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धारा - 3

धारा (भाग-3)

हॉस्पिटल पहुंचकर भी धारा का मन घर मे ही लगा हुआ था..!जिसका कारण था,"देव"..!! धारा को देव की चिंता लग रही थी, " पता नही घर पर अकेले क्या कर रहा होगा वो..??" धारा ने मन ही मन सोचा..!!

डॉक्टर धीरज उसकी मनःस्थिति भलीभांति समझ रहे थे !! उन्होंने धारा से कहा," धारा, ऐसे काम करोगी तो समय और धीमा लगेगा..!! पेशेन्ट्स को देखने मे, एडमिट पेशेन्ट्स को देखने मे समय जल्दी बीतेगा..!! अगर देव की चिंता में ही लगी रहोगी तो दिन पहाड़ के जैसे लगेगा !!"

धारा को डॉक्टर धीरज की बात ठीक लगी। वो उठकर पेशेन्ट्स का चेकअप करने चली गयी !! सही कहा था डॉक्टर धीरज ने, पेशेन्ट्स को देखने उनके हालचाल पूछने में कब समय निकल गया, धारा को पता ही नही चला !!

दोपहर के डेढ़ बड़े लंच समय मे धारा फौरन घर के लिए निकल पड़ी !! जैसे ही उसने घर का लॉक खोला, और अंदर एंटर हुई, पूरा गगर महक रहा था !! धारा ने एक गहरी सांस खींची !!

खुशबू किचन से आ रही थी ! धारा सीधे किचन में ही पहुंच गई..!!! उसने देखा तो चौंक गई !देव खाना बना रहा था !धारा घबराकर उसके पास गई और बोली,"ये क्या कर रहे हो..? तुम्हारी तबियत ठीक नही हुई है अभी !! तुम अभी आराम करो देव..!"

देव ने बिना धारा की ओर देखे, कढ़ाई में चम्मच चलाते हुए कहा,"दिखाई नही दे रहा क्या कर रहा हूँ..? और कभी तबियत बिल्कुल सही है ! तुमने ही कहा था न जिस काम से दिमाग पर लोड न पड़े वो करूँ..! तो बस वही कर रहा हूँ..!!"

"तुम्हे आता है खाना बनाना..??" धारा ने हैरानी से पूछा.!

देव ने कहा," पता नही ! भूख लगी थी ! किचन में आया तो कुछ मिला नही खाने को ! फिर रेसिपी बुक दिखी तो सोचा ट्राय करता हूँ ! मगर जब बनाने लगा तो ऐसा लगा जैसे मुझे आता है खाना बनाना !!"

"ओह !!" धारा ने कहा और फिर देव से बोली," पर तुम्हे ये सब खाना अलाओ नही है !!"

देव धारा से आगे चम्मच घुमाकर,"ओह मैडम..!! ये सूप है !! खा सकता हूँ मैं इसे और पी भी सकता हूँ..!!"

धारा ने एक छोटी चम्मच उठाकर कढ़ाई से सूप लेकर उसी में गिराते हुए बोली,"ये सूप है..इतना गाढ़ा..!!"

"हाँ, तुम्हारे घर मे अब कुछ है ही नही तो क्या करूँ..? जो है उसी से बना लिया ! अब जैसा है, खाना है तो खाओ वरना कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नही है.!!" देव ने धारा को धमकी देते हुआ कहा!!

देव ने अपने लिए बाउल में सूप लिया उसमें चम्मच डाली और रूम में चला गया ! देव के जाते ही धारा ने कढ़ाई में उंगली डालकर सूप लिया और मुंह मे उंगली रख ली.! सूप टेस्ट करते ही धारा बोली, "उम्म, यम्मी..! मुझे तो रेसिपी से पढ़कर भी बनाना नही आता ! देव ने तो गजब का बनाया है,..!! "

धारा ने कढ़ाई में रखा हुआ सारा सूप एक बाउल में लिया और अपने कमरे में पहुंच गई !!
देव को और भूख लगी थी ! वो और सूप लेने किचन में आया!! जैसे ही कढ़ाई देखी, कढ़ाई खाली हो चुकी थी। देव खुद से बडबडाया,"खुद तो बनाती नही है!! मैंने जो बनाया, भुक्कड़ वो भी सारा चट कर गयी !! हद है मतलब..!! अब मैं क्या करूँ..??"

