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आघात - 52 - अंतिम भाग

आघात

डॉ. कविता त्यागी

52

पूजा अपने बच्चों को सीने से लगाकर हृदय के भावोद्गार व्यक्त कर रही थी, तभी बाहर से दरवाजे पर दस्तक हुई । माँ के सीने से हटकर प्रियांश को वहीं पर छोड़कर सुधांशु दरवाजे की ओर बढ़ गया । दरवाजा खोलने के बाद बाहर का दृश्य देखकर सुधांशु को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ । उसकी आँखों के सामने रणवीर खड़ा था । क्षण-भर के लिए सुधांशु आश्चर्य में डूबा हुआ किंकर्तव्यविमूढ़-सा खड़ा रहा । एक क्षणोपरान्त प्रसन्नता से- उछलता खिलता सुधांशु प्रसन्नतापूर्वक चिल्लाया -

‘‘मम्मी जी ! पापा....पापा जी....आ गये है !’’

‘‘पापा आ गये हैं ?’’

आश्चर्य से पूजा और प्रियांश के होंठ एक साथ प्रश्न की मुद्रा में बड़बड़ाये । अपने प्रश्न के साथ प्रियांश भी दरवाजे की ओर बढ़ गया । ईश्वर के चमत्कार से अभिभूत होकर पूजा निर्निमेष द्वार पर उधर अपनी दृष्टि गड़ाये हुए थी, जिधर सुधांशु खड़ा था और रणवीर धीरे-धीरे घर में प्रवेश कर रहा था । रणवीर को देखते ही पूजा का हृदय उत्साह में पति के प्रति प्रेम से भर गया । अति प्रसन्नता से वह भाव-विभोर हो गयी थी । उसकी आँखों में आँसू भर आये । वह दौड़कर रणवीर को अपनी बाँहों में भर लेना चाहती थी ; अपने हृदय में सुरक्षित उस सम्पूर्ण प्रेम को रणवीर पर लुटा देना चाहती थी, जो प्रेम पूजा ने अपने जीवन में रणवीर के अभाव से उत्पन्न रिक्तता के साथ अनुभव करके अपने हृदय में ही दफन कर लिया था ।

किन्तु, वह ऐसा कुछ नहीं कर सकी, जैसा चाहती थी । उसके प्रेम-उत्साह जनित ऊष्णता को उसके अतीत और पिछले कुछ समय में घटित घटनाओं की स्मृतियों ने उसी समय क्षण-भर में ठंडा कर दिया । उसके उत्साह का स्थान रणवीर के अवांछित कार्यों-व्यवहारों से हृदय में उत्पन्न वितृष्णा ने ले लिया । यद्यपि उसने अपने मनोभाव को भी प्रकट नही किया, तथापि उसका हृदय अब विभिन्न विरोधी भावों के उतार-चढ़ाव में भटक रहा था ।

वह अपने स्थान पर मौन, निष्क्रिय किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में खड़ी रही थी । वह समझ नहीं पा रही थी, प्रसन्नता के उस क्षण में क्या करे ? अपनी प्रसन्नता को प्रकट करे ? या रणवीर की गम्भीर भूलों के प्रति अप्रसन्नता व्यक्त करे ? अथवा पुरानी सभी बातों को विस्मृत कर उदासीन बनी रहे और जीवन को नये सिरे से आरम्भ करने के अवसर का स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा करे ?

पूजा अपने भावों और विचारों में कुछ क्षणों के लिए पूर्णतः खो गयी थी । उसे यह भी ध्यान नहीं रहा कि रणवीर उसके निकट तक आ पहुँचा है । अपने विचारों में खोयी हुई पूजा को लगभग झिंझोड़ते हुए सुधांशु ने कहा -

‘‘मम्मी जी ! पापा जी आ गये हैं !’’

सुधांशु द्वारा जगाने के पश्चात् पूजा ने अपने भाव-जगत और विचार-जगत से बाहर आते हुए रणवीर से कहा -

‘‘तुम ! तुम ठीक तो हो ?"

