Matsya Kanya - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

मत्स्य कन्या - 3

कौन हो तुम..?...और कौन है तुम्हारे महाराज..."

त्रिश्का के इतना कहते ही समुंद्र की ऊंची ऊंची लहरें उठने लगती है और पानी एक इंसान का रुप लेने लगती है.... जैसे जैसे वो आकृति उभरती है तभी त्रिश्का चिल्लाती है...

अब आगे...................

जैसे ही त्रिश्का चिल्लाती है तभी उसकी आंख खुलती हैं और खुद को अपने रुम में देख अपने को रिलेक्स करने के लिए लम्बी लम्बी सांसें लेने लगती है..... त्रिश्का जैसे ही उठकर बैठी थी तभी वो मोती आकर उसके सामने गिरता है ..उस मोती को देखकर त्रिश्क गुस्से में इधर उधर देखनी लगती है लेकिन उसे कोई नहीं मिलता... त्रिश्का के चिल्लाने की आवाज से मालविका और अविनाश जी उसके रूम में आते हैं...अपनी बेटी को परेशान देख मालविका उदास हो जाती है ..... जल्दी से पानी का गिलास भरकर त्रिश्का को पिलाती है ...

मालविका : त्रिशू.... क्या हुआ बच्ची ..?...फिर से वही सपना देखा क्या...?

त्रिश्का वहीं परेशानी भरे शब्दों में कहती हैं..." हां मां फिर से वही....आज भी वही लड़का काले से cape को पहने हुए था... मां हर बार मैं उसका फेस नहीं देख पाती..." त्रिश्का ने परेशान होकर अपने हाथ को अपने सिर पर रख लेती है....

उसे परेशान देख मालविका जी उसके बराबर में बैठकर उसके सिर को अपनी गोद में रखकर सहलाती हुई अपने पति की तरफ देखती हुई कहती हैं...." देख लिया आपने... क्या अब भी वही कहेंगे , इसे इसके हाल पर छोड़ दो... मुझसे अब ये सब बर्दाश्त नहीं होगा... मैं कल ही त्रिशू को काली पहाड़ी वाले बाबा के पास लेकर जाऊंगी...."

त्रिश्का मालविका जी को समझाती है....." मां सिर्फ़ एक सपना ही तो है इसमें आप इतना घबरा क्यूं रही है..." मालविका जी त्रिश्का की बात को काटते हुए कहती हैं...." त्रिशू सपने तो हर‌ रोज आते हैं लेकिन बार बार वही सपने नहीं आते कुछ अलग होते हैं... इसलिए मैं चाहती हूं तुझे एक बार बाबा को दिखा दूं । वो हर समस्या को चुटकियों में हल कर देते हैं..."

त्रिश्का : मां आप मानोगी तो नहीं, ठीक है मैं कल देवांश जी से बात करूंगी...

मालविका : हां......

दोनों की बात सुनकर अविनाश जी कहते हैं...."आखिर त्रिशू को मना लिया ले जाने के लिए...तो अब देवी जी रात बहुत हो चुकी है सोने दो इसे , कल वाटर रैंजर को जाॅब पर भी जाना है...."

अविनाश जी की बात सुनकर मालविका चिढ़कर कहती हैं...." आपको तो मेरा बोलना अच्छा ही नहीं लगता....." दोनों की प्यारी सी नोंकझोंक को रोकने के लिए त्रिश्का ने कहा...." पापा आप मां को कुछ मत बोलो..."

अविनाश : हां तुम दोनों मां बेटी की जोड़ी अगर जम जाती है तो हमारी कौन सुनता है......

त्रिश्का : पापा...आपके लिए भी आपकी बेटी है न ...आप दोनों बेस्ट पेरेंट्स है.....

मालविका जी और अविनाश जी दोनों एक साथ कहते हैं...." तू भी हमारी प्यारी सी जान है..."

अविनाश : चल अब तू सो जा.....

त्रिश्का : हां...आप भी हो जाओ .....

