पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 15

  • 4.9k
  • 1.6k

पूर्णता की चाहत रही अधूरी लाजपत राय गर्ग पन्द्रहवाँ अध्याय होली से अगला दिन। हरीश कार्यालय के अपने कमरे में बैठा काम निपटाने में व्यस्त था कि उसके स्टेनो ने उसे बताया - ‘सर, आपको पता चला कि नहीं, मैडम के सिर में काफ़ी गहरी चोट लगी है।’ ‘नहीं। मैंने तो नहीं सुना। तुम्हें किसने बताया?’ ‘अभी थोड़ी देर पहले अम्बाला से एक क्लर्क आया था। उसने बताया है।’ ‘कैसे लगी चोट?’ ‘चोट कैसे लगी, का तो उसे भी नहीं पता था। हाँ, वह इतना तो बता रहा था कि मैडम के सिर में कई टाँके लगे हैं।’ ‘इसका तो