संदली दरवाज़ा

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संदली दरवाज़ा सुधा ओम ढींगरा बस में चढ़ते ही उसने महसूस किया, बस पूरी तरह से भरी हुई है। वह बस का डंडा पकड़ कर, सँभल कर खड़ी हो गई। बस चल पड़ी। उसने एक बार फिर चारों ओर देखा। बस के बिल्कुल पीछे उसे एक ख़ाली सीट नज़र आई। वह डंडा पकड़े -पकड़े उस सीट की तरफ अपने बदन को सँभालते हुए चलने लगी। सीट के पास पहुँच कर उसने देखा, उस पर कुछ पुस्तकें पड़ी हैं और साथ की सीट जो खिड़की के साथ हैं, उस पर एक आकर्षित नौजवान बैठा किताब पढ़ने में मग्न हैं। वह वहीं