मालविका जी त्रिश्का के माथे पर किस करके उसे गुड नाईट विश करके चली जाती हैं...... त्रिश्का तुंरत अपनी अलमारी की तरफ जाकर कपड़ों के बीच छुपे हुए एक छोटे से बाक्स को निकालकर वापस अपने बेड पर आकर बैठती है और टेबल लैंप आॅन करके उस बाक्स को खोलती है, अपने तकिये के नीचे से उसी मोती को निकालकर उस‌ बाक्स में रखती हुई कहती हैं....." और कितने मोती आएंगे....हर बार एक अलग टाइप का मोती...कौन है जो मेरे रूम में मेरी परमिशन के बिना आ जाता है और ये मोती....बस और कितना परेशान करोगे मुझे...(कमरे में चारों तरफ देखकर कहती हैं)... सामने क्यूं नहीं आते हो...." त्रिश्का के आंखों में आंसू आ जाते हैं उसके आंसू की एक बूंद उस बाक्स में गिरती है और वो बाक्स बेतहाशा चमक उठता है जिससे पूरा कमरा जगमगा रहा था... अचानक हुई इस रोशनी को देखकर त्रिश्का डर जाती है और जल्दी से उसे बाक्स को अपने से दूर करती है...... काफी देर उस बाक्स को देखती रहती है , धीरे धीरे उस बाक्स की चमक कम हो जाती है जिससे त्रिश्का जल्दी से उसे बाक्स को वापस अलमारी में रख देती है.....

वापस अपने बेड पर लेटकर अचानक हुई मोतीयों की चमक को देखकर त्रिश्का काफी उलझन में हो जाती है और अपने आप से बड़बड़ाती है....." आखिर हो क्या रहा है मेरे साथ..... आखिर उन सपनों का क्या मतलब है...? अचानक ये मोती हर रात मेरे कमरे में कैसे आते हैं..?..ओह गॉड...ये क्या हो रहा है मेरे साथ...." त्रिश्का इन सब बातों को सोचते हुए सो जाती है.......

अगली सुबह चिड़िया की आवाज से पूरा वातावरण गूंज उठता है....वहीं मालविका जी की घंटी की आवाज पूरे घर में गूंज रही थी... आरती पूजा पाठ करने के बाद मालविका जी सीधा रसोई की तरफ बढ़ती है......

थोड़ी ही देर में नाश्ता वगैरह बनाने के बाद मालविका सीधा त्रिश्का के रूम में जाती है उसे उठाने के लिए.....

मालविका जी त्रिश्का के पास जाकर बैठकर उसके सिर को सहलाती हुई कहती हैं ......" त्रिशू ... बेटा उठ जा...जाॅब पर भी तो जाना है न...." त्रिश्का आलस भरी आवाज में कहती हैं...." मां बस पांच मिनट में आ रही हूं...."

मालविका : ठीक है बेटा जल्दी आ ब्रेकफास्ट रेडी हो चुका है आज तेरे फेवरेट पोहा नमकीन बनायी है...."

पोहे का नाम सुनकर मानो त्रिश्का की नींद जैसे छू मंतर हो जाती है तुरंत कहती हैं....." मां बस पांच मिनट में फ्रेश होकर आ रही हूं....."

मालविका जी ने जाते हुए कहा...." हां जल्दी आ जा...."

मालविका जी डाइनिंग टेबल पर पहुंचती है जहां अविनाश जी बैठे चाय की चुस्कियों के साथ अखबार की खबरो‌ को पढ़ रहे थे , मालविका जी अखबार छिनते हुए कहती हैं..." पहले तसल्ली से नाश्ता कर लीजिए...देश और दुनिया कहीं भागे नहीं जा रही है....."

‌अविनाश जी मालविका जी को चिढ़ाने वाले अंदाज में कहते है.....: " हां हां....सब तुम्हारी तरह थोड़ी एक्सप्रेस बने रहते हैं...."

मालविका जी ने कहा...." अब सबको मेरी जितनी चिंता भी तो नहीं है ....."

अविनाश : तुम तो‌ बेमतलब की टेंशन लेती हो.....खाओ पियो और निश्चित रहो.....

मालविका : आप अपना फार्मूला अपने पास रखिए.... मुझे तो बस मेरी त्रिशू की चिंता है....वो बार बार उसके सपने में आकर उसे परेशान कर रहे हैं.....

" कौन‌ परेशान कर रहे हैं...?...."




.....….................to be continued..................

कौन है जिसके बारे में मालविका जी जानती है लेकिन बताना नहीं चाहती.....?

जानने के लिए जुड़े रहिए कहानी से.....

आपको कहानी कैसी लगी मुझे रेटिंग के साथ जरुर बताएं......
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