चौपड़े की चुड़ैलें - 2

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चौपड़े की चुड़ैलें (कहानी : पंकज सुबीर) (2) क़स्बे के जवान होते लड़कों के लिए चौपड़ा मुफीद जगह थी दिन काटने की। चौपाल पर बूढ़ों का कब्ज़ा था और मंदिर के पीछे के मैदान पर जवानों का। तो लड़कों ने अपना अड्डा बनाया नागझिरी और चौपड़े में । गरमी के दिनों में तो वहाँ हम्मू ख़ाँ भी होता था। लम्बी और मेंहदी के रंग में रँगी दाढ़ी, सिर पर गोल जालीदार टोपी, टोपी से झाँकते मेंहदी में रंगे बाल, बड़ी मोहरी का सफेद पायजामा और उस पर गोल गले का सफेद कुरता। कुरते की जेब से लटकते तम्बाख़ू-सुपारी की थैली