फाहा

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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले, सबज़, रंगा रंग के....... सब्ज़ी मंडी में खोल के हिसाब से हर क़िस्म के आम आते थे। और निहायत सस्ते दामों फ़रोख़त हो रहे थे। यूं समझिए कि पिछले बरस की कसर पूरी हो रही थी।