कभी अलविदा न कहना - 2

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कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 2 सुबह जिस उत्साह से निकली थी नौकरी जॉइन करने, शाम को घर पहुँचने तक वह थकान की भेंट चढ़ चुका था। पतझड़ का मौसम शुरू हो चुका था। मेरा मिजाज शुरू से ही कॉम्प्लिकेटेड रहा है। मसलन लोगों को बहार पसन्द है और मुझे हमेशा से पतझड़ आकर्षित करता रहा है। शायद लोगों की सोच से परे हटकर सोचना ही इसकी वजह हो सकती है। सभी अपने आज में जीते थे और मैं जो पास है उसे खोने के डर से आज को एन्जॉय ही नहीं कर पाती। एक असुरक्षा की भावना