धारा सूप पीकर बाउल रखने आयी! उसकी नज़र किचन में खड़े देव पर गयी ! धारा समझ चुकी थी कि देव उसपर बरसने वाला है ! उसने किचन में पहुंचते ही देव की तारिफ करना शुरू कर दिया," वाओ देव..! तुम तो मास्टर शेफ हो..! बहुत ही टेस्टी सूप था..!!"

"इसीलिए तुम सारा खा-पी गयी !!" देव बोला।

"वो मैंने पहले थोड़ा टेस्ट किया मुझे अच्छा लगा तो मैंने थोड़ा ले लिया..! पर काफि समय बाद घर का खाना खाया ना तो....!" धारा ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

"कोई बात नही..! मुझे मार्किट से कुछ सामान ला देना..! मैं लिस्ट बनाकर दे दूंगा तुम्हे !!" देव ने कहा और किचन से बाहर निकल गया।

धारा अपने मे ही खोई हुई हॉस्पिटल पहुंची ! डॉ. नकुल ने उन्हें देखकर कर पूछा,"क्या हुआ डॉ. धारा..? परेशान नज़र आ रही हैं..!!सब ठीक तो है ना ..! देव ! देव तो ठीक है ना..??"

"अरे देव तो कुछ ज्यादा ही ठीक हो गया है डॉ. नकुल !!" धारा ने जवाब देते हुए कहा।

कुछ असमंजस में पड़ते हुए,"मतलब..??"

"अरे मतलब ये की, ये देव, इतने सवाल पूछता है कि कुछ पूछो ही मत !! मतलब, एक बार अगर शुरू हो गया न तो आप भाग भी नही सकते...!!" धारा ने थोड़ा झुंझलाते हुए कहा।

डॉ. नुकल मुस्कुराए धारा की बात सुनकर.! उन्होंने धारा से कहा," डॉ. धारा, देव लगभग छह-सात महीनों बाद कोमा से आया है बाहर !! उसकी स्मरण शक्ति खो चुकी है ! जैसे एक अबोध बालक होता है ना, देव भी इस समय बिल्कुल वैसा ही है ! जैसे बच्चा कुछ समय नही पाता, उसे किसी वस्तु की नॉलेज नही होती और वो प्रश्न करता है क्योंकि उसके मस्तिष्क में इन सबका ज्ञान होता ही नही है ! बिल्कुल खाली होता है दिमाग !! उनका दिमाग वो हम से प्रश्न पूछकर, हमारे सवालो के द्वारा भरते हैं..!! वही हाल देव का है !! उसे कुछ भी याद नही! पुरानी सारी बातें इरेज़ हो चुकी है उसके माइंड से !! अब फ़ॉर से भरना शुरू होगी!! वो तुमसे प्रश्न करेगा और तुम्हे उनका उत्तर देना होगा..! इस समय आपको बहुत धैर्य रखने की आवश्यकता है डॉ धारा !! आपको देव को वैसे ही समझाना है जैसे एओ छोटे बच्चे को समझाते हैं !!!"

धारा को कुछ-कुछ तो समझ आ गया था ! वो ये तो बहुत अच्छे से समझ चुकी थी कि देव के साथ वास्तव में उसे बहुत धैर्य से काम लेना होगा !! अचानक से धारा के मन मे एक ओर प्रश्न उठा ! उसने तुरंत पूछा,"डॉ नकुल.. मेरी एक ओर समस्या है !! आई मीन एक ओर सवाल है..!!"

डॉ. नकुल ने बड़ी ही सहजता से कहा,'पूछिये..!!"

