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Kabhi Alvida Naa Kehna by Dr. Vandana Gupta | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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कभी अलविदा न कहना by Dr. Vandana Gupta in Hindi
Novels

कभी अलविदा न कहना - Novels

by Dr. Vandana Gupta Matrubharti Verified in Hindi Love Stories

(271)
  • 33.2k

  • 123.9k

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कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता सारांश प्रस्तुत उपन्यास मुख्यतः प्रेम के धरातल पर लिखा गया है। संयुक्त परिवार में रह रही नायिका जब नौकरी करने दूसरे शहर में जाती है, तब बदलते परिवेश में किस तरह खुद ...Read Moreसमंजित करती है। विभिन्न पात्रों के माध्यम से अलग अलग

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कभी अलविदा न कहना - Novels

कभी अलविदा न कहना - 1
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता सारांश प्रस्तुत उपन्यास मुख्यतः प्रेम के धरातल पर लिखा गया है। संयुक्त परिवार में रह रही नायिका जब नौकरी करने दूसरे शहर में जाती है, तब बदलते परिवेश में किस तरह खुद ...Read Moreसमंजित करती है। विभिन्न पात्रों के माध्यम से अलग अलग
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कभी अलविदा न कहना - 2
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 2 सुबह जिस उत्साह से निकली थी नौकरी जॉइन करने, शाम को घर पहुँचने तक वह थकान की भेंट चढ़ चुका था। पतझड़ का मौसम शुरू हो चुका था। मेरा मिजाज शुरू ...Read Moreही कॉम्प्लिकेटेड रहा है। मसलन लोगों को बहार पसन्द है और मुझे हमेशा से पतझड़ आकर्षित करता रहा है। शायद लोगों की सोच से परे हटकर सोचना ही इसकी वजह हो सकती है। सभी अपने आज में जीते थे और मैं जो पास है उसे खोने के डर से आज को एन्जॉय ही नहीं कर पाती। एक असुरक्षा की भावना
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कभी अलविदा न कहना - 3
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 3 रोते रोते हिचकियाँ बन्ध गयीं। दम घुटने लगा और मैं अचकचा कर उठ बैठी। माँ नहीं थीं मेरे आसपास... "ओह! यह एक सपना था... थैंक गॉड..." घड़ी पर नज़र पड़ते ही ...Read Moreबेड से कूद पड़ी... "अंशु! मुझे जगाया क्यों नहीं, बस निकल जाएगी और मैं लेट हो जाऊँगी.." चिल्लाती हुई मैं बाथरूम में घुस गयी। ब्रश करके आयी तब तक अंशु चाय लेकर आ गयी थी। "रिलैक्स माय डिअर दीदी... संडे को छुट्टी होती है।" इतना रिलैक्स तो मैंने परीक्षा के बाद भी फील नहीं किया था। साड़ी नहीं पहननी है,
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कभी अलविदा न कहना - 4
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 4 "अरे वैशाली! तुम यहाँ कैसे...?" उस स्मार्ट बंदे के पीछे से राजेश नमूदार हुआ और मैं सपनों की दुनिया से बाहर आ गयी। राजेश, मेरा बैचमेट था, पर कभी ज्यादा बात ...Read Moreहुई, दोस्ती भी नहीं थी, बस एक बैचमेट से कम से कम होने वाला परिचय मात्र। मुझे उसकी अक्ल और शक्ल दोनों ही नापसंद थे। उसे देख मेरे दिल को गुस्सा आया किन्तु दिमाग ने समझाया कि अनजान जगह अपरिचितों के बीच एक न्यूनतम परिचय भी काफी राहत देता है। पहली बार घर से बाहर और शहर से दूर, अनजाने सफर पर
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कभी अलविदा न कहना - 5
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 5 उस एक पल मेरे मन में पता नहीं कितने भाव आए और गए... इंतज़ार खत्म होने की खुशी, बूढ़े अंकल को सीट देने पर खुद पर ही गुस्सा और सुनील के ...Read Moreआने की वजह जानने की उत्सुकता…. हाँ जल्दी आने की क्योंकि बैंक का वर्किंग टाइम अभी चल रहा था। "सॉरी विशु! लेट हो गया, माफ कर दो.." उसने मेरे सामने होंठों को तिरछा कर एक आँख झपकायी और कान पकड़ लिए। एक पल को मैं भी भूल गयी कि हम बस में हैं, मैंने गुस्सा होने की एक्टिंग करते हुए खिड़की की
