Manto ki dilchasp kahaniya book and story is written by Saadat Hasan Manto in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Manto ki dilchasp kahaniya is also popular in Short Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मंटो की दिलचस्प कहानियाँ - Novels
by Saadat Hasan Manto
in
Hindi Short Stories
मैं आज आप को चंद शिकारी औरतों के क़िस्से सुनाऊंगा। मेरा ख़याल है कि आप को भी कभी उन से वास्ता पड़ा होगा। मैं बंबई में था। फिल्मिस्तान से आम तौर पर बर्क़ी ट्रेन से छः बजे घर पहुंच जाया करता था। लेकिन उस रोज़ मुझे देर होगई। इस लिए किशिकारी की कहानी पर बहस ओ मुबाहिसा होता रहा। मैं जब बंबई सैंटर्ल के स्टेशन पर उतरा, तो मैंने एक लड़की को देखा जो थर्ड क्लास कम्पार्टमंट से बाहर निकली। उस का रंग गहिरा साँवला था। नाक नक़्शा ठीक था। उस की चाल बड़ी अनोखी सी थी। ऐसा लगता था कि वो फ़िल्म का मंज़र नामा लिख रही है। में स्टेशन से बाहर आया और पोल पर विक्टोरिया गाड़ी का इंतिज़ार करने लगा। मैं तेज़ चलने का आदी हूँ इस लिए में दूसरे मुसाफ़िरों से बहुत पहले बाहर निकल आया था।
मंगू कोचवान अपने अड्डे में बहुत अक़लमंद आदमी समझा जाता था। गो उस की तालीमी हैसियत सिफ़र के बराबर थी और उस ने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा था लेकिन इस के बावजूद उसे दुनिया भर की ...Read Moreका इल्म था। अड्डे के वो तमाम कोचवान जिन को ये जानने की ख़्वाहिश होती थी कि दुनिया के अंदर क्या हो रहा है उस्ताद मंगू की वसीअमालूमात से अच्छी तरह वाक़िफ़ थे।
कैलिंडर का आख़िरी पता जिस पर मोटे हुरूफ़ में31 दिसंबर छपा हुआ था, एक लम्हा के अंदर उसकी पतली उंगलीयों की गिरिफ़त में था। अब कैलिंडर एक टिंड मंड दरख़्त सा नज़र आने लगा। जिसकी टहनियों पर से सारे ...Read Moreख़िज़ां की फूंकों ने उड़ा दिए हों।
दीवार पर आवेज़ां क्लाक टिक टुक कर रहा था। कैलिंडर का आख़िरी पत्ता जो डेढ़ मुरब्बा इंच काग़ज़ का एक टुकड़ा था, उस की पतली उंगलियों में यूं काँप रहा था गोया सज़ाए मौत का क़ैदी फांसी के सामने खड़ा है।
नवाब सलीम अल्लाह ख़ां बड़े ठाट के आदमी थे। अपने शहर में इन का शुमार बहुत बड़े रईसों में होता था। मगर वो ओबाश नहीं थे, ना ऐश-परस्त, बड़ी ख़ामोश और संजीदा ज़िंदगी बसर करते थे। गिनती के चंद ...Read Moreसे मिलना और बस वो भी जो उन की पसंद के हैं।
दावतें आम होती थीं। शराब के दौर भी चलते थे मगर हद-ए-एतिदाल तक। वो ज़िंदगी के हर शोबे में एतिदाल के क़ाइल थे।
मैं जब कभी ज़ेल का वाक़िया याद करता हूँ, मेरे होंटों में सोईयां सी चुभने लगती हैं।
सारी रात बारिश होती रही थी। जिस के बाइस मौसम ख़ुनुक होगया था। जब मैं सुबह सवेरे ग़ुसल के लिए होटल से ...Read Moreनिकला तो धुली हुई पहाड़ियों और नहाए हुए हरे भरे चीड़ों की ताज़गी देख कर तबीयत पर वही कैफ़ीयत पैदा हुई जो ख़ूबसूरत कुंवारियों के झुरमुट में बैठने से पैदा होती है।
बारिश बंद थी अलबत्ता नन्ही नन्ही फ़ुवार पड़ रही थी। पहाड़ीयों के ऊंचे ऊंचे दरख़्तों पर आवारा बदलियां ऊँघ रही थीं गोया रात भर बरसने के बाद थक कर चूर चूर होगई हैं।
उसे यूं महसूस हुआ कि इस संगीन इमारत की सातों मंज़िलें उस के काँधों पर धर दी गई हैं।
वो सातवें मंज़िल से एक एक सीढ़ी करके नीचे उतरा और तमाम मंज़िलों का बोझ उस के चौड़े मगर दुबले ...Read Moreपर सवार होता गया। जब वो मकान के मालिक से मिलने के लिए ऊपर चढ़ रहा था। तो उसे महसूस हुआ था कि उस का कुछ बोझ हल्का हो गया है और कुछ हल्का हो जाएगा। इस लिए कि उस ने अपने दिल में सोचा था। मालिक मकान जिसे सब सेठ के नाम से पुकारते हैं उस की बिप्ता ज़रूर सुनेगा। और किराया चुकाने के लिए उसे एक महीने की और मोहलत बख़्श देगा..... बख़्श देगा!...... ये सोचते हुए उस के ग़रूर को ठेस लगी थी लेकिन फ़ौरन ही उस को असलीयत भी मालूम हो गई थी.... वो भीक मांगने ही तो जा रहा था। और भीक हाथ फैला कर, आँखों में आँसू भर के, अपने दुख दर्द सुना कर और अपने घाओ दिखा कर ही मांगी जाती है......!