दीप शिखा - 7

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उसकी स्थिती जब ज्यादा बिगड़ती गई तो फिर आखिर में उसे मनोरोग अस्पताल में भर्ती कर चिकित्सा करवानी पड़ी पेरुंदेवी पूरे समय बुदबुदाती रही सुबह शाम विधि के विधान को सोच रोती रही बच्ची गीता यदि उसके पास नहीं होती तो उसका कमजोर शरीर ये दुख सहन नहीं कर पाता बच्ची पर पेरूंदेवी का विशेष प्रेम उमड़ता रहा बिना कोई हिचकिचाहट के बच्ची की माँ जैसे ही उसने प्यार दिया उसकी देखरेख करने के हर छोटे-बड़े काम को उसने बड़े ही उत्साह के साथ किया भले ही उसे परेशानी हो पर बच्चे को नहीं हो इसका ध्यान रखती थी हर बात में वह सोचती उसकी माँ होती तो ऐसा करती मुझे भी ऐसा ही करना चाहिए ऐसा वह तन, मन, धन से करती उसके लालन-पालन में कोई कमी नहीं छोडी उसकी माँ होती तो क्या करती ऐसा सोच वह भी वही करती और जितना उसका ख्याल रखती उतना ही उसका प्यार बच्चे से बढ़ता जाता