रणवीर उसके प्रश्न का उत्तर दे पाता, इससे पहले ही पूजा की दृष्टि रणवीर के हाथ और सिर पर बंधी पट्टी पर पड़ी । वह अपने एक पैर पर ही शरीर का सारा भार डालकर सुधांशु का सहारा लेकर चल रहा था । शायद दूसरा पैर शरीर का भार वहन करने में सक्षम नहीं था, इसलिए सहारे के लिए उसके हाथ में एक छड़ी भी थी । पूजा ने रणवीर की दशा का अनुमान कर लिया था । फिर भी, रणवीर ने सीमित तथा सन्तोषजनक उत्तर देते हुए कहा -

‘‘हाँ, अब ठीक हूँ !’’

‘‘अब ठीक हो ? मेरा मतलब क्या हुआ था तुम्हें ? यह चोट कैसे लगी ? कब लगी ?’’ पूजा ने झिझकते हुए पूछा ।

‘‘कुछ दिन पहले लगी थी, तब से हॉस्पिटल में था ! आज ही हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुआ हूँ !’’

‘‘इतनी चोट कैसे लगी ? एक्सीडेन्ट हुआ था क्या ?’’

‘‘हाँ ! अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ !’’

‘‘झूठ मत बोलो ! मझे पता है कि इस सबके पीछे वाणी है ! वाणी ने तुम्हारी हत्या की योजना बनायी थी ! तुम्हें शायद पता नहीं है कि वाणी अरेस्ट की जा चुकी है ! उसको कल कोर्ट में पेश किया जाएगा !’’

पूजा की बातें सुनकर रणवीर भाव-शून्य मुद्रा में निकट ही रखी हुई कुर्सी की ओर बढ़ गया और कराहते हुए उस पर बैठ गया। कुर्सी पर बैठने के पश्चात् रणवीर ने देखा, पूजा की आँखों में अभी भी अनेक अनकहे प्रश्न तैर रहे हैं, जिनके उत्तर की आशा-अपेक्षा वह अपने पति से रखती है । अपनी पत्नी की जिज्ञासा को शान्त करने के लिए रणवीर ने बताया कि कुछ दिन पहले वह वाणी के साथ अपनी कार में बैठकर जा रहा था । रास्ते में तीन-चार बदमाशों ने गाड़ी रुकवाकर उसके साथ मारपीट कर दी थी ।

रणवीर के उत्तर में वाणी को दोषी नहीं ठहराया गया था । अतः पूजा ने रणवीर से प्रश्न किया -

‘‘बदमाशों ने वाणी को चोट नहीं पहुँचायी ?’’

‘‘नहीं ! वाणी ने ही मेरी हत्या कराने के लिए उन बदमाशों को वहाँ बुलाया था ! पर मैं बच गया ! वे मेरी हत्या करते, उससे पहले ही वहाँ कुछ अपरिचित लोग आ पहुँचे थे । उन्हें देखते ही बदमाश डरकर भाग गये । तब मैं रेंग-रेंगकर कराहते-तड़पते हुए बड़ी़ कठिनता से सड़क तक आया । सड़क तक आते-आते मैं अचेत हो गया था । जब मेरी चेतना लौटी, तब मैं हॉस्पिटल में था । मैं नहीं जानता, किस सज्जन ने मेरे प्राणों की रक्षा की !’’

यह कहकर रणवीर कुछ क्षणों तक मौन बैठा रहा । कुछ क्षणोपरांत रणवीर ने पुनः कहना आरम्भ किया -

‘‘पूजा, तुम कहती हो न, भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है ! तुम्हारे इसी विश्वास को बनाये रखने के लिए ईश्वर ने मेरे प्राणों की रक्षा की है ! आज यहाँ मैं तुम्हें तुम्हारे सभी अधिकार देने के लिए वापिस लौटा हूँ !’’

पूजा ने रणवीर के कथन की प्रतिक्रियास्वरूप कुछ नहीं कहा । किन्तु, उसका हृदय विचलित हो उठा -

‘‘अब मुझसे क्या चाहते हो ? क्या फिर यह कोई नई चालाकी है ?’’

रणवीर ने पूजा के हृदयस्थ भावों को भाँप लिया । उसके हृदय में चल रही उथल-पुथल को शान्त करने के उद्देश्य से रणवीर ने गम्भीर मुद्रा में कहा -

‘‘पूजा ! मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए ! आज तक मैं अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं कर सका ! उस अनमोल समय को तो अब नहीं लौटाया जा सकता, न ही अब उस कमी की पूर्ति सम्भव नहीं हैं ! लेकिन, जो भूल मैंने अपने अब तक के जीवन में की हैं, उसे मैं आगे नहीं दोहराना चाहता हूँ ! तुम और बच्चे मेरी जितनी भी उपेक्षा करो, मुझे कोई शिकायत नहीं है, न ही भविष्य में कभी कोई शिकायत होगी !’’