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कभी अलविदा न कहना - 6
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 6 घर पर एक अलग ही माहौल था। सोफे के कवर और पर्दे बदले जा चुके थे। किचन से आती खुशबू बता रही थी कि कोई खास मेहमान आने वाला है। मैं ...Read Moreथकी हुई थी तो सीधे अपने कमरे में पहुँच गयी। फ्रेश होने के बाद मुझे बिस्तर पुकार रहा था, मन किया कि थोड़ा आराम कर लूं, किन्तु अंशु ने कहा कि अलका दीदी मुझे याद कर रही थीं, आखिर जब भी उन्हें कोई देखने आता था तो मैं ही उनके साथ होती थी, वे मुझसे हर बात शेयर करती थीं। "विशु! मैं
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कभी अलविदा न कहना - 7
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 7 आज की भोर बहुत सुहानी लग रही थी। आज मुझे न तो साड़ी पहनने का डर, न यात्रा की मुश्किल और न ही वह पसीने की बदबू का ख्याल था... आज ...Read Moreमैं सोच रही थी कि कौन सी साड़ी मुझ पर ज्यादा जँचेगी... और... और सुनील से मिलने पर मैं कैसे रियेक्ट करूँगी या कि वह मुझे कैसे देखेगा और क्या बोलेगा। "वाह दीदी आज तो बड़ी जल्दी तैयार हो गयी... हूं.. हूं... सब समझ रही हूँ... आज मैं भी चलती हूँ आप के साथ..." अंशु मुझे छेड़ने का कोई मौका कभी नहीं
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कभी अलविदा न कहना - 8
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 8 आज मैं जानबूझकर देर तक बिस्तर पर पड़ी रही। सुना था जिंदगी के कई रंग होते हैं, किन्तु इस तरह जल्दी जल्दी रोज एक नया रंग दिखेगा, मैंने कल्पना में भी ...Read Moreसोचा था। आज मैं घड़ी की टिक टिक और दिल की धक धक दोनों को ही अनसुना कर रही थी। नौकरी करने घर से बाहर निकलने पर नये अनुभव लेने को तैयार थी, परन्तु जिंदगी की इन उघड़ती परतों को देख असमंजस में थी। "मम्मी! दीदी को जगाऊँ? उसे लेट नहीं हो जाएगा आज.." अंशु की फुसफुसाहट कान में पड़ी। "नहीं बेटा!
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कभी अलविदा न कहना - 9
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 9 "मम्मी कल मैं रात को वहीं एक मैडम के घर रुक जाऊंगी, क्योंकि परसों सुबह आठ बजे कॉलेज में उपस्थिति देनी है।" मेरी बात सुनकर मम्मी थोड़ी चिंतित लगीं... "कौन सी ...Read More पापा से पूछना पड़ेगा.." "दीदी! पता है आज क्या हुआ..?" अंशु मम्मी की आँखें देखकर बोलती हुई रुक गयी। "क्या हुआ..?" मेरी उत्सुकता चरम पर थी। हम बहनों की आँखों आँखों में बात हो गयी कि अकेले में बात करेंगे। आशा के विपरीत पापाजी ने भी रात को मैडम के यहाँ रुकने की सहर्ष अनुमति दे दी। आज दिल में विचारों का
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कभी अलविदा न कहना - 10
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 10 अब रविवार की सुबह का मुझे इंतज़ार रहता था। मैं आज देर तक सोना चाहती थी। कितनी अजीब बात है न कि जब रोज़ जल्दी उठकर जाना होता था, तो नींद ...Read Moreलड़ाई होती थी और आज जब मैं नींद से दोस्ती करना चाह रही थी तो वह रूठ कर बैठी थी। पूरी रात यूँ ही कच्ची पक्की नींद में गुजरी थी। एक रात में इतने सपने... शायद पहली बार ही था जो मैं सपनों में भागते दौड़ते इतनी थक चुकी थी कि बिस्तर से उठना ही नहीं चाह रही थी। शरीर विश्रांत था
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कभी अलविदा न कहना - 11
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 11 अगला सप्ताह काफी व्यस्तता में गुजरा। मैंने राजपुर में शिफ्ट कर लिया। रेखा और अनिता के साथ होम शेयर कर मैं रिलैक्स महसूस कर रही थी, लेकिन खुश नहीं थी। चूँकि ...Read Moreदोनों एक दूसरे के साथ कंफर्टेबल थीं और मुझे कभी कभी दाल में कंकर वाला फील करवा देतीं थीं। अब अप डाउन डेली न होकर वीकली हो गया था। सुनील से मुलाकात तो हुई थी, किन्तु बात कोई खास नहीं... अलका दी भी चुप थीं और अंकु की बोर्ड परीक्षा शुरू हो गयी थी, तो घर पर भी माहौल अभी शांत था।
