मंत्री जी की शल्य चिकित्सा

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राजनेताओं का अहंकार, जनता के प्रति संवेदनहीनता, अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीनता और सेवाभावी बुद्धिजीवियों के प्रति उनकी उपेक्षापूर्ण तथा अपमानजनित व्यवहार को आधार बनाकर इस कहानी का सृजन किया गया है, जिसमें डॉक्टर आलोक आरक्षण के मुद्दे पर राजनेताओं की वोट की राजनीति से असंतुष्ट हैं दूसरी ओर डॉ आलोक के स्वाभिमान को कुचलने के लिए मंत्री प्रसाद दमन पूर्ण हथकंडे अपनाते हैं किंतु डॉक्टर अतुल अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए इस्तीफा दे देता है, लेकिन मंत्री जी के आगे झुकता नहीं है । अंत में मंत्री जी स्वयं पराजय स्वीकार कर लेते हैं।