Domnik ki Vapsi by Vivek Mishra | Read Hindi Best Novels and Download PDF Home Novels Hindi Novels डॉमनिक की वापसी - Novels Novels डॉमनिक की वापसी - Novels by Vivek Mishra in Hindi Love Stories (57) 12.8k 5.1k 7 वो गर्मियों की एक ऐसी रात थी जिसमें देर तक पढ़ते रहने के बाद, मैं ये सोच के लेटा था कि सुबह देर तक सोता रहूँगा। पर एन उस वक़्त जब नींद सपने जैसी किसी चीज से टेक लगाकर ...Read Moreकाटना शुरू करती है.... फोन की घन्टी बजी। अजीत का फोन था। कुछ हड़बड़ाया हुआ, ‘भाई, दीपांश का पता चल गया। वो मध्य प्रदेश में शिवपुरी के पास एक छोटे से कसबे, क्या नाम था…, हाँ, नरवर में था’ मैंने आँखें मलते हुए पूछा, ‘था मतलब?’ Read Less Read Full Story Listen Download on Mobile New Episodes : Every Monday, Wednesday & Friday डॉमनिक की वापसी - 1 (8) 5.6k 297 वो गर्मियों की एक ऐसी रात थी जिसमें देर तक पढ़ते रहने के बाद, मैं ये सोच के लेटा था कि सुबह देर तक सोता रहूँगा। पर एन उस वक़्त जब नींद सपने जैसी किसी चीज से टेक लगाकर ...Read Moreकाटना शुरू करती है.... फोन की घन्टी बजी। अजीत का फोन था। कुछ हड़बड़ाया हुआ, ‘भाई, दीपांश का पता चल गया। वो मध्य प्रदेश में शिवपुरी के पास एक छोटे से कसबे, क्या नाम था…, हाँ, नरवर में था’ मैंने आँखें मलते हुए पूछा, ‘था मतलब?’ Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 2 (5) 2k 327 उस दिन खंजड़ी बजाते हुए, छाती चीर के दिल में धंस जाने वाली आवाज़ में गा रहे थे, डॉमनिक दादा। उनके पीछे थे रूपल, उत्कर्ष, निशा, हरि और निशांत। साथ में उत्तेजना में और भी कुछ गिनी-चुनी मुट्ठियाँ गीत ...Read Moreबोलों के साथ आसमान में उठ रही थीं। यहाँ सवाल गरीबी, बेरोजगारी या भ्रष्टाचार का नहीं था। सवाल जाति, धर्म, या देश में बदलती राजनीति का भी नहीं था। यहाँ सवाल था प्रेम का, प्रेम के अधिकार का, पर यहाँ जैसे उसका हर सोता सूख गया था। उसके बारे में सोच के भी सिहर जाते थे, लोग। महीने भर के भीतर यह तीसरी हत्या थी। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 3 (2) 976 238 डॉक्टरों के राउन्ड के बाद हम कमरे में दाखिल हुए तो आँखों को विश्वास नहीं हुआ। न डॉमनिक की भूमिका निभाने वाले दीपांश जैसा गोरा रंग, न वे चमकदार दूर से ही बोलती आँखें। ये तो जैसे उससे मिलता-जुलता ...Read Moreऔर आदमी था। सिर पर पट्टी बंधी थी। गहरी चोट थी। बहुत खून बह गया था। अभी भी बड़ी हुई दाड़ी के कुछ बालों में खून लगा था। लोगों ने बताया था कि चोट से दिमाग के अन्दरूनी हिस्सों में कितना नुकसान हुआ है, वह कल सुबह सी.टी. स्कैन की रिपोर्ट आने पर ही पता चलेगा। दीपांश के चेहरे पर शान्ति थी। वह इस एक साल में बहुत बदल गया था। हमें देखते ही हल्के से मुस्करा दिया, वही पुरानी परिचित मुस्कान. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 4 (4) 755 276 सुबह आँख खुली तो लगा की नींद तो पूरी हुई पर सफ़र की थकान से अभी भी देह टूट रही है। लॉज के जिस कमरे में, हम रात में आके सो गए थे वह उसके पहले माले पर था। ...Read Moreकोई खिड़की नहीं थी और दीवारें सीली हुई थीं। शायद इसीलिए हम जागते ही ताज़ी हवा के लिए अपने कमरे से हॉल में आए और वहाँ से उससे जुड़ी बालकॉनी में। सड़क के दोनों ओर दुकानें, दुकानों के माथे पर लटकते आढ़े-टेढ़े बोर्ड, बोर्डों पर दुनिया ज़हान के विज्ञापन, विज्ञापनों में आँखों में आश्चर्य और चेहरे पर चिर स्थाई मुस्कान लिए झांकती कुछ देश-विदेश की महिलाएं। