के औरंगाबाद जिला अंतर्गत बारून स्थित बीमार औद्योगिक कंपनी मेसर्स सोन वनस्पति लिमिटेड को लौंग टर्म के आधार पर पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है। बोर्ड के अनुसार वनस्पति कारखाना से संबंधित किसी फर्म या रूचि रखने वाले लोगों द्वारा उद्योग के पुनर्वास संबंधी किसी प्रस्ताव के नहीं होने की स्थिति में इस कंपनी को समाप्त करने का निर्णय ही युक्तिसंगत और सार्वजनिक हित में है। निर्णय के तहत कहा गया था कि पिछले काफी दिनों से कंपनी के पुनर्वास की सभी संभावनाओं को देखते हुए काफी प्रयास किया गया। इस बीच पूर्व विधायक और मजदूर यूनियन के नेता रामचंद्र सिंह ने राज्य के एकमात्र वनस्पति कारखाने को शीघ्र चालू कराने की मांग मुख्यमंत्री से की है।

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भोजपुर जिले में जलस्तर के नीचे चले जाने के कारण विभिन्न कुएं और सोन नदी जैसे पेयजल स्रोत सूखते जा रहे है। इससे पेयजल संकट गहराता जा रहा है। मध्य प्रदेश के अमरकंटक पहाड़ से निकलने वाले सोन नदी का पानी देश की आजादी के बाद मध्य प्रदेश और बिहार के औद्योगिक कचरे और गंदे नाले के गिरने से प्रदूषित और विषैला होता गया। दूसरी ओर सोन का पेट बालू से भरकर ऊंचा हो जाने के कारण इस लंबे—चौड़े नदी का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है।

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एफ.एम. पर प्रसारित होने वाला दो मिनट का समाचार बुलेटिन

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ये आकाशवाणी ————(केन्द्र का नाम)——— की विज्ञापन प्रसारण सेवा है। अब आप एफ.एम. पर मुख्य समाचार सुनिये।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विकास यात्रा का अगला चरण आज से शुरू होगा। इसके तहत मुख्यमंत्री औरंगाबाद से अपनी यात्रा की शुरूआत करेंगे और पटना प्रमंडल के सभी जिलों में आयोजित समारोह में भाग लेंगे।

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भारतीय जनता पार्टी ने आज राज्यसभा में बिहार के लिए विशेष आर्थिक पैकेज देने की मांग उठायी।

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राज्य सरकार ने उन्नीस सौ चौहत्तर के जय प्रकाश आंदोलन से जुड़े लोगों के लिए ‘‘जय प्रकाश आंदोलन सेनानी सम्मान योजना'' देने का फैसला किया है।

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पूर्व मध्य रेलवे के कटिहार—बरौनी रेल शाखा के कुरसैला और कटरिया रेल स्टेशन के बीच एक मालगाड़ी के सात डिब्बों के कल देर रात पटरी से उतर जाने के कारण इस रेल शाखा पर ट्रेन सेवा पूरी तरह ठप्प है।

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राज्य सरकार ने उत्तर अमेरिका में फैलने वाले अत्यंत संक्रामक और खतरनाक रोग स्वाइन लू के संक्रमण से बचाव के लिए निर्देश दिया है।

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मुजफ्फरपुर और आरा में सरकार ने जलापूर्ति और कचरा प्रबंधन की योजनाओं के तहत्‌ चालू वित्तीय वर्ष के लिए अड़तीस करोड़ अठासी लाख रूपये स्वीकृत किये हैं।

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जमुई की त्वरित अदालत ने अवैध हथियार और विस्फोटक पदार्थ रखने के मामले में एक व्यक्ति को सात वषोर्ं के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है।

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राजधानी पटना में आयोजित एआईटीए टैलेंट सीरिज रैंकिंग टेनिस में बिहार के अदम्य विक्रांत ने बालक अंडर एटिन और अंडर सिक्सटिन का युगल खिताब जीत कर दोहरी सफलता अर्जित की है।

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एफ० एम० पर समाचार समाप्त हुए।

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रेडियो समाचार लेखन : मुख्य बातें

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समाचार की भाषा—सरल, सहज, पारदर्शी और स्पष्ट होनी चाहिये।

समाचार संक्षिप्त हो, किन्तु अपने आप में पूर्ण हो। हां, बहुत अधिक महत्व, लोक—रूचि और व्यापक जनहित के समाचार को विस्तार से लिखा जा सकता है। लेकिन उसमें भी कसावट होनी चाहिए। निरर्थक वाग्जाल नहीं होने चाहियेे।

समाचार किसी भी स्रोत से आया हो लेकिन विश्वसनीय और मूल्यवान होने पर ही उसे स्वीकार करना चाहिये।

समाचार की मूल आत्मा सुरक्षित रहनी चाहिए। संक्षिप्त समाचार में तो प्रायः इस बात का निर्वाह आसानी से हो जाता है। लेकिन विस्तृत समाचार में मूल आत्मा की रक्षा करना मुश्किल हो जाता है। समाचार में आंकड़ों को कम जगह दी जाए तो अच्छा रहता है। लेकिन जहां आंकड़े दिए जाने आवश्यक हों, तो उन्हें सही—सही और उन आंकड़ों के स्रोत का उल्लेख करते हुए देना चाहिए। इससे समाचार की निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता बढ़ती है।

समाचार में निहित तथ्यों से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। न ही उन पर अपने विचार थोपाना चाहिए।

जिस भाषा में समाचार बुलेटिन तैयार किया जा रहा है, समाचार—लेखक को उस बुलेटिन के लिए प्रयुक्त भाषा की प्रकृति का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। उसी के अनुसार भाषा का प्रयोग होना चाहिए। ध्यान रखने वाली बात यह है कि जिस भाषा में बुलेटिन प्रसारित होना है, उन भाषा—भाषियों के साथ भाषा को लेकर खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिये।

समाचार का अनुवाद करते समय सावधानी बरतनी चाहिये। अनुवाद को सटीक होना चाहिये। अनुवादक को दोनों भाषाओं का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है। दोनों भाषाओं की प्रकृति, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, उनके व्याकरण, वाक्य—रचना और मुहावरों आदि का ज्ञान भी आवश्यक है। नहीं तो अनुवादक विषयवस्तु से न्याय नहीं कर पायेगा।

समाचार—लेखक को समाचार तैयार करने में मार्ग—निर्देशन सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए। ये सिद्धान्त समाचार— लेखक, संपादक को पहले से ही उपलब्ध करा दिए जाते है। किसी प्रकार का सन्देह होने पर सम्बद्ध अधिकारी से विचार—विमर्श कर लेना चाहिए। विशेष रूप से विदेशी समाचार तैयार करने में अपने देश की विदेश नीति तथा आचार—संहिता में वर्णित सिद्धान्तों का ध्यान रखा जाना चाहिए। साथ ही किसी विवादास्पद समाचार को लेकर हमेशा सचेत रहना चाहिये। संदेह होने पर अपने से वरीय कर्मी से मदद लेनी चाहिये।

समाचार लिख लेने के बाद अन्त में एक बार फिर से जांच लेना चाहिए कि सभी समाचारों में समाचार के सारे तत्व आ गए हैं या नहीं, कम जरूरी या गैरजरूरी बातें तो नहीं आ गई। समाचारों की भाषा संक्षिप्त, स्पष्ट और चुस्त है या नहीं। बोझिल शब्दावली का प्रयोग तो नहीं हो गया। वाक्य अधूरे तो नहीं है। भाषा द्विअर्थी तो नहीं है।

समाचार तथ्यपरक होने चाहिए।

यदि इस बात का ध्यान रखा जाए कि समाचार—वाचक कौन है, तो समाचार लिखने में और भी सुविधा रहती है। इसका कारण यह है कि बहुत—से समाचार—वाचक कई शब्दों के सही उच्चारण नहीं कर पाते, या उन्हें उन शब्दों का अर्थ नहीं पता होता या उन्हें अल्प विराम, पूर्ण विराम आदि का सही पता नहीं रहता कहां कम रूकना है, कहां अधिक रूकना है, कहां किस शब्द पर बल देना है आदि बातों का ठीक—ठाक पता नहीं होता। ऐसे में लेखक और समाचार—वाचक में तालमेल जरूरी होता है।

दिशा—निर्देशक—सिद्धान्त

समाचार—चयन/समाचार—लेखन के लिए दिशा—निर्देश तय किये गये हैं साथ ही इसके अपने सिद्धान्त है। आइये डालते है एक नजर—

समाचार के तथ्य अपरिवर्तनीय होते हैं। ये किसी भी कीमत पर बदले नहीं जाते। खबरें घटना—प्रधान ही देने चाहिये। ध्यान रहे कि समाचार डेस्क पर आने वाले सभी विचार समाचार नहीं होते।

समाचारों को संतुलित रूप में ही देना चाहिये। विशाल श्रोता वर्ग को ही ध्यान में रख कर समाचार लिखना चाहिये। लिखते समय भाषा सरल—सहज होनी चाहिए।

श्रोता वर्ग का यह अधिकार है कि वह सभी प्रकार के समाचार सुने। श्रोताओं के इस अधिकार का सम्मान करते हुए समाचार संपादक को सभी विधा के समाचार देना चाहिये।

समाचारों का चयन मान्यता प्राप्त समाचार एजेंसियों से ही करना चाहिये। यदि किसी अन्य स्रोत से समाचार लेना हो तो उसकी सत्यता, प्रामाणिकता और विश्वसनीयता पूरी तरह परख लेनी चाहिये। इसके बाद ही उस स्रोत से समाचार का चयन करना चाहिये। समाचार की सत्यता, प्रामाणिकता और विश्वसनीयता पर थोड़ा भी शक हो तो उसे छोड़ देना चाहिये जब तक कि उसकी प्रामाणिकता स्पष्ट न हो जाये।

ऐसा कोई समाचार नहीं देना चाहिये— जिससे किसी व्यक्ति विशेष का हित सधता हो या उससे कोई व्यक्तिगत लाभ मिल रहा हो। यही बात किसी प्रतिष्ठान या उत्पादन पर भी लागू होती है। रेडियो जनसाधारण का माध्यम है। इसका उपयोग व्यक्तिगत हित साधन के लिए कतई नहीं होनी चाहिए।

समाचार के छद्‌म वेश में किसी का विज्ञापन नहीं होने पाए। इसका हमेशा ख्याल करना चाहिये। साथ ही कोई व्यक्ति समाचार की आड़ में अपनी व्यक्तिगत छवि नहीं बनाये । इस बात का भी पूरा ख्याल रखना चाहिये।

विकास संबंधी समाचार देते समय लोगों और स्थानों के साथ—साथ संगठनों का भी नाम देना चाहिये । इससे लोगों को सामाजिक पहल करने की प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलेगा।

समाचारों में सरल शब्दों का ही प्रयोग करें। सीधी बात कहें। बड़े और भारी—भरकम शब्दों का प्रयोग नहीं करें। विशेषणों का प्रयोग कम से कम करें। जहां बहुत आवश्यक हो, वहीं विशेषणों का प्रयोग करना चाहिये।

समाचार में प्रचारात्मक तत्व का प्रवेश कतई नहीं होना चाहिये और न ही परनिन्दा होनी चाहिए।

विवादास्पद समाचार में सन्तुलन होना चाहिए। सभी पक्ष तटस्थ हो कर अपनाए जाने चाहिए। किसी एक का समर्थन या दूसरे का

विरोध नहीं होना चाहिये। इससे समाचार में निष्पक्षता का समावेश होता है।

संक्षिप्त नामों का प्रयोग उस समय तक न करें, जब तक कि वे पूरी तरह से आम जनता द्वारा समझ न लिया जाये या जो प्रचलन में न आये हाें ।

यदि किसी समाचार के प्रसारण के लिए कोई समय निश्चित हो (इसे एम्बार्गों कहते है), तो वह समाचार उससे पहले किसी भी कीमत पर प्रसारित नहीं किया जाना चाहिये।

मौसम सम्बंधी जानकारी या भविष्यवाणी मौसम विभाग या अन्य प्रामाणिक स्रोतों से ही लेना चाहिये।

किसी सार्वजनिक सभा में उपस्थित लोगों की संख्या के बारे में अनुमान नहीं लगाना चाहिये। लेकिन आवश्यक हो तो उसे विशाल सभा या विशाल समूह लिख सकते हैं।

राजनीतिक गतिविधियों सम्बंधी समाचारों को ध्यान से उनके महत्व के अनुसार ही चयन करें। इस बात का ध्यान रहे कि किसी दल के साथ पक्षपात या भेदभाव पूर्ण रवैया नहीं अपनायें।

विवादास्पद राजनीतिक मसलों पर सभी राजनीतिक दलों के दृष्टिकोणों को देने का प्रयास करना चाहिये।

समाचार बुलेटिन ऐसा होना चाहिए जिसे सभी वर्गों और हितों वाले लोग सुन सकें। सरकारी विज्ञप्तियों पर जरूरत से ज्यादा निर्भर नहीं रहना चाहियेे। सरकारी सूचनाओं को उसके माध्यम के साथ देना चाहिये।

समाचार के दौरान किसी भी राजनीतिक पार्टी को साम्प्रदायिक, प्रगतिशील जैसे विशेषणों से विभूषित—अलंकृत नहीं करना चाहिये।

समाचार बुलेटिन में समाचार को सन्तुलित रखने का प्रयास करना चाहिये। यदि विपक्ष की प्रतिक्रिया उसी समय या तत्काल उपलब्ध नहीं है, तो बाद के बुलेटिनों में उसे देना चाहिये। इसके लिए संवाददाताओं या समाचार एजेंसी पर नजर रखनी चाहिये।

अगर किसी राजनीतिक पार्टी के नाम के बारे में विवाद है, तो या तो निर्वाचन आयोग द्वारा स्वीकृत अथवा मान्य नाम का उपयोग करें या फिर किसी अदालत ने जो नाम पार्टी को दिया हो, उसका ही उपयोग करना चाहिये।

राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री सम्बंधी समाचार देने में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिये—

ेराष्ट्रपति का पद अत्यन्त ही महिमामय है। इसलिए राष्ट्रपति के सम्बंध में समाचार देते समय राष्ट्रपति—पद की गरिमा का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिये। यही बात संसद, राज्य विधान मंडलों, न्यायालयों और राज्यपालों से संबंधित समाचारों पर भी लागू होती है।

ेप्रधानमंत्री की गतिविधियों को समुचित महत्व दिया जाना चाहिये। प्रधानमंत्री के संवाददाता सम्मेलन, भाषण आदि समाचार की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि वे सरकार की नीति सम्बंधी फैसले पर उनका बयान होता हैं या उनसे यह पता चलता है कि राष्ट्रीय समस्याओं पर सरकार का क्या नजरिया या दृष्टिकोण है ।

ेसमाचार के महत्व के अनुसार केन्द्रीय और राज्यों के मंत्रियों के सरकारी नीति सम्बंधी वक्तव्य प्रसारित किए जाने चाहिये।

बयान, वक्तव्य, खण्डन या उत्तर के बारे में संपादक को हमेशा चौकन्ना रहना चाहिये। इस सम्बंध में इन महत्वपूर्ण बातों को समाचार बनाते हुए ध्यान रखना चाहिए—

अगर किसी नेता के बयान/वक्तव्य में कोई आपत्तिजनक बात नहीं हो तो उसका प्रसारण नहीं रोका जाना चाहिए। शर्त यही है कि वह समाचार की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो।

अगर रेडियो ने कोई वक्तव्य प्रसारित किया है और उसका कोई जवाब आता है, तो उसे प्रसारित किया जाना आवश्यक है। लेकिन उत्तर तभी लिया जाना चाहिए जब वह किसी समसामयिक सार्वजनिक या जनहित की समस्या पर दिये जाने वाले समाचारों को सन्तुलित करने वाला हो। साथ ही उसमें कोई नई सूचना हो। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि उत्तर वाले वक्तव्य पर पत्रकारिता की दृष्टि से विचार किया जाना चाहिये। या फिरे पूरे मामले को विवादास्पद होने से पहले ही उसे रोक देना चाहिये।

अगर किसी राजनीतिक वक्तव्य का समाचारों की दृष्टि से महत्व है तो वह प्रसारित होना चाहिए। यदि उसमें कोई नीति सम्बंधी बात है या उससे किसी राजनीतिक समस्या या हवा को बेहतर तरीके से समझने में सहायता मिलती है, तो समाचार की दृष्टि से वह वक्तव्य महत्वपूर्ण है। लेकिन आकाशवाणी को मात्र दलगत विचारों का प्रचार नहीं करना चाहिए।

समाचार में अगर ऐसी कोई बात आती है जो कि आपत्तिजनक हैं तो उसे नहीं दिया जाना चाहिये। बयान/वक्तव्य से आपत्तिजनक बातों को हटा देना चाहिये।

साम्प्रदायिकता भड़काने वाली बातें और विधि तथा संविधान—सम्मत सिद्धान्तों पर स्थापित सरकार को हिंसा द्वारा उखाड़ फेंकने के लिए भड़काने वाले बयान आदि समाचार में आते हैं तो उसे नहीं दिया जाना चाहिये।

ऐसी सूचनाएं या राय जिससे किसी व्यक्ति के प्रति नफरत पैदा होती हो, उसका अपमान होता हो या उसकी प्रतिष्ठा पर आंच आती हो, उसे नहीं दिया जाना चाहिये।

एक और कठिनाई उस समय सामने आती है, जब समाचार बुलेटिनों के लिए हड़ताल और बन्द के समाचार लिखने पड़ते हैं। इनके लिए निम्नांकित मार्ग निर्देशक सिद्धान्त ध्यान में रखे जा सकते हैं —

— हड़ताल के समय समाचार के महत्व को देखते हुए वस्तुपरक ढंग से खबर दी जानी चाहिये। घटनाओं के समाचार लेखन में वस्तुपरक चित्रांकन होना चाहिए।

— हड़ताल के बारे में लोगों की राय भी दी जा सकती है। अगर सरकार तथा प्रबंधकों, हड़तालियों या हड़ताल के संगठन कर्त्ताओं के मतों में वैचारिक मतभेद हो तो ऐसे में सभी के दृष्टिकोणों को जनता के समक्ष हू—ब—हू रख देना चाहिये।

— रेडियो समाचार के दौरान हड़ताल या बन्द के बारे में पूर्व में सूचना देने से बचना चाहिये। क्योंकि हड़ताल या बंद की घोषणा के बाद अगर उसे वापस ले लिया जाता है तो उसका प्रतिकूल असर पड़ता है। लेकिन यदि हड़ताल या बन्द का असर आम लोगों के जनजीवन पर पड़ता है, तो श्रोताओं को सावधान करने के लिए सूचना अवश्य देनी चाहिये। हड़ताल या बन्द की खबरें समाज के हित को दृष्टि में रखते हुए दी जाती है क्योंकि इससे जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है। सूचना होने से आम लोग हड़ताल या बन्द को देखते हुए अपनी दैनिक गतिविधि की रणनीति तय करते हैं।

— रेलवे विभाग द्वारा रेल यात्रियों यानी जनहित में कोई सूचना दिया जाता है तो उसे प्राथमिकता से देना चाहिये। जैसे रेल दुर्घटना के दौरान हेल्पलाइन के बारे में समाचार दिया जाना आवश्यक है। इसे जनहित मेंं प्रसारित किया जाना चाहिए।

— कुल मिला कर रेडियो समाचार प्रसारण जनहित में होना चाहिए और घटनाओं को बहुत उछालना नहीं चाहिये।

— दंगा और उपद्रव के मामले में पूरी तरह से सावधानी अपनानी चाहिये। देश के किसी हिस्से में दंगा हो तो रेडियो समाचार प्रसारण में खबर को सॉफ्‌ट तरीके से देना चाहिये। खबर इस तरह के होने चाहिये जिससे तनाव घटे और लोगों में सौहार्द, आपसी भाईचारा— विश्वास बढ,़े साथ ही शान्ति व्यवस्था कायम हो। दंगा और उपद्रव की खबर को कभी बढ़ा—चढ़ा कर नहीं देना चाहिये। इससे तनाव बढ़ता है। चूंकि रेडियो जन संचार का सशक्त माध्यम है और इसका फैलाव तुरंत होता है।

समाचार— लेखन के दौरान तथ्यों से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिये। उन्हें तोड़ने—मरोड़ने या दबाने की चेष्टा भी नहीं की जानी चाहिये। केवल यह ध्यान रहे कि जो तथ्य रखे जा रहे हैं वे समाज एवं देश के लिए अहितकर न हों। ऐसी घटनाओं को प्रसारित करने से बचना चाहिए जो साम्प्रदायिक हों, दंगे फैलाने का कारण बनते हों या समाज में विद्वेष का वातावरण पैदा करते हों। अगर ऐसी घटनाओं को समाचार में दिया जाना मजबूरी भी हो तो सावधानी से तथ्य को सही—सही और विश्वसनीयता के स्तर पर जांच कर ही देना चाहिये। इसी तरह आपराधिक समाचारों को तब तक नहीं देना चाहिये जब तक कि वह व्यापक जनहित को प्रभावित नहीं करता हो।

