सजदा

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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बरसों में कई बार हमीद पर ऐसे दौरे पड़ चुके थे जिन का मतलब उस की समझ से हमेशा बालातर रहा था, लेकिन वो इतना ज़रूर समझता था कि उस के लागर दोस्त के सीने पर कोई बोझ है ऐसा बोझ जिस का एहसास शराब पीने के दौरान में कभी कभी हमीद के अंदर यूं पैदा होता है जैसे बे-ध्यान बैठे हुए आदमी की पिस्लियों में कोई ज़ोर से ठोका देदे।