पूजा को रणवीर की किसी भी बात पर विश्वास नहीं था । बार-बार उसकी चेतना से एक ही प्रश्न उठ रहा था -

"रणवीर और वाणी ने मिलकर मेरे दोनों बेटों को हत्या के अपराध में फँसाने के लिए तो यह सारा नाटक नहीं रचा था ? अब, जब वाणी स्वयं अपने फैलाये हुए जाल में फँस चुकी है, तब रणवीर सबके सामने आया है !"

अपनी चेतना का स्वर सुनकर पूजा का चित्त रणवीर के किसी शब्द पर विश्वास नहीं करना चाहता था । रणवीर के मधुर संवादों ने उसको इतनी बार छला था कि अब उस पर विश्वास करना कठिन था । किन्तु, रणवीर पर विश्वाश करने के अतिरिक्त उसके पास अन्य कोई विकल्प भी तो नहीं था । एक विकल्प था - अविश्वास और उपेक्षा । अविश्वास और असामंजस्य का दुष्परिणाम वह भोग चुकी थी । रणवीर की मृत्यु की सूचना मिलने के बाद से अब तक न जाने कितनी बार उसके हृदय से पश्चाताप् और पीड़ा में निमज्जित ध्वनि निसृत हुई थी -

‘‘काश ! मैं रणवीर के साथ उग्र व्यवहार न करती ! वह जैसा था, उसको वैसा ही स्वीकार करके सामंजस्य कर लेती, तो बच्चों को अपने पिता के स्नेह से वंचित न रहना पड़ता ! न ही कोई अन्य व्यक्ति इनके अधिकारों का अपहरण कर पाता ! आज मैं सब कुछ खो चुकी हूँ !’’

रणवीर की अनुपस्थिति में अपने हृदय से उठने वाली मूक-ध्वनि का स्मरण करके पूजा के तन-मन में क्षणिक कम्पन हुआ । उसके अन्तर्मन से पुनः एक मूक ध्वनि गूँज उठी-

‘‘पूजा! स्त्री अबला नहीं हैं ! वह तो शक्तिस्वरूपा है ! उसकी रचनात्मक शक्ति को कोई छोटी-मोटी संज्ञा प्रदान मत कर ! अपनी शक्तियों का उपयोग करके घर-परिवार का सृजन करना और उसे जोड़कर रखना स्त्रा की कल्याणकारी प्रकृति है ! उसकी यही प्रकृति उसमें सहिष्णुता, माधुर्य, क्षमाशीलता, प्रेम, त्याग और तपस्या जैसे उदार गुणों का अंकुरण-पोषण करती है ! ये गुण स्त्री को अबला नहीं बनाते, बल्कि शक्तिशाली बनाते हैं ! इन्हीं गुणों को धारण करके एक स्त्री किसी पुरुष पर शासन कर सकती है ! पुरुष ही नहीं, सम्पूर्ण परिवार पर और समस्त सृष्टि पर शासन करती है ! पूजा ! तुझे इन गुणों को अब अपनी शक्ति बनाना होगा ! तू अबला नहीं है !’’

पूजा के हृदय की आवाज उसको शक्ति और प्रेरणा प्रदान कर रही थी । उसने रणवीर की ओर सकारात्मक दृष्टि से देखा, मानो कह रही थी कि वह रणवीर को क्षमा कर चुकी है । रणवीर को अपना सकारात्मक सन्देश देकर वह रसोईघर में चली गयी और खाना बनाने में व्यस्त हो गयी ।

पूजा के मन और व्यवहार में रणवीर के प्रति अब भी नाराजगी थी । उसने अभी तक न तो किसी शब्द से तथा न ही किसी व्यवहार से रणवीर के समक्ष अपने प्रेम की अभिव्यक्ति की थी । न ही उसने यह प्रकट किया था कि रणवीर की अनुपस्थिति के अभाव में उसको अथवा बच्चों को किसी प्रकार कष्टप्रद अनुभव हुआ था । किन्तु, भोजन ग्रहण करते समय पूजा के हृदयस्थ प्रेम का आवरण तब हट गया, जब रणवीर ने तथा उसके बेटों ने एक अर्थपूर्ण दृष्टि से मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा कि भोजन की सारी व्यवस्था रणवीर की रुचि के अनुरूप की गयी है !