संवाददाता/संपादकों के लिए हमेशा ध्यान रखने योग्य बातें—

ेकोई भी खबर देशहित ओर समाजहित से सर्वोपरि नहीं है। इसलिए राष्ट्रीय विपत्तियों, प्राकृतिक आपदाओं जैसे व्यापक और मानवीय विषयों के समाचारों को प्राथमिकता के साथ दिया जाना चाहिये। रेल दुर्घटना, हवाई दुर्घटना, भूकम्प, बाढ़, अकाल, अग्निकाण्ड, तूफान, इत्यादि के दौरान खबरों को तरजीह देना चाहिये। जान—माल के नुकसान के आंकड़े सही—सही और आधिकारिक तौर पर पुष्टि करते हुए समाचार में देना चाहिये। आपदा आदि से जुड़ी खबरों का प्रसारण तुरंत करना चाहिये ताकि जान—माल की हानि को रोका जा सके। बाढ़ के समय रेडियो की भूमिका काफी अहम्‌ हो जाती है उस समय रेडियो ही एक मात्र जरिया होता है जो तुरंत बाढ़ में फंसे लोगों तक सूचना पहुंचाता है और उन्हें बचाव—राहत के साथ—साथ अन्य उपाय बताता है। पिछले साल बिहार के कई क्षेत्रों में आयी भीषण बाढ़ में फंसे लोगों तक सूचना पहुंचाने का काम रेडियो ने ही किया था। रेडियो पर समाचार सुन कर जनता अपने स्तर पर बचाव का उपाय या प्रयास करती है। इसी तरह बीमारियों के फैलने से संबंधित समाचारों के साथ करना चाहिये। सही खबर प्रसारित करना चाहिये। उसमें बचाव के उपाय, राहत कार्यो की जानकारी जैसी बातें अवश्य दे देनी चाहिए, ताकि लोग सचेत हो जाये।

ेतोड़फोड़ विद्रोह आदि का समाचार देना हो तो अधिकारियों से स्पष्टतः पूछताछ कर लेनी चाहिये। ऐसा कोई समाचार भूल से भी नहीं जाना चाहिए, जिसमें जनता—विरोधी, समाज—विरोधी या देश—विरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहन या बढ़ावा मिलता हो।

ेअफवाहों से हमेशा बचना चाहिए। अफवाहों से देश तथा समाज का बहुत नुकसान होता है। अतः रेडियो समाचार में अफवाहों पर आधारित बातों को कतई नहींं देना चाहिये।

ेरेडियो सिर्फ सरकारी माध्यम नहीं है और न ही वह किसी एक पार्टी विशेष का या फिर सत्तारूढ़ दल या सरकार का प्रचारक होता है। रेडियो जनहित, समाजहित और सबसे पहले देशहित में काम करता है। रेडियो कीे नजर में सब बराबर है। इसकी विश्वसनीयता इसी बात में है कि वह ईमानदारी से सत्य समाचार देता रहे। यह बात अलग है कि उसके कुछ विकास सम्बंधी समाचार या विकास—कार्यक्रम ऐसे भी होते है, जिनमें सरकार द्वारा समाज के लिए किये जाते है, जिसमेें विकास कार्यों की जानकारी दी जाती हैं। लेकिन यह तथ्यात्मक जानकारी सामाजिक चेतना और समाज के विकास एवं व्यापक हित के लिए होती है, अनावश्यक प्रचार के लिए नहीं। इसी क्रम में यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि किसी राजनेता मंत्री अथवा अन्य प्रभावशाली व्यक्ति को अनावश्यक प्रचार नहीं मिले और नहीं उसका नाम बार—बार प्रसारित किया जाना चाहिये।

ेइस प्रकार रेडियो के लिए समाचार—निर्माण और समाचार लेखन में उपर्युक्त सभी बातों का अनुपालन किया जाना अनिवार्य है।

समाचार बुलेटिन : निर्माण, तैयारी और प्रसारण

समाचार—चयन और लेखन के बाद स्थिति आती है, समाचारों को पूल में डालने की। यानी समाचार लिख कर पूल (या हिन्दी में कहें समाचार सरोवर) में रख दिए जाते हैं। यहां से समाचार वाचक को उस बुलेटिन में प्रसारित किए जाने वाले समाचार, एक पंच बना कर दे दिए जाते हैं।

पूल एक तरह से समाचारों का भण्डारण—घर होता है। पूल प्रायः दो हिस्सों में होता है—पहला हिस्सा देशी समाचारों के लिए, जबकि दूसरे हिस्से में विदेश के समाचार होते हैं। विदेशी समाचारों के साथ पहले खेलकूद सम्बंधी समाचार भी हुआ करते थे। अब इन समाचारों के लिए अलग पूल की व्यवस्था है। यह व्यवस्था रेडियो के व्यवस्थापक पर निर्भर करता है कि कितना पूल बनाया जाये। हर विधा की खबर को अलग—अलग पूल में सुविधानुसार रखा जा सकता है। समाचार पूल सुबह, दिन, शाम और रात—चार हिस्सों में बंटे होते हैं। इन्हीं के अनुसार इनको क्रमशः मॉर्निंग पूल, डे—पूल, ईवनिंग पूल कहा जाता है।

— संसद सत्र के दौरान एक पूल अलग से बना दिया जाता है। इसमें संसद की तमाम खबरों को डाल दिया जाता है। सुविधानुसार संपादक खबरें निकाल लेते हैं।

रेडियो के समाचार—प्रभाग के प्रायः वरिष्ठ संपादक ही सुबह के आठ या सवा आठ के समाचार—बुलेटिन को तैयार करते हैं। शाम को मुख्य बुलेटिन आठ पैंतालीस बजे हिन्दी में और नौ बजे अंग्रेजी में प्रसारित होता है। इन बुलेटिनों को भी अनुभवी वरिष्ठ संपादक तैयार करते हैं। सहयोगी संपादकों के लिए अपने सुयोग्य, अनुभवी और वरिष्ठ संपादकों का कार्य एक अनुकरणीय आदर्श होता है। इसलिए वरिष्ठ संपादक बहुत जिम्मेदारी से अपना काम करते हैं। समाचार संपादक कहीं भी हों प्रसारित होने वाले समाचार बुलेटिनों को बहुत ध्यान से सुनता है। यदि किन्हीं कारणों से यह सम्भव नहीं हो पाता है तो वह उन बुलेटिनों को पढ़ता है, जो उनके पहले के ड्‌यूटी में प्रसारित हुए थे। ड्‌यूटी पर आते ही सभी समाचार संपादक सबसे पहले सर्विस रिपोर्ट पढ़ता है। यह रिपोर्ट प्रत्येक प्रभारी संपादक (इंचार्ज) अपनी ड्‌यूटी पूरी करने के बाद अगली शिफ्‌ट में आने वाले संपादक के लिए लिख कर छोड़ जाता है। इसमें समाचार से संबंधित सभी महत्वपूर्ण बातें लिखी होती हैं, जो आगामी ड्‌यूटी में संपादक को करनी है। इसी में उन निर्देशों की भी चर्चा होती है, जो उच्च अधिकारियों द्वारा दिए गए हैं। इससे पता चल जाता है कि संपादक को अपनी ड्‌यूटी में किन विशेष/बातों का ध्यान रखना है, क्या—क्या करना है और क्या नहीं करना है। कहने का मतलब संपादक के लिए दिशा—निर्देशक होता है।

संपादक सर्विस रिपोर्ट पढ़ने के बाद, पूल की खबरों को पढ़ता है। उदाहरण के लिए जो संपादक सुबह आठ बजे या सवा आठ बजे का बुलेटिन करता है, उसे शाम के सारे पूल की खबरों को पढ़ने होते हैं। संपादक को देखना होता है कि कोई महत्वपूर्ण समाचार शाम को छूट तो नहीं गया। इसी तरह संपादक को रात्रि पूल की खबरों को पढ़ना होता है। मॉर्निंग पूल तो संपादक के सामने आते ही रहते हैं। संपादक एक कागज पर लिखता जाता है कि उसे कौन—सी क्रम संख्या का कौन—सा समाचार ईवनिंग पूल से लेना है और कौन—सा समाचार नाइट पूल से। इसी तरह मॉर्निंग पूल को देखते हुए वह उसमें से अपने उपयोग के लिए उचित समाचारों का चयन करता जाता है।

पूल से उपयोगी समाचार चुनने के बाद संपादक बुलेटिन की आवश्यकता के अनुसार समाचार को सुधार कर दोबारा लिखता है। समाचार को ताजा बनाता है ताकि श्रोताओं को समाचार बासी न लगे। समाचार के स्वरूप में काट—छांट करता है। एक अच्छा संपादक समाचारों को बोल कर पढ़ता है और फिर लिखता है ताकि कहीं से वह फंसे नहीं। इससे यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि किसी भी समाचार—बुलेटिन की जीवन्तता, सफलता और प्रभावपूर्णता संपादक की प्रतिभा, कुशलता, अनुभव और क्षमता पर निर्भर करती है।

जब समाचारों के हेडलाइंस चुन लिए जाते हैं, तो प्रसारण के लिए इन हेडलाइंस में से प्रभारी संपादक और संपादकीय विभाग के अधिकारी परामर्श से यह तय करते है कि कौन—से समाचार को सबसे पहले लीड यानी मुख्य समाचार के रूप में दिया जाये। समाचार के महत्व को देखते हुए समाचार—हेडलाइंस का क्रम निर्धारित किया जाता है।

—हेडलाइंस (समाचार के शुरू होने के पहले)

—बुलेटिन में जाने वाले समाचार

—विराम या ब्रेक।

—समाचार

—हेडलाइंस (समाचार के समाप्त होने के बाद दोहरावं)

रेडियो पर प्रायः 15 मिनट का समाचार बुलेटिन सबसे बड़ा होता है। इस बड़े बुलेटिन में दो विराम होते है। इससे छोटा बुलेटिन 10 मिनट का होता है, जिसमें एक विराम होता है। जबकि सबसे छोटे पांच मिनट के बुलेटिन में कोई विराम नहीं होता। अतः स्पष्ट है कि हर विराम पांच मिनट के अन्तर से रखा जाता है। विराम से दो लाभ होते है—एक तो यह कि, समाचार—वाचक को थोड़ा आराम मिल जाता है। दूसरा यह कि, संपादक हर विराम के बाद नए क्रम से समाचार दे सकता है। हालांकि दोपहर में समाचार प्रसारण की अवधि आधे घण्टे की होती है। इसमें कई विराम होते है। विराम के दौरान विज्ञापन या फिर जनहित में विचार/ संदेशों का प्रसारण किया जाता है। विराम के लिए प्रायः तीन प्रकार की अभ्यिुक्तियों का प्रयोग किया जाता है जैसे—

.........यह आकाशवाणी है,

.........और ये समाचार आप आकाशवाणी से सुन रहे हैं,

......... ये समाचार आकाशवाणी से प्रसारित किए जा रहे हैं

बुलेटिन में प्रसारित होने वाले समाचारों के क्रम पर विचार करना जरूरी है। रेडियो से प्रसारित किए जाने वाले समाचारों और समाचार—पत्रों में प्रकाशित होने वाले समाचारों में न केवल उनकी संरचना और उनके लेखन के स्तर पर अन्तर होता है, बल्कि उनके क्रम में भी अन्तर रहता है। रेडियो में संक्षेप में अधिक से अधिक समाचार दिए जाते हैं। इसलिए उनका क्रम—निर्धारण भी उसी हिसाब से किया जाता है। समाचार—पत्रों में प्रायः प्रथम पृष्ठ पर ही सबसे जरूरी समाचार दिए जाते हैं। यह समाचार किसी भी तरह के होते है। देश— विदेश, दुर्घटना, अपराध, विकास, या सांस्कृतिक जगत की। हर तरह के खबरों को समायोजित किया जाता है। ये सभी एक साथ एक पृष्ठ पर एक ही स्थान पा सकते हैं। पूरा समाचार पहले पृष्ठ पर ही समाप्त न हो, तो उसे किसी अन्य पृष्ठ पर किसी भी कॉलम में डाल दिया जाता है। जबकि रेडियो बुलेटिन में यह कतई सम्भव नहीं है। रेडियो में देश के प्रमुख समाचार एक क्रम में होते हैं। कोई अंतर्राष्ट्रीय समाचार यदि व्यापक हित का है और उसका सम्बंध हमारे देश एवं समाज से है, तो उसे पहले दिया जा सकता है। अपने देश का समाचार देते समय किसी ऐसे समाचार से उसे जोड़ा दिया जाता है, जो विदेश और देश को परस्पर जोड़ते हो। समाचार की श्रृंखला टूटनी या बिखरनी नहीं चाहिए। इसका खयाल संपादक को रखना पड़ता है।

समाचार—बुलेटिन में सबसे पहले हेडलाइंस यानी मुख्य समाचार दी जाती है। यह मुख्य समाचार आगे चल कर जब विस्तारपूर्वक पढ़े जाते हैं, तो उनका क्रम प्रायः वही रखा जाता है। उनके बीच में कम महत्व के समाचार इस तरह समायोजित किये जाते हैं ताकि समाचार—श्रृंखला से जोड़ या तोड़ महसूस नहीं हो। पांच मिनट के समाचार बुलेटिन में हेडलाइंस देने का प्रचलन नहीं है। जबकि दस मिनट के बुलेटिन में चार हेडलाइंस और पन्द्रह मिनट के बुलेटिन में पांच से छह हेडलाइंस दी जाती हैं। बुलेटिन के अन्त में मुख्य समाचारों को दोहराया जाता है।

हेडलाइंस कैसी हों ?

यह ध्यान देने वाली बात है। इसे लिखते समय हमेशा खबर को जेहन में रखना चाहिये। एक हेडलाइन एक पूरा वाक्य हो। यह सबसे बेहतर होता है। अधूरे वाक्य ठीक नहीं रहते। यह श्रोताओं के समक्ष भ्रम की स्थिति पैदा करते है। हेडलाइंस में भारी भरकम शब्दों से बचना चाहिये। हेडलाइंस का स्वरूप रेखा चित्र की तरह हो जो एक नजर में स्पष्ट हो जाये। बात समझ में आसानी से आ जाये। हेडलाइंस लिखना एक कला है। हालांकि समाचार पत्रों में कुछ भी चल जाता है। कई बार वहां यह कौशल, एक कला बन जाती है। लेकिन रेडियो समाचारों में यह परिपाटी नहीं है। श्रोता को बात कुछ समझ में नहीं आने से स्थिति गंभीर हो जाती है। इससे यथासम्भव बचना चाहिए। क्योंकि अखबार में हेडलाइंस को बार—बार पढ़ कर समझने का प्रयास किया जा सकता है, लेकिन रेडियो समाचार के साथ यह विकल्प नहीं है।

समाचारों का क्रम लगाते समय हेडलाइंस का ध्यान रखना होता है। इसके लिए समय—सीमा का भी ध्यान रखना होता है। ऐसा कभी नहीं होना चाहिए कि मुख्य समाचारों में जो हेडलाइंस दे दी गई हैं, उनमें से कोई समाचार छूट जाये।

समाचारों का पंच बनाते समय क्रम पर ध्यान देना चाहिये। यह ध्यान रखना चाहिये कि कुल कितनी हेडलाइंस है। उदाहरण के लिए यदि चार हेडलाइंस हैं, तो पहले विराम से पूर्व दो हेडलाइंस के समाचारों का विवरण हो। इसके बाद दूसरे विराम में दो अन्य हेडलाइंस समाचार को डाल देना चाहिये। इसी तरह हेडलाइंस का कोई समाचार छूटने नहीं पाए। इसका ध्यान सावधानी पूर्वक रखना पड़ता है। ऐसा कभी नहीं करना चाहिये कि चारो हेडलाइंस एक ही पंच में दे दी जाये या विराम से पहले ही ले ली जायें। ऐसा करने में इस बात की सम्भावना अधिक रहती है कि श्रोता हेडलाइन के सारे समाचार सुन लेने के बाद आगे बुलेटिन पर कोई ध्यान नहीं देगा या फिर अपना रेडियो—सेट बन्द कर देगा। अतः यह आवश्यक है कि श्रोता की अभिरूचि और जिज्ञासा बनाये रखने के लिए पूरे बुलेटिन पर संपादक की पकड़ हो और हेडलाइंस समाचारों को इस तरह से जगह दे कि श्रोता समाचार बुलेटिन के अंत अंत तक बंधे रहे।

आमतौर पर बुलेटिन के शुरू में महत्वपूर्ण राजनीतिक ड्रामा और विकास सम्बंधी समाचार दे दिये जाते हैं। अन्त में आर्थिक, शिक्षा, साहित्य, खेल सम्बंधी समाचार रहते हैं और यदि कम समाचार उपलब्ध हों तो लोकरूचि का समाचार डाल दिया जाता है। साथ ही समाचार बुलेटिन के अंत में मौसम की जानकारी देने के बाद हेडलाइंस को समाचार वाचक दोहराता है। यह इसलिये जरूरी है कि यदि किसी श्रोता ने हेडलाइंस के बाद रेडियो सेट को खोला है या विराम के बाद रेडियो सेट को खोला है तो कम से कम हेडलाइंस को तो सुन कर अंदाजा लगा सकता है कि आज के महत्वपूर्ण खबरों में क्या—क्या खास था।

समाचार—संपादक और समाचार—वाचक रेडियो समाचार—बुलेटिनों के निर्माण तथा प्रसारण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण इकाई के तौर पर हैं। इन दोनों के बीच तालमेल का होना बहुत जरूरी है। समाचार—वाचक अगर कोई रचनात्मक सुझाव देता है, तो संपादक को उस पर विचार करना चाहिये। अगर सुझाव पत्रकारिता के दृष्टिकोण से मान्य नहीं हैं, तो उस पर विचार विमर्श कर समाचार—वाचक को तर्क से सन्तुष्ट कर देना चाहिये कि ऐसा करना क्यों सम्भव नहीं है ? कभी—कभी बुलेटिन के प्रसारण के बीच में किसी समाचार विशेष का पुनर्लिखित रूप भी समाचार—वाचक के पास देना पड़ जाता है। इससे समाचार—वाचक को झुंझलाना नहीं चाहिये। उसे इसके लिए हमेशा तैयार रहना चाहिये और समाचार संपादक द्वारा बुलेटिन के बीच में दिये गये नए समाचार को सहर्ष स्वीकार कर पढ़ना चाहिये। संपादक बुलेटिन को बेहतर और अच्छा बनाने के लिए ऐसा करता है। समाचार छूटे नहीं इस बात पर हमेशा उसकी नजर रहती है।

समाचार वाचक को समाचार बुलेटिन के बीच समाचार को स्वीकार करना उसकी चुनौती होती है। हालांकि यह हमेशा नहीं होता है। खास खबर आने पर ही संपादक द्वारा रनिंग बुलेटिन में समाचार दिया जाता है। समाचार बुलेटिन की सफलता—असफलता समाचार—संपादक और समाचार—वाचक के परस्पर समझदारी और सहयोग पर ही निर्भर है। एक कुशल समाचार—संपादक ,समाचार—वाचक के उच्चारण को अच्छी तरह से जानता है। इसलिए वह उसके उच्चारण के अनुकूल ही शब्दों का चयन भी करता है। ताकि समाचार—वाचक को समाचार पढ़ते समय कोई कठिनाई नहीं हो। यह भी अच्छी स्थिति है कि सभी भाषाओं के समाचार संपादक परस्पर सम्पर्क में रहते हैं। इससे उन्हें सबको अच्छा काम करने में परस्पर सहयोग मिलता है। भाषा, तथ्य और उच्चारण पर विचार कर लेने से सभी समाचार—बुलेटिन बेहतर बन जाते हैं।

एक बात और ध्यान देने योग्य है। समाचार सपादक को चाहिए कि वह हमेशा बुलेटिन की आवश्यक समय सीमा से अधिक कुछ और समाचार तैयार रखे, जो कुछ कम महत्व के हाें। कभी कभी कोई समाचार वाचक तय सीमा के पहले ही बुलेटिन को पढ़ लेते हैं ऐसे में समाचार बुलेटिन के लिए निर्धारित समय बच जाता है। ऐसे में पहले से तैयार कुछ समाचाराें को बचे हुए समय में पढ़ा जा सकता है। अलग—अलग समाचार—वाचकों के समाचार—वाचन की गति में थोड़ा—बहुत अन्तर होना स्वाभाविक है। कुछ लोग थोड़ा जल्दी—जल्दी समाचार पढ़ते हैं तो कुछ अपेक्षाकृत धीमी गति से। इससे समय का अन्तर हो जाता है और समय बच जाता है। समय बचने पर ये अतिरिक्त समाचार काम आ जाते हैं।

इसी तरह कभी—कभी जब समाचार—बुलेटिन प्रसारित हो रहा होता है और उसी बीच कोई अत्यन्त महत्वपूर्ण समाचार मिल जाता है, जिसे तुरन्त देना अनिवार्य होता है। ऐसे में समाचार संंपादक उसे तुरन्त तैयार करके समाचार—वाचक के पास पहुंचा देता है। रेडियो की भाषा में ऐसे समाचारों को फ्‌लैश कहा जाता है। ऐसे फ्‌लैश समाचार को समाचार—वाचक बुलेटिन में सम्मिलित कर लेता है और इस रूप में पढ़ता है—

....... अभी—अभी समाचार मिला है....

....... अभी—अभी प्राप्त समाचार के अनुसार....

....... ताजा खबर के अनुसार....

