कभी अलविदा न कहना - 12

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कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 12 आज अचानक घर पहुँचकर मैं सबको सरप्राइज देना चाहती थी, किन्तु मेन गेट पर लटकते ताले ने मुझे ही शॉक दे दिया। सुनील से बस में हुई मुलाकात के बाद मेरा जो मन सतरंगी सपनों में खोने लगा था, घर पहुँचकर अनेक दुश्चिंताओं से भर गया। घर में बहुत ही विषम परिस्थितियों में कभी ताला लगा होगा। सँयुक्त परिवार का यह बहुत बड़ा फायदा हुआ करता था कि कोई न कोई घर पर रहता ही था और घर की बहुएँ अपने पतियों के खाने की चिंता न करते हुए निश्चिंत होकर मायके जा सकती