आघात - 52 - अंतिम भाग

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आघात डॉ. कविता त्यागी 52 पूजा अपने बच्चों को सीने से लगाकर हृदय के भावोद्गार व्यक्त कर रही थी, तभी बाहर से दरवाजे पर दस्तक हुई । माँ के सीने से हटकर प्रियांश को वहीं पर छोड़कर सुधांशु दरवाजे की ओर बढ़ गया । दरवाजा खोलने के बाद बाहर का दृश्य देखकर सुधांशु को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ । उसकी आँखों के सामने रणवीर खड़ा था । क्षण-भर के लिए सुधांशु आश्चर्य में डूबा हुआ किंकर्तव्यविमूढ़-सा खड़ा रहा । एक क्षणोपरान्त प्रसन्नता से- उछलता खिलता सुधांशु प्रसन्नतापूर्वक चिल्लाया - ‘‘मम्मी जी ! पापा....पापा जी....आ गये है !’’ ‘‘पापा