ऐसे में स्वाभाविक है कि एक समाचार के बढ़ जाने से पहले से लिखा कोई एक समाचार छोड़ना पड़ेगा। इस छूटे हुए समाचार को कॉपी में से काट देना चाहिये और उस पर लिख देना चाहिए कि यह समाचार प्रसारित नहीं हुआ। इसका लाभ यह होता है कि अगले बुलेटिन के लिए ड्‌यूटी पर आए संपादक को पता चल जाता है और वह उस छूटे हुए समाचार को अपने बुलेटिन में ले लेता है।

समाचार—बुलेटिन की तैयारी और प्रसारण प्रक्रिया को सहज ढंग से इस तरह से समझा जा सकता है—

रेडियो समाचार बुलेटिन के 10 मिनट के समाचार बुलेटिन को मानक मानते हुए किसी भी रेडियो—समाचार की संरचना संक्षेप में इस प्रकार की जा सकती है—

—ेप्रसारण(उद्‌घोषणा) —10 सैकण्ड —10 से 15 शब्द

े —समाचार (प्रमुख समाचार) हेडलाइंस — 50 सैकण्ड —100 से 110 शब्द

—समाचारों का मुख्य विवरण —8 मिनट 20 सैकण्ड—1000 से

1100 शब्द

े — (प्रमुख समाचार) हेडलाइंस की पुनरावृति —30 सेैकण्ड 80 से 90

शब्द

—ेसमापन (उद्‌घोषणा) — 10 सैकण्ड 10 से 15 शब्द

( इसके लिए आगे दिये गये समाचार बुलेटिन के नमूने का आकलन करें)।

इस तरह से देखा जाये तो 10 मिनट के बुलेटिन में लगभग 1100 से 1300 शब्दों में समाचार प्रसारित किए जाते हैं। एक समाचार प्रायः 20 या 30 शब्दों का होता है। इसी शब्द—सीमा में उस समाचार से सम्बद्ध क्या, क्यों, कहॉं, कब, कौन और कैसे— आदि प्रश्नों का समाधान अति संक्षेप में कर देना होता है।

वस्तुतः अच्छा समाचार—बुलेटिन तैयार करना एक कला है। इस कला में वही तीव्र बुद्धिवाला पत्रकार सफल हो सकता है, जिसके पास बेहतर अनुभव हो, अभ्यास हो, साथ ही बेहतर प्रशिक्षण प्राप्त हो।

रेडियो—समाचार की भाषा के कुछ ऐसे उदाहरण पढ़ कर देखें, जो रेडियो समाचारों को अरूचिकर, अस्पष्ट और दोषपूर्ण बना देते हैं। हमें हिन्दी की प्रकृति का ध्यान रखते हुए ही समाचार लिखने चाहिये। कई बार अनुवाद की गड़बड़ी से ऐसी अशुद्धियां—अस्पष्टता दिख जाती हैं। देखें समाचार—

प्रसारित समाचार—

(एक)

—प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इस बात पर जोर देकर कहा कि सरकार ऐसा कुछ नहीं कर रही है जिससे मामले को दबाया जा सकें

इसे रेडियो के लिए ऐसा लिखा होना चाहिये—

—प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने जोर देकर कहा कि सरकार मामले को दबाने की कोई कोशिश नहीं कर रही है।

(दो)

—बहस शुरू करने वाले भारतीय जनता पार्टी के नरेश चाहते थे कि दवा घोटाला जांच में दखलंदाजी के कारण श्री महंत के विरूद्ध कार्रवाई की जाए।

इसे रेडियो के लिए ऐसा लिखा होना चाहिये—

—बहस की शुरूआत भारतीय जनता पार्टी के नरेश ने की। वे चाहते थे कि दवा घोटाला जांच में दखलंदाजी के कारण श्री महंत के विरूद्ध कार्रवाई की जाए।

(तीन)

— इस राशि को उन्होंने दंगा पीड़ितों के कल्याण के लिए दी है।

इसे रेडियो के लिए ऐसा लिखा होना चाहिये—

—यह राशि उन्होंने दंगा पीड़ितों के कल्याण के लिए प्रदान की है।

समाचार आधारित कार्यक्रम : लेखन और निर्माण

रेडियो पर समाचार बुलेटिन के अलावा समाचार आधारित कई कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। समाचार आधारित कार्यक्रमों में ध्वनिचित्र, परिक्रमा आदि नामों से रेडियो प्रसारण संस्थाएं कार्यक्रम बनाती है। यह समाचार पत्रिका के रूप में होती हैं। इन्हें न्यूजरील कहा जाता है। न्यूज (समाचारों) को एक रील (लगातार क्रम) में प्रस्तुत करना, न्यूजरील है। यह प्रतिदिन और साप्ताहिक स्वरूप में हो सकता है। इसके लेखन के अपने—अपने तरीके हैं। इसमें भी समाचार लेखन की तरह हर पहलू पर ध्यान दिया जाता है। समाचार आधारित कार्यक्रम यानी न्यूजरील फीचर फिल्म की तरह है जिसमें ड्रामा की पूरी गुंजाइश रहती है।

न्यूजरील

ेन्यूजरील समाचार—प्रभाग की प्रस्तुति है। देश से बाहर कई रेडियो प्रसारण संस्थाओं में इसे प्रतिदिन प्रसारित किया जाता है। कहीं सप्ताह में एक—दो या चार बार । यह प्रसारण संस्था पर निर्भर करता है। जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है न्यूजरील यानी न्यूज और रील। न्यूज यानी समाचार और रील यानी एक आधार पर लिपटी कई चीजें। न्यूजरील में एक आधार यानी कार्यक्रम में कई समाचार लगातार क्रम में पिरोये रहते हैं। न्यूजरील को जीवंत बनाने के लिए इसमें समाचार के साथ—साथ उससे संबंधित साउंड बाइट्‌स दिये जाते हैं। प्रयास होता है कि हर समाचार में बाइट्‌स हाें।

ेन्यूजरील है क्या ? इसका सामान्य अर्थ है, नए—नए समाचारों के अंशों को या समाचार—सामग्री को क्रमवार एवं रोचक ढंग से श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करना। वास्तव में इस कार्यक्रम में पिछले सप्ताह अथवा पिछले दो—तीन दिनों के दरम्यान घटी प्रमुख घटनाओं का संक्षिप्त सारांश प्रस्तुत किया जाता है। इसे शब्दों से कलरफुल बनाया जाता है। समाचार बुलेटिन में केवल शुरुआत व अंत में सिंगनेचर ट्‌यून बजाया जाता है ताकि श्रोता समझ जाये कि समाचार प्रसारित होने जा रहा है। वहीं समाचार आधारित कार्यक्रमों मसलन न्यूजरील आदि में भी सिंगनेचर ट्‌यून का प्रयोग किया जाता है जो समाचार के सिंगनेचर ट्‌यून से बिलकुल अलग होते हैं।

ेसामान्यतः न्यूजरील कार्यक्रम की प्रसारण—अवधि 10 से 15 मिनट के बीच की होती है। इसलिए इसमें समाचारों को विस्तारपूर्वक देना सम्भव नहीं होता है। अतः बहुत छोटे—छोटे रूप में किसी घटना की जानकारी क्रम में दी जाती है।

ेघटना से जुड़े व्यक्ति या व्यक्तियों का स्वर भी इसमें सम्मिलित किया जाता है।

न्यूजरील—लेखन—निर्माण के लिए जरूरी बातें

समाचार—लेखन और निर्माण की तरह ही न्यूजरील—लेखन और उसके निर्माण में भी नयेपन पर ध्यान रखना पड़ता है। इसे उबाऊ व बासी नहीं बनाना चाहिये। इसमें भी नए—नए समाचारों के अनुरूप नई घटनाओं को आधार बनाया जाता है।

न्यूजरील में समाचार को बहुत ही संक्षेप में न देकर उसे थोड़ा विश्लेषण के साथ तथ्यपरक ढंग से दिया जाना चाहिये।

यह एक तरह से कमेंटरीनुमा होता है। न्यूजरील लेखक अपनी ओर से एक तरह से कमेंटरी लिखता है। वह समाचार की मूल आत्मा को श्रोताओं के समक्ष रखने का प्रयास करता है। इसलिए न्यूजरील लेखक को चाहिए कि समाचार के महत्व को समझे, उससे जुड़े लोगों की भावनाओं तथा विचारों को समझे, समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करे, आवश्यक आंकड़ों की जानकारी प्राप्त करे और रोचकता से पेश करे।

न्यूजरील में समाचार या घटना के प्रमुख अंशों को समेटा जाता है। इसलिए संपादक को ध्यान देना चाहिए कि समाचार के किस अंश को देना हितकर रहेगा, किस को नहीं। हमेशा ध्यान रहे कि समाचार की मूल आत्मा नहीं मरे। बेकार की सामग्री देने से बचना चाहिये।

न्यूजरील की सामग्री पूरी तरह से ठोस होनी चाहिए। खानापूर्ति के लिए जो कुछ भी मिला, उसी से रील बना लेना उचित नहीं है। यह पत्रकारिता के दृष्टिकोण से ठीक नहीं है। इससे प्रसारण भी प्रभावित होता है। सार्थकता किसी भी रेडियो—प्रसारण की सफलता का अनिवार्य अंग होता है और इस पर अमल करना पहली प्राथमिकता होती है।

न्यूजरील में किसी घटना या समाचार से संबंधित कार्यक्रम—समारोह आदि का विवरण होता है। इसके लिए न्यूजरील लेखन में लगे लोग कार्यक्रम—समारोह की रिकार्डिंग करते है। और फिर अपने काम की बाइट्‌स को समाचार आधारित कार्यक्रम के लिए संपादित करते हैं। समाचारों की तरह यह सामग्री किसी समाचार सरोवर (पूल) में तैयार नहीं मिलती है। समाचार बिना बाइट्‌स के हो सकता है। लेकिन समाचार आधारित कार्यक्रम यानी न्यूजरील जैसे कार्यक्रमों की आत्मा बाइट्‌स होती है। इसलिए समाचार आधारित कार्यक्रम को बनाने वाले संपादक बाइट्‌स संग्रह पर विशेष जोर देता है।

समाचार आधारित कार्यक्रम यानी न्यूजरील में किसी मंत्री, अधिकारी या पदासीन व्यक्ति के भाषण के अंश की अधिकता नहीं होनी चाहिये। साथ ही बार—बार दोहराव भी नहीं होना चाहिये। इसमें जन— साधारण की बाइट्‌स का भी समावेश होना चाहिए। मसलन आम बजट या किसी खास मुद्‌दे पर जनता की प्रतिक्रिया को लेना चाहिये। क्योंकि रेडियो केवल अतिविशिष्ट या विशिष्ट व्यक्तियों का ही माध्यम नहीं है, यह जन—साधारण का माध्यम है।

देखते हैं समाचार आधारित कार्यक्रम की एक झलक—

कार्यक्रम — समाचार ध्वनि चित्र

संपादक

प्रस्तुतकर्ता

वाचक

अवधि—15 मिनट(सप्ताह में एक दिन प्रसारित)

ध्वनि—अंकन कर्ता

(वाचक द्वारा पढ़ा जाता है)................(रेडियो स्टेशन का नाम पटना, रांची, भोपाल ).............से प्रस्तुत है समाचार ध्वनि—चित्र.........इस अंक में........

(हेडलाइंस)

—अमौसी बहियार नरसंहार के मृतकों के आश्रितों को मिलेगा

डेढ़—डेढ़ लाख रुपये का मुआवजा।

—हर्षोल्लासपूर्वक मनाई गई राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती। नरेगा का नाम हुआ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी

अधिनियम।

—किसान रथ पहुंचा किसानों के बीच।

—मानवरहित रेलवे फाटकों पर विशेष सावधानी की जरूरत।

—मजदूरोें के शोषण को लेकर लोक जनशक्ति पार्टी का धरना।

—और देशरत्न स्व० डा० राजेन्द्र प्रसाद देश के सच्चे सपूत।

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खगड़िया जिले के अलौली थाना क्षेत्र मेें इटरवा पंचायत के अमौसी बहियार में बीते बृहस्पतिवार की रात अपराधियों ने सोलह लोगों की हत्या कर दी। प्रदेश के सभी राजनीतिक पार्टियों तथा बुद्धिजीवियों ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घटना की निंदा करते हुए मृतकों के परिजनों को डेढ़—डेढ़ लाख रुपये देने की घोषणा की है।

(साउंड बाइटस— मुख्यमंत्री नीतीश कुमार)

इस बीच राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने घटना की तीव्र भर्त्सना करते हुए अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की है।

(साउंड बाइटस— लालू प्रसाद )

लोकजन शक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास ने घटना को हृदयविदारक बताते हुए परिजनों को दस—दस लाख रुपये तथा सरकारी नौकरी देने की मांग की है।

(साउंड बाइटस— रामविलास )

जबकि घटनास्थल का दौरा करने के बाद उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जायेगा।

(साउंड बाइटस— मोदी )

इस बीच राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव रामकृपाल ने भी घटना की तीव्र भर्त्सना की है।

बीते शुक्रवार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पूरे देश—प्रदेश में हर्षोल्लासपूर्वक मनायी गयी।

(साउंड बाइटस— भजन )

इसी बीच राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम नरेगा का नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम कर दिया गया है। इस बीच प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा है कि पंचायतों को और अधिक जिम्मेदारियां दी जायेंगी।

(साउंड बाइटस— प्रधानमंत्री डॉ.सिंह )

जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि ग्राम सभाओं में कमजोर लोगों की और अधिक भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

(साउंड बाइटस— सोनिया गांधी )

सरकार ने इस समय किसानों को कृषि कार्य से संबंधित योजनाओं की जानकारी देने के लिए प्रदेश में किसान रथ चलाया हुआ है। इस रथ के बारे में बताते हुए कृषि मंत्री रेणु देवी ने कहा ........

(साउंड बाइटस— रेणु देवी )

मानवरहित रेलवे फाटकों पर विशेष सावधानी की जरूरत होती है क्योंकि लापरवाही से दुर्घटना होने की संभावना बढ़ जाती है। रेलवे विभाग के जनसंपर्क पदाधिकारी ने कहा कि मानवरहित रेलवे फाटक पर लापरवाही कानूनन अपराध है।

(साउंड बाइटस— जनसंपर्क पदाधिकारी )

असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की समस्याओं को लेकर लोकजन शक्ति पार्टी ने बीते सोमवार को राजधानी पटना में धरना दिया जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान भी थे।

देशरत्न स्व० डा० राजेन्द्र प्रसाद देश के सच्चे सपूत थे। ये बातें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते दिनों एक कार्यक्रम में कही।

(साउंड बाइटस— मुख्यमंत्री )

इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने उन्हें अद्वितीय व्यक्तित्व बताया।

(साउंड बाइटस— उपमुख्यमंत्री )

जबकि स्व० डा० राजेंद्र प्रसाद की पौत्री तारा सिन्हा ने उनके जीवन को अनुकरणीय बताया।

(साउंड बाइटस— तारा सिन्हा )

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इसके साथ ही आज का समाचार ध्वनि चित्र कार्यक्रम सम्पन्न होता है। यह कार्यक्रम प्रत्येक बुधवार की रात पौने आठ बजे आकाशवाणी पटना के प्रादेशिक समाचार एकांश द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। संपादक—सह—प्रस्तुतकर्ता , वाचिका— और ध्वनि अंकन । ( उद्‌घोषक द्वारा नामों को बोला जाता है।)

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समाचार आधारित कार्यक्रमों में लेखक और संपादक को अपनी कल्पना—शक्ति का भरपूर प्रयोग करना चाहिये। इसे तैयार करते समय, इसमें आवाज देने वाले उद्‌घोषक को ध्यान में रखा जाना चाहिये। इसके स्क्रिप्ट को उद्‌घोषक ही पढ़ते हैं। ज्यादातर समाचार वाचक ही इसमें अपनी आवाज देते है। इसमें रोचकता पैदा करने के लिए दो उद्‌घोषकों का प्रयोग भी किया जा सकता है। आवाज के लिए महिला व पुरूष का चयन किया जाये तो बेहतर होगा।

समाचार आधारित कार्यक्रम यानी न्यूजरील जनता के बीच से ली गई सामग्री पर आधारित कार्यक्रम है। आम जनता के लिए है और जिसकी जड़ें भी आम जनता के बीच में ही है। उसमें रोचकता और तथ्यात्मकता दोनों का कलात्मक सन्तुलन होता है।

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समाचार की भाषा

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खबरें जो अखबारों में छपती हैं, रेडियो पर सुनी जाती हैं या फिर टी.वी. पर देखी—सुनी जाती हैं, उनमें मौलिक भिन्नता है। रेडियो पर प्रसारित होने वाली खबरें मात्र कान (श्रव्य) को ध्यान में रख कर तैयार की जाती हैं, न कि आंखों (दृश्य) और स्याही से पन्नों पर उकरे शब्दों को ध्यान में रखकर। पिं्रट मीडिया की खबरों में सुविधा रहती है कि पाठक खबरों को दोबारा—तिबारा पढ़ ले, बीच से पढ़े या अपनी मर्जी मुताबिक जैसे और जितनी बार चाहे पढ़ ले। लेकिन रेडियो की खबरों में यह सुविधा नहीं होती है। यदि किसी समाचार का अंश सुनने में छूट जाय तो उसे दोबारा सुना या समझा नहीं जा सकता।

इसी तरह प्रयोग में आने वाले शब्दों, मुहावरों और प्रयुक्त भाषा की दृष्टि से भी अंतर है। प्रिंट खबरों में शब्दों के अर्थ जानने के लिए शब्दकोष देखे जा सकते हैं, भाषा को समझा जा सकता है। लेकिन रेडियो पर प्रसारित समाचार के लिए ऐसी सुविधा नहीं है। अबूझ या कठिन शब्दों या फिर उलझी या कठिन भाषा होने की स्थिति में श्रोता रेडियो नहीं सुनना चाहेगा।

रेडियो समाचार की सफलता के लिए भाषा की ध्वनिगत विशेषताओं का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाता है। जबकि प्रिंट में अखबारों पर उकरे हुए शब्द और चैनलों में दृश्य महत्वपूर्ण होते हैं। रेडियो समाचार प्रसारण के लिए शब्द ही ध्वनि है और दृश्य भी। इसलिए ध्वनि पर विशेष ध्यान दिया जाता है। रेडियो की भाषा जन यानी जनता की भाषा है और जनता की भाषा को सहजता से पिरो कर श्रोताओं के सामने परोसा जाता है। हालांकि यह काम जितना देखने में आसान लगता है वह है नहीं। सहज चीजों पर काम करना बहुत ही मुश्किल होता है।

पत्रकारिता की अपनी भाषा होती है, जिसके दम पर वह अपनी पहचान बनाती है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भाषा अलग—अलग होती है। इस पर नजर डालने से प्रकाशन और प्रसारण की भाषा में व्यापक अंतर का पता चलता है। खासकर, प्रसारण मीडिया में सबसे पुराने माध्यम रेडियो की भाषा काफी सरल होती है। सरल ही नहीं बल्कि कह सकते हैं कि रेडियो की भाषा जनता यानी अंतिम कतार में खड़े उस व्यक्ति की है जो आम है और उसकी बोलचाल की भाषा को केन्द्र में रख कर प्रसारण किया जाता है। वह पढ़ा—लिखा भी है और अनपढ़ भी। रेडियो अपने प्रसारण में भारी भरकम लंबे शब्दों से बचता है। जैसे, प्रकाशनार्थ, अंततोगत्वा, किंकर्तव्यविमूढ़, प्रत्युत्पन्नमति, द्वंद्वात्मक, अन्योन्याश्रित, आदि कई ऐसेे शब्द हैं जिससे प्रसारण माध्यम खासकर रेडियो अपने प्रसारण में करने से बचने की कोशिश करता हैं। साहित्यिक हिन्दी या कोर्स में चलने वाली हिन्दी, फिर हिन्दी की पुरानी किताबों में मिलने वाले भारी भरकम हिन्दी के शब्दों पाणिग्रहण, यथोचित, कतिपय, आदि के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है।

रेडियो समाचार सुना जाता है। अतः संक्षिप्त शब्दों के प्रयोग पर खासतौर से ध्यान दिया जाता है। कुछ नाम जो संक्षिप्त में दैनिक जीवन में खासे प्रचलित हैं— मसलन केंद्रिय रिजर्व पुलिस बल, संयुक्त राष्ट्रसंघ , विष्व स्वास्थ्य संगठन, आदि संस्थाओं के संक्षिप्त नाम क्रमषः सीआरपीएफ, यू. एन., डब्लयू. एच. ओ. आम जीवन में प्रचलित हैं। लेकिन रेडियो के समाचार लेखन में हम यह भी याद रखते हैं कि रेडियो प्रसारण को शायद कुछ लोग पहली बार सुन रहे हों, जो देश—दुनिया की खबरों से वाकिफ नहीं है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि संस्थाओं आदि के संक्षिप्त रूप के साथ उनके पूरे नाम का इस्तेमाल किया जाना चाहिये।

कई बार जल्दबाजी में या नये तरीके से न सोच पाने के करण घिसे—पिटे शब्दों, मुहावरों या वाक्यों का सहारा संवाददाता या संपादक को लेना पड़ता है। लेकिन इससे रेडियो की भाषा बोझिल और बासी हो जाती है। हालांकि रेडियो में कई शब्द ऐसे हैं, जिन्हें नहींं लिया जाता हैं। ज्ञातव्य है, ध्यातव्य है, मद्‌देनजर, उल्लेखनीय है या गौरतलब है ऐसे सभी प्रयोग बौद्धिक भाषा लिखे जाने की गलतफहमी पैदा करते हैं, साथ ही ये गैर जरूरी भी हैं। इन शब्दों को नहीं दे कर भी काम चलाया जा सकता है। संपादक की कोशिश होनी चाहिये कि आवश्यकता नहीं हो तो (उन) शब्दों को नजरअंदाज कर दें।

देखें इस खबर को —

दारोगा (गलत तरीका )