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 5 (2) 419 205 अजीत से ‘डॉमनिक की वापसी’ में डॉमनिक का किरदार निभाने वाले दीपांश से मिलने की इच्छा ज़ाहिर किए हुए अभी दो-तीन दिन ही बीते होंगे कि एक रात साढ़े दस-ग्यारह बजे के बीच जब मैं अपने कमरे पर अकेला ...Read Moreथा और बड़े उचाट मन से दिल्ली प्रेस से मिली एक बेहूदा सी परिचर्चा का अन्तिम पैरा लिखकर उससे निजात पाने की कोशिश कर रहा था, कि किसी ने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। दरवाज़ा खोला तो सामने अजीत खड़ा था और उसके साथ था, दीपांश, ‘डॉमनिक की वापसी’ का ‘डॉमनिक’। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 6 (1) 370 169 दीपांश के जाते ही हरि नैटियाल ने हमसे सीधा सवाल किया, ‘यह यहाँ कैसे?’ मैंने और अजीत ने लगभग एक साथ ही पूछा ‘आप इसे जानते हैं?’ उन्होंने बड़े विश्वास से हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, ‘हाँ, मैं इसे जानता ...Read Moreदोनो उनको बड़े ध्यान से देख रहे थे। उनका नाटकों से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था पर उनको देखके लग रहा था कि वह दीपांश को अच्छे से जानते हैं। हमें लगा शायद उनके पास उसकी कहानी का वो सिरा है जिसे हम दोनों ही जानना चाहते थे। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 7 311 112 उस दिन दीपांश से हुई मुलाक़ात और हरि नौटियाल की बातों से हमने जितना उसके बारे में जाना था उससे ज्यादा जानने की चाह हमारे मन में थी। उधर तब तक ‘डॉमनिक की वापसी’ का कई बार मंचन हो ...Read Moreथा। दीपांश के अभिनय का जादू सबके सिर चढ़कर बोल रहा था। उसके अभिनय की तारीफ़ में अख़बारों में बहुत कुछ लिखा गया था। नाटक के दिल्ली से बाहर भी कई शो हो चुके थे। पच्चीसवाँ शो दिल्ली में ही होने वाला था जिससे पहले विश्वमोहन ने प्रेस के कुछ लोगों के साथ मुझे भी अपने ऑफिस जो कि क्नॉटप्लेस में एक आर्ट गैलरी के ऊपर था, बुलाया था। शायद उन्होंने अपने नाटक पर मेरा लेख पढ़ लिया था। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 8 (1) 263 115 कई दिन गहरे सन्नाटे में बीते थे। पाँच लाख का इन्तज़ाम नहीं होना था सो नहीं हुआ…, बाहर सब कुछ पहले सा ही था पर भीतर कहीं कुछ दरक गया था. शायद माँ के अलावा कोई उस दरकन की टोह भी ...Read Moreले सका था. माँ उस दिन कई सालों बाद सीढ़ियाँ चढ़ के उस कमरे में आई थीं जिसे वह नीचे से ही देखा करती थीं. बड़ी देर तक चुपचाप उसके सिरहाने बैठी रहीं फिर उठते हुए बोलीं, ‘बेटा इस लड़ाई में हर उस आदमी की जरूरत है जो पहाड़ों से प्रेम करता है’ उसके बाद वह धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरती नीचे चली गईं. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 9. (2) 248 127 दीपांश उस चट्टान पर कुछ देर और हिमानी के साथ बैठता तो उसे बताता कि आज उसे यहाँ नहीं होना चाहिए था। आज उसे अपनी मंडली और पन्द्रह और दूसरे गाँवों से इकट्ठे हुए लोगों के साथ वर्षों से ...Read Moreआ रही लड़ाई के लिए, लाखों लोगों का अधूरा सपना पूरा करने के लिए, अपने माँ-बाप को दिया बचन निभाने के लिए, दिल्ली की संसद के भीतर बैठी गूँगी-बहरी सरकार के आगे अपने पहाड़ों की बात रखने के लिए जाना था। उसका वहाँ न होना उसे ऐसा गुनाह लग रहा था जिसके लिए वह अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर सकेगा। पर अब जैसे हर संवाद की संभावना समाप्त हो चुकी थी,... नदी के दोनों किनारे उससे दूर हो चुके थे। नदी और दूर गिरते झरने की आवाज़ें उसे सुनाई नहीं दे रही थीं। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 10 (2) 226 125 समय बीता। सचमुच पहाड़ों ने आवाज़ को कई गुना करके लौटाया, वक़्त जरूरत के लिए। आंदोलन तेज़ हुआ तो मौके की नज़ाक़त देखकर, अब तक इस सब से मुँह मोड़े खड़ी राजनैतिक पार्टियों ने भी अपनी घुसपैठ शुरू कर दी. ...Read Moreउनके झंडे खुलकर पहाड़ों पर फहराने लगे। श्रेय लेने वाले खादी के कलफ़ लगे कुर्ते झाड़कर आगे आ गए और पहाड़ों से प्यार करने वाले, ‘बुरांश में प्यार का खुमार है’ गाने वाले अपराधी और भगोड़े क़रार दिए जाने लगे। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 11 (3) 215 177 चिराग दिल्ली की एक संकरी गली, पीले रंग का पुराना मकान, दूसरी मंज़िल पर एक छोटा-सा कमरा। यह रमाकान्त का अपने घर से दूर रिहर्शल करने का या कहें कि कुछ देर सुकून पाने का ठिकाना था। वैसे उनका ...Read Moreयहाँ से चार छ: स्टैण्ड पार कर दक्षिण दिल्ली के लाजपत नगर इलाक़े की डबल स्टोरी कहे जाने वाले मकानों की कॉलोनी में, दूसरी मंजिल की छत पर बनी बरसाती में, पिछले बारह साल से किराए पर रहता था और उनके इन दोनों ठिकानों के बीच, रमाकान्त की ज़िन्दगी के बीते हुए वे तमाम साल थे, जिनमें अगले ही पल कुछ नया होने की उम्मीद भी साथ-साथ रही आती थी। उनके आस पास समय अभी भी यूँ बैठा था कि बस अभी अगले ही पल करवट लेगा और सब कुछ बदल जाएगा, पर समय को एकटक ताकते-ताकते रमाकान्त के दोनों ठिकानों का धीरज जैसे अब चुकने लगा था। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 12 (1) 169 148 चारो तरफ़ गहरा सन्नाटा था। रेल की पटरियों के ऊपर से गुज़रता हुआ पुल थककर गहरी नींद में सो रहा था। दीपांश ने सिर को झटकते हुए आसमान की ओर देखा तो एक बूँद माथे पर आकर गिरी। आसमान साफ़ ...Read Moreपर हल्की-सी चाँदनी में एक छोटी बदली उसके सिर पर तैर रही थी। वह बस उतनी-सी थी जितनी चादर किसी को भी ओढ़ने-बिछाने को चाहिए होती है। उसने पुल की रेलिंग पर पैर रखा और आसमान की अलगनी पर टंगी चादर को दोनो हाथों से खींच लिया। वह बदली! नहीं वह सफ़ेद चादर! उसके ओढ़ने-बिछाने के लिए, इस दुनिया से छुपकर सो जाने के लिए बहुत थी। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 13 (2) 137 116 बाज़ार कला पर चढ़ा जा रहा था, या कला बाज़ार में घुसकर ख़ुद अपनी बोली लगा रही थी, कहना मुश्किल था। लगता था दोनो एक दूसरे से उलझ रहे हैं और हारना कोई नहीं चाहता। पर इतना तो तय ...Read Moreही चुका था कि इस समय में, एक दूसरे के बिना, दोनों में से किसी का निर्वाह संभव नहीं है। और शायद इसीलिए... ऑडिशन वाले दिन, ऑडीटोरियम के बाहर खासी चहल-पहल थी। लॉबी में विश्वमोहन, रमाकान्त और दो नए चेहरे, एक स्त्री-एक पुरुष, टेबल को घेर कर बैठे थे। अब तक के ऑडिशन में जो भी अभिनय के नाम पर वहाँ अपना जौहर दिखा कर गए थे। वे उससे उबे हुए थे। जो लोग चुन लिए गए थे, वे अपने चेहरों पर सफलता का भाव लिए अलग पंक्ति में दाहिनी तरफ़ सीढ़ियों पे बैठे थे, उनमें अशोक और शिमोर्ग भी थे। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 14 (3) 143 141 अगले हफ्ते ग्रुप मंडी पहुंचा. शिमोर्ग को छोड़कर बाकी सभी लोग पुराने बस अड्डे के सामने ही किसी होटल में रुके थे. पहले ही दिन शाम को शिमोर्ग दीपांश को माँ से मिलाने ले गई। उसकी माँ उसी की ...Read Moreबहुत सुंदर थीं, वह अपने गोरे रंग की वजह से भारतीय परिधान में भी विदेशी लग रहीं थीं. दीपांश को उनके चलने, उठने-बैठने के तरीके और तनी हुई गरदन को देखकर नाटक में शिमोर्ग द्वारा अभिनीत किए जा रहे किरदार ‘एलिना’ की याद आ रही थी. उसे लगा उस किरदार को निभाते हुए वह बहुत कुछ अपनी माँ की तरह ही रिएक्ट करती है. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 15 (1) 135 113 यह पहला मौका था जब विश्वमोहन के प्रोडक्शन हाउस को इतना बड़ा स्पॉन्सर मिला था और उसपर नाटक भी ख़ासा सफल हो रहा था। अब कलाकार पहचाने जाने लगे थे। धीरे-धीरे नाटक में भी इनाम, इक़राम, मेहनताना, या उसे ...Read Moreभी चाहे कहें, बढ़ गया था. अब सबके पास पैसा आने भी लगा था और वह दिखने भी लगा था। फांका-मस्ती के दिन बीते दिनों की बात हो चले थे। मंडली के अभिनेता गाहे-बगाहे अख़बारों के रंगीन पन्नो पर नज़र आने लगे थे। सबके हाथों में फोन चमकने लगे थे। सबकी-सबसे जब चाहे बात होने लगी थी। दीपांश गाँव में सुधीन्द्र को पहले से बढ़ा के मनीऑर्डर करने लगा था। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 16 (2) 105 139 पार्टी के दूसरे दिन सुबह ही सेतिया ने आसरा श्री के प्रोडक्शन हाउस से अपनी फ़िल्म की घोषणा कर दी थी। यह बात उसने विश्वमोहन, रमाकांत या दीपांश से भी पहले शिमोर्ग को फोन करके बताई थी। शिमोर्ग तब ...Read Moreदीपांश के कमरे पर ही थी. वह दीपांश से पहले ही उठकर शावर ले चुकी थी. दीपांश के उठते ही उसने उसे फ़िल्म की घोषणा की खबर सुनाई थी. वह चहक रही थी, ‘मैंने कहा था न, कुछ बड़ा होने वाला है, ये सुबह, ये जगह और ख़ासतौर से तुम मेरे लिए कितने लकी हो, सच ये सुबह सबकी ज़िन्दगियाँ बदल देने वाली सुबह है.’ Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 17 (3) 93 105 विश्वमोहन ने शो की तैयारियों में कोई कसर नहीं उठा रखी थी. साथ ही फ़िल्म की स्क्रिप्ट और कास्ट भी फाइनल हो चुके थे, पर लोकेशन ढूँढने का काम अभी फिलहाल रोक दिया गया था. क्योंकि फ़िल्म का फ्लोर ...Read Moreजाना नाटक के इस विशेष मंचन के हो जाने तक टल गया था. उधर इति और सेतिया के बीच का तनाव कम करने के लिए इति से रमाकांत ने और सेतिया से विश्वमोहन और शिमोर्ग ने बात की थी. किसी तरह दोनों को समझाकर, बात को ग्रुप के भीतर ही सुलझा लिया गया था. लगता था अब सब ठीक हो जाएगा. इति उसके बाद दो एक दिन में ही अपने काम में लग गई थी. सेतिया का व्यवहार भी पहले से कुछ सधा हुआ लग रहा था. इस समय सबका ध्यान शो की तैयारियों पर ही था, महीने भर पहले से ही बैनर- पोस्टर शहर में जगह-जगह लग चुके थे. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 18 (1) 98 109 इति अब सेतिया की उपस्थिति में पहले जैसी सहज नहीं थी. रमाकांत के कहने से उसने दुबारा काम शुरू तो कर दिया था. पर आत्मविश्वास से भरी रहने वाली लड़की की पीठ पर भी आशंका की आँखें निकल आईं ...Read Moreअपनी माँ की इकलौती बेटी जो बिहार से दिल्ली आकर, मुखर्जी नगर इलाके में किराए के मकान में अकेली रहते हुए, अपनी पढ़ाई के साथ-साथ थिएटर का अनुभव लेकर, आगे अपना प्रोडक्शन हॉउस खोलना चाहती थी, अब अपने निर्णय के बारे में नए सिरे से सोचने लगी थी. रमाकांत ने उसे वापस लाने के लिए समझाते हुए कहा था, ‘देखो, यहाँ सफल होना बहुत मुश्किल भी है और बहुत आसान भी. अब चुनाव तुम्हारे हाथ में है- तुम कौन-सा रास्ता चुनना चाहती हो. समझौते करके आगे बढ़ने का आसान रास्ता, या तुम जैसी हो वैसी बनी रहकर अपना वजूद कायम रखते हुए आगे बढ़ने वाला संघर्ष का रास्ता.’ Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 19 (1) 63 149 बैटरी ख़त्म होने को आई थी पर स्टूल पर रखे फोन की घंटी बजती जा रही थी. खिड़की से आती धूप बिस्तर को छूती हुई फर्श पर फैल गई थी. भूपेन्द्र दीपांश को कई बार उठाने की कोशिश कर ...Read Moreथा. अबकी बार उसने ज़ोर से झिंझोड़कर उठाया. तब तक फोन बजना बंद हो गया और एक बीप के साथ ऑफ हो गया. दीपांश ने आँखें खोलीं तो खिड़की के शीशे से टूटके बिखरती धूप आँखों में चुभती-सी लगी. सर चटक रहा था. ‘शिमोर्ग सुबह से कितनी बार फोन कर चुकी है.’ भूपेन्द्र ने अपना बैग उठाकर कंधे पर डालते हुए कहा. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 20 70 115 श्रीराम सेंटर में विश्वमोहन के नाटक 'डॉमनिक की वापसी' का पचासवाँ शो। समय से आधा-एक घंटे पहले से ही दिल्ली के तानसेन मार्ग पर अच्छी खासी गहमा-गहमी, हॉल के बाहर हाथों में टिकिट या पास लिए घण्टी बजने की ...Read Moreमें खड़े लोग। नाटक के निर्देशक विश्वमोहन मुख्य द्वार के बाईं ओर एक कोने में पत्रकारों से मुख़ातिब- ‘देखिए सचमुच ‘दुनिया एक रंगमंच है'…और इसमें हरपल, एक साथ असंख्य नाटकों का मंचन होता है, फिर भी जीवन- जीवन है और नाटक- नाटक,…या कहें कि नाटक जीवन होते हुए भी, उससे इतर एक कला भी है, जीवन के भीतर सतत आकार लेता एक सपना भी है, जीविका भी है, और कभी-कभी जीवन के अंधेरे रास्तों में टिमटिमाता, हमें रास्ता दिखाता दीया भी है.’ Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 21 (2) 43 171 शिमोर्ग के मंच पर जाते ही विश्वमोहन रूम में आए. बिना कुछ कहे दीपांश के सामने बैठ गए. फिर जैसे अपने से ही बात करते हुए बोले ‘बहुत अच्छा रिस्पोंस है दर्शकों का. पहले के किसी भी शो से ...Read Moreगुना बेहतर.’ फिर बोलते हुए थोड़ा आगे खिसक आए, ‘इस नाटक का दुनियाभर के अलग-अलग शहरों में सैकड़ों बार मंचन होगा. मेरी, तुम्हारी, हम सबकी ज़िन्दगी बदल जाएगी. हमें सालभर बाद इससे भी बड़ा फाइनेंसर मिल जाएगा. तुम्हें सेतिया से प्रॉब्लम है वो तो समझ आता है और उसे मैं ठीक भी कर लूंगा पर शिमोर्ग से...