डॉमनिक की वापसी - 29

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पिछले दो तीन दिन से दिल्ली में सर्दी बहुत बढ़ गई थी. अकेले आदमी के लिए इस मौसम की उदास शामें और लम्बी रातें कितनी बोझिल होती हैं यह दीपांश ने इन दिनों बहुत शिद्दत के साथ महसूस किया था. तीन दिन से ऊपर हो गए थे पर रेबेका का कोई फोन नहीं आया था. जैसे बिना कहे ही कोई मिलने का क़रार था... जिसके चलते बार-बार उसे फोन करने को मन कर रहा था. लग रहा था- इति का पता बता कर रेबेका ने अपनी जिंदगी खतरे में डाली थी.. क्या इसकी कीमत अब रेबेका को चुकानी पड़ेगी... जब उसका कोई फोन नहीं आया तो दीपांश ने ही उसे फोन किया. फोन बंद था... सुबह जैसे सब्र का बांध टूट गया.