चुनाव आचार संहिता के मद्‌देनजर नव चयनित छह सौ पैंसठ दारोगा कल अपना पदभार ग्रहण नहीं कर सकेंगे। अपर पुलिस महानिदेशक नीलमणि ने बताया कि निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार इन दारोगाओं को कल योगदान देना था। इसे फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग से इस सिलसिले में अनुमति मांगी गई है। आयोग का निर्देश मिलने के बाद दारोगा बहाली की तिथि की घोषणा की जायेगी। गौरतलब है कि दो हजार एक सौ नव चयनित दारोगा में से एक हजार चार सौ पैंतीस ने पिछले ग्यारह फरवरी को अपना कार्यभार ग्रहण कर लिया था। बाकी बचे दारोगा को कल योगदान देना था।

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(इस खबर को इस तरह से रख सकते हैं—जो सही तरीका है।)

दारोगा

चुनाव आचार संहिता लागू होने से नव चयनित छह सौ पैंसठ दारोगा कल अपना पदभार ग्रहण नहीं कर सकेंगे। अपर पुलिस महानिदेशक नीलमणि ने बताया कि निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार इन दारोगाओं को कल योगदान देना था। इसे फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग से इस सिलसिले में अनुमति मांगी गई है। आयोग का निर्देश मिलने के बाद दारोगा बहाली की तिथि की घोषणा की जायेगी। दो हजार एक सौ नव चयनित दारोगा में से एक हजार चार सौ पैंतीस ने पिछले ग्यारह फरवरी को अपना कार्यभार ग्रहण कर लिया था। बाकी बचे दारोगा को कल योगदान देना था।

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(यहां मद्‌देनजर की जगह—लागू होने से और गौरतलब है कि को हटा देने से भी बात बन जाती है।)

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एक और शब्द है द्वारा इसे रेडियो और अखबार दोनों में धड़ल्ले से प्रयोग किया जाता है। लेकिन यह भी भाषाई तौर पर ठीक नहीं है। कई संपादक इससे परहेज करते हैं। हालांकि कई संपादक मद्‌देनजर को अपने बुलेटिन में देते हैं। देखा जाये तो ये शब्द आम बातचीत में कभी प्रयोग नहीं होते हैं।

''मुख्यमंत्री द्वारा नई नौकरियां देने की घोषणा की गई है ''।

अगर द्वारा शब्द हटा दिया जाय तो बात सीधे समझ में आ जाती है और कहने में भी आसानी होती है। इसे देखें—

'' मुख्यमंत्री ने नई नौकरियां देने की घोषणा की है ''।

रेडियो की भाषा कोई मापदण्ड नहीं है, बल्कि मंजिल तक पहुंचने का रास्ता है और वह मंजिल है सरकार एवं जनता की बातों को दूसरों तक, अंतिम कतार में खड़े दूर—दराज के लोगों तक पहुंचाना। इसलिए, सही मायने में रेडियो की भाषा ऐसी होनी चाहिए जो बातचीत और आपसी संवाद के आदान—प्रदान की भाषा हो। इसमें ऐसी बातचीत हो जैसी दो दोस्तों के बीच होती है। सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि रेडियो की भाषा को शैक्षणिक या साहित्यिक भाषा बनने से बचाना बेहद जरूरी है।

रेडियो की भाषा बेहद सहज व स्पष्ट होनी चाहिये। रेडियो जो भी कहेगा, वह एक ही बार में कहेगा, यहां दोहराव की गुंजाइश नहीं होती है। इसलिए जो कहें वह साफ—साफ समझ में आनी चाहिये। इसलिए रेडियो के लिए लिखते समय यह ध्यान में रखना जरूरी है कि वाक्य छोटे—छोटे और सीधे—सटीक होंं। जटिल वाक्यों—शब्दों से सदा बचना चाहिये। साथ ही इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि आसान जरूर हो लेकिन गलती नहीं होनी चाहियेे।

भाषा और निष्पक्षता

रेडियो की निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए सही शब्दों का चुनाव बेहद जरूरी है और इसके लिए भाषा पर पकड़ होनी चाहिये। किसी के बारे में कहने से पहले तथ्यों को पूरी ईमानदारी से जांच लेना चाहिये। साथ ही उसके साथ होने वाले शब्द के प्रयोग को भी पत्रकारिता के मापदण्डों पर रखा जाना चाहिये ताकि निष्पक्षता बरकरार रहे।

ज्यादातर पिं्रट मीडिया में किसी मामले में पकड़े गये अपराध या व्यक्ति को सीधे तौर पर आरोपित बता दिया जाता है। जबकि सच यह है कि मामले में पकड़ा गया व्यक्ति आरोपी हो सकता है। लेकिन मुजरिम नहीं।वह अपराधी या व्यक्ति अदालत द्वारा तय किया जाता है कि वह मुजरिम है। ऐसे मामलों में घटना का ब्यौरा देते समय कथित शब्द का इस्तेमाल करना चाहिये।

रेडियो समाचार में नाम से पहले श्री या श्रीमती के प्रयोग से भी बचने की जरूरत है। इसलिए कि अगर आप एक व्यक्ति के नाम के साथ श्री या श्रीमती लगाएं और दूसरे व्यक्ति के नाम के साथ लगाना भूल जाएं तो इसे पक्षपात समझा जा सकता है। बेहतर है कि हर व्यक्ति के पदनाम का इस्तेमाल करें जैसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती, भाजपा नेता नेता लालकृष्ण आडवाणी आदि।

पत्रकार राष्ट्रीयता, पक्ष—विपक्ष और विवादों से अलग हटकर जनता को सच बताने के कर्तव्य का पालन करता है। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पत्रकारिता के धर्म को नुकसान नहीं पहुंचे। हालांकि देशी—विदेशी रेडियो अलग—अलग परिपाटी को अपनाते हैं। बीबीसी रेडियो भारत के श्रोताओं के लिए समाचार को देते समय हमारा देश, हमारी सेना, हमारे नेता जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करता है। इसके पीछे कारण यह है कि बीबीसी रेडियो समाचार विदेशी है। जबकि आकाशवाणी भारत के श्रोताओं के लिए समाचार को देते समय हमारा देश, हमारी सेना, हमारे नेता जैसे शब्दों का प्रयोग कर सकता है। बीबीसी रेडियो की तरह वाइस ऑफ अमेरिका या फिर अन्य विदेशी रेडियो हिन्दी/अॅंग्रेजी/उर्दू सहित अन्य भाषा में समाचार सेवा चलाते हैं। भारत के श्रोताओं के लिए अलग से कार्यक्रम प्रसारित किया जाता हैं।

भारत में विदेशी रेडियो प्रसारण के भाषा को लेकर सवाल उठते रहते हैं। जैसे बीबीसी आतंकवादी की जगह चरमपंथी शब्द का प्रयोग करते हैं, या कश्मीर के मामले में भारत प्रशासित और पाकिस्तान प्रशासित कहा जाता है। इस पर उनका नजरिया होता है कि '' कश्मीर एक विवादास्पद क्षेत्र है और बीबीसी किसी भी विवाद में, किसी एक पक्ष के साथ खड़ी नजर नहीं आना चाहती, फिर, जो एक की नजर में आतंकवादी है, वह दूसरे की नजर में स्वतंत्रता सेनानी या देशभक्त भी हो सकता है। जब दुनिया में किसी भी विषय पर एक राय नहीं है तब बीबीसी के लिए यह और भी जरूरी हो जाता है कि वह किसी एक राय की हिमायत करती दिखाई न दे।''

रेडियो की तकनीकी शब्दावली

कई रेडियो प्रसारण हिंदी व अॅंग्रेेजी के शब्दों से हाथ मिलाने में परहेज नहीं करते है। हालांकि भाषाई तौर पर अलग—अलग प्रसारण होता है। लेकिन हिन्दी वाले ॲंगे्रजी और अंग्रेजी वाले हिन्दी शब्दों को लेने से परहेज नहीं करते है। फिर भी सवाल उठता है कि किस हद तक हिंदी में ॲंग्रेेजी हो या फिर अंग्रेेजी में हिंदी हो। बदलते परिवेश में पत्रकारिता में भी भाषाई घालमेल देखा जा रहा है। हिन्दी के समाचार पत्र हिन्दी के साथ—साथ ॲंगे्रजी शब्दों का भी धड़ल्ले से प्रयोग कर रहे है। एक समय था जब हिन्दी सीखने के लिए अमुक हिन्दी के अखबार को पाठक पढ़ते थे। यही हाल अॅंग्रेजी समाचार पत्रों का था। लेकिन आज ऐसा नहीं है। हिन्दी में ॲंग्रेजी और अंगे्रजी में हिन्दी घुस चुकी है। कह सकते हैं कि भाषाई टूटन पत्रकारिता में पैठ बना चुका है। यही हाल रेडियो पत्रकारिता के साथ है। लेकिन जहां तक आकाशवाणी के समाचारों का सवाल है अभी भी यह हिन्दी में अॅंग्रेजी और ॲंगे्रजी में हिन्दी के घालमेल से अपने को बचाये हुए है।

हालांकि आधुनिक हिंदी में ॲंग्रेजी के बहुत से ऐसे शब्द इस तरह से घुल—मिल गये हैं कि रेडियो पत्रकारिता में इसका प्रयोग होने लगा है। जैसे स्कूल, बस, ट्रक, टिकट आदि। वहीं बेवजह अॅंग्रेजी के शब्द को रेडियो समाचार में ठूंसने का भी कोई अर्थ नहींं है। हिंदी चूंकि एक समृद्ध भाषा है और इसके पास विषाल शब्दकोष है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिन प्रचलित अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कुछ रेडियो प्रसारण करते हैं उन्हें ध्यान देना चाहिये कि रेडियो के श्रोता ज्यादातर ग्रामीण व आम जनता होती है। अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए हिन्दी भाषा में कई विकल्प मौजूद हैं। ऐसे में किसी दूसरी भाषा का अनुसरण या अपनाना अनुचित है। जहां शब्द नहीं मिले वहां उसे जरूरत पड़ने पर ही देना चाहिये।

हालांकि इधर कई तकनीकी और नये शब्दों का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। मसलन लैपटॉप, इंटरनेट, वेबसाइट, मोबाइल फोन या सेलफोन, डिश टी.वी आदि। ये शब्द आज सरकारी व गैर सरकारी प्रयास से गांवों की दहलीज तक पहुंच चुके हैं। शहरी ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में भी इनका इस्तेमाल हो रहा है यह हमारी भाषा का हिस्सा भी बन चुकी है। बहुत कोशिशें हुईं कि इनके हिंदी अनुवाद बनाए जाये। लेकिन इनके प्रचलन में कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी। जैसे इंटरनेट का हिन्दी '' अंतरजाल '' बनाया गया, लेकिन यह शब्द हिन्दी में इंटरनेट की जगह नहीं ले पाया। हिन्दी में इंटरनेट शब्द का अधिकांशतः प्रयोग हो रहा है। इसलिए रेडियो समाचार में कई प्रसारक सर्वमान्य और प्रचलित तकनीकी शब्दों का अनुवाद नहीं करते है। हालांकि बोलचाल की भाषा के नाम पर कुछ ऐसे शब्दों का भी प्रयोग/ प्रसारण होने लगा है जो अशिक्षा नहीं तो भाषा को लेकर गलतफहमी पैदा कर जाता है।

उच्चारण का ख्याल

मीडिया का काम भले ही भाषा सिखाने का नहीं है। लेकिन मीडिया, लाखों—करोड़ों लोगों के लिए मार्गदर्शक का काम करता है। किसी शब्द का ठीक—ठीक उच्चारण करना लोगों को सिखाता है। इसके लिए जोर—जोर से बोल कर पढ़ना और अभ्यास करना बहुत जरूरी है। इससे ध्वनि साफ सुनाई पड़ती है। पत्रकारिता के बारे में कहा जाता है कि यह जल्दी में किया गया काम है। लेकिन रेडियो में जल्दबाजी से काम बिगड़ जाता है।

समाचार वाचक अगर सचेत नहीं है और उसका ध्यान कहीं और है तो करीब को गरीब, युद्ध को युद, खुफिया को खूफिया, मुख्यमंत्री को मुकमंत्री, प्रतिक्रिया को प्रर्तिकिरया, न्यायालय को न्यालय पढ़ जाते है। जो श्रोताओं के कानों को खटकता है। वहीं बेवजह नुक्ता का प्रयोग भी नहीं करना चाहिये। शब्द हिन्दी का हो या उर्दू का, बेवजह नुक्ता लगाने से अर्थ का अनर्थ हो जाता है। जैसे फाटक , बेगम , जारी , जबरन , जंग , जुर्रत , जिस्म , फिर , फल आदि में नुक्ता नहीं लगता है। इसी तरह 'स' और 'श', 'ड' और 'र' पर खास ध्यान देना चाहिये। हालांकि मीडिया में इस्तेमाल होने वाले कुछ शब्द ऐसे हैं जो नुक्ते के बिना कानों को चुभते हैं जैसे—खबर , सुर्खी, जरूरत, जरा, अखबार, गलत, गम, जबरदस्ती आदि। जहां नुक्ता का प्रयोग होना है वहां करना चाहिये। लिखने में भले ही नुक्ता छूट जाता हो लेकिन बोलते समय छूटने से सुनने वाले को अच्छा नहीं लगता है। ‘आकाशवाणी' को ‘आकाषवाणी', ‘सड़क' को ‘सरक' पढ़ना उचित नहीं है। इसे तुरंत सुधारने की दिशा में प्रयास होना चाहिये।

देखें कुछ अशुद्ध और शुद्ध शब्दों को—

अशुद्ध शुद्ध

अनाधिकार अनधिकार

जबाबजवाब

राजदूती राजदूत

एक्कीस इक्कीस

पचानवे पंचानवे

आकासवाणी आकाशवाणी

सरक सड़क

रेडियो में संख्या वाचक शब्दों के उच्चारण और बर्तनी में एकरूपता बहुत मायने रखता है। देष के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न बोलियां बोली जाती है। ऐसे में लोगों के उच्चारण और बर्तणी में भी बदलाव देखने को मिलता है। खासकर संख्या सूचक शब्दों में कोई सत्तरह बोलता है तो कोई सत्रह लेकिन रेडियो में ऐसे संख्या वाचक शब्दों के प्रयोग में मानक शब्द को अपनाते हैं। मसलन, एक, दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदह, पन्द्रह, सोलह, सत्रह, अठारह, उन्नीस, बीस, इक्कीस, बाईस, तेईस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्‌ठाईस, उनतीस, तीस, इकतीस, बत्तीस, तैंतीस, चौंतीस, पैंतीस, छत्तीस, सैंतीस, अड़तीस, उनतालीस, चालीस, इकतालीस, बयालीस, तैंतालीस, चवालीस, पैंतालीस, छियालीस, सैंतालीस, अड़तालीस, उनचास, पचास, इक्यावन, बावन, तिरपन, चौवन, पचपन, छप्पन, संतावन, अंठावन, उनसठ, साठ इकसठ, बासठ, तिरसठ, चौंसठ, पैंसठ, छियासठ, सड़सठ, अड़सठ, उनहत्तर, सत्तर, इकहत्तर, बहत्तर, तिहत्तर, चौहत्तर, पचहत्तर, छिहत्तर, सतहत्तर, अठहत्तर, उनासी, अस्सी, इक्यासी, बयासी, तिरासी, चौरासी, पचासी, छियासी, इक्यासी, बयासी, तिरासी, चौरासी, पचासी, छियासी, सतासी, अठासी, नवासी, नब्बे, इक्यानवें, बानवें, तिरानवें, चौरानवें, पंचानवें, छियानवें, संतानवें, अंठानवें, निन्यानवें, सौ।

रेडियो प्रसारण में कई शब्दों के प्रसारण पर अलग—अलग प्रसारण केन्द्रों द्वारा रोक है जैसे बीबीसी अपने समाचार प्रसारण में ‘‘द्वारा'' शब्द का प्रयोग नहीं करता है। जबकि आकाशवाणी के समाचारों में ‘‘द्वारा'' शब्द का प्रयोग किया जाता है। जबकि आकाशवाणी समाचार में कई शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है। मसलन, किन्तु, अपितु, एवं, अन्यथा, यद्यपि, यदि, तथापि। इनकी जगह पर लेकिन, बल्कि, और, नहीं तो, हालांकि, अगर शब्दों का प्रयोग किया जाता है। उपरांत, पश्चात्‌ ,पूर्व, सम्मुख, पुनः की जगह बाद, पहले, सामने, फिर शब्दों का प्रयोग रेडियो प्रसारण के लिए बेहतर माना जाता है। साथ ही ‘उपर्युक्त', निम्नलिखित, निम्नांकित, क्रमशः, अतः, एवं, तथा, आदि शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिये। श्रोता समाचार सुनने के दौरान ‘उपर्युक्त', निम्नलिखित, निम्नांकित के लिए उपर या नीचे तो जा नहीं सकता है। इसी तरह क्रमशः शब्द का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये। प्रिंट मीडिया में ‘यह' और ‘वह' का प्रयोग किया जाता है जबकि रेडियो समाचार में ‘यह' की जगह ‘ये' और ‘वह' की जगह ‘वे' का प्रयोग किया जा है।

कई ऐसे शब्द हैं जो बोलचाल की भाषा में बोले जाते हैं। खासकर अंकाें की गिनती में उच्चारण दोष अक्सर सुनने को मिलता है। बेहतर तरीका है, शब्दकोष की मदद ली जाये। क्योंकि समाचार वाचक द्वारा पढ़ा गया शब्द लाखों—करोड़ाें श्रोताओें तक पहुंचता है।

अच्छे से अच्छा आलेख, गलत उच्चारण या खराब उच्चारण की वजह से कमजोर पड़ सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि कभी कभी तो अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है।

रेडियो न तो अखबार है, न ही टेलीविजन, रेडियो सिर्फ सुना जा सकता है। इसलिए न सिर्फ यह जरूरी है कि रेडियो की भाषा स्पष्ट और सरल होनी चाहिये बल्कि यह भी जरूरी है कि हर शब्द सही तरह से सही उच्चारण के साथ माइक्रोफोन पर बोला जाये। शब्द किसी भी भाषा का हो, अगर आपका उच्चारण सही नहीं होगा, तो सुनने वालों के साथ अन्याय होगा। कई संपादक उर्दू के शब्दों का प्रयोग करते हैं। ऐसे में उन्हेें पहले यह जानना आवश्यक है कि उनमें नुक्ता लगता है या नहीं। कुछ अति उत्साही लोग शायद यह समझते हैं कि किसी भी शब्द में नुक्ता लगा देने भर से, वह उर्दू का शब्द बन जाता है, मसलन जलील शब्द को ही लें, बोलते समय अगर ज में नुक्ता लग गया तो वह बन जायेगा ज़लील। तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा यहां दोनों का मतलब अलग—अलग है। उर्दू में जलील शब्द का मतलब अच्छे अर्थ में लगाया जाता है यानी इज्जत देना है वहीं नुक्ता लगा ज़लील का अर्थ अपमानित मामले में किया जाता है, देखंें उदाहरण—

जलील— जिला अधिकारी ने विकास कार्यो में कोताही बरतने

पर प्रखंड विकास अधिकारी को सबके सामने जलील

किया। ( यहां ज में नुक्ता नहीं लगने से जलील का

मतलब अधिकारी की खिंचाई न हो कर उसे

इज्जत देना हो जायेगा । )

ज़लील— जिला अधिकारी ने विकास कार्यों में कोताही बरतने

पर प्रखंड विकास अधिकारी को सबके सामने जलील

किया। ( यहां ज में नुक्ता लगने से ज़लील का

मतलब अधिकारी की खिंचाई कर उसे

फटकार लगाना है। )

हर व्यक्ति को अपनी भाषा, अपनी क्षमता के अनुसार प्रयेाग में लानी चाहिये। यानी अगर आप नुक्ता लगा शब्द 'खब़र' शब्द को साफ—साफ नहीं बोल सकते हैं तो खबर शब्द को बदल कर ‘समाचार' कहें। इसी तरह युद्ध कोे लड़ाई, प्रक्षेपास्त्र को मिसाइल कह सकते हैं, जो आम प्रचलन में है।

रेडियो में अनुवाद

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रेडियो समाचार में अनुवाद का बहुत ही महत्व है। प्रायः हर रेडियो प्रसारक कई भाषा में समाचारों का प्रसारण करता है। जहां तक अनुवाद का सवाल है तो यह एक कला है। इसके अपने मापदण्ड है। अलग सिद्धांत है। अनुवाद को लेकर पहला सिद्धांत यह कहता है कि अनुवाद, अनुवाद नहीं लगना चाहिये। दूसरा यह कि जो लिखा है, वह पहले लिखने वाले की समझ में साफ—साफ आनी चाहिये। तीसरी महत्वपूर्ण बात यह कि मक्खी पर मक्खी नहीं बैठाई जानी चाहिये। क्योंकि अंग्रेजी और हिंदी की प्रकृति में काफी फर्क होता है। चौथा सिद्धांत यह है कि डिक्शनरी से कोई भारी—भरकम शब्द लेने की जगह आम भाषा में बात समझायी जाये।