पूजा ने देखा, रणवीर की आँखों से निरन्तर आँसू बह रहे हैं ! वह बार-बार कनखियों से उन आँसुओं को देखकर यह जानने का प्रयास करने लगी कि रणवीर की आँखों से बहने वाले आँसू क्या कह रहे हैं ? ये आँसू पश्चाताप के हैं? अथवा प्रसन्नता के हैं? अथवा पीड़ा के हैं ? पर्याप्त प्रयत्न के पश्चात् भी पूजा उसके आँसुओं के गूढ़ अर्थ का यथोचित अनुमान नहीं कर सकी । खाना खाते समय किसी भी विषय पर उनमें परस्पर कोई वार्तालाप नहीं हुआ । खाना खाने के बाद घर के सभी लोग अपने-अपने बिस्तर पर जाकर सो गये । उस रात पूजा भी कई दिनों के बाद चैन की नींद सोयी थी ।

प्रातः पूजा उठी, तो वह बहुत प्रसन्न थी । उसने प्रसन्नतापूर्वक नाश्ता तैयार करके शीघ्र ही रणवीर सहित दोनों बेटो को परोसा और स्वयं भी उनके साथ बैठकर खाया । पूजा के जीवन में आज ऐसा अवसर एक लम्बे समय के बाद आया था, जब पूरे परिवार ने एक साथ बैठकर नाश्ता किया था । नाश्ता करके प्रियांश और सुधांशु घर से बाहर जाने के लिए तैयार हो गये । पूजा के पूछने पर उन्होंने बताया -

"आज वाणी की कोर्ट में पेशी है, इसलिए हम पहले थाने में जाएँगे, उसके बाद कोर्ट में जाएँगे ! दोनों बेटों के घर से निकलने के कुछ समय पश्चात् रणवीर भी हॉस्पिटल जाने के बहाने घर से निकल गया । पूजा घर में अकेली रह गयी । पति और बेटों के जाने के पश्चात् उसका हृदय क्षण-भर के लिए सन्तोष का अनुभव करता था, तो अगले ही क्षण अकेलेपन से व्याकुल हो उठता था । एक बार उसने सोचा कि वह भी कोर्ट में जाए और वाणी की दशा देखे, परन्तु अगले ही क्षण उसका विचार परिवर्तित हो गया । वह सोचने लगी-

‘‘अब रणवीर सकुशल घर लौट आये हैं, मुझे वाणी के केस में उलझने की क्या आवश्यकता है ? बच्चे भी व्यर्थ में परेशान हो रहे हैं !’’ अपने विचारों के अनुरूप पूजा सन्तोषपूर्वक घर के कार्यों में व्यस्त हो गयी ।

दोपहर के बाद प्रियांश और सुधांशु दोनों शान्त-गम्भीर अवस्था में घर लौटे । पूजा उनके लौटने की बेचैनी से प्रतीक्षा कर रही थी । बेटों के आते ही उसने वाणी के कोर्ट में उपस्थित होने से सम्बन्धित प्रश्नों की झड़ी लगा दी । वह अपने सभी प्रश्नों का शीघ्रतिशीघ्र उत्तर पाना चाहती थी, जबकि उसके दोनों बेटे किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के लिए तैयार नहीं थे । वे दोनों उस विषय पर चर्चा नहीं करना चाहते थे । पूजा उस विषय को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी । माँ के अत्यधिक आग्रह करने पर उन दोनों ने बताया -

"पापा जी ने कोर्ट में जज के समक्ष बयान दिया है कि वाणी ने उनकी हत्या करने अथवा किसी प्रकार चोट पहुँचाने का षड़यन्त्र नहीं किया था । वे अब पूर्ण स्वस्थ हैं और वाणी के विरुद्ध कोई शिकायत नहीं करना चाहते हैं ।"

प्रियांश और सुधांशु से वाणी के विषय में रणवीर के बयान की सूचना से पूजा का सिर चकराने लगा । वह दोनों हाथों से अपना सिर पकड़कर बैठ गयी । उसी क्षण बाहर से चिर-परिचित पदचाप सुनकर पूजा ने दृष्टि ऊपर उठायी, तो सामने रणवीर खड़ा था । वह कह रहा था -