क्या प्रॉब्लम है?’ Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 22 (1) 40 174 विश्वमोहन दीपांश को उसकी गुस्ताखी पर डांटना चाहते थे. पर उससे मिलने के लिए भीड़ उमड़ी पड़ रही थी. दर्शकों ने उसे घेर लिया था. वे उससे मिलने के लिए पागल हुए जा रहे थे. शिमोर्ग और रमाकांत भी भीड़ ...Read Moreघिरे मुस्करा रहे थे. दीपांश तक पहुँचना मुश्किल था इसलिए रेबेका दूर से ही हाथ हिलाकर उसे बधाई देकर चुपचाप थिएटर से बाहर आ गई थी. बाहर निकलने पर विश्वमोहन को पत्रकारों ने घेर लिया था. रेबेका थिएटर से बाहर आकार भी दीपांश के अभिनय के प्रभाव से बाहर नहीं आ पाई थी सो दीवार पर लगे बड़े से पोस्टर में दीपांश को देखके ठिठक गई. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 23 40 146 रविवार को ऋषभ का नाम ‘डॉमनिक’ की भूमिका के लिए तय करने से पहले रमाकांत दीपांश से मिले. उससे मिलके वह खाली हाथ पर संतुष्ट लौटे थे. ज्यादा कुछ कहे-सुने बिना ही वह उसका निर्णय समझ गए थे. वह ...Read Moreदिनों के लिए नाटक से ही नहीं बल्कि हर किसी से अलग रहना चाहता था. ऐसी इच्छा उनके भीतर भी कई बार उठी थी. उन्हें भी लगा था कि जिस बात से सहमत न हों उससे अलग हो जाएं, जिस बात में दिल न लगे उससे छिटक के दूर खड़े हों, हमेशा भीड़ में हामी न भरें, कभी रुकके सोचें कि जो वो कर रहे हैं, जिसे कला और उसकी साधना समझ रहे हैं उसकी दिशा क्या है पर वह ऐसा नहीं कर सके थे. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 24 (2) 58 183 बरसात के दिनों में दिल्ली की सड़कों को तालाब बनते देर नहीं लगती। खास तौर से पुरानी दिल्ली के कुछ इलाक़ों में बारिश बन्द होने के कई घंटों बाद भी पानी भरा रह जाता है। पर सर्दियों की शरुआत ...Read Moreऐसी तेज़ बारिश कम ही होती है जिसमें सड़कों पर पानी भर जाए. उस शनिवार को भी क्नॉट प्लेस से पुरानी दिल्ली जाने के रास्ते में मिन्टो रोड से ही इतना पानी भर गया था कि सड़क पार करते लोगों के घुटनों से ऊपर बह रहा था। ऊपर से देखने पर लगता कि पानी में सिर्फ़ छाते तैर रहे हैं। शाम से ही हल्की बूँदा-बाँदी हो रही थी पर उन दोनो को इस बात का ज़रा भी अन्दाज़ा नहीं था कि अगले दो घंटे में इस क़दर तेज़ बारिश होगी। उस दिन रेबेका दीपांश को साढ़े छ:-सात बजे क्नॉट प्लेस के इम्पोरियम के सामने ही मिली थी और वहां से उसे अपने साथ लेकर सीधी पुरानी दिल्ली की ओर चली आई थी, पर उनका ऑटो मिन्टो ब्रिज पर आकर बंद हो गया था। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 25 (1) 48 135 चलते-चलते दीपांश कुछ सुस्त हो गया था। रेबेका भी थक गई थी। दोनो के चेहरे से लग रहा था कि वह एक दूसरे से कहना चाह रहे हों कि ये किस काल खण्ड की कहानी पूरी करने अनंत ने ...Read Moreयहाँ भेज दिया। इन कहानियों से उलझते हुए हमारे अपने जीवन की कौन सी गुत्थी सुलझने वाली है। वह सुबह की बस से आगरा और अब कई साधन बदल कर दोपहर बाद यहाँ पहुँचे थे. यहाँ पहुँच के लग रहा था जिस जगह के बारे में अनंत ने लिखा था, वह जगह और उस तक पहुँचने के निशान समय की गर्त में कहीं बिला गए हैं। वहाँ कुछ था तो बादलों से छनकर आती धूप में चमकता, मीलों दूर खड़ा सफ़ेद संगमरमर का ताज़ महल और उससे छिटक के थोड़ी और दूर एक मैली चादर-सी बिछी, कहीं-कहीं पुरानी चांदी सी झिलमिलाती, यमुना नदी। Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 26 30 179 रेबेका को छोड़कर फ्लैट पर पहुँचते हुए बहुत देर हो गई थी. उस रात वह अकेला होकर भी अकेला नहीं था. वहाँ से लौटकर लग रहा था कोई नाटक देखके लौटा है. उस फ़कीर की किस्सा कहती आँखें जैसे साथ ...Read Moreआईं थीं. उसकी कही बातें अभी भी कानों में गूँज रही थीं, ‘हर समय में तुम्हें बनाने और मिटाने वाले तुम्हारे साथ-साथ चलते हैं। मुहब्बत के मददगार और उसके दुशमन एक ही छत की सरपस्ती में पलते हैं।’ फिर रेबेका सामने आ गई. याद आया ‘सच ही कह रही थी मेरा किरदार भी बूढ़ा होके उसी फ़कीर के जैसा दिखेगा... रेबेका ने अनंत से मिलाके ख़ुद को समझने का एक नया दरीचा खोल दिया, शायद वह जानते थे कि उस किस्सागो की बातों में कुछ है जो अपनी कई सौ साल पुरानी कहानी से मेरे मन की कोई फाँस निकाल देगा.’ Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 27 (2) 45 149 सुबह जब रेबेका की आँख खुली तो उस कमरे की गर्माहट किसी घोंसले सी लगी. मन किया फिर से चादर में दुबक के सो जाए. पर देखा कि दीपांश पहले ही उठ चुका है और किचिन में है, तो ...Read Moreचादर लपेट कर उठी और अपना गाउन ढूँढने लगी. कुछ देर में दो कप चाय के साथ दीपांश किचिन से बाहर आ गया. चाय पीकर रेबेका फिर वापस बिस्तर में लुढकने को थी कि दीपांश ने कंधे के सहारे से उसे रोकते हुए कहा ‘हमें बारह बजे तक अनंत जी के बताए पते पर पहुँचना है.’ रेबेका बच्चों की तरह ठिनकते हुए उठी और बाथरूम में चली गई. कमरे से निकलते-निकलते साढ़े दस बज गए थे. दो-तीन दिन की बारिश के बाद बादल छट गए थे. आसमान बिलकुल साफ़ था. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 28 (2) 36 190 उस दिन अनंत ने अपने हाथ से चाय बनाकर दोनों को दी. फिर एक चिट्ठियों का पुराना गट्ठर खोल के उन्हें तार से छेदकर, उसमें फसाकर कुंडे से लटकाते हुए बोले, ‘चीजें आँखों से ओझल होने पर भी अपने ...Read Moreभार और आयतन के साथ कहीं न कहीं तो बनी ही रहती हैं.. जो दुनिया हम अपने पीछे छोड़ आते हैं वह वहाँ अपनी गति से आगे बढ़ती रहती है...’ फिर उस फ़कीर को याद करते हुए बोले ‘लोरिकी’ का सबसे उम्दा गायक है.. चलता-फिरता इतिहास है.. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 29 (1) 26 143 पिछले दो तीन दिन से दिल्ली में सर्दी बहुत बढ़ गई थी. अकेले आदमी के लिए इस मौसम की उदास शामें और लम्बी रातें कितनी बोझिल होती हैं यह दीपांश ने इन दिनों बहुत शिद्दत के साथ महसूस किया ...Read Moreतीन दिन से ऊपर हो गए थे पर रेबेका का कोई फोन नहीं आया था. जैसे बिना कहे ही कोई मिलने का क़रार था... जिसके चलते बार-बार उसे फोन करने को मन कर रहा था. लग रहा था- इति का पता बता कर रेबेका ने अपनी जिंदगी खतरे में डाली थी.. क्या इसकी कीमत अब रेबेका को चुकानी पड़ेगी... जब उसका कोई फोन नहीं आया तो दीपांश ने ही उसे फोन किया. फोन बंद था... सुबह जैसे सब्र का बांध टूट गया. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 30 (1) 20 95 दीपांश के अतीत से निकल कर वर्तमान में आने की कोशिश में, हम शिवपुरी की उस लॉज की कैन्टीन में चुपचाप बैठे थे। रमाकांत चूँकि अस्पताल में ही रुके थे इसलिए कल उनसे बात नहीं हो सकी थी. आज ...Read Moreलोग जाते ही सबसे पहले उन्हीं से मिलना चाहते थे. लगा कुछ ही समय में विश्वमोहन और शिमोर्ग भी दिल्ली निकलने वाले होंगे. इसलिए हम लोग बिना समय गंवाए अस्पताल की ओर चल पड़े. वहाँ पहुँचे तो पता चला कि डॉक्टर विशेष परीक्षण के लिए आए हुए हैं इसलिए सभी दीपांश के कमरे से बाहर ही बैठे हैं. Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 31 28 114 शिमोर्ग और विश्वमोहन के जाने के बाद तुरंत अस्पताल से निकल पड़ने पर भी हम दोपहर बीतते-बीतते ही संगीत के पुराने गुरुकुल पहुँच सके. सचमुच ही वहाँ पहुँच के लगा था किसी ने अतीत में प्राण फूँक कर उसे जीवंत ...Read Moreदिया है... कच्ची मुडेर से घिरे गोबर और लाल मिटटी से लिपे आँगन के बीचों-बीच झूमता विशालकाय नीम अतीत और वर्तमान में आवाजाही करता हुआ लगता था. वह कई कहानियाँ का गवाह था. आँगन के चारों ओर खपरैल की ढलवां छप्पर वाले कमरों के आगे छोटी-छोटी दालानें थीं. जिनकी दीवारों पे कई साल पहले की, अब बदरंग हो आई चितेवरी बनी थी. जिनमें केले के पेड़, हाथी-घोड़ा-पालकी, नाव-जाल-मछुआरे के चित्र कच्चे रंगों से बने थे. कच्ची ईटों के खम्बों पे वीणा, सारंगी, बाँसुरी, तबला जैसे बाद्य यंत्रों के चित्र बने थे... Read Less Listen Read डॉमनिक की वापसी - 32 (1) 18 70 शिमोर्ग को आज अपने चारों ओर पहाड़ों का हरा रंग देखकर बचपन की होली याद आ रही थी, ऐसा ही गहरा रंग पोत देते थे, एक दूसरे के मुँह पे, कई-कई बार धोने पर भी नहीं उतरता, लगा रह ...Read Moreथा, कानों और नथुनों के किनारों पर। शिमोर्ग के सोने की आभा लिए गोरे रंग पर वह कई दिनों तक चढ़ा रहता। जब तक रंग पूरी तरह उतर नहीं जाता, माँ उससे बात तक नहीं करती और पिताजी हमेशा माँ के लाख मना करने पर भी वही रंग लाकर देते। गहरा हरा रंग। बहुत पक्का रंग होता था, तब। बिलकुल हिमाचल के पहाड़ों पर फैली इस हरियाली की तरह। पिता कहते थे इन पहाड़ों का रंग एक बार चढ़ जाए, तो फिर आसानी से नहीं उतरता, गहरे तक मन-साँस में बैठा रहता है. उनकी पंक्तियाँ- ‘बस साँस एक गहरी साँस अपने मन की एक पूरी साँस हरियाली की हरी साँस अपनी माटी में सनी साँस’ जैसे आसपास की हवा में तैर रही थीं.. Read Less Read डॉमनिक की वापसी - 33 - Last Part 11 36 दीपांश को अस्पताल में आए पाँच दिन बीत चुके थे... कमज़ोरी और खून कमी के कारण डॉक्टर ने फिलहाल ऑपरेशन स्थगित कर दिया था.. बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। आँखों के आगे अँधेरा छा रहा था. कमरे की हर ...Read Moreघूमती हुई लगती थी. बहुत मुश्किल से साँस आती, रह रहके सीने में टीस उठती। कभी खाँसी आती तो मुँह लाल हो जाता, खाँसी रुकती तो आँसू बह निकलते.. Read Less Read More Interesting Options Short Stories Spiritual Stories Novel Episodes Motivational Stories Classic Stories Children Stories Humour stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Social Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Vivek Mishra Follow