रेडियो में इसके लिए अलग से लोगों की नियुक्ति की जाती है। आकाशवाणी में इन्हें समाचार वाचक—सह—अनुवादक कहा जाता है। जो मूल समाचार बुलेटिन की कापी से भाषाई या फिर बोलियों में प्रसारित होने बाले समाचार बुलेटिन के लिए अनुवाद समाचार को तैयार करते हैं। आकाशवाणी कई भाषाओं व बोलियों में समाचार बुलेटिन प्रसारित करता है। अकेले आकाशवाणी का कोहिमा केन्द्र अंगे्रजी भाषा के अलावा मुख्य सोलह बोलियों में भी समाचार बुलेटिन प्रसारित करता है। सोलह बोलियों के समाचार वाचक—सह— अनुवादक अंग्रेजी में बनने वाले मूल समाचार बुलेटिन से अपनी—अपनी बोलियों में अनुवाद कर बुलेटिन तैयार कर स्वयं पढ़ते भी हैं।

एक भाषा से दूसरी भाषा में अच्छा अनुवाद तभी संभव है जब विषयवस्तु की आत्मा को समझा जाये। बीबीसी हिंदी सेवा में वैसे तो अब भारत, पाकिस्तान और अन्य दक्षिण एशियाई देशों से ज्यादातर हिंदी में ही रिपोटिर्ंंग होती है। लेकिन फिर भी विश्व की अन्य घटनाओं की रिपोर्ट अंग्रेजी में वहां होती है। ऐसे में उनके सटीक अनुवाद की आवश्यकता बीबीसी या फिर अन्य विदेशी रेडियो प्रसारक को पड़ती है, जो हिन्दी या उर्दू में समाचार प्रसारित करते हैं। जहां तक आकाशवाणी का सवाल है तो यहां भी अनुवाद की बड़े पैमाने पर जरूरत पड़ती है। आकाशवाणी कई भाषाओं में समाचार बुलेटिनों का प्रसारण करता है। इसके लिए अलग—अलग व्यवस्था है। हर भाषा या बोलियों के लिए समाचार वाचक—सह—अनुवादक तो हैं ही साथ ही इस कार्य के लिए पूरी टीम रहती है। अच्छा और सरल अनुवाद तभी हो सकता है जब अंग्रेजी या फिर जिस भाषा में समाचार तैयार किया जाता है तो उस पर समाचार वाचक—सह—अनुवादक की मजबूत पकड़ हो। जिस भाषा में बुलेटिन हो उसमें दो—तीन बार पढ़कर अच्छी तरह समझ लेना चाहिये। इसके बाद अनुवाद करना चाहिये।

अनुवादक को शब्दानुसार अनुवाद की जगह भावना पर बल देना चाहिये। किसी भी वाक्य को पढ़कर उसके शब्दों के अर्थ को समझते हुए दूसरी भाषा में अनुवाद करना चाहिये। शब्द से शब्द का अनुवाद, अनुवाद को बोझिल बनाता है। जैसे इस वाक्य को देखेंं— ‘प्दकपं ैजंतजमक वद ं इतपेा दवजम ूपजी वचमदमत ज्मदकनसांत ेबवतपदह 85' इसका अनुवाद इस तरह से किया जाना चाहिए। ‘‘भारत की शुरूआत बहुत अच्छी रही। प्रारंभिक बल्लेबाज तेदुलकर ने 85 रन बनाये।'' अगर शब्द से शब्द अनुवाद करते तो वह बात नहीं बनती जो उपर में बनी है। क्योंकि शब्द से शब्द का अनुवाद भ्रम भी पैदा करता है। इसलिये हमेशा सावधान रहना चाहिये।

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वॉईस कास्ट

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रेडियो समाचार की दुनिया में वॉईस कास्ट का अर्थ समाचार में संबंधित व्यक्ति या समाचार से संबंधित संवाददाता की आवाज को देना। समाचार अगर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या फिर महत्वपूर्ण राजनेता आदि से जुड़ा है और उनकी आवाज संवाददाता ने रिकार्ड किया हुआ है तो उसे समाचार के बीच उचित स्थान देकर बजाया जाता है यानी समाचार के साथ—साथ उससे संबंधित व्यक्ति/संवाददाता द्वारा अपनी आवाज में दिया गया डिस्पैच को जब डालते है तो, उसेे ही वॉईस कास्ट यानी साउंड बाइट्‌स या फिर साउंड डिस्पैच कहा जाता है। यह आज की तारीख में अहम्‌ और प्रचलित शब्द है। इसके बिना समाचार की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। आज रेडियो समाचार का यह महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।

वॉईस कास्ट के तहत ही साउंड बाइट्‌स/ साउंड डिस्पैच आते हैं जो समाचार को जीवंत बनाने के लिए समाचार बुुलेटिनों में समाचार के साथ—साथ प्रयोग किये जाते हैं। यह किसी भी समाचार को जीवंत तो बनाता ही है साथ ही श्रोताओं के लिए रोचकता और विश्वास पैदा करता है। समाचार के बीच में संवाददाताओं द्वारा अपनी आवाज में समाचार के बारे में बताना साउंड डिस्पैच यानी वॉईस कास्ट कहलाता है, जो समाचार की विश्वसनीयता को और बढ़ाता है। वहीं किसी वी.आई.पी. के समाचार कवरेज में उसकी आवाज यानी बाइट्‌स भी समाचार की रोचकता में चार चांद लगा जाता है।

वॉइस कास्ट आधुनिक संचार तकनीक की दृष्टि में आवाज को संप्रेषित करने का एक बेहतर सरल और सहज तरीका है। रेडियो के राष्ट्रीय समाचारों में संवाददाताओं के वॉइस कास्ट का समायोजन लगभग अस्सी के दशक में हुआ था और नब्बे का दशक आते—आते सभी मुख्य समाचार बुलेटिनों में इसे दिया जाने लगा। बाद में क्षेत्रीय समाचार इकाइयों के समाचार बुलेटिनों में वॉईस कास्ट की परिपाटी शुरू हुई। वॉईस कास्ट रेडियो के अलावा दूरदर्शन और सेटेलाइट चैनलों में भी प्रयोग होता है। दूरदर्शन और सेटेलाइट चैनलों के सचित्र समाचारों के प्रेषण के दौरान संवाददाताओं या फिर खबर से जुड़े व्यक्ति की वॉइस यानी उसकी आवाज को देना भी वॉईस कास्ट है। यानी समाचार जिस व्यक्ति से जुड़ा है या समाचार देने वाले संवाददाता की आवाज को प्रसारण के समय समाचार के साथ—साथ डालते है।

वॉईस कास्ट और समाचार में काफी अंतर होता है। यह समाचार पर ही आधारित होता है। लेकिन जब इसका प्रयोग करते हैं तो समाचार के इंट्रों में महत्वपूर्ण बात दी जाती है। उसके बाद साउंड बाइट्‌स/ साउंड डिस्पैच को डाल दिया जाता है। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इंट्रो में डाले गये बातों का दोहराव साउंड बाइटस / साउंड डिस्पैच में नहीं होनी चाहिए। इसका कई तरह से प्रयोग किया जा सकता है, सिर्फ प्रस्तुत करने का तरीका बदल जाता है। डालते है एक नजर कुछ खबरों में डिस्पैच के विभिन्न रूपों पर—

(एक)

नक्सली

गया—मुगलसराय रेलखंड पर गुरारू—परैया के बीच कल रात प्रतिबंधित संगठन भाकपा माओवादियों ने विस्फोट कर डाउन लाईन की पटरी उड़ा दी। पुलिस ने उसी स्थान के पास से अप लाईन के नीचे छिपाकर रखे एक केन बम को बरामद कर निष्क्रिय कर दिया है। बम का वजन दस किलोग्राम बताया जाता है। हमारे संवाददाता ने खबर दी है कि आज दोपहर बाद अप लाईन पर रेल परिचालन शुरू कर दिया गया है जबकि डाउन लाईन पर मरम्मति का कार्य जारी है।

———साउण्ड बाईट———

इस घटना के बाद कल रात से ही गया मुगलसराय के बीच रेल परिचालन ठप रहा। आज सुबह कई महत्वपूर्ण गाड़ियों को पटना होकर भेजा गया। भाकपा माओवादियों ने तीन साथियों की गिरफ्‌तारी और पुलिस अत्याचार की घटना को लेकर आज बिहार बंद की घोषणा की थी। जिले के शेरघाटी अनुमंडल के ग्रामीण इलाकों में बंद का असर देखा गया।

आकाशवाणी समाचार के लिए गया से.....(संवाददाता का नाम)।

उपरोक्त खबर में संवाददाता के साउंड डिस्पैच को हमारे संवाददाता ने खबर दी है कि उसके बाद एक वाक्य दिया गया फिर संवाददाता का साउंड डिस्पैच उसकी आवाज में दिया गया। संवाददाता का साउंड डिस्पैच जीवंत या रिकार्डेड भी हो सकता है। दोनों विधा का वॉइस कास्ट में प्रयोग किया जाता है।

(दूसरा तरीका)

नक्सली

गया—मुगलसराय रेलखंड पर गुरारू—परैया के बीच कल रात प्रतिबंधित संगठन भाकपा माओवादियों ने विस्फोट कर डाउन लाईन की पटरी उड़ा दी। पुलिस ने उसी स्थान के पास से अप लाईन के नीचे छिपाकर रखे एक केन बम को बरामद कर निष्क्रिय कर दिया है। बम का वजन दस किलोग्राम बताया जाता है। दोपहर बाद अप लाईन पर रेल परिचालन शुरू कर दिया गया है जबकि डाउन लाईन पर मरम्मति का कार्य जारी है। और ब्यौरा दे रहे हैं हमारे संवाददाता ..........

——साउण्ड बाईट——

इस घटना के बाद कल रात से ही गया मुगलसराय के बीच रेल परिचालन ठप रहा। आज सुबह कई महत्वपुर्ण गाड़ियों को पटना होकर भेजा गया। भाकपा माओवादियों ने तीन साथियों की गिरफ्‌तारी और पुलिस अत्याचार की घटना को लेकर आज बिहार बंद की घोषणा की थी। जिले के शेरघाटी अनुमंडल के ग्रामीण इलाकों में बंद का असर देखा गया।

आकाशवाणी समाचार के लिए गया से .....(संवाददाता का नाम)

उपरोक्त खबर में संवाददाता का साउंड डिस्पैच को ‘और ब्यौरा दे रहे हैं हमारे संवाददाता' .........के बाद संवाददाता का साउंड डिस्पैच उसकी आवाज में दिया गया। यहां भी संवाददाता का साउंड डिस्पैच जीवंत या रिकार्डेड भी हो सकता है।

वॉईस कास्ट, इस समय रेडियो पत्रकारिता की मांग है। इसका ज्यादातर इस्तेमाल जीवंतता को बरकरार रखने में किया जाता है। जिस तरह से खबरिया चैनल घटना के दौरान, जब घटना का जीवंत प्रसारण करते है तब स्टूडियो में बैठा एंकर या समाचार वाचक खबर का इंट्रो बताते हुए सीधे दर्शकों से मुखातिब होता है और कहता है

.........चलते है सीधे घटना स्थल पर जहां मौजूद हैं हमारे संवाददाता......... टीवी स्क्रीन पर समाचार वाचक/ एंकर घटनास्थल पर मौजूद संवाददाता..........और.......दृश्यों से सीधा जुड़ जाता है। घटना स्थल पर मौजूद संवाददाता घटना का विवरण देने लगता है। बीच—बीच में समाचार वाचक/ एंकर संवाददाता से सवाल भी पूछता है जिसका जवाब संवाददाता को देना होता है। समाचार पर प्रकाश डालने के बाद अंत में संवाददाता कहता है........ घटना स्थल (जगह का नाम) से चैनल का नाम लेते हुए मैं (अपना नाम बोलता है)।

ठीक इसी तरह रेडियो समाचार के दौरान जब समाचार बुलेटिन का प्रसारण होता है और समाचार वाचक को घटना स्थल पर मौजूद संवाददाता से खबर को अपडेट करना होता है तो सीधे संवाददाता से जुड़ जाता है। स्टूडियो में समाचार पढ़ रहे समाचार वाचक का सम्पर्क फोन के माध्यम से घटना स्थल पर मौजूद संवाददाता से होता है। चूंकि समाचारों का प्रसारण रेडियो पर जीवंत होता है। ऐसी परिस्थिति में जब समाचार वाचक हार्ड न्यूज का इंट्रो पढ़ता है और विवरण के लिए संवाददाता से संपर्क करता है .........अब चलते है अपने संवाददाता के पास...........जो घटना स्थल पर मौजूद है। समाचार वाचक संवाददाता से बातचीत के लहजे में बात करते हुए खबर के बारे में संवाददाता से अद्यतन खबर के बारे में बताने को कहता है। संवाददाता, समाचार वाचक के पूछने पर घटना का विवरण देने लगता है,जो सीधे रेडियो सेट के माध्यम से दूर—दराज के श्रोताओं तक पहुंच जाता है। आइये नजर डाले एक खबर पर ..........

राजधानी एक्सपे्रस—दुर्घटना

बिहार के गया रेलवे स्टेशन पर आज तड़के नई दिल्ली से भुवनेश्वर जा रही राजधानी एक्सप्रेस के चार डब्बे पटरी से उतर गये। इस दुर्घटना में चार लोगों की मौत हो गयी है, जबकि बीस यात्री घायल हो गये है। और ब्यौरे के लिए चलते हैं घटना स्थल पर मौजूद गया संवाददाता.....(समाचार वाचक संवाददाता का नाम लेता है) के पास...........हां बताइये कैसे हुआ ये सब.....(गया संवाददाता और स्टूडियो में मौजूद समाचार वाचक के बीच फोन से संपर्क होता है) संवाददाता,समाचार वाचक का नाम लेता है और उससे बातचीत के लहजे में घटना का ब्यौरा देने लगता है।

(संवाददाता की आवाज)

सुबह चार बजे ज्योंहि गया रेलवे स्टेशन के पास से नई दिल्ली— भुवनेश्वर राजधानी एक्सप्रेस गुजर रही थी तभी फिस प्लेट निकलने की वजह से इसके चार डब्बे पटरी से उतर गये। हालांकि टे्रन की रफ्‌तार धीमी थी इसलिए बडा हादसा नहीं हुआ। ड्राइवर ने ट्रेन का ब्रेक तुरंत लगा दिया। घायलों को अस्पताल इलाज के लिए भेज दिया गया है। रेलवे के अधिकारी घटना स्थल पर आ गये हैं और यातायात को चालू कराने की दिशा में काम युद्धस्तर पर जारी है।

आकाशवाणी समाचार के लिए गया से मैं..........

वॉईस कास्ट देने के कई तरीके है। रेडियो में ज्यादातर संवाददाता अपनी डिस्पैच फोन के जरिए देते हैं जबकि साउंड बाईट्‌स में किसी की आवाज को समाचारों में डाला जाता है। इसमें कुछ भी समाचार से संबंधित हो सकता है मसलन, इस खबर को देखें—

कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी ने बिहार में लोकसभा के चालीस में सैंतीस सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष अनिल कुमार शर्मा ने आज पटना में पत्रकारों को बताया कि पार्टी ने तीन सीटें राष्ट्रीय जनता दल और लोजपा के लिए छोड़ी हैं। उन्होंने कहा कि ये दोनाें पार्टिंयां यूपीए की घटक हैं। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने फैसला किया है कि जहां से राजद प्रमुख लालू प्रसाद और लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान चुनाव लड़ेंगे वहां कांग्रेस अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करेगी।

—साउण्ड बाईट (प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष)—20 सेकेंड—

उपरोक्त खबर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की बाइट को रिकार्ड कर उसे संपादित कर यहां समाचार के साथ बजा दिया जाता है। साउंड बाइट की समय सीमा तय कर ली जाती है। यहां 20 सेकंेंड प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष की बाइट बजी है।

वॉईस कास्ट की समय सीमा पहले से तय रहती है। सीधा प्रसारण में समाचार वाचक, संवाददाता या फिर जिस व्यक्ति का बाइट समाचार में लिया जाता है उस समय सीमा पर नजर रखा जाता है। समाचार वाचक जरूरी खबर को लेने के बाद कट कर देता है और शेष समाचार पढ़ने लग जाता है। क्योंकि समाचार बुलेटिन का समय निर्धारित रहता है ऐसे में वॉईस कास्ट कम से कम 10 से 15 सेकेंड और ज्यादा से ज्यादा 35 से 40 सेकेंड का लिया जाता है।

समाचार बुलेटिन में वॉईस कास्ट के प्रयोग को देखते हैं एक समाचार बुलेटिन में—

क्षेत्रीय समाचार बुलेटिन का प्रारूप

अवधि—10 मिनट

ये आकाशवाणी.......(केन्द्र का नाम) है। अब आप (समाचार वाचक नाम) से प्रादेशिक समाचार सुनिये।

पहले मुख्य समाचार......

—केन्द्र सरकार ने पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में जल्द ही भारी कमी होने का संकेत दिया।

—देशव्यापी ट्रक और प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल आज भी जारी।

—प्रदेश के महादलित टोलों में आधुनिक सुविधाओं से लैस सामुदायिक भवन बनाया जायेगा।

—आंध्र प्रदेश में बारह से सत्रह जनवरी तक आयोजित होने वाली कैरम चैंपियनशिप के लिए बिहार टीम घोषित।

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पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने संकेत दिया है कि पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में जल्दी ही भारी कमी की जायेगी। श्री देवड़ा ने आज नई दिल्ली में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि रसोई गैस के सिलेंडर में बीस से पच्चीस रुपये की कमी की जा सकती है। हालांकि उन्होंने पेट्रोल और डीजल के दामों में कितनी कमी की जा सकती है इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। ऐसी संभावना है कि पेट्रोल पांच और डीजल तीन रुपये प्रति लीटर की दर से घटाये जा सकते हैं।

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सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियाें के अधिकारियों के कल शाम तीन दिनों से जारी अपनी हड़ताल वापस लिये जाने की घोषणा के बाद आज राजधानी पटना सहित प्रदेश भर में पेट्रोल और डीजल पंपों पर स्थिति धीरे—धीरे सामान्य होने लगी है। राजधानी पटना के पेट्रोल पम्पों पर अब स्थिति सामान्य हो गयी है।

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ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के आह्‌वान पर देशव्यापी ट्रक हड़ताल आज भी जारी है। गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने हड़ताल को जनविरोधी करार देते हुए राज्य सरकारों से मिलकर हड़ताल से निपटने का आग्रह किया है। वहीं सरकार दैनिक आपूर्ति को अप्रभावित रखने के लिए स्वयं ट्रक संचालित करने की योजना बना रही है। इधर, ट्रक हड़ताल की वजह से फलों और सब्जियों के दामों में वृद्धि होने से प्रदेश में जनता की परेशानियां भी बढ़ने लगी हैं। हड़ताल के कारण दूसरे राज्यों से प्रदेश में ट्रक नहीं आ रहे हैं। बिहार और झारखंड में बिहार मोटर ट्रांसपोर्ट फेडरेशन ने अभी हड़ताल में भाग नहीं लिया है। इस बीच उच्चतम न्यायालय, हड़ताल पर गए ट्रांसपोर्टरों के ट्रकों के लाइसेंस और परमिट को रद्‌द किये जाने से संबंधित एक जनहित याचिका पर बारह जनवरी को सुनवाई करेगा।

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प्रदेश में छठे वेतन आयोग की अनुशंसाओं को केन्द्र की तरह ही हू बहू लागू करने समेत सात सूत्री मांगों को लेकर राज्य कर्मचारियों का एक गुट आज चौथे दिन भी हड़ताल पर रहा। हमारे संवाददाता ने खबर दी है कि हड़ताल के कारण सरकारी कार्यालयों में कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ा है।

—साउण्ड बाईट—

सरकार ने हड़ताल पर जाने वाले कर्मचारियों को चेतावनी दी है कि ऐसे कर्मियों पर ‘‘काम नहीं तो वेतन नहीं'' का फार्मूला लागू होगा। इसके बावजूद सात जनवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर डटे कर्मचारी सरकार के सामने झुकने को तैयार नहीं है। कर्मचारी नेताओं ने साफ—साफ कहा है कि जबतक उनकी मांगें नहीं मानी जायेंगी तबतक वे काम पर नहीं लौटेंगे।

आकाशवाणी समाचार के लिए पटना से.....(संवाददाता का नाम)

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि राज्य का विकास समाज के सभी तबकों को साथ लेकर किया जायेगा और सबसे पिछड़ा महादलित वर्ग को आत्मनिर्भर बनाने का काम राज्य सरकार कर रही है। श्री कुमार ने आज गया के गांधी मैदान में महादलित महासम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि महादलितों को जमीन और मकान के साथ—साथ उन्हें बसाने का काम किया जायेगा। महादलित टोला में सामुदायिक भवन बनेगा, जहां एक टेलीविजन और प्रत्येक महादलित परिवार को एक—एक ट्रांजिस्टर राज्य सरकार उपलब्ध करायेगी, जिससे वे देश—दुनियां के समाचार और गीत—संगीत का आनंद ले सकेंगे। महादलित टोला में विकास कार्यों को देखने के लिए एक—एक विकास मित्र की बहाली की जायेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में न्याय के साथ विकास का काम हो रहा है। महासम्मेलन को भवन निर्माण मंत्री छेदी पासवान, प्रौद्योगिकी मंत्री अनिल कुमार, जनता दल यू के प्रदेश अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ने भी संबोधित किया। महासम्ममेलन की अध्यक्षता अनुसूचित जाति—जनजाति कल्याण मंत्री जीतन राम मांझी ने की।

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केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री डा. शकील अहमद ने आज कहा कि आतंकवाद किसी मसले का हल नहीं है। आज पटना में राजकीय उर्दू पुस्तकालय के तत्वाधान में आयेाजित सेमिनार ‘‘आतंकवाद विश्व के लिए खतरा'' विषय पर बोलते हुए डा. अहमद ने कहा कि बढ़ता आतंकवाद विश्व के लिए खतरा बनता जा रहा है।

—साउण्ड बाईट—( डा. शकील अहमद) 25 सेकेण्ड—

सेमिनार को पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र सहित कई गणमान्य लोगों ने भी संबोधित किया।

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राष्ट्रीय जनता दल ने राज्य की नीतीश सरकार पर अल्पसंख्यकों और उर्दू भाषा के विकास के लिए बनाये गये संस्थानों के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता श्याम रजक और प्रदेश महासचिव निहोरा प्रसाद यादव ने अपने बयान में कहा कि बिहार उर्दू अकादमी जिसका मूल उद्‌देश्य उर्दू के विकास, प्रचार—प्रसार, उर्दू भाषा के विकास के लिये लेखकों को प्रोत्साहन, पुरस्कृत करना तथा उनके द्वारा लिखी गयी किताबों में सहयोग करना और नये—नये शोधों को प्रोत्साहित करना होता है लेकिन नीतीश सरकार में अकादमी को पूरी तरह से ठप कर दिया गया है।

बिजली

प्रदेश के भोजपुर, बक्सर और गोपालगंज जिले में प्राथमिक कृषि सहकारिता सोसाएटी (पैक्सों) द्वारा संचालित चावल मिलें बायोमास गैसी फायर सिस्टम के द्वारा धान की भूसी से बिजली बना रही है। हमारे संवाददाता ने बिहार स्टेट कॉपरेटिव बैंक के अध्यक्ष सत्येन्द्र नारायण सिंह के हवाले से खबर दी है कि.................