‘‘तुम्हें आज के कोर्ट में दिये गये मेरे बयान से चिन्तित होने की या तनाव लेने की आवश्यकता नहीं हैं ! मैंने जो कुछ किया है, उसी में सबका हित है ! मैं कोर्ट में वाणी के विरुद्ध बयान देता, तो उसको जेल हो जाती और उसके बच्चे अनाथ हो जाते ! बेचारों के सिर से बाप का साया तो पहले ही उठ चुका था, माँ का सहारा मैं छीन लेता ! रही बात वाणी को दण्ड देने की, उसके लिए सबसे कष्टकारक दण्ड यही होगा कि मैं उसको छोड़कर तुम सबके साथ रहूँगा और अपनी सम्पत्ति उससे वापिस लेकर तुम्हारे नाम रजिस्टर्ड कर दँंगा ! तुम्हें और वाणी को इस विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है कि कल तक यह सारा कार्य मैं सम्पन्न कर दूँगा !’’

‘‘क्या ?’’ पूजा, प्रियाश और सुधांशु ने आश्चर्यपूवर्क एक साथ कहा ।

‘‘हाँ, पूजा ! मैं अपनी सारी सम्पत्ति तुम तीनों के नाम रजिस्टर्ड करने की अधिकांश औपचारिकताएँ पूरी कर चुका हूँ ! शेष औपचारिकताएँ कल तक पूरी हो जाएँगी ! पूजा ! प्रियांश, सुधांशु ! तुम अपना जीवन जैसे चाहो जी सकते हो ! मैं तुम पर अपना कोई अधिकार नहीं रखूँगा, पर तुम्हारे प्रति मेरा जो कर्तव्य होगा, उसका निर्वाह मैं अवश्य करूँगा ! ऐसा करके ही मुझे भी शान्ति मिलेगी और शायद, ईश्वर भी मेरी गलतियों को क्षमा कर दे !’’

‘‘आप ऐसा क्यों कहते हैं ? मुझे और मेरे बच्चों को आपकी सम्पत्ति का लालच नहीं है ! इन्हें तो......!’’ पूजा ने आत्मीयतापूर्वक कहा ।

‘‘हाँ, पापा जी ! मम्मी जी बिल्कुल ठीक कह रही हैं ! हमें सम्पत्ति नहीं, आपके प्यार की आवश्यकता है ! हम पर आपका पूरा अधिकार है और हमेशा रहेगा !’’ प्रियांश ने रणवीर से कहा । सुधांशु ने भी उसका समर्थन किया -

‘‘हाँ, पापा जी ! भाई बिल्कुल सही कह रहा है !’’

अपने दोनों बेटों का समर्थन पाकर रणवीर ने उनके कंधें पर हाथ रखकर पूजा की ओर प्रेमपूर्ण दृष्टि से देखा । पूजा ने प्रेम से मुस्कुराकर उसका उत्तर दिया और आँखें झुका लीं । किन्तु, अभी भी उसके मन-मस्तिष्क में अपना घर-परिवार पुनः बस जाने की प्रसन्नता के साथ-साथ सन्देह का तूफान उमड़ रहा था । उसके मस्तिष्क में प्रश्न और हृदय में आशंका थी -

‘‘स्वयं की हत्या का षड़यन्त्र रचने वाली वाणी को दण्ड से बचाने वाला मेरा पति वाणी को छोड़कर पूर्णरूपेण हमारा होकर रह सकेगा ? अपनी पत्नी और बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यों का पूर्ण निर्वाह कर सकेगा ? जैसाकि अभी कुछ क्षण पूर्व उसने कहा है ? शायद इस विषय में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है ! परन्तु, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि रणवीर के प्रति मेरा सन्देह उस आघात का चिह्न है, जो उससे मुझे एक बार नहीं, बल्कि बार-बार मिला है ! सहस्र बार मिला है ! जो भी हो, रणवीर को यथावत् स्वीकार करना ही मेरे परिवार के लिए अपेक्षाकृत अधिक हितकर है ! परन्तु, इतना निश्चित है, अब मैं रणवीर का अनैतिक नियन्त्रण और अत्याचार सहन नहीं करूँगी ! अब मैं अपनी मानवोचित स्वतन्त्रता का हनन नहीं होने दूँगी !"

समाप्त