पठान चाचा

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रहा हुंगा मै शायद कोई दसेक साल का,ये तब की हमारे मुहल्ले की बात है,हमारे मुहल्ले की पब्लिक खास तौर पर मुसलमानों और हिन्दुओं की मिश्रित जनता थी,आधा आधा समझ लिजीये,पर कुछ क्रिश्चचियन्स भी थे,पर पक्का बताता हूं कि कोई एक दूसरे को जा़ति के आधार पर नहीं जानता था,खुद मुझे ही पता नहीं था कि ये हिन्दू मुस्लिम क्या होता था।मेरे ज्यादातर दोस्त अकरम,शहज़ाद, और वसीम जैसे ही थे,और उनके ईद बकरीद की तैयारी हमारे घरों से और हमारे दशहरा दिवाली की शुरुआत उनके घरो से होती थी।मुुुहल्ले मे उस समय एक ऐसा भी घर था,जहाँ कुछ पठान लोगों