—साउण्ड बाईट(संवाददाता का साउंड डिस्पैच)—

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सहकारिता विभाग ने चावल मिलों के आसपास के गांव में बिजली आपूर्ति का एक प्रस्ताव ऊर्जा विभाग को सौंपा है। प्रस्ताव के स्वीकार किए जाने के बाद दर्जनों गांव, चावल मिलों से उत्पादित बिजली से जगमगायेंगे। प्रदेश के धान उत्पादन बाहुल्य क्षेत्रों में पैक्सों और व्यापार मंडलों को बायोमास, गैसी फायर सिस्टम के उपयोग से चावल मिल लगाने के लिए राज्य सरकार प्रोत्साहित कर रही है। जल्द ही पैक्सों द्वारा संचालित लगभग एक सौ चावल मिलों को बिजली उत्पादन तकनीक उपलब्ध करा दी जायेगी।

आकाशवाणी समाचार के लिए आरा से मैं.......(संवाददाता का नाम)

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मुंगेर पुलिस ने जिले में नक्सली समस्या के समाधान के लिए नक्सवालवाद से संबंधित विभिन्न विषयों पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित करने का फैसला किया है। प्रतियोगिता में सफल प्रतिभागियों को पांच, तीन और दो हजार रुपये नकद पुरस्कार दिये जायेंगे। पुलिस अधीक्षक एम.सुनील कुमार नायक ने बताया कि प्रतियोगिता में प्राप्त विषयगत आलेखों के माध्यम से जिला पुलिस प्रशासन जिले में नक्सलवाद की मूल समस्या और इसके निदान के उपाय तलाश करेगा।

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रोहतास जिले के चर्चित सोन महोत्सव को लेकर आज किलौथु में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर डी.आई.जी ए.के.अम्बेडकर ने कहा कि इस महोत्सव के माध्यम से स्थानीय लोगों को मुख्य धारा में जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

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सारण जिले के सदर प्रखंड के बसाढ़ी गांव में सर्व शिक्षा अभियान से संबंधित हजारों पुस्तकें एक गड्‌ढे में फेंकी हुई पायी गयी। जिलाधिकारी प्रभात कुमार साह ने कहा है कि घटना को अंजाम देने वालों को बख्शा नहीं जायेगा।

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दूरदर्शन केन्द्र पटना के सहायक अभियंता राम नारायण सिन्हा का आज पटना में निधन हो गया। उनकेे असामयिक निधन पर दूरदर्शन केन्द्र पटना परिसर में एक शोक सभा का आयोजन किया गया।

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कैमूर जिले के चांद थाना अंतर्गत एक बस के पलट जाने से एक महिला की घटनास्थल पर मृत्यु हो गयी और लगभग डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गये। बस पर सवार सभी लोग मकर संक्रांति स्नान के लिए गंगा सागर जा रहे थे। उधर, जिले के पंजाब नेशनल बैंक की ओर से भभुआ और मोहनियां में आज से एटीएम सेवा का शुभारम्भ हो गया। इसका उद्‌घाटन जिलाधिकारी बैद्यनाथ प्रसाद ने किया।

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कटिहार जिले में आज स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत्‌ स्वयं सहायता समूह के दो हजार चार सौ छियासी लाभार्थियों के बीच अठारह करोड़ नब्बे लाख रुपये का ऋण वितरित किया गया।

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मानव संसाधन विकास संसदीय दल की स्थायी समिति के अनुसार देश में मानव के अनैतिक व्यापार की गिरफ्‌त में लगभग तीस लाख से अधिक महिलाएं और बच्चे हैं। हमारे अररिया संवाददाता ने खबर दी है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे होने की वजह से जिले में मानव तस्करी के मामले सामने आ रहे हैं।

—साउंड बाईट—(संवाददाता का डिस्पैच)—

जिले में पिछले वर्ष एक दर्जन से ज्यादा ट्रैफिकिंग के मामले दर्ज किए गये। इनमें कुछ मामलों में महिलाओं, लड़कियों और बच्चों को मुक्त कराकर उनके परिजनों को सौंपा गया। हालांकि कुछ का ट्रायल चल रहा है। इस क्षेत्र में गरीबी और अशिक्षा के साथ पड़ोसी देश नेपाल और भारत का सीमा क्षेत्र खुला होने की वजह से ट्रैफिकिंग के मामले बढ़े है। वहीं सरकारी स्तर पर इसकी रोकथाम की पूरी कोशिश जारी है।

आकाशवाणी समाचार के लिए अररिया से मैं......(संवाददाता का नाम)

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पूर्व विधान सभा अध्यक्ष गुलाम सरवर की जयंती के अवसर पर आज राज्यपाल आर.एल.भाटिया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। राजद कार्यालय में प्रदेश अध्यक्ष अब्दुल बारी सिद्दीकी, हिमायती फ्रंट के संयोजक कमाल अशरफ, युनाइटेड मुस्लिम मोर्चा के अध्यक्ष और सांसद एम.एजाज अली की अध्यक्षता में स्वर्गीय सरवर की जयंती मनायी गयी।

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मधुबनी जिले के घोघरडीहा प्रखंड के मेनहीन अलोला में आयोजित जगशाला का उद्‌घाटन राजद संसदीय दल के उपनेता देवेन्द्र प्रसाद यादव ने आज करते हुए मृत पड़े कोसी धार पर पैंतीस लाख रुपये और स्क्रू पुल निर्माण के लिए अपनी निधि से राशि देने की घोषणा की।

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राजद के प्रधान महासचिव और सांसद रामकृपाल यादव ने आज दानापुर प्रखंड के दियारा इलाके में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से नौ करोड़ चौवालीस लाख की लागत से निर्मित होने वाली तेईस किलोमीटर लंबाई की छह सड़कों का शिलान्यास किया। साथ ही मानस—अकीलपुर सड़क का उद्‌घाटन भी किया। इस अवसर पर विधान पार्षद गुलाम गौस भी उपस्थित थे।

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उद्योग मंत्री दिनेशचंद्र यादव ने आज सहरसा जिले के पतरघट प्रखंड में अलग—अलग तीन शिविरों में छब्बीस हजार बाढ़ पीड़ितों के बीच दूसरे चरण का राहत वितरण कार्य का शुभारंभ किया।

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प्रदेश के ग्रामीण कार्य मंत्री वृषिण पटेल ने आज हाजीपुर में कहा कि ग्रामीण विकास विभाग द्वारा ग्रामीण सड़कों के निर्माण पर चौदह सौ करोड़ रुपये की योजना मंजूर की गयी है, जिसपर काम चल रहा है।

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आंध्र प्रदेश में बारह से सत्रह जनवरी तक आयोजित होने वाली अड़तीसवीं सिनीयर राष्ट्रीय और अंतर राज्यीय कैरम चैंपियनशीप के लिए बिहार टीम की घोषणा कर दी गयी है। बिहार स्टेट कैरम एसोसिएशन के महासचिव भारत भूषण ने ये जानकारी देते हुए बताया कि बिहार टीम का नेतृत्व पटना के नीरज कुमार करेंगे।

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वॉईस कास्ट का प्रयोग केवल समचार के दौरान ही नहीं होता है बल्कि समाचार आधारित कार्यक्रमों में भी इसका समावेश किया जाता है। रेडियो केन्द्रों से हर जिले की मासिक गतिविधि पर आधारित कार्यक्रम भी होते हैं, जो जिले की हलचल या जिले की चिठ्‌टी आदि के नाम से प्रचलित है। इसमें जिले का संवाददाता पूरे महीने की अपने शहर की गतिविधियों को समेटता है। इसमें राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक, खेल यों कहें कि हर पहलू पर नजर डालना पड़ता है। संवाददाता तथ्यों को बिना तोड़े—मरोड़े अपने स्क्रिप्ट में रोचक ढंग से डालता है। इसकी प्रसारण अवधि अलग अलग हो सकती है। यह अमूमन लगभग पांच मिनट का होता है। देखते है एक बानगी। पटना जिले की हलचल में।

'' सबसे पहले उद्‌घोषक इस संबंध में उद्‌घोषणा करता है..............................आकाशवाणी का ये.............. (केन्द्र का नाम) है। प्रस्तुत है ......(जिला का नाम)......जिले की हलचल। इसे पेश कर रहे हैं हमारे संवाददाता.................................. (संवाददाता का नाम)'' ।

(संवाददाता की आवाज में जिले की हलचल की——बाइट)

राजनीतिक उठापटक के बीच पिछले दिनों पटना कई गतिविधियों को लेकर चर्चे में रहा। मंहगाई के मुद्‌दे पर जहां प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने केन्द्र के साथ—साथ राज्य सरकार को भी घेरने की कोशिश की, तो वहीं छब्बीस जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर पूरा पटना देश प्रेम में डूबा नजर आया। गणतंत्र दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक पटना गांधी मैदान में इकसठ्‌वा गणतंत्र दिवस के अवसर पर राज्यपाल देबानंद कुंवर ने तिरंगा फहराया और परेड की सलामी ली। अपने संबोधन में राज्यपाल ने कहा कि बिहार में विकास हो रहा है। राज्य सामाजिक न्याय के साथ विकास की अवधारणा को जमीन पर उतारने के लिए सतत्‌ अग्रसर है। उन्होंने बिहार में चल रहे विकास कार्यों को स्वीकार किया है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, विधान परिषद्‌ के सभापति पंडित ताराकांत झा, विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

गणतंत्र दिवस को आम और खास लोगों ने जहां पूरे उत्साह से मनाया, वहीं विभिन्न राजनीतिक दलों, संगठनों और सरकार तथा गैर सरकारी संस्थाओं ने गणतंत्र दिवस मनाया। गणतंत्र दिवस के अवसर पर गांधी मैदान में आकर्षक झांकियां निकाली गई। राज्यपाल देबानंद कुंवर ने उल्लेखनीय कार्य करने वाले सेना और पुलिस के अधिकारियो को सम्मानित किया।

राजद ने महंगाई के मुद्दे को लेकर 28 जनवरी को बिहार बंद करवाया। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने बंद को सफल बताते हुए कहा कि बिहार की जनता ने केंद्र और राज्य सरकार की महंगाई विरोधी नीतियों के खिलाफ राजद का साथ दिया, वहीं जदयू, भाजपा और कांग्रेस ने इस बंद को पूरी तरह से विफल बताया। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद एक बार फिर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये। इसकी विधिवत घोषणा 31 जनवरी को पटना में की गई।

जद यू के प्रदेश अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन से पार्टी के इस्तीफा देने के साथ ही राजनीतिक हलचल का पटाक्षेप हो गया। उनके इस्तीफे पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कहा कि श्री ललन ने इस्तीफा पार्टी को और मजबूती प्रदान करने के मद्देनजर दिया है। जिले में पिछले दिनों और गतिविधियां सामान्य रूप से चलती रहीं।..................

(संवाददाता द्वारा जिले की हलचल को अपनी आवाज में बोलने के बाद........उद्‌घोषक.........की घोषणा इस तरह से होती है..............'' अभी आप सुन रहे थे (जिला का नाम) जिले की हलचल। हलचल को प्रस्तुत किया हमारे संवाददाता (संवाददाता का नाम) ने।''

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समाचार वाचन

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आवाज़ की दुनिया ‘रेडियो' के माध्यम से लोगों तक गीत—संगीत, संदेष—सूचना और देष—दुनिया की खब़रों को पहुंचाया जाता है। रेडियो के लिए ज़रूरी है ‘आवाज़'। शब्दों को आवाज़ में पिरो कर श्रोताओं तक पहुंचाने का काम उद्‌घोषकों/वाचकों का है। जो व्यक्ति रेडियो समाचार बुलेटिनों को माइक्रोफोन के माध्यम से अपनी आवाज में श्रोताओं के रेडियो सेट तक पहुंचाने का काम करता हॅै उसे हम समाचार वाचक कहते हैं। समाचार वाचक द्वारा समाचार बुलेटिनों के पढ़ने के काम को समाचार वाचन कहा जाता है।

समाचार वाचक की जवाबदेही

न्यूज रूम में समाचार संपादक से लेकर समाचार वाचक तक की पूरी टीम का दारोमदार इस बात पर निर्भर करता है कि बुलेटिन क्या है और उसे पढ़ा कैसे जायेगा, कौन पढ़ेगा। यानी श्रोताओं तक समाचार पहुंचाने की पूरी जवाबदेही समाचार वाचक पर होती है। समाचार वाचकों को सुनकर ही खबरों की तस्वीर, श्रोताओं के जेहन में उतरती जाती है। समाचार वाचक अपनी दमदार आवाज, स्पष्ट उच्चारण, सही पॉज से एक—एक शब्द को प्रभावशाली तरीके से पढ़ते हुए समाचारों को श्रोताओं तक पहुंचाता है।

समाचार वाचक या वाचिका के मुंह से ‘यह आकाशवाणी ......(रेडियो स्टेषन का नाम) है। अब आप.....(समाचार वाचक अपना नाम बोलता है।)..........से........समाचार सुनिए‘......। सुनने पर असंख्य लोगों को यही महसूस होता है कि समाचार वाचक का काम बड़ा आसान और ठाठ का है। न्यूज रीडिंग के लिए चयनित व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि उसमें कर्तव्य परायणता, समय निष्ठता और उच्चारण में शुद्धता हो। इसके अलावा वह अच्छा अनुवादक हो, संपादन कला में दक्ष हो, उसके पढ़ने की गति सामान्य हो, हकलाना या तुतलाता न हो, समाचार वाचन के समय निजी हर्ष या विषाद से पूर्णतया अलग हो, एकाग्रचित हो और उसकी आवाज मधुर और आकर्षक दमदार हो। इन तमाम खूबियों के अतिरिक्त समाचार वाचक का आत्मविश्वास से परिपूर्ण होना अतिआवश्यक है। किसी भी न्यूज रीडर के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह जो भी समाचार पढ़े, उसे पूरे आत्मविश्वास के साथ पढ़े। चूंकि समाचारों का प्रसारण लाइव (जीवंत) होता है, ऐसे में न्यूज रीडर का आत्मविश्वासी होना अनिवार्य होता है। न्यूज रीडिंग के दौरान कई बार ऐसे अवसर भी आते हैं जब स्टूडियो में अतिमहत्वपूर्ण समाचार अंतिम समय में भेजे जाते हैं। उन समाचारों में क्या लिखा है, इसकी जानकारी पहले से न्यूज रीडर को नहीं होती। लेकिन वाचक को उन समाचारों को भी वैसे ही पढ़ना पड़ता है जैसे कि वह अन्य समाचारों को पढ़ता है। उस समय उसके आत्मविश्वास, धैर्य, संतुलन की कड़ी परीक्षा होती है।

समाचार वाचक—वाचिकाओं की उस समय भी कड़ी परीक्षा होती है, जब समाचार हर्ष या विषाद्‌ से भरा हो। कई बार किसी के निधन की खबर या खेल और चुनाव में जीत—हार की खबर पढ़ने के दौरान भावनाओं पर काबू रखना उनके लिए जरूरी होता है।

इसके अतिरिक्त भी समाचार वाचकों को कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। जैसे—समाचारों की पठन में प्रवाह और आवाज में उतार—चढ़ाव। साथ ही उसे इस बात का भी पूरा ख्याल रखना पड़ता है कि कहा स्टै्रस देना है और किन शब्दों को हल्के ढंग से उच्चारित करना है। वाक्य में सही स्थान पर पौजेज, विराम, अर्द्ध विराम समाचार को प्रभावशाली ढंग से श्रोताओं तक पहुंचाने में मददगार साबित होता है। गलत जगह पर दिये गये पॉज से अर्थ बदल जाते हैं। इसका एक उदाहरण इस प्रकार दिया जा सकता है। मान लिया जाये पढ़ना है—‘एक हजार नौसैनिक मारे गये'। लेकिन वाचक इसे पढ़ सकता है—‘एक हजार नौ सैनिक मारे गये'। ऐसी गलतियों से यानी सही जगह पॉज नहीं देने से अर्थ बिल्कुल बदल जाता है। इसी तरह स्टै्रस से वाक्य के अर्थ बदल जाते हैं। उदाहरण स्वरूप यदि वाक्य है नेता जी गांधी मैदान में भाषण दे रहे है। यदि रीडर नेता जी पर स्टै्रस देता है तो अर्थ है कि वह नेता जी को महत्व दे रहा हैं। यदि गांधी मैदान पर जोर हो तो स्थल महत्वपूर्ण हो जाता है। यानी शब्दों पर जोर देने से वाक्य के भाव और अर्थ बदल जाते हैं।

समाचार की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि समाचार वाचक कुछ शब्दों पर विशेष जोर देते हैं या सभी शब्दों को समान तरीके से बोलते हैं। जोर देते समय शब्दों पर वे कितना भार डालते हैं। शब्दों के साथ कितना हल्का या भारी अंदाज अपनाते हैं। समाचार वाचक वक्तव्य के हिस्सों को अलग करने के लिए कौन सा तरीका अपनाते हैं। खबर की गुणवत्ता इस बात से भी प्रभावित होती हैं कि वाचक बोलते समय सांस या दम लेने, प्रभाव देखने, आश्चर्य परखने अथवा विचार गति में रूकावटों या भूल को सुधारने के लिए कहां और कितना पॉज लेते हैं। कुल मिला कर समाचार वाचक का प्रभाव सौम्य होता है या झुंझलानेवाला, यह भी असर डालता है।

समाचार वाचन का एक महत्वपूर्ण पहलू है गति और फ्लो। वाक्यों में अनावश्यक तोड़ और पॉज समाचार की फ्लो में बाधा उत्पन्न करता है। इससे समाचार की गति भी बाधित होती है। समाचार वाचकों को यह ध्यान रखना पड़ता है कि लगभग दस मिनट की बुलेटिन में 100 से 120 पंक्तियां पढ़ी जाये। हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि समाचार वाचक या वाचिकाओं की बोलने की गति कैसी जिन समाचार वाचकों की बोलने की गति तेज है वह निर्धारित समय में दूसरों की अपेक्षा अधिक पक्तियां पढ़ लेता है।

समाचार वाचकों को इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि उसके बोलने की गति इतनी तेज न हो कि श्रोताओं को समाचार समझने में दिक्कत हो। कई बार अधिक समाचार पढ़ने के दबाव में वाचक अपनी गति तेज कर लेता है। इसके विपरीत कई बार ऐसा भी होता है कि समाचार कम हो जाता है, तब उसे अपनी गति धीमी करनी पड़ती है। ऐसे समय में उसे यह सावधानी रखनी पड़ती है कि गति धीमी करने की वजह से समाचार की रवानी प्रभावित न हो। ऐसे समय में शब्दों के बीच पॉज देने के बजाए दो समाचारों या फिर दो पंक्तियों के बीच जरूरत के हिसाब से पॉज लेना चाहिए।

समाचार वाचक के लिए रीडिंग के दौरान मानसिक संतुलन बनाए रखना उसकी गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी करता है। आम तौर पर यह माना जाता है कि समाचार वाचन की कला ईश्वर प्रदत्त गुण है। लेकिन अभ्यास, साधना, लगन और परिश्रम से कोई भी सफल समाचार वाचक बन सकता है। समाचार वाचक बनने के उपरांत उसे सतर्कता और संतुलन का अद्‌भुत तालमेल पेश करना पड़ता है तभी वह लंबे समय तक समाचार वाचन कर सकता है।

