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परछाईया - भाग 1

प्रिय वाचक आपने मेरी कविता और कहानीओ को खुब सराहा अब आपके समक्ष ला रही हुं रोमांच से भरपुर एक
धारावाहिक कहानी उम्मीद हे अप पसंद करेंगे।

इस कहानी के सभी पात्र और घटनाक्रम काल्पनिक है, कहानी को रोमांचक बनाने के लिए स्थल का नाम प्रयोग कीया गया है जिसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है।

रात के घने अंधेरे मै, एक लाल रंग की गाडी सन्नाटा चीरती हुई हवेली के पास खडी रही। सुमसाम रास्ते पे सोया हुआ कुत्ता गाडी की आवाज सुन अजीब तरह से रोने लगा।

गाडी मे से सोफर उतरा और उसने पीछे का दरवाज़ा खोला।
गाडी से एक पैर बहार.निकला चमकीले लाल बुट वाला पैर
बहार निकला, उसकी नोक डाये बाये घुमी पैर फीर अंदर गया।दो मीनीट बाद गाड़ी निकल गई।

हवेली के बहार कौने मै एक झोंपड़ी सा कच्चा मकान था,
उस मकान मैं रहता बुढा चौकीदार रज ये मंझर देखता,
वही लाल रंग की गाडी रोज हवेली के पास रुकती और चली जाती।उसने सोचा अब मालिक को बताना चाहिए।

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उसी समय गाड़ी का ड्राइवर भी सोच रहा था। छ महिने से
मेडम रोज रात को जाती है, इसलिए पास के शहर मै होटल बुकिंग करवाया है। कल सुबह होटल चेक आउट करने वाले है। वह बीस साल से मेडम का ड्राइवर था पर ऐसा बर्ताव उसने देखा नहीं।

ड्राइवर ने हिम्मत करके "मेडम को पुछ लिया मेडम जीस काम के लिए आए छ महीना रुके वह कीया क्युं नहीं?"" थोडी हिम्मत कर लेते , अब नहीं रुक शकते कितने ओफर
ठुकराएगें जीवन भी बार बार फोन कर रहा है।

निर्वा ने बडी सीफत से आंखञका कोना पोछ लिया, जो ड्राइवर के मिरर मै न दीखे और बोली" सनतजी मै नई कहानी की खोज मै आई थी मिल गई "। और जीवन को तनखाह से मतलब होना चाहिए मै सबसे ज्यादा तनख्वाह देती हुं।

सन्नी ज्यादा बोलना मुनासिब नहीं समजा, उसने नीर्वा को सतरा बरस की उम्र से सैंतीस साल की उम्र तक बारीकी से देखा था।वह दीन रात उसका साया बनके रहा था, वह उसकी रग रग से वाकिफ था।

वह मनमें बडबडाया" मैं जानता हुं आप क्या काम करने आए थे" उसने होटल पहुंच कर मैसेज कीया। सरकार हम वापीस जा रहे है।"उसे रोक लिजीए" सामने से मैसेज आया" उसने यह दहलीज खुद पार की थी , उसे खुद ही वापीस आना होगा।"

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" चारो और घना अंधेरा था , वह अकेली उस गुफा से बहार निकलने की कोशीश कर रही थी कोई रास्ता नहीं था,
अचानक एक काला मुखौटा पहना ईन्सान आया उसने उस जलती हुई मसाल उसकी और घुमाई वह चिल्लाने लगी। ' बचाओ'निर्वा निंद से जागी पुरा बदन पसीना, पसीना।.यह सपना सालो से उसे ऐसे ही परेशान करता रहता था।

वह फुट फुट कर रो पडी" । इतने सालो मै वह हींमत न जुटा पाई थोडा संभलने के बाद उसने सनत को फोन लगाया" दादा चलो, हम.अभी निकल जायेंगे। जब वह बेसहारा महसूस करती , उदास होती सनत को दादा बुलाती।

उसने अपना वैनिटी बॉक्स खोला और अपनी एन्टी "एन्क्साईटी पील" निकाली और मुह मे रखी। उसने सचिन को मेसेज कीया" मै मुम्बई जा रहि हुं, तुम्हारा यु.एस का प्रोजेक्ट खतम होते ही , मुजे बताओ।आई डोन्ट वोॅन्ट टु लीव ईन इन्डिया , वील परमेनन्टली मुव टु यु.एस., call me ASAP.

थोडा अच्छा महसूस हुआ, उसने अपने फेस सीएम की बोटल का लेबल निकाला, उसमेणसे पुरा सीएम सिंक मे खाली कीया. और संभाल के उसमे बाबा ने दीया हुआ पानी डाला। वह सोचने लगी " मै क्या थी क्या बन गई, एक कीन्स चक्कर मे पड गई।

उसी वख्त रुम का डोर किसीने नोक कीया। " दादा आ जाईये सामान रखवाईये मे रेड्डी हुं।बहोत देर तक कोई नही आया तो उसने दरवाजा खोला। दरवाजे पे कोई नहीं था, एक बडा सा गुलाब का बुके उसमे बीच मै चंपा के फुल। ऐसा बुके उसने कहीं न देखा था।.उसने बुके उठाया, उठाते ही एक कांटा चुभा , बुके पे नोट था जीसमृ लिखा था" अतीत का साया मुबारक " आपके शहर मै आपका स्वागत है।"

उसने हड़बड़ाहट मै दरवाजा बंद कीया, तभी सनत आया उसने नोक कीया पर काफी देर तक दरवाजा नहीं खुला।
उसने फोन लगाया पर उठा नहीं...

वह रिसेप्शन पे जा के रुम अटेंडेंट और मेनेजर को ले आया।
उन्होने अपनी चाबी से दरवाजा खोला...और देखा की।

@ डो.चांदनी अग्रावत
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