असमंजस

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संविधान द्वारा बेटे-बेटी को समान अधिकार देने के बावजूद हमारे समाज एवं परिवार में बेटियों को पुत्र-सम-भाव से स्वीकार्यता नहीं मिल सकी है । पैतृक संपत्ति के विषय में कहें, तो वे व्यावहारिक दृष्टि से आज भी अपने अधिकारों से वंचित हैं । इस अधिकार वंचना के प्रति आज की बेटी पर्याप्त सचेत स्थिति में दिखाई देती है, किंतु एकाधिक माता-पिता भी असमंजस की स्थिति में हैंं । प्रस्तुत कहानी इसी यथार्थ स्थिति का कलात्मक चित्रण है ।