समाचार वाचन और अन्य वाचन में अंतर

रेडियो समाचार वाचन अन्य वाचन कला से बिल्कुल ही अलग है। इसकी अपनी थोड़ी अलग भाषा होती है, जो पिं्रट और टेलीविज़न से भिन्न होती है। भिन्नता का मूल आधार है भाषा का श्रव्य होना। रेडियो ध्वनियों के प्रसारण तक सीमित है, इसलिए इसके कार्यक्रम में भाषा के ध्वनि—गुणों को उभारा जाता है। यह रेडियो की हर विघा के साथ लागू है। चाहे वह समाचार हो या फिर नाटक, वार्ता या अन्य कार्यक्रम। इन सबके लिए रेडियो की भाषा की प्रकृति को ध्यान में रखा जाता है। वाक्य सरल, छोटे—छोटे और षुद्धता के साथ रोचक बनाये जाते हैं। विषय के अनुरूप शब्दों को वाक्यों में डाला जाता है। जटिलता से बचते हुए स्पष्टता पर ध्यान दिया जाता है। रेडियो और प्रिंट में मूल अंदर लेखन को ही लेकर है। रेडियो में जो कुछ बोला जाता है उसे ही लिखा जाता है और वह श्रोताओं को सुनने के लायक बोलचाल की भाषा में होता है। जबकि प्रिंट में पढ़ने के लिए लिखा जाता है। ऐसे में सुनने और पढ़ने के अंतर की वज़ह से रेडियो और प्रिंट मीडिया की भाषा के साथ—साथ शैली भी बदल जाती है।

समाचार वाचक का मुख्य गुण

एक अच्छे समाचार वाचक के मुख्य गुणाें में—

उपयुक्त आवाज

प्रसारण संबंधी गुणवत्ता का ज्ञान

शुद्ध उच्चारण

आवाज पर नियन्त्रण

स्वरों/षब्दों पर उचित बल देना

विराम का प्रयोग करना

सामान्य ज्ञान और विषय वस्तु की जानकारी

उपरोक्त बातों की जानकारी का होना समाचार वाचक के लिए जरूरी है। साथ ही समाचार वाचक की सफलता के लिए जरूरी तत्वों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक हैं। इसमें व्यक्तिगत और यांत्रिक साधन महत्वपूर्ण हैं। व्यक्तिगत साधन में—कंठ—जिहृवा—मुंह—कान—में तालमेल का होना बहुत महत्वपूर्ण होगा। यांत्रिक साधन में — माइक्राफोन के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये। बेहतर समाचार वाचक माइक्राफोन के साथ दोस्ती कर लेता है, बल्कि उके लिए माइक्राफोन पे्रमिका होती है। अगर माइक्राफोन धोखा दे जाये जो सब बेहार हो जायेगा। माइक्रोफोन— समाचार वाचक / एकंर/उद्‌धोषक की जान होती है। इसका अच्छा और उच्च तकनीक का होना बहुत ही जरूरी है।

सफल उद्‌घोषक/ समाचार वाचक के लिए जरूरी बातें

— सांस पर नियन्त्रण

— शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण

— शब्दों का सही प्रक्षेपण

— आवाज में स्पन्दन

— आवाज की देखभाल

— माइक्राफोन की पहचान

सांस पर नियन्त्रण — यह एक यौगिक क्रिया है और अभ्यास के जरिए इसे प्राप्त किया जा सकता है। स्टूडियो में लगा माइक्रोफोन काफी संवेदनषील होता है जो सांस की अनियंत्रित गति को भी पकड़ लेता है। रेडियो के सामने बैठा श्रोता समाचार वाचक की कमजोरी को भाप लेता है। इसलिए सांस पर नियंत्रण कर लेना बहुत जरूरी है।

शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण— समाचार वाचन के लिए शुद्ध और स्पष्ट उच्चरण जरूरी है। इसके लिए समाचार वाचक को ओठ, जीभ और जबड़े के संचालन को बिना रोके करना चाहिए। कहने का मतलब कंठ ओठ, जीभ तालु और नासिका में तालमेल बहुत जरूरी है।

शब्दों का सही प्रक्षेपण— समाचार वाचन में सही संक्षेपण जरूरी है। शब्दों को किस रूप में प्रक्षेपित करना है। किस शब्द को कैसे प्रक्षेपित किया जाना है। ये समाचार वाचक को आना चाहिए। मसलन उर्दू शब्दों में नुक्ता का इस्तेमाल होता है। जैसे—जलील और ज़लील शब्द में काफी अंतर होता है। इससे विषेष तौर पर ध्यान देना चाहिए।

आवाज में स्पन्दन— समाचार वाचक को आवाज में स्पंदन की जरूरत पड़ती है लेकिन यह ज्यादा नहीं होना चाहिए। जिसे अर्थ का अनर्थ हो जायेगा।

आवाज की देखभाल— एक समाचार वाचक की आवाज ही उसकी पहचान है। रेडियो में व्यक्ति की पहचान आवाज से की जाती है और यह आवाज गले की देखभाल से सही रहती है। गले की देखभाल करना बहुत ही जरूरी है।

माइक्राफोन की पहचान— समाचार वाचक जिस माइक्रोफोन का इस्तेमाल करता है उस पर अपनी आवाज का पूर्वाभ्यास भी कर लेना चाहिए। इससे स्वाभाविक पिच का अंदाजा हो जाता है। आवाज की गति को संभाला जा सकता है। रेडियो के कई माइक की क्वालिटी अलग—अलग होती है। इसलिए माइक्रोफोन की पहचान समाचार वाचक के लिए जरूरी है।

रेडियो के लिए साक्षात्कार

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रेडियो पर इंटरव्यू यानी साक्षात्कार अथवा भेंटवार्ता का भी अपना खास महत्व है। शुरू से अब तब जाने—माने हस्तियों के साक्षात्कार रेडियो पर आते रहे हैं। रेडियो समाचार हो या फिर रेडियो कार्यक्रम दोनों में इसका अपना महत्व है। आकशवाणी, बीबीसी, वायस ऑफ अमेरिका यों कहें कि हर रेडियो प्रसारण के लिए साक्षात्कार अति महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके बिना कार्यक्रम/समाचार की कल्पना नहीं की जा सकती है।

इंटरव्यू का हिन्दी—अनुवाद साक्षात्कार अथवा भेंटवार्ता है। साक्षात्कार का शाब्दिक अर्थ है—देखना, अनुभव करना। इंटरव्यू वह है, जो विचारों से सम्बद्ध हो। वास्तव में एक विधा के रूप में इंटरव्यू या साक्षात्कार वह है जिसमें बातचीत के माध्यम से किसी विशिष्ट व्यक्ति के विचारों, भावनाओं, जीवन—दर्शन, मत या दृष्टिकोण को समझा जाता है। उन्हें सामने लाया जाता है। यह भेंटवार्ता ही होती है, जिसका उद्‌देश्य है—जिज्ञासा—पूर्ति एवं व्यक्तितत्व का उद्‌घाटन।

इंटरव्यू चाहे लिखित में हो, या रेडियो पर अथवा टेलीविजन के पर्दे पर इसमें किसी विशिष्ट व्यक्ति से बातचीत होती है और उस बातचीत के आधार पर उस व्यक्ति विशेष के बाहरी तथा आंतरिक व्यक्तित्व, जीवन—दर्शन, विभिन्न पक्षों, समस्याओं आदि पर उसके विचार, दृष्टिकोण इत्यादि बातों को श्रोताओं के सामने लाया जाता है।

इंटरव्यू या साक्षात्कार किसी भी व्यक्ति से लिया जा सकता है। मुख्य रूप से साहित्य, कला, राजनीति, विज्ञान, खेल, सिनेमा, धर्मशास्त्र, इतिहास, दर्शन, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि क्षेत्रों के विद्वानों, समाजसेवा, शिक्षा जगत, राजनीति, समाज—सुधार, प्रशासन, खेल जगत, कला एवं साहित्य जगत, सिनेमा, नाटक और दर्शन आदि क्षेत्रों में विशेष उपलब्धियॉं हासिल करने वाले व्यक्तियों से साक्षात्कार लिए जाते हैं। ये व्यक्ति विशिष्ट उपलब्धियॉं हासिल की हो। इनके जीवन के बारे में समाज के लोग बहुत कुछ जानना चाहते हों। ये व्यक्ति अपने संघर्ष, अपनी सफलता, अपनी विचारधारा, रहन—सहन के ढंग अपनी आदतों, दृष्टिकोण और अपने जीवन—दर्शन के द्वारा समाज को संदेश एवं दिशा देते है।

इंटरव्यू के बारे में प्रायः यह गलतफहमी रहती है कि इंटरव्यू लेने वाला इंटरव्यू देने वाले के मुकाबले छोटा होता है और यह कोई बहुत अच्छा या बड़ी उपलब्धि वाला काम नहीं है। यह सोच गलत है। सच तो यह है कि किसी शख्शिसत से इंटरव्यू लेना बहुत बड़ा तथा जिम्मेदारी भरा काम है। सार्थक इंटरव्यू दो प्रबुद्ध दिमागों की मुठभेड़ है। सामने वाले से उसके भीतर की विचारधारा, आशा—आकांक्षा, छिपी हुई बातें, सफलता—असफलता की बुनियादी चीजें, स्वीकारोक्तियॉं, प्यार और घृणा आदि सभी बातें सार्वजनिक मंच पर निकलवा लेना बहुत ही कौशल, चतुराई, बुद्धिमता तथा कठिनाई—भरा काम है। एक साक्षात्कारकर्ता को इसके लिए एक बड़ी योजना बनानी होती है।

इंटरव्यू एक तरह का युद्ध है एक रणनीति या व्यूह—रचना है। इंटरव्यू के द्वारा हम सामने वाले के अन्दर में एक व्यूह रचना करते है। यह एक तरह का युद्ध है और इंटरव्यू हमारी रणनीति, स्ट्रेटेजी या व्यूह—रचना है।

साक्षात्कार के सामान्य लक्षण

—इंटरव्यू में किसी व्यक्ति विशेष से उसके कृतित्व और व्यक्तित्व से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते है।

—प्रश्नोत्तरों को प्रायः ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन इतनी सावधानी अवश्य रखी जाती है कि उन प्रश्नों और उत्तरों से समाज या देश का कोई अहित न हो। समाज में असंतोष, विद्वेष, अराजकता न फैले। ऐसी आशंका होने पर उन अंशों को सम्पादित कर दिया जाना चाहिए अथवा इंटरव्यू के प्रसारण को ही रोक दिया जाना चाहिये।

—एक अच्छे इंटरव्यू के लिए आवश्यक है कि प्रश्नकर्ता का बौद्धिक स्तर सामने वाले से कम न हो। बातचीत में यह आवश्यक नहीं कि वह सामने वाले के सभी उत्तरों से अक्षरशः सहमत हो। किसी बिन्दु पर दोनों में असहमति हो सकता है, लेकिन उसे धैर्य रखना होता है, क्योंकि वह जानता है, इंटरव्यू वास्तव में मेरा नहीं, सामने वाले का लिया जा रहा है। श्रोतागण मुझे कम, सामने वाले को अधिक सुनना चाहते है। दरअसल में श्रोताओं का प्रतिनिधि होता है प्रश्नकर्ता।

—इंटरव्यू में प्रश्नकर्ता को बहुत सजग रहना पड़ता है। कई बार उसे असहमति के बीच से अपना रास्ता निकालना होता है। कई बार अप्रिय स्थितियॉं भी आ जाती है। कुछ प्रश्न ऐसे भी हो सकते हैं, जो सामने वाले को चुभ जायें, या जिनका उत्तर वह न दे अथवा टाल दे। लेकिन प्रश्नकर्ता का उद्‌देश्य होता है सामने वाले व्यक्ति के अंदर छिपी भावनाओं को कुशलतापूर्वक बाहर निकलवाना। कुछ इस ढंग से कि यदि इंटरव्यू देने वाला उन्हें छिपाने की कोशिश भी करे, तो वह कोशिश भी सामने आ जाए। जाने—अनजाने वे बातें उसके मुॅंह से बाहर निकल आयें। इसी में इंटरव्यू लेने वाले की सफलता निहित है। अर्थात्‌ वार्तालाप की उत्कृष्ट कला वह है, जहॉं आप दूसरे के भीतर से उसके भीतर के सर्वश्रेष्ठ और ईमानदार को निकाल लेते है।

रेडियो—इंटरव्यू विधा या कार्यक्रम के निर्माण की बुनियादी बातें मुख्यतः इंटरव्यू लेने वाले (प्रश्नकर्ता) और इंटरव्यू देनेवाले—दोनों से जुड़ी हैं और मुख्य रूप से इस कार्यक्रम की सफलता—असफलता इन्हीं पर निर्भर करती है।

साक्षात्कार देने वाले व्यक्तित्व का चयन

जिस व्यक्ति का इंटरव्यू लिया जाता है, वह आम न हो कर खास होता है। यों तो कई बार आम लोगों का भी साक्षात्कार लिया जाता है, लेकिन वास्तव में यह कार्यक्रम विशेष व्यक्ति का ही होता है। इसलिए साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति का चयन उसकी विशिष्ट उपलब्धियों, उसके व्यक्तित्व के गुणों, समाज और देश—विदेश में उसके सम्मानजनक स्थान को ध्यान में रखकर किया जाता है। वह पुरूष या महिला कोई साहित्यकार हो सकता है, कलाकार, संगीतकार, वैज्ञानिक, राजनेता, अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरणविद्‌ डॉक्टर, शिक्षक, अपने क्षेत्र का विशिष्ट विद्वान, कानूनविद, खिलाड़ी आदि—आदि। कोई भी हो, उसे अपने क्षेत्र में विशिष्टता होनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति ही व्यापक श्रोता वर्ग की जिज्ञासा का केन्द्र होगा। उसके बारे में लोग जानना चाहेंगे। उससे मिलना चाहेंगे। बात करना चाहेंगे। श्रोताओं की यह अपेक्षा रेडियो अपने समाचार बुलेटिनों व कार्यक्रमों के माध्यम से पूरी करता है।

साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति का सहयोग —

—साक्षात्कार देने से पूर्व अपने मन में ऐसे संभावित प्रश्नों के उत्तर सोच लें, जो साक्षात्कार लेने वाला उससे पूछ सकता है। यानी होमवर्क अथवा रिहर्सल (पूर्वाभ्यास) कर लें ।

— आत्मविश्वास से काम लेना चाहिए। बहुत—से लोग अच्छा लिख लेते हैं, लेकिन अच्छी तरह बोल नहीं पाते। इसमें उनके आत्मविश्वास की कमी आड़े आती है।

—सभी प्रश्नों के उत्तर धैर्यपूर्वक, स्पष्ट, पूरी ईमानदारी से देना चाहिए। साक्षात्कार के दौरान अप्रिय लगने वाले प्रश्नों के उत्तर भी धैर्यपूर्वक से देना चाहिए। अपने मनोभवों पर नियंत्रण रखना चाहिए। आवेष में नहीं आना चाहिए। अपनी बात को अपने ढंग से विनम्रता के साथ सामने रखे।

—प्रश्नों के उत्तर पूरी तरह और प्रश्न की मूल भावना से जुड़ कर देने चाहिए। केवल हॉं या नहीं से काम नहीं चल सकता। न चेहरे के हाव—भाव या सिर हिलाने से काम चल सकता है। टेलीविजन से अलग, रेडियो शब्दों का माध्यम है। यहॉं ध्वनि चाहिए। शब्द चाहिए। लोग अधिक से अधिक आपके मुंह से सुनना चाहते है।

—हमेशा यह ध्यान रख्ना चाहिए कि जो व्यक्ति प्रश्न पूछ रहा है, वह श्रोताओं का प्रतिनिधि है। वास्तविक प्रश्नकर्ता तो जनता है, जो सामने नहीं है। इसलिए जो कहेगें वह व्यक्तित्व का प्रभाव उन श्रोताओं पर पड़ेगा और अच्छी—बुरी धारणा बनेगी।

—प्रश्नकर्ता के ऊपर अनावश्यक रूप से हावी होने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उसे अपना मित्र, आत्मीय और सहायक मानना चाहिए। किसी भी दृष्टि से अपने से हीन या छोटा नहीं समझना चाहिए।

—इंटरव्यू में नाटकीयता आ जाए तो यह अच्छा बात नहीं है। मीठी नोंकझोंक से बातचीत में जीवन्तता आ जाती है, जो श्रोताओं को आकर्षित करती है। इसके लिए चाहिए कि वह इंटरव्यू लेने वाले का पूरा सहयोग करें।

—कई बार ऐसे प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं, जो पहले से तय नहीं होते। बातचीत के बीच से निकल आते हैं। ऐसे सहज प्रश्नों से विचलित नहीं होना चाहिए।

साक्षात्कर्ता

जिस तरह इंटरव्यू देने वाले व्यक्तित्व का चयन किया जाता है, उसी तरह इंटरव्यू लेने वाले का भी चुनाव कई योग्यताओं को देख कर किया जाता है। संक्षेप में एक अच्छे साक्षात्कारकर्ता के लिए ध्यान रखने योग्य कुछ बातें इस प्रकार है।—

—साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व, स्वभाव, कृतित्व, अपने क्षेत्र में उसके योगदान आदि का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। यह ज्ञान पहले से नहीं है, तो उसे चाहिए कि जानकारी एकत्र करें। यह अच्छे इंटरव्यू की सफलता की कुंजी है।

—वास्तविक या जीवन्त प्रसारण (लाइव टेलीकास्ट) अथवा इंटरव्यू के ध्वन्यांकन (रिकार्डिंग) से पूर्व यह ठीक रहेगा कि आप इंटरव्यू देने वाले के साथ छोटी—सी बैठक कर लें। थोड़ी बातचीत कर लें। इससे दोनों एक—दूसरे की मनःस्थिति, स्वभाव आदि तो जान ही लेंगे साथ ही प्रश्नों पर हल्की—सी बातचीत भी हो जाएगी। इससे दोनों को ही सुविधा रहेगा।

—अच्छे प्रश्न एक अच्छे इंटरव्यू की जान है। इसलिए व्यक्ति, कार्यक्रम की प्रकृति और श्रोतावर्ग की अभिरूचि के अनुसार सार्थक, रोचक तथा जीवन्त प्रश्न पूछना चाहिए।

—प्रश्नों में सन्तुलन होना चाहिए। प्रश्न स्पष्ट हो। बहुत लम्बे या बहुत छोटे नहीं हो। उत्तर केवल हॉ या नहीं में हो। या ऐसे प्रश्न न हों, जिनका उत्तर इतना विस्तृत हो कि दो—चार प्रश्नों के उत्तर देने में ही इंटरव्यू का सारा समय निकल जाए।

विभिन्न कार्यक्रम

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रेडियो प्रसारण का प्राथमिक उद्‌देश्य, लोगों का मनोरंजन करना और उन्हें शिक्षित करना। यह स्थिति आज भी बनी हुई है। इसके कार्यक्रम बच्चों, महिलाओं, किसानों, युवाओं और कामगारों आदि को केन्द्र में रख कर बनाये जाते हैं। मसलन, बाल जगत कार्यक्रम, महिला जगत कार्यक्रम, कृषि जगत कार्यक्रम, युवा जगत कार्यक्रम और श्रमिक कार्यक्रम आदि। इन कार्यक्रमों का रेडियो के विभिन्न सेवा में प्रयोग होता है।

विविध भारती और विज्ञापन सेवा— इस सेवा के माध्यम से फिल्मी गीत, संगीत, भक्ति संगीत, सुगम संगीत और मनोरंजनपरक कार्यक्रमों का प्रसारण होता है। आकाशवाणी के प्राइमरी चैनल पर व्यावसायिक कार्यक्रम का प्रसारण 26 जनवरी, 1985 से लगभग 55 से ज्यादा केंद्रों पर हो रहा है।

समाचार सेवा प्रभाग— सुबह, दोपहर, शाम और रात्रि के समाचार बुलेटिनों के अतिरिक्त हर घण्टे समाचार बुलेटिन, एफ.एम.हेडलाइन बुलेटिन, दूरभाष पर समाचार, विभिन्न क्षेत्रिय भाषाओं में समाचार बुलेटिन, समाचार दर्शन, समाचार पत्रों से संसद समीक्षा और विधान मंडल समीक्षा का प्रसारण समाचार सेवा प्रभाग द्वारा होता है।

भोजपुरी समाचार बुलेटिन— रेडियो पर सर्वप्रथम भोजपुरी समाचार बुलेटिन के प्र्रसारण का सवाल है तो आकाशवाणी के गोरखपुर केन्द्र के प्रादेशिक समाचार एकांश से 6 नवम्बर 2008 को शाम 5. 35 पर भोजपुरी में पांच मिनट का समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू हुआ। भोजपुरी में समाचार बुलेटिन का यह पहला विश्व प्रसारण बना। समाचार संपादक आर.सी.शुुक्ल ने समाचार बुलेटिन तैयार करावाया और समाचार वाचक विकास राय ने भोजपुर भाषियों को अपनी जोरदार—दमदार आवाज में भोजपुरी समाचार सुनाया।

विदेश सेवा— आकाशवाणी की विदेश सेवा भी है जो भारतीय सांस्कृतिक जीवन को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर लाता है। इस सेवा के माध्यम से भारतीय दृष्टिकोण को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर रखा जाता है। समय के बदलते आयामों के तहत कार्यक्रमों में भी व्यापक बदलाव किये गये। सूचना देने के तहत समाचार पर आधारित कार्यक्रम, समाचार, न्यूजरील, रेडियो रिपोर्ट को शामिल किया गया। जबकि

वार्ता कार्यक्रम — इसमें में साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, खेल और अन्य समसामयिक विषय षामिल हैं। वहीं वार्तालाप कार्यक्रम में साक्षात्कार, बातचीत, परिचर्चा, संगोष्ठी तो गीत संगीत/ मनोरंजनपरक कार्यक्रम में शास़्त्रीय गीत संगीत, फिल्मी गीत संगीत, लोकगीत—संगीत। साहित्यिक कार्यक्रम को भी बढ़ावा दिया गया। इसमें कहानी पाठ, कविता पाठ, कवि सम्मेलन, प्रहसन, नाटक, रूपक, झल्की आदि को शामिल किया गया।

