पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 7

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पूर्णता की चाहत रही अधूरी लाजपत राय गर्ग सातवाँ अध्याय सैर से आने के पश्चात् कैप्टन प्रीतम सिंह ने बहादुर को बुलाया और कहा - ‘रामू, नाश्ते में आज कुछ स्पेशल बना के खिला। रोज़-रोज़ पराँठे-आमलेट खाते-खाते उकता गया हूँ।’ ‘साब जी, जो आप कहें, बना देता हूँ।’ ‘अरे, तुझे तीन साल हो गये मेरे साथ रहते। अभी तक तुझे यह भी नहीं पता चला कि मुझे क्या सबसे ज़्यादा पसन्द है।’ ‘ठीक है साब जी। आप तैयार हो जाओ। आज मैं आपके लिये खास नाश्ते का इंतज़ाम करता हूँ।’ जब कैप्टन नित्यकर्म से निवृत्त होकर नाश्ते के लिये डाइनिंग