"आज जब मैं घर पहुंची तो देव खाना बना रहा था ! मतलब, सूप !! मैंने जब उससे पूछा कि तुम्हे आता है खाना बनाना तो उसने कहा,"रेसिपी बुक से देखकर बना रहा था ! मश्ग बनाते समय ऐसा लगा जैसे मुझे आता है खाना बनाना..!!"
बस यही जानना था कि देव को याद आम लगा है क्या सब..??"

डॉ नकुल धारा की बात सुनकर मुस्कुरा उठे ! उन्होंने धारा से कहा," ये ज्ञान और विज्ञान दोनो है डॉ धारा..!! देव सब कुछ भूल चुका है, और उसे सब कुछ इतनी जल्दी और आसानी से याद नही आएगा ! या शायद कभी ना आये ! और जो आपने कहा, तो इतना तो आप भी जानती ही होंगी एक डडॉक्टर है तो.. मनुष्य की याददाश्त जब जाती है तो वो, वो सारी घटनाएं भूल जाता है जो उसके पास्ट में हो चुकी हैं !! मगर जिस कार्य को उनसे सीखा है, जिसमे वो एक्सपर्ट है उसे नही भूलता..!
इसे आप ऐसे समझिए कि, आपने एग्जाम के लिये कोई आंसर याद किया! मगर एग्जामिनेशन हॉल के अंदर आप को वो आंसर याद ही नही आता !! आप आसपास का कुछ देखकर या प्रश्न को देखकर मर्ज़ी से आंसर लिखने लगती हैं रो जैसे-जैसे आप आंसर लिखी जाती हैं, आपको वो आंसर याद आने लगता है !!
बस ऐसा ही है !! एक धूल सी जम जाती है मानस पटल पर !! व्यक्ति भूलता नही है, बस उसे याद नही रहता .!!!"

धारा के चेहरे पर एक संतुष्टि का भाव उभर आया !! उसे लगा, देव को धीरे धीरे सब याद आ ही जायेगा !! डॉ नकुल चले गए !

शाम को धारा ने देव की हुई लिस्ट के अनुसार सारा सामान लिया और घर पहुंची !
धारा देव को उसके सामान देने के लिए जैसे ही उसके रूम
में पहुंची ! देव को देखते ही मुंह घुमाकर खड़ी हो गयी, "हे भगवान !! देव !! तुम ऐसे ही घूम रहे हो घर में बिना कपड़ों के..!!"

देव ने कहा,"ओह ! हेलो! तुम्हे मैं बिना कपड़ो के दिखाई दे रहा हूँ..? टॉवेल लपेटा हुआ है मैंने..!!"

"हाँ तो ! टॉवेल लपेटकर घूम घूम रहे हो..? कपड़े कहां गए तुम्हारे..??" धारा में लगभग चीखते हुए कहा।

"कपड़े..!! बोल तो ऐसे रही हो जैसे ढेर लगे हो यहां मेरे कपड़ो के ! मात्र दो जोड़ी कपड़े हैं ! दोनो ही गंदे हो गए..!! अब तुम मुझे कपड़े धोने देती नही हो ! आज नहाया, सोचा वापस वही पहन लेता हूँ मगर उनमे बदबू आ रही थी सो नही पहने..!!" देव ने कहा।

धारा मुंह बनाकर," सो नही पहने..! तो मेरे घर मे ऐसे ही घूम रहे हो!! निर्लज्ज कहीं के..!!"

देव चुटकी बजाकर," घर मे घूम रहा था का क्या मतलब है..? मैं यहीं था अपने रूम में समझी तुम !! तुम बिना पूछे, बिल्कुल धड़ल्ले से ऐसे कहीं भी किसी के भी रूम में घुसकर उसी पर चिल्ला रही हो !! वाह ! "

धारा ने दांतो तले ज़ुबान दबा ली !! सही तो बोल रहा था देव, वो ही बिना नॉक किये सीधे अंदर चली आयी ! धारा ने देव से माफी मांगते हुए उसे उसका सामान पकड़ाया और बिना पीछे मुड़े, सीधे बाहर भाग गई।


क्रमशः