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कभी अलविदा न कहना - 12
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 12 आज अचानक घर पहुँचकर मैं सबको सरप्राइज देना चाहती थी, किन्तु मेन गेट पर लटकते ताले ने मुझे ही शॉक दे दिया। सुनील से बस में हुई मुलाकात के बाद मेरा ...Read Moreमन सतरंगी सपनों में खोने लगा था, घर पहुँचकर अनेक दुश्चिंताओं से भर गया। घर में बहुत ही विषम परिस्थितियों में कभी ताला लगा होगा। सँयुक्त परिवार का यह बहुत बड़ा फायदा हुआ करता था कि कोई न कोई घर पर रहता ही था और घर की बहुएँ अपने पतियों के खाने की चिंता न करते हुए निश्चिंत होकर मायके जा सकती
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कभी अलविदा न कहना - 13
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 13 "आंटीजी की तबियत कैसी है अब..? तुमने मुझे बस में बताया क्यों नहीं कि तुम इसलिए आयी हो आज?" सुनील ने सम्बोधित तो मुझे किया किन्तु जवाब अलका दी ने दिया.. ...Read Moreतो यहीं आकर पता चला कि मम्मी आई सी यू में हैं.." "अच्छा...." उसने सिर्फ एक शब्द कहा किन्तु मुझे देखते हुए उसके चेहरे ने बहुत कुछ कह दिया था। मुझे फिर आश्चर्य हुआ कि थोड़ी देर पहले जो अलका दी अपराध बोध से भरी हुई मुश्किल से बात कर पा रही थीं, वे अचानक फिर मुखर हो उठीं... इस समय उन्हें
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कभी अलविदा न कहना - 14
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 14 "कम्मो अब खतरे से बाहर है... जाओ बच्चों तुम भी मिल लो.." ताऊजी की बात सुनकर राहत भी हुई और दहशत भी... मन में डर था कि ताईजी मिलने पर कैसे ...Read Moreकरेंगी, उन्हें अलका दी की असलियत पता चल गई है या नहीं... यह भी एक प्रश्न था। "ताऊजी! अभी उन्हें आराम की जरूरत है, हम कल मिल लेंगे... अलका दी आप चाहो तो मिल आइए ताईजी से..." मेरे कहने पर अशोक ने मुझे घूर कर देखा, किन्तु मेरी सोच को ताईजी ने सही साबित किया। जब अलका दी आई सी यू से
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कभी अलविदा न कहना - 15
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 15 आज बस में चढ़ते हुए न कोई उत्सुकता थी और न ही इंतज़ार... इन दो तीन दिनों में हुए अनुभवों से मैं विचलित होने के बावजूद स्व-केंद्रित सी हो गयी थी। ...Read Moreका मेरिट में आना एक खुशगवार झोंका था जो अलका दी, अशोक और सुनील के खयालों को दूर उड़ा कर ले गया था। सुनील और मैं साइन और कोस की सीरीज की तरह अक्ष के पास आते और पुनः दूर चले जाते... मैंने भी सोच लिया था कि कुछ दिनों तक इस सम्बन्ध में कुछ नहीं सोचना है... मेरी स्थिति उस नाविक
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कभी अलविदा न कहना - 16
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 16 मैं एकदम चौंक गयी... उसके हाथ में वाकई एक लिफाफा था... ग्रीटिंग कार्ड जैसा दिख रहा था... मेरा जन्मदिन आने वाला था, विश किया होगा.... सोचते हुए मैंने कहा... "देख अनिता! ...Read Moreइस तरह के मज़ाक पसन्द नहीं हैं।" "अच्छा..! क्या तूने कभी जिक्र किया अंकुश का...? बोल फिर हमें नाम कैसे पता...? ये उसी का पत्र है... हमने खोलकर पढ़ लिया है..." मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सी लिफाफा हाथ में लेकर कुछ पल खड़ी रही.... यह एकदम अप्रत्याशित था.. मुझे गुस्सा आ रहा था... लेकिन किस पर..? अंकुश पर...? अनिता और रेखा पर...? खुद पर..
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कभी अलविदा न कहना - 17
