चिराग दिल्ली की एक संकरी गली, पीले रंग का पुराना मकान, दूसरी मंज़िल पर एक छोटा-सा कमरा। यह रमाकान्त का अपने घर से दूर रिहर्शल करने का या कहें कि कुछ देर सुकून पाने का ठिकाना था। वैसे उनका परिवार यहाँ से चार छ: स्टैण्ड पार कर दक्षिण दिल्ली के लाजपत नगर इलाक़े की डबल स्टोरी कहे जाने वाले मकानों की कॉलोनी में, दूसरी मंजिल की छत पर बनी बरसाती में, पिछले बारह साल से किराए पर रहता था और उनके इन दोनों ठिकानों के बीच, रमाकान्त की ज़िन्दगी के बीते हुए वे तमाम साल थे, जिनमें अगले ही पल कुछ नया होने की उम्मीद भी साथ-साथ रही आती थी। उनके आस पास समय अभी भी यूँ बैठा था कि बस अभी अगले ही पल करवट लेगा और सब कुछ बदल जाएगा, पर समय को एकटक ताकते-ताकते रमाकान्त के दोनों ठिकानों का धीरज जैसे अब चुकने लगा था।