यादों के उजाले - 3

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यादों के उजाले लाजपत राय गर्ग (3) ‘रवि, तुम्हारी इस बात का क्या जवाब दूँ, कुछ सूझ नहीं रहा। मैं तो नि:शब्द हो गया हूँ।’ कुछ समय के लिये चुप्पी रही। फिर जैसे कुछ स्मरण हो, उसने कहा - ‘रवि, एक बात तुम्हें और बतानी है.....कॉलेज में मेरे नाम फ्रीक्वेंटली रजिस्टर्ड लेटर आना अनावश्यक जिज्ञासा को जन्म देगा, इसलिये मैंने सोचा है कि आगे से तुम पत्र मेरे फ्रैंड विमल के घर के पते पर केयर ऑफ करके भेजा करना। विमल के पैरेंट्स अनपढ़ हैं और विमल मेरा अभिन्न मित्र है। इसलिये अपने बीच पत्रों का आदान-प्रदान भी विमल के