पत्रिका कार्यक्रम— में साहित्यिक, विज्ञान, खेल ,महिला, युवा पत्रिका को जगह दी गई। अन्य कार्यक्रमों में विज्ञान, ज्योतिष, खेलकूद, समसामयिक ,समाज देश—विदेश, सरकार के सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम आदि। अन्य कार्यक्रमों में विज्ञान, ज्योतिष, खेलकूद, समसामयिक, समाज देश—विदेश, सरकार के सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम आदि। इन सब की अपनी—अपनी अहमियत है लेकिन आज रेडियो समाचार की दुनिया की अपनी पहचान है। समाचार के मद्‌देनजर इसका जन्म हुआ यानी सूचना को तुरंत लोगों तक पहुंचाने को लेकर। आज इसकी जड़ बहुत मजबूत हो चुकी है।

रेडियो अपने प्रसारण काल से ही लगातर विकास पाता गया है और भी इसमें नये आधुनिक बदलाव हो रहे हैं। सस्ता व सुगम मनोरंजन देने वाला यह माध्यम दिन प्रतिदिन विस्तार पा रहा है। विकास से ही इसके स्वरूप में भी परिवर्तन आया है। इसे प्रकार से जाना जाता है।

ए.एम. रेडियो — ए.एम. रेडियो यानी एम्लीच्यूड मॉड्‌यूलेशन। इसमें रेडियो तरगों के प्रसारण के दौरान कैरियर सिग्नल के एम्लीच्यूड के प्रसारित सिग्नल के एम्लीच्यूड के संर्दीा में बदला जाता है। विश्व में ए.एम. रेडियो का प्रसारण 1920 में हुआ था। भारत में शार्ट वेव और मीडियम वेव द्वारा ए.एम. रेडियो का प्रसारण किया जाता है।

एफ.एम. रेडियो — 1930 में एडविन एच. आर्मस्ट्रांग ने एफ.एम. रेडियो का आवस्कार किया था। यह रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में बेहतर प्रसारण देता है। आज एफ.एम. रेडियो काफी चर्चित है। मोबाइल फोन पर भी एफ.एम. रेडियो उपलब्ध है। भारत में जुलाई1977मद्रास से प्रथम एफ.एम. सर्विस की शुरुआत हुआ। आज लगभग देश में एफ.एम. रेडियो है और इस क्षेत्र में निजी एफ.एम. रेडियो भी सक्रिय है।

डिजीटल रेडियो— डिजीटल रेडियो की प्रसारण सेवा सर्वप्रथम यूरोप में इसके बाद युनाइटेड स्टेट में प्रारंभ हुयी। डिजीटल रेडियो सेवा 1995 में यू.के. और 1999 में जर्मनी द्वारा शुरू की गयी। भारत में भी इस दिशा में कार्य शुरू हो चुका है।

इंटरनेट रेडियो — इंटरनेट पर भी रेडियो के कार्यक्रम सुने जा रहे है। आकाशवाणी, बीबीसी सहित अन्य रेडियो की सेवा नेट पर उपलब्ध है।

स्काई रेडियो — स्काई रेडियो का आविष्कार हवाई जहाज में यात्रा कर रहे लोगों के मनोरंजन करने हेतु किया गया। विश्व की बड़ी एयरलाइन कंपनियों यह ेवा दे रही है।

सेटेलाइट रेडियो— आज लगभग सभी रेडियो का प्रसारण सेटेलाइट यानी उपग्रह के माध्यम से हो रहा है। उपग्रह के माध्यम से प्रसारित होने वाले रेडियो को विश्व में कहीं भी सुना जा सकता है। भारत में यह 1997 में दो कंपनी को उपग्रह रेडियो का लाइसेंस दिया गया। भारत में पहला सेटेलाइट कम्युनिटी रेडियो गत वर्ष वर्ल्ड स्पेस ने बैंगलोर में शुरू किया।

कम्युनिटी रेडियो— कम्युनिटी रेडियो यानी समुदायिक रेडियो स्थानी जनता द्वारा अपने समुदाय के विकास हेतु प्रसारण है। भारत सरकार ने कम्युनिटी को रेडियो लाइसेंस देेने के लिए 2005 में मंजूरी दी। यह एक क्षेत्र विशेष का रेडियो है जिसका दायरा 10 से 50 कि.मी हवाई दूरी होती है।

भारत में प्रसारण का इतिहास

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अगस्त 1921 —टाइम्स ऑफ इंडिया तथा पोस्ट एंड टेलीग्राफ विभाग

के संयुक्त प्रयास से एक रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण

किया गया।

नवंबर 1923 — कलकत्ता रेडियो क्लब द्वारा प्रसारण शुरू किया गया।

जून 1924— बंबई रेडियो क्लब का प्रसारण आरंभ हुआ।

जुलाई 1924 — मद्रास पे्रजीडेंसी क्लब द्वारा प्रसारण सेवा आरंभ।

मार्च 1926— इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी बनाई गई।

जुलाई 1927 —इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी का बंबई केंद्र आरंभ

अगस्त 1927 —इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी का कलकत्ता केंद्र आरंभ

मार्च 1930 — आर्थिक कठिनाइयों के कारण इंडियन ब्रॉडकास्टिंग

कंपनी समाप्त कर दी गई।

अपै्रल 1930 —इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस के नाम से एक

प्रसारण सेवा उद्योग एवं श्रम विभाग के अंतर्गत

प्रयोगात्मक रूप से आरंभ की गईं।

मई 1932 — सरकार द्वारा प्रयोगात्मक रूप में आरंभ की गई

प्रसारण सेवा को आगे जारी रखने का निर्णय।

जनवरी 1935— मारकोनी कंपनी द्वारा दिए गए ट्रांसमीटर तथा

रिसीवर सेटों से उत्तर—पश्चिम सीमा प्रांत में ग्रामीण

प्रसारण आरंभ कया गया।

जनवरी 1935—इलाहाबाद के कृषि शोध संस्थान को प्रयोगात्मक

प्रसारण हेतु लाइसेंस दिया गया। यहां से कृषि संबंधी

कार्यक्रमों का प्रसारण आरंभ हुआ।

फरवरी 1935— हैदराबाद में निजाम शासन द्वारा एक केंद्र आरंभ

किया गया।

मार्च 1935 — कंट्रोलर ऑफ ब्रॉडकास्ट्‌स के नाम से एक नया

विभाग बनाया गया।

अगस्त 1935—लायनेल फील्डन की प्रथम कंट्रोलर ऑफ ब्रॉडकास्ट के

रूप में नियुक्ति।

सितंबर 1935— आकाशवाणी के नाम से एक प्रसारण केंद्र मैसूर में

प्रारंभ किया गया।

जनवरी 1936—इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस द्वारा दिल्ली में एक

प्रसारण केंद्र आरंभ किया गया।

जनवरी 1936—प्रथम समाचार बुलेटिन का प्रसारण।

जून 1936— इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का नाम बदलकर ‘‘ऑल

इंडिया रेडियो'' कर दिया गया।

अगस्त 1937— समाचार प्रसारण के लिए ‘‘सेंट्रल न्यूज ऑर्गेनाइजेशन''

बनाया गया।

अक्तूबर 1939—पश्तो भाषा में प्रसारण से विदेश प्रसारण की शुरुआत

हुई।

अक्तूबर 1941—‘‘ऑल इंडिया रेडियो'' को सूचना एवं प्रसारण विभाग के

अंतर्गत कर दिया गया।

जनवरी 1942—मैसूर के प्रसारण केंद्र ‘‘आकाशवाणी'' को मैसूर शासन

द्वारा अपने नियंत्रण में ले लिया गया।

फरवरी1946— ऑल इंडिया रेडियो को सूचना एवं कला विभाग

के अंतर्गत किया गया।

सितंबर1946—सूचना और कला विभाग को सूचना और प्रसारण विभाग

कर दिया गया।

अगस्त1947— विभाजन के समय भारत में ऑल इंडिया रेडियो के छह

प्रसारण केंद्र आए। ये केंद्र थे— दिल्ली, बंबई, कलकत्ता,

मद्रास, तिरुचिरापल्ली तथा लखनऊ। पेशावर, लाहौर

तथा ढाका के प्रसारण केंद्र पाकिस्तान में चले गए।

सितंबर1948— ‘‘सेंट्रल न्यूज ऑर्गेनाइजेशन को दो भागों में बांट दिया

गया एक था, समाचार सेवा प्रभाग तथा दूसरा, विदेश

प्रसारण प्रभाग।

जुलाई1952— आकाशवाणी से पहला संगीत का अखिल भारतीय कार्यक्रम

प्रसारित।

जुलाई1953— नेशनल प्रोग्राम ऑफ टॉक के प्रसारण की शुरुआत।

अगस्त1956—नाटकों के आखिल भारतीय कार्यक्रम की शुरुआत।

अक्तूबर1957—विविध भारती प्रसारण का आरंभ।

नवंबर1959— दिल्ली से दूरदर्शन के प्रथम केंद्र से कार्यक्रम

आरंभ हुए।

नवंबर1967—विविध भारती पर विज्ञापन का प्रसारण आरंभ।

जुलाई1969—दिल्ली से युववाणी कार्यक्रम की शुरुआत।

अगस्त1969— कलकत्ता (मोगरा) में 1000 किलोवाट के सुपर

पॉवर ट्रांसमीटर ने कार्य करना शुरू किया।

जनवरी1971 —राजकोट में 1000 किलोवाट का सुपर पावर ट्रांसमीटर

चालू।

1974— आकाशवाणी वार्षिक पुरस्कारों का आरंभ।

अपै्रल1976— आकाशवाणी तथा दूरदर्शन को अलग किया गया।

सन्‌1977—राजनीतिक दलों के प्रसारण का आरंभ।

जुलाई1977—मद्रास से प्रथम एफ.एम. सर्विस की शुरुआत।

मई1983—आकाशवाणी बड़ौदा विज्ञापन प्रसारण सेवा का पहला

केंद्र बना।

सितंबर1984—अलीगढ़ में 250 किलोवाट के दो उच्च शक्तिवाले

ट्रांसमीटरों का उद्‌घाटन किया गया।

अक्तूबर1984—नागरकोइल में पहला स्थानीय केंद्र (एल.आर.एस.)।

जनवरी1985—प्राइमरी चैनल पर विज्ञापन की शुरुआत।

अगस्त—1985— प्रत्येक घंटे पर समाचार बुलेटिन की शुरुआत।

सन्‌—1985— आकाशवाणी के सभी केंद्रों को पांच

चैनलवाले सेटेलाइट रिसीवर टर्मिनल दिए गए।

मई—1988— राष्ट्रीय प्रसारण सेवा (नेशनल चैनल) आरंभ हुई।

अपै्रल—1989—समन्वित उत्तर—पूर्व सेवा (इंटिग्रेटेड नॉर्थ—ईस्ट

सर्विस) की शुरुआत।

मार्च—1990—वारंगल आंध्र प्रदेश में सौवें प्रसारण केंद्र की

शुरुआत।

मार्च—1990—बंगलौर में 500 किलोवाट क्षमता वाले दो सुपर

पावर शॉर्ट वेव ट्रांसमीटर आरंभ हुए।

सन्‌—1990—राष्ट्रीय एकता पर सर्वोत्कृष्ट कार्यक्रम के लिए

लासा कौल पुरस्कार आरंभ हुआ।

सन्‌—1990ःआकाशवाणी ने सर्वोत्तम संवाददाता (समाचार)

के लिए वार्षिक पुरस्कार आरंभ किया।

अक्तूबर—1992—जालंधर में एफ.एम. चैनल की शुरुआत।

जनवरी—1993—आकाशवाणी दिल्ली से फोन—इन कार्यक्रम की

शुरुआत।

जनवरी—1993— वाराणसी से विविध भारती चैनल आरंभ किया गया।

अपै्रल—1993—बहरामपुर (उड़ीसा) में आकाशवाणी का एक सौ

पचासवां केंद्र शुरू हुआ।

15 अगस्त—1993— एफ.एम. चैनल का आरंभ। दिल्ली और बंबई में

एफ.एम. चैनल पर निजी प्रसारकों को टाइम स्लॉट

दिया गया।

सितंबर—1993— मद्रास में एफ.एम. चैनल पर बाहरी निजी प्रसारकों

को प्रसारण हेतु टाईम स्लॉट।

अपै्रल—1994—स्काई रेडियो आरंभ हुआ।

जुलाई—1994— कलकत्ता में एफ.एम. चैनल से निजी प्रसारकों

को टाइम स्लॉट।

सितंबर—1994— मुंबई में मल्टी ट्रेक रेडियो ने काम करना आरंभ

किया।

सितंबर—1994— बंगलौर में 500 किलोवाट के चार सुपर पावर शॉर्ट

वेव ट्रांसमीटर्स का उद्‌घाटन।

नवंबर—1994— पणजी में एफ.एम. केंद्र से निजी प्रसारकों को समय।

जनवरी—1995—रेडियो पेजिंग सेवा का आरंभ।

अगस्त—1995—चेन्नई में मल्टी ट्रेक स्टूडियो का उद्‌घाटन।

सन्‌—1995—आकाशवाणी द्वारा सर्वोत्तम श्रोता अनुसंधान

सर्वेक्षण के लिए पुरस्कार।

फरवरी1996—दिल्ली में नए प्रसारण भवन का शिलान्यास।

मई1996— इंटरनेट पर ए.आई.आर. ऑनलाइन इनफॉर्मेशन

सर्विस की शुरुआत।

जनवरी1997— इंटरनेट पर ऑडियो इन रियल टाइम की शुरूआत।

नवंबर1997— प्रसार भारती निगम का गठन किया गया तथा

आकाशवाणी और दूरदर्शन इस निगम के अंतर्गत

आ गए।

जनवरी1998— एफ.एम.—2 चैनल ट्रांसमिशन पर रेडियो ऑन डिमांड

का आरंभ।

फरवरी1998—टेलीफोन पर समाचार सेवा उपलब्ध।

अपै्रल1998— एफ.एम. पर निजी प्रसारकों का प्रसारण समाप्त

किया गया तथा आकाशवाणी द्वारा अपने कार्यक्रमों

का प्रसारण आरंभ।

अगस्त 1998— लोकसभा में जुलाई में जिस रूप में प्रसार

भारती बिल पास किया गया उसी रूप में अध्यादेश

से लागू।

जून1999— निजी एफ.एम. चैनलों की घोषणा।

अगस्त1999— दिल्ली तथा कलकत्ता में एफ.एम. के दूसरे चैनल की

शुरुआत।

फरवरी2000— आकाशवाणी जबलपुर से विविध भारती की शुरुआत।

मार्च—2000— बोडोलैंड स्वायत्तशासी क्षेत्र में धुबरी में प्रसारण केंद्र

आरंभ।

मार्च 2000— जम्मू से विविध भारती सेवा आरंभ।

अगस्त 2000— कोयंबतूर से विविध भारती सेवा आरंभ।

सितंबर 2000— जमशेदपुर से विविध भारती सेवा आरंभ।

फरवरी 2001 — उत्तराचंल में गोपेश्वर से आकाशवाणी केंद्र प्रारंभ।

सितंबर 2001— दिल्ली, कलकत्ता, मुंबई तथा चेन्नई से एफ.

एम.—2 के नाम से सूचना/मनोरंजन

(इंफोटेनमेंट) का एक नया चैनल आरंभ।

रेडियो के विभिन्न कार्यक्रम

रेडियो प्रसारण का प्राथमिक उद्‌देश्य, लोगों का मनोरंजन करना और उन्हें शिक्षित करना है। यह स्थिति आज भी बनी हुई है। इसके विशेष कार्यक्रम बच्चों, महिलाओं, किसानों, युवाओं और कामगारों आदि को केन्द्र में रख कर बनाये जाते हैं। मसलन, बाल जगत कार्यक्रम, महिला जगत कार्यक्रम, कृषि जगत कार्यक्रम, युवा जगत कार्यक्रम और श्रमिक कार्यक्रम आदि।

विविध भारती और विज्ञापन सेवा — इस सेवा के माध्यम से फिल्मी गीत, संगीत, भक्ति संगीत, सुगम संगीत और मनोरंजनपरक कार्यक्रमों का प्रसारण होता है। आकाशवाणी के प्राइमरी चैनल पर व्यावसायिक कार्यक्रम का प्रसारण 26 जनवरी, 1985 से 55 से ज्यादा केंद्रों पर हो रहा है।

समाचार सेवा प्रभाग — सुबह, दोपहर, शाम और रात्रि के समाचार बुलेटिनों के अतिरिक्त समाचार दर्शन, समाचार पत्रों से संसद समीक्षा और विधान मंडल समीक्षा का प्रसारण समाचार सेवा प्रभाग द्वारा होता है।

विदेश सेवा — आकाशवाणी की विदेश सेवा भी है जो भारतीय सांस्कृतिक जीवन को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर लाता है। इस सेवा के माध्यम से भारतीय दृष्टिकोण को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर रखा जाता है। समय के बदलते आयामों के तहत कार्यक्रमों में भी व्यापक बदलाव किये गये।

सूचना देने के तहत समाचार पर आधारित कार्यक्रम, समाचार, न्यूजरील, रेडियो रिपोर्ट को शामिल किया गया। जबकि वार्ता परक कार्यक्रम में साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, खेल और अन्य समसामयिक विषय शामिल हैं। वहीं वार्तालाप कार्यक्रम में साक्षात्कार, बातचीत, परिचर्चा, संगोष्ठी तो गीत संगीत/ मनोरंजन परक कार्यक्रम में शास़्त्रीय गीत संगीत, फिल्मी गीत संगीत, लोकगीत—संगीत।

साहित्यिक कार्यक्रम को भी बढ़ावा दिया गया। इसमें कहानी पाठ, कविता पाठ, कवि सम्मेलन, प्रहसन, नाटक, रूपक, झलकी आदि को शामिल किया गया। पत्रिका कार्यक्रम में साहित्यिक, विज्ञान, खेल ,महिला, युवा पत्रिका को जगह दी गई। अन्य कार्यक्रमों में विज्ञान, ज्योतिष, खेलकूद, समसामयिक, समाज देश—विदेश, सरकार के सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम आदि। इन सब की अपनी—अपनी अहमियत है लेकिन आज रेडियो समाचार की दुनिया की अपनी पहचान है। समाचार के मद्‌देनजर इसका जन्म हुआ यानी सूचना को तुरंत लोगों तक पहुंचाने को लेकर। आज इसकी जड़ बहुत मजबूत हो चुकी है।

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संदर्भः— 1. आकाशवाणी—राम बिहारी विश्वकर्मा

2. रेडियो प्रसारण— कौशल शर्मा

3. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट

4. सूचना प्रौद्योगिकी और जन—माध्यम

5. ूूूण्दमूेवदंपतण्बवउ

6. ूूूण्इइबीपदकपण्बवउ

7ण्।प्त् ैजलसम ठववा

8. अन्य पुस्तकें

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जीवनवृत्त

संजय कुमार

समाचार संपादक

दूरदर्शन

पटना—800001, बिहार। मो—09934293148

शिक्षा—भागलपुर विश्वविद्यालय से स्नातक, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा और नालंदा खुला विश्वविद्यालय, पटना से पत्रकारिता व जनसंचार में स्नातकोत्तर ।

पुस्तक प्रकाशन—1.तालों में ताले अलीगढ़ के ताले, 2.नागालैंड के रंग बिरंगे उत्सव, 3.पूरब का स्वीट्‌जरलैंडःनागालैंड, 4. 1857ःजनक्रांति के बिहारी नायक, 5.बिहार की पत्रकारिता तब और अब, 6.आकाशवाणी समाचार की दुनिया, 7.रेडियो पत्रकारिता और 8.मीडिया में दलित ढूंढते रह जाओगे।

पत्रकारिता—शुरूआत वर्ष 1989 से। राष्ट्रीय व स्थानीय पत्र—पत्रिकाओं में, विविध विषयों पर ढेरों आलेख, रिपोर्ट—समाचार, फीचर आदि प्रकाशित। कई अखबारों में बतौर उपसंपादक।

आकाशवाणी—वार्ता/रेडियो नाटकों में भागीदारी। पत्रिकाओं में ढ़ेरों कहानी/ कविताएं प्रकाषित। चर्चित साहित्यिक पत्रिका वर्तमान साहित्य द्वारा आयोजित कमलेश्वर कहानी प्रतियोगिता में कहानी ‘‘आकाश पर मत थूको'' चयनित व प्रकाशित।

पुरस्कार—बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्‌ द्वारा ‘‘नवोदित साहित्य सम्मान'', भारतीय साहित्य संसद द्वारा 1857 जनक्रांति के बिहारी नायक के लिये ‘‘बहादुरशाह जफर सम्मान, करूणा मैत्री सम्मान 2014 ।

सम्प्रति—वर्ष 1993 से भारतीय सूचना सेवा में। दूरदर्शन के प्रादेशिक समाचार एकांश, पटना में समाचार संपादक के पद पर कार्यरत।

सम्पर्क—संजय कुमार, फ्‌लैट संख्या—303, दिगम्बर प्लेस, डॉक्टर्स कालोनी, लोहियानगर, कंकडबाग, पटना—800020, बिहार। मो— 09934293148, 09430236286 ईमेल&sanju3feb@gmail.com

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