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 17 सुबह मेरा सिर भारी हो रहा था, आखिर पूरी रात जागते हुए बीती थी। मुझे अनमनी देखकर अनिता और रेखा भी चुप सी थीं। किसी ने एक दूसरे से बात नहीं ...Read Moreयंत्रचालित सी सुबह थी वह... चाय, ब्रेड, जैम, न्यूज़ पेपर और ट्रांज़िस्टर भी था रोज की तरह... अनुपस्थित थी तो अपनेपन की ऊष्णता और रोज रहने वाली जीवंतता...! उस दिन समझ में आया कि संवेदनाएं सिर्फ खून के रिश्तों में नहीं होतीं.. दिल के और दोस्ती के रिश्ते भी आपका दर्द महसूस करते हैं... रेखा और अनिता की उदास चुप्पी इस बात
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कभी अलविदा न कहना - 18
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 18 "मैं आज कॉलेज से सीधे ही घर निकल जाऊँगी, बैग लेकर आयी हूँ।" "क्यों..?" मेरी बात सुनकर रेखा ने यूँ सिर झटका मानो मैंने कोई वाहियात सी बात कही दी हो। ...Read Moreकि मैं नहीं चाहती मेरी वजह से पार्टी का आनंद एक प्रतिशत भी कम हो.." "ओह! ये बात है... तुमने कैसे सोच लिया कि तुम्हारे जाने से पार्टी का आनंद बढ़ जाएगा?" "यदि नहीं भी बढ़ा तो कम से कम मेरा मुरझाया चेहरा देखकर फीका तो नहीं होगा।" "हम्म्म्म...." मेरी बात सुन रेखा ने दार्शनिक अंदाज़ में सिर हिलाया और बोली... "विशु!
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कभी अलविदा न कहना - 19
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 19 ये उन दिनों की बात है जब नौकरी के लिए भारी भरकम डिग्रियों का हुजूम नहीं चाहिए होता था और न ही गलाकाट प्रतिस्पर्धा का जमाना था। कोचिंग क्लासेज अस्तित्व में ...Read Moreआयीं थीं और सामान्यतः पच्चीस वर्ष की उम्र के पहले ही डिग्री के साथ एक अच्छी नौकरी आपकी झोली में रहती थी। पैकेज का नहीं सैलरी का जमाना था। नौकरी लगते ही घर वाले छोकरी की तलाश शुरू कर देते थे। प्रेम की पींगे बढ़ाने का अवसर बहुत कम को ही नसीब होता था। रुपहले पर्दे पर हीरो हिरोइन का प्रेम ही
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कभी अलविदा न कहना - 20
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 20 जिंदगी को सुंदर बनाने के लिए तीन चीजें जरूरी हैं.. सपने, आशा और प्रेम। सभी व्यक्ति सपने देखते हैं... गहन निद्रा की अवस्था में देखे गए सपने हमारे अवचेतन में रही ...Read Moreअतृप्त इच्छा के प्रतिरूप होते हैं, जो कि जागने के बाद अदृश्य हो जाते हैं। खुली आँखों से देखे सपने हमें कर्मशील बनाते हैं। गुजरा हुआ कल आज की स्मृति है और आने वाला कल आज का सपना है। हम तीनों यानी कि मैं रेखा और अनिता उम्र के उस दौर से गुजर रहे थे जब सपनों का राजकुमार सफेद घोड़े पर
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कभी अलविदा न कहना - 21
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 21 वह रात बहुत लम्बी थी और कुछ हद तक स्याह भी... अनिता के लिए बात रुकने के साथ रात भी रुक गयी थी। हम चाहते थे कि इस रात की सहर ...Read Moreही हो। रेखा खुश थी और सपनों में खोयी थी... जागती आँखों के हसीन सपने थे वे... भोर का उजाला उसे साफ दिख रहा था और मैं... मैं सुनील की लिखी पँक्तियों में अपनी सुबह तलाश रही थी... मेरे लिए पौ फटना शुरू हो गयी थी। उगते सूर्य की लालिमा रात्रि के गहन तिमिर में भी मेरे चेहरे पर झलक रही थी।
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कभी अलविदा न कहना - 22 - अंतिम भाग
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 22 आज मानव मन के एक और रहस्य को जाना था मैंने... अशोक जी को मैं चाहकर भी भाई का सम्बोधन नहीं दे पा रही थी, क्योंकि मेरे प्रति उनकी भावनाओं से ...Read Moreअनजान नहीं थी। यद्यपि मेरे मन में उनके लिए वैसी कोई फीलिंग्स नहीं थीं, फिर भी मैं उनकी भावनाओं का मखौल नहीं उड़ाना चाहती थी। आज जब वे सुनील के बड़े भाई के रूप में मुझसे मिले, मुझे सम्बल दिया तो अनायास ही मैंने भी भाईसाहब का सम्बोधन दे दिया। मैं मेरे बड़े भाई की प्रतिच्छाया उनमें देख रही थी कि अचानक
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